डड्वार / महेशा नंद

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पाल गौं बरजत्या गौं। इक्खा छा सौंणू अर जींणू द्विया भै। ढोल सागरा जंणगूर ढ्वल्या। बिछक पट्यूंम् वूंकि हाम छै। लोग यूं थैं ब्यौ-बरऽत्यूंम् त् बुलांदै छा, पुजै, अठ्वाड़, अस्टब्विळ, जड़्यूंण अर भैरा घड्यळौम् बि न्यूतदा छा। सौंण्वा गौळम् तामा बिजैसारी ढोल खिलौंणा सि बण्यूं रांदू छौ। सौंणुन् क्वी जागर छेड़ी नी कि द्यब्ता एक लंक्खा बटि नचद-नचद ऐ जांदा छा। भौंण-भासा मयळदू अर मिट्ठी। रामैंण माभारतै जड़ सोधनै कथ्था लगै दींदू छौ सौंणू। ढोल बजांणा वूं रुप्या नि मिल्दा छा। नाळ-पाथी फर अळझंया रैनि। बाजि दां क्वी दर्वळ्या ढोलम् रुप्या, द्वी रुप्या धैर दींदू छौ। डड्वार फर वूंकि कबलदरी ज्यूंदि छै। सिलै कु काम बि अंग्यट्यूं छौ। तौबि खांण-पींणा कुदिनी रांदा छा। बिधातौ ज्य ज्वाप मर्यूं रै ह्वलु। भूकल वूंकऽ खलड़ै उबांणा रांदा छा। हरगत रा पंणि बरगत कब्बि नि ह्वा। बाडि़ झंग्वर्वी बि टरकणि हुयीं रांदि छै। दर्वळ्य बि सौंणू नी छौ। अमणि बटि तीस-चालिस साल पैलि टिंचरी बिकदि छै। टिंचरी वीई पींदा छा जु सेठ लोग हूंदा छा। ब्यौम् सौंणू अर जींणू थैं क्वी फौजी एकाद तुराक चखै दींदू छौ, ढोलै रंगत भनांणू।

सौंण्वा छा तीन नौना अर तीन ब्यट्टि। कबलदरि छक्वै अर सारु गैख फर। चैता मैना पसऽरु मांगि जु नाज मीली, वांयि फर बेळ सर्दि छै। सौंण-भादौ कऽ मैनौं आंद-आंद चैतै चुंग्टि खोरि-खारी खये जांदि छै। बसग्याळम् कुरऽड़ा संक बजंण बैठि जांदा छा। ब्यौम् कंटळम् मिल्दि छै ब्यौकि नाळ-पाथि, वु द्वी दिनों बि नि हूंदि छै। अपडि़ गैखिम् जब वु सिल्यां झुल्ला दींणू जांदु छौ तब गैख्यांण भरि भिन्न-भौ कर्दि छै। चौका तिर्विळ सग्वड़्म् च्वाळा डाळा तौळ गास-गफ्फा खलांदि छै। औजी, मिस्त्री अर ल्वारौ खुणै कुकुरै सि एक थकुलि खुंट्या ब्यांरम् धरीं रांदि छै। जू बि औ, वु वीं थकुलिम् गैखा घौरम् जिम्दु छौ। भूक भला-बुरा कर्म करै दींद। चाऽ बि औड़कीटी पिला। अपड़ा ड्यारम् गिलास छळयाण्म् ज्व पुलबैं हूंदि छै, वऽ मुंथा कै काम कैकि नि हूंदि छै। जिकुड़म् सेळ पुड़्दि छै। टूट जक्ख हूंद त अपड़ु टुपला हैंका खुटौंम् हत जोडि़ सुरक धर्ये जांद। डौर अर भूका मारा मुकमुल्यजू कन गीजी ग्या सौंणू। पखंणु बणै द्या बिंगदरल् कि मुल्यजै मौ बल ढुंग्गम् जौ।

कौ-कारिजम् ढोल बजांदि दां मार जूदा खयेंदि छै। हब्बि-तब्बि, रोटि-बेटि गैख ब्वन्नि लग्यां रांदा छा। गैख फतूर कैर, यु वेकु इखत्यार अर छिछगार खांण येकु जलम्जातौ धरम ह्वे ग्या। जक्खम् रा, हत जोडि़ कि रा। गैख थैं बि क्य चयेंद छौ। एक दां डौर जिकुड़ा बैठि छै त् बैठ्यीं रै ग्या। डड्वारा पैथर डड्येंणू रा, तौबि सौंणुन ढोल बजांण नि छोडि़। बिर्ति अंग्यटीं छै। जन माछों थैं कतगि बि ध्वा, वूंकि मछळ्याण नि बौग्द, तन्नि गैख्वी जिकुड़्यूं कु मैल कब्बि नि बौगि। न येकि डौर ग्या। जात बडि़ च त् कुकर्मि बि पुजे जांद। सौंणू भलु मनिख, जात्यू छ्वट्टू। मोंण्या मत्थि गैखौ खुट्टु सदनि रा। बिधातल् गूदू त् खूब द्ये छौ। पणि जलम् लींदी सार वे फर बूखू भ्वर्या। गैखल अफु आखर बंचिनि अर येकु बोलि कि तिल क्य कन पौढि़। जुबराज रैनि वु पितर जौंऽन मुखागर रामैंण, पुराण, माभारतै कथ्था, ढोल सागर, अड़दास, मंतर, जागर, धुंयेळ, रौखिळ, मांगळ, थड़्या, सरंया, चौंफळा, द्यूड़ा, अर झुमैला जना गीत बिंगै द्येनि। अनपढ़ रै कि बि वेन बांचि छ। पौढ़ सकदा त् ढोल सागर अर हौर सल्लू कऽ अमणि गरंथ बण्यां रांदा। मुंथम जतगा बजांणा यंतर छन वूंकु जलम् ये ढोली बटि ह्वा। वून ढोल थैं नचाणौ एक बाजु माणि। ढ्वल्य ‘दास’, जु भूका ऐथर लाचार छ। वेकु ज्ये बोला- जोड़ू-जुत्तू। गैख अपडि़ जात्या धज्जा घैंटुणू रा, यु अपडि़ जात लुकाणू रा। यीं जात्या पैथर कैन नि धुर्या वु। जात्यूं कऽ चुफ्फा बोटी भूस बुद्या घंट बण्या रैनि।

