डर / पेंटर भोजराज सोलंकी / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: अप्रैल-जून 2012 |
म्हारै साइनो अस्सी बरसां रो म्हारो अेक भायलो। नांव तो बीं रो भाखर रै उणमान भारी- गोरधन। पण इत्तो डरपोक कै कोई मर जावतो तो बीं रै दाग में ई कोनी जावतो। बीं नै आपरै डील रो घणो डर। कैवतो कै मर्यां पछै आदमी नै बाळै कै खाडो खोद'र बूरै जद बीं सूं ओ दरसाव देखीजै कोनी। अेकर म्हारै खास भायलै नन्दलाल रो सुरगवास हुयग्यो। म्हैं गोरधन नै कैयो, 'बेटी रा बाप, नंदियो तो आपां रो खास बेली हो, कम सूं कम बीं रै दाग में तो चाल।'
बो बोल्यो, 'ना भायला, म्हांसूं तो कोनी चालीजै। लाश नै बाळण रो सुण'र ई म्हनैं तो अणूतो डर लागै।'
म्हैं कैयो, 'अस्सी बरस रो डोकरो अर अजै ई थनै डर लागै? डरपोक कठैई रो!'
गोरधन बोल्यो, 'तूं भलांई कीं कह भायला, म्हनैं तो दाग रै नांव सूं ई धूजणी छूटै।'
म्हैं बीं नै समझायो, 'अरे अेकर तूं आदमी री लाश नै बळती देख लेसी तो थारो डर भाग जासी। म्हारै कैवणै सूं अेकर चाल'र देखलै। इयां कांई डरै है डफोळ!'
बो बोल्यो, 'तूं इत्तो जोर देवै तो चालणो ई पड़सी। म्हारै आज तांई आदमी री लाश बळती देख्योड़ी कोनी, आज देख लेसां।'
म्हारै समझायां सूं गोरधन दाग में चालण सारू त्यार होयग्यो। म्हे दोनूं भायला नंदियै रै घर पूग्या। आगै कूका-रोळो मच्योड़ो हो। लोग-बाग नंदियै री लाश नै अरथी माथै बांधी अर 'राम-नाम सत है, सत ही मुगत है' कैवता थकां चाल पड़्या नंदियै री अरथी लेय'र मुसाणां कानी। आधेक घंटै में जा पूग्या मुसाण भोमका।
बठै पूगतां ई गोरधन बोल्यो, 'म्हैं तो भायला मसाण में चालूं कोनी, अठै बारै ई बैठसूं।'
म्हैं पूछ्यो, 'क्यूं भायला, कांई बात है? बारै ई बैठणो हो जणै सागै आयो ई क्यूं?'
बो बोल्यो, 'म्हानैं तो भायला डर लागै।'
म्हैं फेरूं कैयो, 'अरे बावळा, अेकर मांयनै चाल, अेकर तूं थारी आंख्यां सूं देख लेसी तो हमेसा सारू डर भाग जासी। चाल चाल, इयां गूंगायां नीं करणी।'
गोरधन काठो-माठो हुवण लाग्यो जणै म्हैं उणरो हाथ खांच'र माडाणी मसाण भोमका में लेयग्यो। आगै लकडिय़ां चिण'र चिता करीजगी ही। नंदू री लाश नै उणरै बिचाळै राखी अर उणरो मोबी बेटो ज्यूं ई चिता रै आग लगावण लाग्यो कै गोरधन रो काळजो हालग्यो अर उणनै गस आयगी।
गोरधन नै मूर्छित होयोड़ो देख'र म्हारो जीव हालग्यो अर म्हैं उणनै दो जणां रै सैयोग सूं चक्कर मुसाणां रै परकोटै सूं बारै लेयग्यो। पछै पाणी रा छींटा देय'र उणनै चेतो करायो तो लोगां पूछ्यो, 'अै नंदू रै कांई लागै?'
म्हैं बात नै परोटतै थकां बोल्यो, 'अै नंदू रा खास भायला है। नंदू सूं अणूतै हेत रै कारण ई आं रो हिवड़ो भरीजग्यो अर आं सूं आपरै भायलै री लाश बाळतां देखीजी कोनी। इण वास्तै बेचेत हुयग्या।'
नंदू रो दाग हुयो जठै तांई गोरधन रै सागै मसाण रै बारै ई बैठो रैयो। दाग हुयां पछै हेलो सुणीज्यो कै आ जावो भाई, सगळा जणा थेपड़ी देय दो।
जणैं म्हैं गोरधन नै पाछो मसाण में लेयग्यो। मांय जावतां ई गोरधन फेरूं पूछ्यो, 'नंदू कठै है?'
