डरे हुए लोग:अपनी बात / सुकेश साहनी

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तेल तॉलस्तॉय म0 गोर्की के साथ द्यूल्बेर से आइतोदोर जाते हुए हमेशा की तुलना में कुछ अधिक उत्तेजना में बोल रहे थे-

"पतझर के दिनों में मैंने मास्को में सूखारेव बुर्ज के करीब एक सूनी गली में नशे में धुत्त एक औरत देखी। वह नाली के करीब पड़ी हुई थी। अहाते से बहती आ रही गन्दे पानी की धारा सीधे इस औरत की गुद्दी और पीठ के नीचे पहुँच रही थी। वह इस ठण्डे गन्दे पानी में पड़ी हुई कुछ बुड़बुड़ा रही थी, छटपटाती थी, पानी में छप-छप करती थी, मगर उठ नहीं पाती थी।"

तॉलस्तॉय सिहरे, उन्होंने आँखें सिकोड़ी, सिर को झटका दिया।

" नशे में धुत्त औरत-यह सबसे भयानक, सबसे जघन्य चीज है। मैंने चाहा कि उठने में उसकी मदद करूँ, लेकिन मैं यह कर नहीं पाया, घिन आ गई, वह सारी की सारी चिपचिपी, पानी से तर थी। उसे छू लेने से ही महीने भर तक हाथ साफ नहीं किए जा सकेंगे, भयानक मामला था। सड़क किनारे के एक पत्थर पर सुनहरे बालों और भूरी आँखों वाला एक बालक बैठा था, उसके गालों पर आँसू बह रहे थे, वह नाक से सूं-सूं कर रहा था और निराशा तथा थकी-थकी आवाज में चिल्ला रहा था-

"म। ...अम्मा। उठो भी..."

"वह हाथ हिलाती, नथुने फरफराती, सिर ऊपर उठाती और फिर गुद्दी केे बल गन्दे पानी में गिर जाती।"

तॉलस्तॉय चुप हो गए, उन्होंने अपने इर्द-गिर्द देखा और बड़ी बेचैनी से लगभग फुसफुसाते हुए दोहराया-

"हाँ...हाँ-बहुत भयानक था वह! क्या आपने बहुत पियक्कड़ औरतें देखी हैं? बहुत-हे भगवान्! आप...इसके बारे में लिखिए नहीं...इसकी ज़रूरत नहीं है!"

"क्यों?"

उन्होंने गोर्की की आँखों में गौर से देखा, मुस्काए और दोहराया-

"क्यों?"

इसके बाद उन्होंने कुछ सोचते हुए धीरे-धीरे कहा-

"मुझे मालूम नहीं। यह तो मैंने यों ही कह दिया...घिनौनी चीजों के बारे में लिखते हुए शर्म महसूस होती है। लेकिन...लिखा क्यों न जाए? सब कुछ, हर चीज के बारे में लिखना चाहिए..."

उनकी आँखें छलछला आई. उन्होंने आँसू पोंछ लिए और मुस्कराते हुए रुमाल पर नजर डाली। किन्तु आँसू फिर से उनके चेहरे पर बह आए.

"मैं रो रहा हूँ," वह बोले-"मैं बूढ़ा आदमी हूँ, जब किसी भयानक बात को याद करता हूँ तो मेरा दिल छटपटाने लगता है।"

फिर गोर्की को हल्के से कोहनियाकर कहते गए-

"आप भी अपनी ज़िन्दगी जी लेंगे, सब कुछ वैसे ही रह जाएगा, जैसे था और तब आप भी रोएंगे...मुझसे ज़्यादा बुरी तरह...मगर लिखना सब कुछ चाहिए, सभी चीजों के बारे में, वरना सुनहरे बालों वाला बालक बुरा मान जाएगा, ताना देगा-यह कहेगा कि सच नहीं है, पूरी तरह सच नहीं है। वह सच की माँग करता है।"

अपनी अब तक की जीवन-यात्रा के दौरान जो खट्टे-मीठे, तीखे घिनौने अनुभव हुए, उन सभी पर मैंने लघुकथाएँ लिखी है। मैं तॉलस्तॉय की इस टिप्पणी से शत-प्रतिशत सहमत हूँ कि सभी चीजों के बारे में लिखा जाना चाहिए.

'इमिटेशन' , 'मृग मरीचिका' जैसी लघुकथाओं को प्रकाशित करने का साहस कुछ सम्पादक नहीं कर पाए लेकिन इन रचनाओं को लिखकर मैंने बहुत ही राहत महसूस की है क्योंकि अब तोलस्तोय के उस सुनहरे बालों वाले बालक की भाँति ' इमिटेशन के राहुल और तरु बुरा नहीं मानेंगे, ताना नहीं देंगे क्योंकि मैंने उन सबको आपके सामने रखा है-भले ही कुछ लोगों को ये रचनाएँ अस्वाभाविक या आघात पैदा करने वाली लगें।

स्व0 प्रेमचन्द की कहानी 'ठाकुर का कुआँ एवं लू शुन की' पागल की डायरी के पात्रों का उपयोग मैंने 'जहाँ के तहाँ' एवं 'भेड़िए' लघुकथाओं में वर्तमान परिस्थितियों से तुलना करने हेतु किया है। दोनों लेखकों से क्षमा याचना!

मैंने अधिकतर लघुकथाएँ रातों में बैठकर लिखी है। सर्द रातों को मेरे मनचाहे समय पर पत्नी रीता ने चाय के कप के साथ मुझे न जगाया होता तो मेरी कई लघुकथाएँ आज भी मेरे मस्तिष्क में ही कैद होतीं।

बड़े भाई जैसे मित्र रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी के सहयोग के बिना यह संकलन तैयार कर पाना मेरे लिए असंभव था। संकलन के प्रकाशन में भाई भूपाल सूद जी का मित्रवत् सहयोग अविस्मरणीय है।