बचनसिंगै नौन्या ब्यौम् सौंणू अर जींणुन् उद्दी बिछक घपग खैनि। उद्दिल् यूं थैं हळ्दु खंण्य बणै द्या। टकराळ बिगाड़ी मट्टू जमऽदारल। मट्टुल् जींणू थैं छक्वै कच्चि पिलै द्या। न्यूत्यरा दिन सौब आबत नचणू चौकुम् अयां अर जींणू ग्वींडम् लम्पसार हुयूं। सौब फौंर्यां यूं थैं कच्याणू। जुत्ता खये जाला, पैलि ईजत बचा। सौंणु वे थैं पकड़-पकडि़ ल्है त् छैं छ पणि वेन दमौयि नि बजै साकि। पौंणौंन् वे खुणै घबरि गाडि द्या। बचनसिंगन् वेकि छूत झाडि़ बोलि- ‘‘सोर कु बच्चा साला! अब्बै डड्वारै दां त्यरि सैंण चौकुम टल्खू फोळ बैठि जांदि। अर ढोल बजाणै नौबत आंदि त् सि हाल छन तुमऽरा। सौंणू! तु सोरग जऽ चा पाताळ जऽ, तु दमयां थैं ल्हौ। निथर त्यरि लींडी भबरै कि ऐ गि अमणि। म्यारा आबतुल कब नचण।’’ खुसालसिंगै सैंण दौऽनि मनिख्यांण। ब्वाद- ‘‘अरै, यूंकऽ मौन चौढि़ ग्येनि। अकाळ पुड़दन अब। दारु पींणै कतनि बड़अदमै ह्वे ग्या बोला धौं।’’

सौंणुन ढोल छौंदंण्म् धैरी अर जींणू थैं ल्हिसोर-ल्हिसोरी घौर ल्हा। वेकु सरेल डाळा लगि ग्या। दमयां यीं रात कक्ख बटि ल्हौ। गौंम् यि चार मौ छै। बिन्नादास अर छवणूदास बरात बजाणू हैंकऽ गौं जयां छा। सौंणू जेठू नौनु मनसाराम सयणू छैं छौ। मनसाराम थैं ब्यौम् जाणै रामरैंण पुडि़ं छै। वेकु झाड़ काटि ना ब्वल्यूं छौ कि ढोल नि धुंळ गौळा उंद। वु एक दां सौंणू दगडि़ बमणकोट ग्यै छौ ब्यौम्। वुक्ख दर्वळ्यौंन् दुया मबत्वी इनि फतूर कै छै कि मनसाराम अपड़ा जीबन स्ये घिंणाण बैठि ग्या। अब वेन इत्यास पौढि़ यालि छौ। वेकऽ आँखा खुलि ग्ये छा। वेन कतगि दां ढोल फोडि़ अंणस्यळा भेळ लमडा। सौंणू ततगि दां ढोल थैं घौर ल्हा। वेकु ऐ ढोला परताप खयूं छौ। ढोलै बिजूत नि सै सकदू छौ। चा वे क्वी कतगि किलै नि घपकौ। क्वी दर्वळ्य जब ढोल फर हत लगांदु छौ, वेकु सरेल मिमरै जांदु छौ। जु वेम तागत हूंदी त् वु इना मनिखा चीरा-फाड़ा कै सकदू छौ। वु जब बरात बजै कि आंदु छौ तब ढोल-दमौ थैं निरंकारा ठौ फर हत जोडि़ धैर दींदु छौ।

सौंणु अंदरमंजु नौनु जैराम छौ। लौ-बांण्यू नौनु छौ। एक-द्वी दां वु संगरांद बजाणू गौम ग्ये छैं छ। जैकु बुबा सल्लि ह्वलु वेकु नौनु पुटगै बटि सीखी ऐ जांद। जैरामौ बोल द्या सौंणुन्। जैराम दसम् पंण्णू छौ। सरेल सौंणू बि नि कनु छौ कि जैराम दमौ बजाणू जौ, पणि इबऽरि घति इनु ऐ ग्ये छौ। गौंम् राण-खाणै बात छै। जैरामा गौळा मा ढोळ द्या दमौ। बचनसिंगा चौकुम् पंडों अपड़ा बिकराळ भौम् नाचि फटऽळा फुंणा छा। सौब गुमरयूंम् नचणा। क्वी नै जमऽना बौ, स्याळ अर छोरी टैपा गीत लगाणू ब्वन्नू त् क्वी पंडों कि जागर त् जनऽना भगवति जागरौ ब्वन्नि। एकल् बोलि- ‘‘सौंणू, म्यरि बौऊ सुरीला, बौ जि दनगळा कऽ म्याळा, म्यरि बौऊ सुरीला। लगैदि ये गीत थैं। बौ कऽ गित्वी भौंण कनकै मिसौ जैराम अपड़ा बाबा दगडि़। जैकु मोर बल वु क्य नि कैर। सौंणू दगडि़ जैरामल् सगिळ रात दमौ बजै द्या। दमौ बजाणम् वे क्वी उपेड़ नि ह्वा, बिनै छ त वु यूं लुखू सुभौ। वेकऽ बुबौ वु भौं कुछ ब्वन्ना। बुबा सौब अणस्यळा मंगा सि चिनगरों कऽ डाम बे खाद-बादौ सांणू।

