डर के पीछे / अशोक भाटिया
जब वह बारह वर्ष की थी तो उसकी बहन ने हस्पताल में बच्चे को जन्म दिया था। तब उसने सोचा था कि बच्चों को भगवान आकाश से फेंकता है। वह हस्पताल से मिलता है। घर जाकर उसने पूछा था- ‘माँ, बच्चा क्या भगवान ऊपर से फेंकता है?‘
माँ ने धीरे से कहा था- ‘‘हाँ बेटी, ऊपर से ही फेंकता है।‘‘
जब वह चौदह वर्ष की हो गई, तो उसे जिज्ञासा हुई कि बच्चा कैसे जन्म लेता है ! उसकी सहेलियां भी तरह-तरह की अटकलें लगातीं और हँसा करती।
एक दिन उसने फिर अपनी माँ से पूछा- ‘‘माँ बच्चे का जन्म कैसे होता है?‘‘
माँ ने बेटी की हैरान नज़रें देखकर पूछा- “तूने ऐसी कोई पिक्चर नहीं देखी?”
माँ की बात मानकर वह पिक्चर देखने गई। उसमें देखा...पति-पत्नी एक-दूसरे को बाँहों में बांधे साथ लेटे हैं। अगले ही दृश्य में दिखाया गया कि पत्नी की गोद में एक बच्चा रो रहा है।
घर जाकर उसने झिझकते हुए माँ से पूछा- ‘‘माँ, लड़का लड़की को छू ले, तो क्या इससे बच्चा जन्म ले लेता है?‘‘
माँ ने अपनी आँखें नीची करके धीरे से कहा- ‘‘हाँ बेटी, ऐसे ही होता है।‘‘
यह सुनते ही लड़की काँपने लगी। उसी दिन से वह लड़कों को देखते ही सहम जाती है।