डर गया भूत / मनोहर चमोली 'मनु'
एक भला भूत था। वह अकेला रहता था। चटपटा भोजन उसकी कमजोरी थी। कहीं पकवान बन रहे होते तो उसे ख़बर हो जाती। वह महक सूँघते हुए पहुँच जाता। उसकी लार टपकने लगती। भूत की एक परेशानी थी। उसे उजाले से डर लगता था। रोशनी में उसकी आँखें बंद हो जातीं। सिर घूमने लगता। भूत किसी पेड़, पहाड़ या मोबाइल टॉवर पर चढ़ जाता। रात होने का इंतज़ार करता। अँधेरा होने पर ही घर में घुसता। भूत को कई बार खाली बरतन मिलते। वह खाने की चीजें खोजता। रसोई का सामान उलट-पलट देता। कोई जागे इससे पहले दबे पैर निकल जाता। ऐसा भी होता, जब वह पालथी मारकर बैठ जाता। भरपेट मजेदार पकवान खाता।
एक दिन उसे कहीं पकवान बनने की ख़बर मिली। वह महक सूँघता हुआ जा पहुँचा। घर में आए मेहमान थके हुए थे। वह खाना ख़ाकर सो गए। अँधेरा हो जाने पर भूत रसोई में घुस गया। बिरयानी पाकर वह ख़ुश हो गया। भरपेट खाया और चला गया। उसे दूसरे दिन छोले-भटूरे मिले। तीसरे दिन की शाम वह एक पेड़ की डाल पर जा पहुँचा। मेहमान थे कि आ-जा रहे थे। खाने की जगह पर भीड़ बहुत थी। उसकी भूख बढ़ती जा रही थी। भूत बड़बड़ाया,‘‘आज बहुत देर में खाना खाने को मिलेगा। अभी सो जाता हूँ।’’ भूत पेड़ पर ही सो गया। उसे नींद आ गई। खटका हुआ तो वह जागा। चारों ओर घुप अँधेरा था। वह पेड़ से कूदा। सीधे रसोई में जा पहुँचा। वह बरतन टटोलने लगा। अचानक उजाला हो गया। बिजली गुल थी। अब चारों और रोशनी थी। मेहमानों के बीच भूत मारे डर के चुपचाप खड़ा था।