सौंणू अर जींणू थैं ढोल बजै कि खिट्टा पोड़ी ग्ये छा पणि पुटिग्या बान सौब सयेंणू छौ। अठ्वाड़, अस्टब्विळ, ब्यौ हो चा पुजै ढोला पैथर संगता मारी खा। ये ढोला पैथर झणि किलै हूंदु छौ घपरोळ। नचणै त् नाचि ल्यादि। नचंऽऐणा छंया। भूस बुद्या मनिख। जु-जु नि आउन अर गगराट कै ढ्वल्या ऐथर। एक ढोल थैं अफु जना खींचू त् हैंकु सौंणू कंठ्यळू झंझोड़। कबि त सौंणू अर जींणू थैं वु धौंणिम् बोकि नचाउन अर कबि वेकि घिंण्ता कैरुन। यनि छ्वीं सौंणू अपड़ा खोळ-द्वारम् लगांदू छौ। तब वूंकि खौळ मचीं रांदि छै। जनऽनों फर जब क्वी देबी आंदि छै तब वु सौंण्वा गौळा उंद झुंट्टि मारी थथराणि रांदि छै। ढौळम् ब्वलुन- ‘‘लगौ म्यारा भगता वीं नंदा कि जाता...। किल्ल किल्कताळ मारी गिच्चा बटि इन सुसगरा भ्वारुन जन ब्वलेंद कतगा अटगि ऐ ह्वलि य देबी। वीं देबिन् यीं देबी थैं नि बिंगा कि बाजि दा तु ये सौंणू द्येखि छै लंक्खा बटि धै मार दींदि कि हे सौंणू फुंड चौडि़ जगम जा, मि आणू छौं। मै फर नि भिडे़। अबऽरि किलै छै वेकऽ गौळा उंद झुंट्येंणि। जींणू जब बिजाम थकि जौ, देबी नि घिर्याउन तब वु भौंण पुज्दि दां गाळ बखण बैठि जांदू छौ।

जात्य कतगा काँडा बुत्यां रैनि। ब्यौ-कारिजुम् गैख्वा ड्यरौम् सींणू खुणै ग्वरा उबरा अर खाणू खाउन वु सग्वड़ौम् क्यत कुलणोंम्। बाजि वनि कज्यणि। पीट पैथर ज्ये हूणू छ, पणि बीच पंचेतिम् वु धोति मूंजी बिटै कि पतळा फर भात वूंकि संणि इन चुलै जांदि छै जन कोढी थैं जिमाणी हून। अफु जन ब्वलेंद यि सात पाणि धुयीं हून। भाता डौळा बाजि दां माटम् रम्दे जांदा छा। सौंणू मुक ऐथर बोल- ‘‘काकी क्वी बात नी। धरतिम् पुड़्यूं अन्न पबेतर छ।’’ जन्नि काकी फुंड जौ तन्नि वु बोल- ‘‘काकी! त्यारा कतगा चरेतर छन। मैस मारि सति हूंद। ब्यौ-कारिजुम् तुमऽरा उबरों हम सियां रंदां। उबरों जु गबदाट हूंद, वे हम अंक्वै बिंगदां।’’

सौंणू थैं छिछगार खाणौ ढब ह्वे ग्या। गैख्वी गाळ फूल लगिनि। अपड़ु बगत निमा। एक दिन सौंण्वी सैंण राजि डड्वार मंगणू दौलतसिंगा गौळम् ह्वे ग्या खडि़। गौळा बटि वीन किर्रै-किर्रै कि धै लगै द्येनि। दौलै सैंण सम्पतिल वऽ चौकुम् बि आंण द्या। बाठै बटि वीं थैं धुर्ये द्या- ‘‘हे सौण्वी सैंणी! तु कतगा जिदमार छै। जब त्वेकु बोल्यालि कि मिन त्वे डड्वार नि दींण, त् तु नप्प-नप्प क्य ढुकीं छै। चैता मैना तिन पसऽरु जूदा मंगण। मोरलु वेकु जौऽन तुम तीन कौड्या कुजातू थैं ये गौंम बसा। मि अबऽरि हौर कामू मा बिळम्यूं छौं, हैंकऽ दिन ऐ।’’ राजि अपड़ा सि मुक लेकि घौर ऐ ग्या। वीन ज्यू मा ग्याणि करिनि म्यारा नौना छन। मैसा भोर त् छिछगारी खा। नौना ह्वे-खै जाला त् तुमऽरि दबैलचरी तक्खि रै जालि। मनसारामल् बीए अर जैरामल् इंटर कैरि। कंण्सु अबि दसम् पंण्णू छौ। ब्यट्टि सब्बि बिवै यालि छै। ज्वी मैमान आ, वे यि सम्धि बणा। गेढि़म् ध्यल्ला हूंदा त् ऊरा-धूरा कै ब्यौ हूंदा। एक उबरी पांडिम् बगता घौ सैनि। घौरम् ऐकि वीन मनसाराम मा गैख्यण्या औगार कै द्येनि- ‘‘मन्सा! ब्यट्टा, तिल कब लगण नौकरी फर। गैख्याण टुकरा मनि रांद ब्वाद मोरलू वेकु बल जौऽन तुम तीन कौड्या कुजातू थैं ये गौम बसा।’’

‘‘मयडि़! तु नि जण्दि। यऽ गाळी त् हमन दींण छै कि मोरलू यूंकु जु हमऽरि थातिम् धरु-कखरु बटि ऐनि। जौऽन हमऽरि जैदाद लूछी। हम थैं निकम्मु अर कुंजण्या बणा। मयडि़! य धरति हमऽरि छ। सच्चा गढ़विळ हम छां। यूं डांडि-कांठ्यूंम् हमऽरा पितर रांदा छा।’’

‘‘तु त् झणि क्य ब्वन्नि छै धौं। मै थैं डौर लगणी छ। किर्त्वा नौनौ ब्यौ छ। त्यारा बुबा जी त् नि मण्दा। तै ढोल बजै कि छिछगारी मीली। ब्वादन बल कि ये असवाळ ठाकुरै लींणी एक न दींणी द्वी, बे खाद-बादौ आँखी घुर्ये द्वि।’’

