डरना मना है या डरना जरूरी है? / जयप्रकाश चौकसे

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डरना मना है या डरना जरूरी है?
प्रकाशन तिथि : 07 सितम्बर 2018


अमेरिका के पत्रकार बॉब वुडवर्ड की एक किताब 11 सितंबर से बाजार में उपलब्ध होगी। किताब का नाम है 'डर'। दरअसल, हमारे वर्तमान में डर की एक चादर एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैली है। डर की यह चादर दिखाई नहीं देती परंतु महसूस होती है। याद आता है कि महात्मा गांधी ने भारत वापस आने पर पहला भाषण बनारस विश्वविद्यालय में दिया था और उन्होंने कहा था कि स्वतंत्रता की लड़ाई में हमें सबसे पहले डर से मुक्त होना होगा। उस सभा में आला अंग्रेज अधिकारी भी मौजूद थे। महात्मा गांधी ने उनसे पूछा कि शहर में हजारों सुरक्षाकर्मी क्यों तैनात किए गए? उनका राज तो पूरे देश पर है। यह किसकी सुरक्षा का सरअंजाम किया गया है? क्या हुक्मरान को भी डर लगता है? महात्मा गांधी के उस महान भाषण को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक लेख में स्पष्ट किया था कि डर का हव्वा असल डर से बहुत बड़ा होता है। उस लेख का टाइटल था 'कमिंग ऑफ महात्मा गांधी' अनेक वर्षों तक यह लेख पाठ्यक्रम में शामिल था। आज के दौर में तो उनका नामो निशान मिटाने के प्रयास हो रहे हैं। नए पाठ्यक्रम बनाए जा रहे हैं।

यह कितना अजीब है कि तमाम नेहरू विरोधी नेहरू जैकेट पहनते हैं। यह भी गौरतलब है कि एक टोपी को गांधी कैप कहा जाता है, जबकि गांधी जी ने उसे कभी नहीं पहना। अपनी युवा-अवस्था में वे अपने जन्मस्थान में प्रचलित पगड़ी पहनते थे। इंग्लैंड में अध्ययन के समय उन्होंने हैट धारण किया और स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करते समय कभी कोई टोपी, पगड़ी या हैट धारण नहीं किया। वे तो एक ही चादर से अपना पूरा शरीर ढंकते थे। शायद इसलिए विन्सटन चर्चिल ने उन्हें 'नैकेड (नंगा) फकीर कहा था।

डोनाल्ड ट्रम्प के एक सहयोगी ने कहा कि उन्हें स्वयं जेल जाना पड़ सकता है, क्योंकि उन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प के दबाव में गलत बयानी की है। इस दौैर में तमाम हुक्मरान झूठ बोल रहे हैं और कुछ दशकों बाद पहेली गढ़ी जाएगी कि बूझो तो जाने कि फलां हुक्मरान ने फलां महीने में कितने झूठ बोले? झूठे वादों पर शोध कार्य किया जाएगा। आज अधिकांश अमेरिकी नागरिक अपने द्वारा चुने गए हुक्मरान के लिए परेशान हैं और पश्चाताप कर रहे हैं। भारत में कभी कोई परेशान नहीं होता, पश्चाताप नहीं करता। सदियों से महसूस किए गए सामूहिक अपराध बोध के परिणाम स्वरूप प्राप्त हुक्मरान पर कैसा पश्चाताप? बहरहाल कवि त्रिकालदर्शी होता है। महान शायर मीर तक़ी मीर की एक रचना इस तरह है - ए झूठ! आज शहर में तेरा ही दौर है, शेवा (चलन) यही सबों का, यही सब का तौर है। ए झूठ ! तू शआर (तरीका) हुआ सारे खल्क का, क्या शाह का वजीर का, क्या अहले-दल्क का... ए झूठ तेरे शहर में है ताबई (अधीन) सभी मर जाएं। क्यों न कोई वे बोले न सच कभी'।

आज अमेरिका के रक्षा सचिव जेम्स मैटिस नई दिल्ली आए हैं। यह बताया जा रहा है कि जेम्स मैटिस ने डोनाल्ड ट्रम्प के कुछ आदेश नहीं माने थे। कहा जाता है कि ट्रम्प महोदय का सामान्य ज्ञान पांचवी कक्षा के छात्र के समान है। आज स्वयं को ईमानदार व गणतंत्र में विश्वास रखने वाले व्यक्ति की छवि गढ़ने के लिए अपने कुछ विरोधियों को उच्च पद दिए जाते हैं। यह चाल है, क्योंकि हर विभाग की सारी फाइलें हुक्मरान के विश्वसनीय अधिकारियों के पास पहुंचती है। इतना ही नहीं हर प्रांत में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णय 'ऊपर' की रजामंदी से लिए जाते हैं।

एक खबर देने वाले चैनल के पुण्य प्रसून वाजपेयी के 'मास्टर स्ट्रोक' नामक कार्यक्रम पर सत्ता की पाबंदी लग गई है। अगर कोई सत्ता विरोधी कार्यक्रम का प्रसारण करता है तो सेटेलाइट से उसके प्रसारण में जाने कैसे रुकावट आ जाती है और रुकावट के लिए खेद व्यक्त किया जाता है। पत्रकारिता पर शशि कपूर अभिनीत फिल्म 'न्यू दिल्ली टाइम्स' बनी थी। मधुर भंडारकर की फिल्म 'पेज 3' तो सेल्यूलाइड पर फटे एटम बम की तरह साबित हुई। ज्ञातव्य है कि इन्हीं बॉब वुडवर्ड द्वारा 'वाटरगेट स्कैंडल ' उजागर हुआ था। राम गोपाल वर्मा द्वारा बनाई गई दो फिल्मों के नाम थे-'डरना मना है' और 'डरना जरूरी है'। ये दोनों टाइटल वर्तमान को अभिव्यक्त कर रहे हैं।