किर्तसिंगा नौनौ ब्यौ वीरी ग्या। गैख्यू कारिज छौ। ना नि ब्वल्ये सक्या। सौंणू खुणै फिफटाट ह्वे गि। दमयां कै कैर वु। जींणू घप्ताघोर बिमार पुड़्यूं छौ। धौ सिनकै वेन जैराम पुळे-पते कि पैटा। बरातल् डाबर गौं जाण छौ। बरात पैटदि दां पौंणौंन् यूंकि पौंणै भात घडि़ भर मी निकाळ द्या। सगळ्या बाठा फर ढोल-दमौं बजै कि कांध लुंगच्ये ग्येनि द्विया मबत्वी। उकाळ फर चढ़दि बरात। नचदरा उकाळ फर सौंणू थैं चढै़ नि च्हंण दींणा। पसिन्या छाड़ा छुट्यां। ढोल बि बुकेंणू, उना नचदरा घुंड्य ताल मंगणा। जैराम नौन्याळ ठैर। वे थकि लगि, वेन नि बजा दमौ। बल्लू हूस मनिख। वेकऽ पेटम् बिंडि उठीं नचणै। वेन चटैं-चटैं चार चटकताळ मारि द्येनि जैरामै गल्वड़्यूं फर। ‘‘उल्लु कु फट्टा साळा। हब्बै भात खाणू अयीं छै तु बरातम्। चल बजौ दमौ। नचणै सरि रंगत थैं र्यड़-फ्यस्स कनु छ साला।’’ उकाळ फर कक्ख आण छौ नचणौ छन्द। ब्वादन बल कि जैकु जांठु तैकु बांठु। नि लगि साकि सौंणू कैकऽ मुक। जैराम हर्बि दमौ बजाणू हर्बि रूणू।

बरात दुफरै मा पैटि ग्ये छै। कक्ख रै ग्या पालगौं अर कक्ख डाबर। लंक्का टंक्का। बरात अदबट्ठा फर छै। मैला मुलुक जना सणा सोटै बरखा लगीं रा जणि। ज्यां स्ये हिंसर्या गाड अयीं छै। गाड सम्म भ्वरीं। गाडौ कौजाळ पाणि छल्वार मनू छम्म-छम्म गाडा ल्वाड़ों फर। बरात गाड प्वार कनकै जौ। वे जमऽनम् पुळ नि छा। न अजक्याला जन फून छा। डाबर गौं यीं गाड बटि पट्ट द्वी मैलै चढै़ फर छौ। सौब गाड वार मींढों-मींढोंम् बैठ्यां। कै थैं क्वी सूज न कि क्य कन। कनकै गाड तर्यौ। सौब गुंण्याणा। पणि क्वी ब्यूंत नि आणू मत्तिम्। यीं गाडा इन्नै-उन्नै क्वी गौं बि नि छा। सौंणुन् ढोल-दमौम् ताल मिसै द्या। चैतसिंग फौजि मनिख। ढ्वल्यों खुणै वेन जु नि ब्वन्न छौ। माँ-बैंणी गाळ धैरी ब्वाद- ‘‘उल्लू कऽ फट्टा साला। अबै बरात अकळाकंठम् पुड़ीं छ अर तुम ढोल बजाणा छंया। बन्द करो ये ढम-ढम-ढम-ढम।’’

‘‘हौळदार जी फिंगर्या न भै। अब्बि इक्ख डाबर गौं कऽ दाना-सयणा मनिख आला। वु गाड तराणों क्वी उयार कैरऽला। हम थैं ढोल बजाण द्या।’’ सौंणूदासल् तीन दां ढोलम् अंगळति सबद बजा। तौड़..तौड़..तौड़..द्गिन्नतौड़् द्गिन्न..द्गिन्न..द्गिन्न..द्गिन्न..द्गिन्नतौड़..। पाँच दां बजि यु सब्द। ढोळ बजाण बन्द कै कि सौंणुल् सब्बू बोलि- ‘‘सौब घडे़क चुप रा।’’ वु टक्क लगै कि सुण बैठि। गदना सुंस्याटम् वेन क्वी सब्द नि सूणी- ‘‘जया! चल ब्यट्टा ओ मत्थि धारम् चल। गैरा रौला बटि ढोलै गाजना नि जाणि छ जणि।’’

सौंणू अर जैराम ढोल-दमौ लेकि उच्चि धारम् ग्येनि अर वन्नि सब्द बजैनी वून। डाबर गौं ढोलै गाजना पौंछि ग्या। डाबर गौं बटि बि उक्खा ढ्वल्योंन् वीं यि ताल थैं तीन दां बजा। फेर इना बटि सौंणुन् सब्द बजा- द्ग्न्न..द्ग्न्न..द्ग्न्न.. द्ग्न्न..। सौंणु बिजाम देर तकै यीं ताल थैं बजाणू रा। उना बटि सब्द सुण्या- गिनन्तौड़.. गिनन्तौड़.. गिनन्तौड़. .गिनन्तौड़। डाबर गौं रैबार पौंछि गि। बरात खौरिम् छ। डाबर गौं कऽ लुखुल् बींगी द्या कि हिंसर्या गाड अयीं छ जणि। रैबार द्येकि यि अनमनि भाँत्या ढ्वल्या तौळ बराता समणि ऐनि। सौंणुन् किर्तसिंगम् बोलि- ‘‘ठाकुर जी! रुफणा न। डाबर गौं बटि बैख पैटि ग्येनि। तबऽरि तकै बरात थैं थौ खाण द्या।’’ रुमुक पोडि़ ग्ये छै। सरग ये छोड़ बि घिरेंण बैठि ग्ये छौ। बरखा हूणे सुंभेर ह्वे ग्ये छै। सौब गदना छाला डना छा। अंध्यगोरो राज हुयूं चौहडि़।

डाबर गौं कऽ बैख रांका, छिल्ला अर मुछ्यळा बाळ उंदर्यू खुणै आंद द्यखेनि। डाबर गौं कऽ बीस-पचीस बैख दंग्यलु बणैकि आणा छा। वूंम् कैमा कड़ी, तगता, त् कैमा लम्बा-लम्बा सुळ्यटा छा। डाबर गौं कऽ लुक्खू अडगळ्यूं छौ कि कक्खम् गद्नू संगड़ु छ। पल्या छाला बटि कै मनिखल् यूं थैं धै लगा कि जरा उब्बाँ आ। किर्तसिंगा छिल्ला ल्हिजयां छा, वेन जणदसेक छिल्ला बाळ द्येनि। बरात बाठा अबठा जरा उब्बाँ ग्या। डाबरा बैखुल संगडि़ जग्गम् गदना ओड़ा-छोड़ सुळ्यटा, कड़ी अर तब तगता मिसैनि। वून बरात थैं गाड तरै द्या। गाड तौरी डाबर गौं बरात पौंछि ग्या। कै बि निरभगिल् यूं ब्यूंति ढ्वल्यों कि पीठि फर सबस्या हत नि रखिनि।

सर्गम् द्वी-तीन गिड़्क्ताळ ह्वेनि अर पाछ सर्ग फटै ग्या। जन्नि बरात चौकुम् बैठी तन्नि डाबर गौं कऽ बैख सौंणू थैं घचकाण बैठि ग्येनि। रुसऽड़म् पौंणा पौंणैं खाणा, सौंणू अर जैराम यूं नचाण फर मिस्यां। बरऽत्यूंन अर गौं वळोंन् पुटगि भोरि पौंणै खा। पाछ पालगौं कऽ फौंर्ये ग्येनि नचणू। मंडांण लगि गि। रात कटंण छै। ब्यौल्या इक्ख ढकेंण-डिसांणै तंगि रा। जै जक्खि हौड़ टिकाणू जगा मीली, उख्मी लटग्या। जै क्वी अड्यसु नि मीली, वु पंडौं नचण बैठि। रात कैन बि सौंणू अर जैराम थैं थौ नि खाण द्या। एक द्वाळ्या नाची थकणा, वु सींणू जाणा। जु स्ये कि बिजि जाणू वु पंडौं नचणू। क्वी परदेस बटि अयां। वु नचणू भरि कमतांणा। बरसू बटि वूं यनू ढ्वल्य मीली छौ। सौंणूदासौ माभारतौ किस्सा छिड़्यूं। कथ्था पंडों खुणै ब्वंणबास हूण तकै पौंछि ग्ये छै- ‘‘पंडौं तुम चला भारता.. पंडौं वु पापी दुर्यौधन.. पंडौं तुम चला भारता.. पंडौं तुम पैटा ब्वंणबास.. पंडौं तुम चला भारता..।’’ ‘ड़्द्गिजडि़ घिंगजागिजडि़ ड़्द्गिजडि़ घिंगजागिजडि़’ ढोलम् यि सब्द आणा अर सर्बट सौंणू ढोलै पूड़ अपड़ा घुंडों जना फरकाणू अर घुंड्या ताल मिसाणू- ‘तखिंतडि़ खिंकताखिंतडि़ तखिंतडि़ खिंकताखिंतडि़’ नचंण वळों कि बाऽर पुड़ीं। नचदऽरा सौंणू अर जैरामै भौंण दगडि़ भौंण मिसाणा- ‘‘पंडौं तुम चला भारता.. अर हर्बि स्यू..स्यू..स्यू..सबऽसैऽ ऽ ऽ’’ सौब ऐडै कि घुंड़्य रांसू लगाणा।

संगरमू ब्यौल्यू कका। वे थैं ज्य चौढि़ ह्वलि भिंग्रि। वेन ढोलौ तैंणू पखडि़ द्या। सौंणू खुणै आँखा घुर्ये कि ब्वाद- ‘‘रामैण न, माभारतै चाल लगौ। मिन पंडौं नचंण।’’

‘‘अजि साब, माभारतै कि चाल त् लगीं छ। तुम बगच्छट्ट ह्वे कि नाचा।’’

‘‘सोर कु बच्चा साला, हब्बे बोल, ब्वंणबास कैकु ह्वा ? रामचंदर जीकु। तु पंडौं खुणै ब्वंणबास किलै ब्वन्नि छै। हब्बै म्यरि रामैंण, माभारत सौब पढ़ीं छ। क्वी सुण्णू नी छ त् क्य तु सुद्दि रैलि ब्वन्नि।’’

‘‘ब्वंणबास रामचंदर जीकु बि ह्वा अर पंडौं खुणै बि। फूका बज्जर घाला, तुमी ब्वाला, क्व चाल लगाण?’’

‘‘म्यरु बाजु रंगा रंग बिचरी रंग दे दि मोला..।’’ संगरमुल् गिच्चि कताड़ी गीत लगा अर नकचौला करिनि। सौंणू अर जैराम हैंसू त् कनकै हैंसू। नाऽड मनिख जाणी वून बौगि सार द्या। ब्यौलै तरपां बटि झांझि छौ बल्लू। वेन बि ढोल पखडि़ द्या। ढोलौ एक तैंणू संगरमू त् हैंकु बल्लू पखड़्यूं। बल्लु पंडों कि चाल मंगणू। संगरमू बाजू रंगौ गीत लगाणू ब्वन्नू। सौंणू खुणै दुसंसु हुयूं कैकु जि ब्वल्यूं मान । पाछ वेन पंडों कि चाल लगै द्या। अदा कथ्था छ्वडंण वे बि भलि नि लगि। जन्नि वेन पंडों तुम चला भारता.. बोलि अर चटैं एक उल्टा अंगुळों कि छक्कड़ सौंण्वा गल्वड़ोंम् मारि द्या संगरमुल। ढोल बजण बंद ह्वे गि। सौंणू हत जुण फर लग्यूं। इना बल्लुल् सौंणू कंठ्यळु झंझोडि़ द्या- ‘‘सौंणू! तिन ढोल बंद किलै कैरि? चल बजौ।’’

जैरामल् रूंद-रूंद बोलि- ‘‘म्यारा बाबा थैं नि मारा। पैलि तुम फैसला कैरा कि बाजू रंगौ गीत लगाण कि पंडों कि कथ्था।’’ जैराम रूंण बैठि ग्या।

‘‘बाजू रंगा रंग बिचरि रंग दे दि मोल..।’’ गीत लगऽलू भस। मिन बोल्यालि। नै तो मै रांझि-बांझि कैर दूंगा।’’ संगरमुल जबऽरि ‘रांझि-बाझि’ बोलि तबऽरि वेन ढोलौ तैंणू पखडी़ सड़ैक खींची द्या। सौंणू ढोली सुदा धड़ैम लमडि ग्या। संगरमुल जब बिजाम घपरोळ कै द्या तब ब्यौल्या बुबा फर चौढि़ गि- ‘‘म्यरि ब्येट्या ब्यौम् क्वी घपरोळ नि कर्यां भा रै! मि नखरा गुस्सौ छौं। ढोल बजाण बंद कैरा। रातै तीन बजि ग्येनि। हमन् हौर बि काम कनन्।’’ सौंणुन जन्नि सूंणि कि ढोल बंद कैरा तन्नि वु उबरु ख्वज्याण बैठि। जैराम थैं निंद्या झ्वक्का पुंणा छा। वु सुरक एक उबरा पेट लुकि ग्येनि। कै निरभगिन वूं पौंणै नि खला। न कैन वूंकि जाच-पूछ कैरी। जाच-पूछ धन-दौलत अर जाती हूंद। जु यूंम नि छै। जैराम थैं भूक लगीं छै। थकी गत कटमचूर हुयीं छै। बुबा थैं कळकिळ लगि ग्या। भात मंगण्म् इबऽरि कुछ नि बिगण। सौंणुन् एक जनऽनम् बोलि द्या- ‘‘कैन बि पौंणै नि जिमा। नचदरौन् छुलुमी नि द्या। नौनू बुख्या-बुक्खि छ। भात उबर्यूं ह्वलु त् द्ये द्या।’’

वे जनऽना थैं बि कळकिळ लगि। वीन रुसऽड़ा मंगा सौब भाता तौला-पत्यला खंगोसी द्येनि पणि बुरा सौं जु भातै एक करछुलि बि तौला बटि गाडि साकि हो। पर्वसा ल्हिजंदरौंन् इन उडा पौंणै भात जन ब्वलेंद वून कब्बि भात खैयी नि हो। जैराम बुख्या-बुक्खि फस्सोरि स्ये ग्या। भूक क्य जाण बल बासि भात अर निंद क्य जाण बल टुट्यीं खाट। जैराम ग्वर्वा उबरा नांगा ढुंग्गौंम् पुड़्यूं। पढ़्यां-ल्यख्यां नौनै इन कुगऽता द्येखि सौंण्वा आँखोंम् तर-पर-तर-पर अंसधर्या छाड़ा सि जन छुटि ग्येनि- ‘‘हे निरंकारा! ठाकुरा! हमऽरि कब सुण्ण तिन।’’ पुकार द्या सौंणुन् अपड़ु ठाकुर।

डाबर गौं कऽ जनऽना नि स्ये छा। वून पौंणौं खुणै दाळ उज्यांण घालि, तब वून जुट्ठा भांडा ध्वैनि। रातै चार बजणी छै। बल्लू खुणै चैन नि छै। वु रात भर रिंगरिट्विळ कन फर लग्यूं छौ। वेन रुसऽड़म् जनऽना द्येखि द्येनि। वु चल्ये जनऽनों कऽ बीच। कपाळ फर रुमाल बंध्यूं। जुल्फा छ्वड़्यां लम्बा-लम्बा। कै जनऽनन् वेमा बोलि द्या कि हम बि नचणा छां। बल्लुल् इतगा क्य सूणि कि वु मिमरै ग्या। उबऽरि वेन अफु थैं कै महान करांतिकारी कऽ जन चिता। गुमरयूंम वु छत्ति फुलै कि रिटंण बैठि गि सौंणू ख्वज्याणू। जनऽनों कु नचणौं ज्यू ब्वन्नू छ अर सौंणू सियूं छ। यु भौत बड़ु अन्यौ छ। जैन बोलि ह्वलु कि इक्ख छन सियां ढ्वल्या। बल्लुन् धैम मारि मोरा पट्यलोंम् लत्ति। भितर सौंण्वी जिकुडि़ उंद हिदराट पोडि़ ग्या। सौंणू त् बिजि गि, जैराम नि बिजि। बल्लुल् ढोल उठा, सौंणू बोलि कि ढोल बजाणू औ। सौंणू कनकै औ। जैराम फस्सोरि स्ये ग्ये छौ। बल्लु ढोल थैं डंग्ग. डंग्ग. डंग्ग. डंग्ग बजांद चौकुम आ। ढोल चौकुम धैरी वु रुसऽड़म् ग्या। वेन जनऽनों कु नचणू बोलि। द्वी-चार हुळ्येर बानि कज्यणि। वु बल्लु दगडि़ नचणू पैटि ग्येनि। बल्लु ज्यूम् खुस हूणू कि अब आलि मजा। वु चौकुम् आ।

सौंणू नि ऐ छौ। बल्लू फर भिंग्रि चौढि़ गि। वेन वे उबरा जैकि सौंण्वी कोखि फर एक घपाग इनि मारि कि सौंणू म्याळम् लफड़ाण बैठि गि। धैर वेन एक लत्ति जैरामा पूठों फर। जैराम बिबलै ग्या- ‘‘बाबा! मोर ग्यों मि। बाबा मै बचावा!’’ ये निरकंठि थैं नि आ दया। सौंणू भुय्यां लफड़ाणू छौ। बल्लुल् सौंणू कंठ्यळु पख्डि़ अर खिकोड़ भैनै खुणै। जैराम रूंद-रूंद भैनै आ। जिद्यूं कै वेन ढोल-दमौ वूंकऽ गौळों उंद धोळ द्येनि। सौंणू थैं बजाण पोडि़ ढोल। फेर पंडों कि चाल लगै द्या। जनऽना नचण बैठि ग्येनि। जैरामै दाडि़ रमसांणी बल्लू द्येखि। जैराम ज्यू मा गुंण्यीणू- ब्यट्टा जु मै फर तागत हूंदी त् त्यरु इनु थिंच्वंणि बणादु कि त्वे पत्तै चल्दु पणि क्य कन। सौंणू जूदा अपड़ा सरेलम् पुकार कनू- ‘ह्वालू! यांकु निसाब ह्वालू। मनिख न, ठाकुर कैरऽलु।’ सौंणुन जैराम थैं भौंण बिंगा- पंडों तुम चला भारता..। दौऽनम् जैराम भौंण पुजणूं- ‘रंड्डू तुमऽरा मैस मोरऽला.. रंड्डू, तुमऽरा मैस मोरऽला..।’ ढोल-दमौ कि गाजनम् कै थैं नि सुणेनि गाळ। सौब ठुमका लगैकि नचणा। डाबर गौं कऽ एक रुंड टैपा मनिखल् बल्वी हरकत द्येखि द्या। वेकु नौ छौ देबू। बल्लु एक जनऽना फर नचद-नचद हत लगाणू। जनऽनु कुछ नि ब्वन्नु। देबू रिसै ग्या। देबुन् उठा जाँठू अर आँखा बूजी सटेल बल्लू। मरम्मरा हूंद द्येखि ढोल-दमौ लेकि सौंणू अर जैराम तु-तु-तु-तु अटगिनि अर वेयि उबरा। वून भितर बटि गोळुण लगै द्या। जनऽना उखुम् बटि इन भजिनि जन गंड्येळा सिंग लुकि हून। पता नि चलि कि कु छा वु। बल्लू रुळ्याट सुणेणू। कपाळ बटि ल्वे कऽ छंछ्यड़ा लगि ग्येनि। देबुन् बल्लु अदघैल कै द्या। सौब पौंणा, डाबर गौं कऽ जनऽना-बैख बिल्ल खड़ा ह्वे ग्येनि। बल्लु बचाणू पाल गौं कऽ चार-पाँच पौंणा बीच पोडि़ ग्येनि। डाबर गौं कऽ लुखुन् द्येखि कि देबु मार खांद अब। वून बि उठैनि जाँठा अर सट्येल ज्वी मुख फर आ। पाल गौं कऽ डाबर गौं कऽ बैख्वी मार खाणा। देब्वा दगड़्योंन् सूणी द्या कि देबू मरेंणू छ। वु जाँठा-बळ्यंडों लेकि ऐ ग्येनि। वून नि द्येखि कि कु मरेंणू छ। सौब पौंणोंन् बिछक मार खा। बिनसिरी पाँच बजणि छै। ब्यौलौ बुबा, ब्यौला अर वेकऽ ममऽल नि खा मार। बक्खि जतगा पाल गौं कऽ पौंणा छा, सौब बिछक चटकए ग्येनि। सौब पौंणों कि भजणि-भाट ह्वा। जब सौब पौंणा भाजि ग्येनि, तब थक्तै साकि रौळा। किर्तसिंगल नि चिता कि बात क्य ह्वा। तब देबुन लगा वेम किस्सा। सूणी त् वेकु मुक लाल ह्वे ग्या। लोळू भुंड्डू मनिख। कक्ख वीरी अर कक्ख बर्खि। किर्तू सौंणू खुणै हब्बि-तब्बि ब्वन्नू। द्वि छक्कड़ सौंणू फर मारि वेन सौंण्वा पित्तर पुजिनि- ‘‘सोर कु बच्चा साला। हब्बे जब त्वे कु ढोल बजाणू ना बोल्यालि छौ त् तिन ढोल किलै उठा।’’ सौंणू क्य बोलू। पद्यौ भगार वेकऽ चुफ्फा पोडि़।

सौंणुन् जैरामौ बोलि- ‘‘उठौ ब्यट्टा तै दमौ थैं। चल, यूंकि बरात औ चा नि औ, सटग इक्ख बटि।’’

डाबर गौंम् गंजर्वळा पुड़्यूं छौ। यून घत द्येखि अर सुरक खळ्कि ग्येनि। सौंणू अर जैराम उंदऽर्यू खुणै दनकणा। जैराम बाबा थैं अढ़ाणू- ‘‘बाबा! भैजी ठिक ब्वलदन्, ये ढोला पैथर हमन् छिछगारी खा। कब्बि हमन् ईजत नि पा। जक्खम् द्येखा तक्खम् भूस बुद्या मनिख हम थैं कुरचुणा रंदिन। क्यांकु छयां तुम ये ढोल थैं बुकुणा? मि तुमऽरा मान रखणू बजांदू ये दमौ थैं। निथर जन भैजिन फुडि़नि कै दां ढोल, तन्नि मि बि फोडि़ सकदु। जै काम कैकि मान-मरजादा फर घौ लगदन, वूं कामू फर थूक दींण चयेंणू छ। हमऽरि क्वी ईजत नी। बडि़ जात्यू मनिख टिंचरी बिचद, माँ-बैंण्यूं थैं कुनेथन् द्यख्द, बार-बन्या कुकर्म कर्द, वेम रुप्या छन, मनिख छन, वेकि सौब ईजत करदन। हम गरीब, निहंग, नितंणा अर लाचार छां। हम चा कतगि बि यमानदार, मीनगति, सल्लि, जंणगूर अर कस्बि किलै न धौं, हमऽरि जात छ्वट्टि छ, हमन छ्वट्वी राण। बाबा! पैलि त् हम तिन्नी भै नौकरी लग्ला। निथर कुल्ली काम कर्ला, ढुंग्गा सर्ला, दिल्ली जैकि जुट्ठा भांडा धूला अर तुम थैं सारू द्यूला। पणि पैलि यूं ढोल-दमौ थैं तुम इक्खि जुगता कैरा। क्वी पुलबैं नि छन ये ढोल बजाणै। बाबा! जरा ठैर कादि। इना सूंणदि! हम यूंकऽ भला-बुरा कारिजुम् सब्यूं चुलै अग्वडि़ रंदां। हम यूंकऽ ऊज-हर्स थैं चौगुंणा कै दिंदां अर खांदि-पींदी दा यि हम थैं कुक्कुर स्ये बि पिछ्वडि़ धिकै दिंदन। जन बिर्ति औजी, ल्वार अर मिस्त्री छ, तन्नि पंडा जी कि बि त् छ। कंटऽळु, नाळी-पाथी वूं बि दियेंद, डड्वार वू बि मंगदन। गैखी वूंकि बि छ। वूं दगडि़ क्वी भिन्न-भौ न हूंद। जु जात्या बड़ा छन, वु चा कतगी बि बुरा काम कै द्याउन, मुंथा वूं थैं चुफ्फम् रख्द। हम सल्लि छां, जंणगूर छां, हमऽरि बिजूत! डड्वारै एक सुप्पि नाजम् हमऽरि खलडि़ खिंचणान्। कुल्लि काम कर्द मोरि ग्या हमऽरु।’’

सौंणू फकम्म-फकम्म फिंगरे कि हिटणू अर हर्बि नौनै अढ़यीं अंठम्म धन्नू। ‘‘बाबा, हम ये मुल्का सकळा बस्वै छां। यि जु हमऽरा ठाकुर बण्यांन, वु भैर मुल्क बटि मुगल अर अंगरेज्वा अतरड़ऽयां छन। वूंन हमऽरि यूं डांडि-कांठ्यूं थैं हम बटि लूछी द्या। हम थैं कुंजण्या बणै द्या। हम छ्वट्टा बण ग्यां। जै दिन बटि ये मुल्कम् यि भैरा ऐनि, वे दिन बटि औजि, ल्वार, मिस्त्री, टम्वटा अर रुड़्या निहंग ह्वे ग्येनि। ढोल बजांण क्वी बुरु काम नी छ। ढोल त् सिबजि भगबानौ उबडयूं छ। हम थैं बि गणखेंदू त् ढोल हमन् हुर्स कै बजांण छौ। भौत बडि़ संसकिर्ति समयीं छ ये ढोलम्। गोर कैकऽ नि खयां छन काटी। आदिमानवन् कौन स्ये दाळ-भात खा। वे आदिमानवी बटि त् जलम्यां छन सौब। नाऽड लुख्वी छ्वीं छन। कै नाऽड मनिखल जात्यूं कु हम्म जिकुड़ों बैठ्ए द्या। ज्यां स्ये ये देसौ जगा-जगम् छ्यौ ह्वा। हमऽरा देसन् गुलाम नि राण छौ। जात्यूंम् बंट्यां रैनि। एकन् हैंकौ भिड़्यूं नि खा। भैर-मुल्का लुखुन् बींगी द्या। पाँच अंगुळ छांटि छिन। चड़का यूं। वून मर्र अंगुळ मर्कै द्येनि। लूला बणि ग्येनि। यि इक्ख ऐनि। पाड़म् यून इन्नि भिन्न-भौ कैरि। फुंड धुळ्यां ग्वरख्योंन् अर कत्यूर्यून मचा इक्ख गिंज्जारुप्डि़। हम लैड़ सकदा छा भैरा लुट्टा-गुंड्डों दगडि़। ग्वदन्यड़ा ध्वळ्यां रां। हमऽरा पुरंणौंन् बींगी ह्वलु-मरेंण द्या सालौं थैं। हमऽरि बे खादा-बादौ कुगऽता करीं छ। सब्यून् तमऽसा द्यखिनि, यि चुट्येंणा रैनि। बामण्ल् बोलि मि हंत्या नि कैर सकदू। वुना वु पूजै कि सिरी-फट्टि सुरक लुकै कि ल्हीगि। एक राजपूत कै-कै दगडि़ जि लैड़ सकदू। त् सि जगा-जगों कुरचेंणा रैनि। यीं धरत्या बस्वे छां हम। या च हुयीं हमऽरि कुगऽता। तुम ढोल सागरा पंडित छयां। क्वी नि ब्वाद तुमु पंडित। पंडि़त ज्ञान कु हूंदू, जात्यू नि हूंद। जु पंडित छन, वूं फर ज्ञान नी।’’ हिंसर्या गाड तक आंद-आंद सौंण्वा उबदर भ्वर्ये कि ऐ ग्ये छा। दाडि़ कीटि द्येनि वेन। नकद्वड़ु बिफ्रि ग्या। आँखा घुरेंण बैठि ग्येनि। फ्यक्कु गड़ऽगड़्या सुसगरा भुन बैठि ग्या। हत्वी मुट्ट बुज्येंण बैठि ग्येनि। दैंणा हतम् खैरै लाकुड़ छै। लाकुड़ मुठ्या पेट कडै़क टुटि ग्या। जैराम थैं नि छै अंणगम कि इन ह्वलु। सौंणुन पैलि ढोल चुला हिंसर्या गाडम्। पाछ वेन जैरामा गौळा बटि झंझोड़ दमौ अर च्याँ चुलै द्या। ढोल-दमौं औंदि गाडम् फूल सि बौलि ग्येनि। सौंणू सकस्याणू अर हर्बि रूंणू। किलै नि रूंण छौ वेन, वेकु पणमेसुर हिंसर्या गाडम् बौगि जु ग्ये छौ। सगिळ बरात वेन यीं हिंसर्या गाड बटि तरै कि डाबर गौं पौंछै छै पणि अपड़ु ढोल नि बचै साकि।

‘‘बाबा र्वा न। अमणि तुमऽरु हैंकु जलम ह्वेगि।’’

‘‘जया! म्यरा बच्चा, त्वेन म्यारा आँखा उफारि ऐनि। गू खालु वु, जु अमणि बटि ढोल फर हत लगालू।’’

अमणि एक महान ढोल सागर कु बादक वीं परमपरा बटि बिगळे ग्या। सौंणू थैं लोग गणखदा अर वे थैं वेकि कला कु इनाम दींदा त् वेन ढोल अपड़ा हतन नि बौगाण छौ। अमणि वु हळू ह्वे ग्ये छौ। कांध ढोल बोकि टुटि ग्ये छै, जिकुडि़ घौ खै-खैकि दुखि ग्ये छै। ढोल बौगै कि जन्कि वेकु हैंकु जलम् ह्वे हो। जैराम बगच्छट्ट ह्वे ग्या- ‘‘बाबा! ढोल ब्वाद कि बुढीं दां मिन क्य कन? बुढीं दां मिन क्य कन? दमौ ब्वाद कि जु कुछ कन मिनी कन। जु कुछ कन मिनी कन। तुम मै फर ढीटु राखा, फुल्वी ठुफरिम् राण तुमन्। मि छों ना।’’

पितर द्यब्तौंन सूणी। जै दिन बटि सौंणुन् ढोल बौगा, वे दिन बटि नौनौं थैं बि पिरपिरी लगि। वून चांट ल्या अर पौढि़ छ। पैलि मनसाराम बणि तैसीलदार। वेन जैराम थैं लिक्चरार बणैं द्या। कंण्सा भुला थैं दुयून इंजीनेर बणै द्या। वे दिन बटि वून पालगौं छोडि़ छौ, अर छोडि़ छौ। फेर वु कब्बि ये गौंम नि ऐनि बौढि़। सौंणू अर वेकि सैंण अपडि़ धरति थैं नि बिसरिनि। वु पालगौं ऐ छन एक दिन। अब सौंणू ‘दास’ नि छौ, बलकन् एक तैसीलदार, इंजीनेर अर लिक्चरारौ बुबा छौ। गौं कऽ मनिख नि चै कि बि वूं स्यवा लगाणा छा।