म्हैं कैयो, 'नंदू तो बळण लागर्यो है नीं चिता मांय।'
गोरधन डरूं-फरूं हुयोड़ो बोल्यो, 'अल्लै, साच्याणी नंदू नै बाळ दियो कांई? जणै भायला, अबै अठै सूं बेगा चालो, म्हारो जीव कियां ई होय रैयो है।' म्हैं बींनै समझायो, 'अरे बावळा, आपां नंदू रै नाहरै आयोड़ा हां। सिनान कर'र सगळां रै साथै अेकर पाछा नंदू रै घरै चालसां।'
बो बोल्यो, 'भायला, म्हारो जीव सो'रो कोनी।'
म्हैं कैयो, 'तूं डर ना। अबै चिंता करण री कोई बात ई कोनी। म्हैं हूं नीं थारै सागै।'
गोरधन नै समझा'र म्हैं उणनै सगळां रै सागै नंदू रै घरै लेयग्यो। बठै नीम-पाणी रो छांटो लाग्यां पछै सगळा आप-आपरै घरै गया।
दूजै दिन गोरधन दिनूगै-दिनूगै ई घरै आयग्यो। बो बोल्यो, 'कांई बतावूं भायला, आखी रात नींद नीं आई। कांई साच्याणी आपां रै भायलै नंदियै नै बाळ दियो?'
म्हैं कैयो, 'गोरधनिया, तूं गूंगो हुयग्यो कांई? अरे डफोळ, मरै जकां नै कै तो बाळै अर कै बूरै, बांनै कोई घर में राखीजै है कांई?'गोरधन पूछ्यो, 'आदमी री लाश नै बूरै ई है कांई?'
म्हैं कैयो, 'बूरै है नीं, केई जात्यां में आदमी रै मर्यां पछै उणनै बूरीजै। उणरी कबर खोद'र बूरीजै।'
गोरधन फेरूं गैलपणै में पूछ्यो, 'भायला, बूरै जणै आदमी रो जीव तो घुटतो हुवैलो?'
म्हैं कैयो, 'गोरधनिया, तूं गैलो हुयग्यो कांई, अरे बावळा! मरियां पछै आदमी रो कदैई जीव घुटै है कांई? माटी हुयोड़ै सरीर रो ना दम घुटै अर ना ई पीड़ हुवै।' म्हैं गोरधनियै नै समझा-बूझा'र घर भेज्यो।
अेक दिन दिनूगै-दिनूगै ई गोरधनियै रो छोरो म्हारै कनै आयो अर बोल्यो, 'काकोसा, म्हारै जीसा री तबियत ज्यादा खराब हुयगी है, बै थांनै ई याद करै है, बेगा चालो।'
म्हैं बीं रै सागै गोरधन रै घरै पूग्यो। म्हनै देख'र बो रोवण लागग्यो। म्हैं पूछ्यो, 'रोवै क्यूं है भायला, मौत रो डर लागै है कांई?'
गोरधन बोल्यो, 'मरण रो तो इत्तो डर कोनी लागै भायला पण मरियां पछै म्हारै डील नै बाळ देसी, इण बात सूं ई म्हारो तो काळजो फड़का खावै। मरण सूं घणो बळण रो डर है।'
म्हैं कैयो, 'गोरधन भाई, डर ना। अबार तो तूं ना मरै अर ना ई तनै कोई बाळै।'
गोरधन नै नैछो करा'र म्हैं घरै आयग्यो।
अेक दिन दिनूगै ई म्हैं घर रै सांमलै पार्क री बैंच माथै बैठो हो, कै घूमतो-फिरतो गोरधन आयग्यो। बो बोल्यो, 'भोज भायला, म्हैं ठीक हुयग्यो।'
म्हैं कैयो, 'म्हैं तो तनै पैलां ई कैयो हो नीं कै तूं धिंगाणै डरै।'
गोरधन बोल्यो, 'अरे भायला, मरण सूं कुण डरै है, डर तो डील रो है। मर्यां पछै इणनै बाळण आळो काम खोटो।'
म्हैं बींनै समझायो, 'जे डील रै बळण रो इत्तो ई डर लागै तो तूं अेक काम कर, देख! आपणै बो पाड़ोसी हो नीं रामरखो। बो मरण सूं पैलां ई आपरै डील रो दान कर दियो हो। बींनै 'देहदान' कैवै।'
गोरधन पूछ्यो, 'देहदान! आ भळै कांई हुवै?'
म्हैं कैयो, 'देहदान कर्यां पछै आदमी नै ना तो बाळै अर ना बूरै। आदमी री लाश नै ज्यूं री त्यूं मेडिकल कॉलेज पूगाय देवै।'
गोरधन राजी हुंवतो बोल्यो, 'साच्याणी देहदान कर्यां पछै आदमी नै बाळै-बूरै कोनी। जणै तो ओ काम ठीक है नीं।'
म्हैं कैयो, 'म्हैं कोई झूठ थोड़ी बोलूं हूं।'
बो बोल्यो, 'मेडिकल कॉलेज में तो डाक्टर मघजी रैवै है, बांनै काल ई पूछ लेसूं।'
म्हैं कैयो, 'बांनै कांई टांग पूछसी, म्हारी बात माथै भरोसो कोनी कांई?'
बो बोल्यो, 'नीं नीं, इसी बात कोनी। पण जे आ बात है तो म्हैं तो काल ई जाय'र देहदान कर'र आ जासूं।'
अेक दिन दोपारां तीन बज्यां गोरधन आपरै बडोड़ै बेटै नै लेय'र मेडिकल कॉलेज पूग'र डॉक्टर मघजी सूं मिल्यो। बांनै कैयो, 'डाक्टर सा'ब, म्हैं म्हारी देह रो दान करणो चावूं। इण वास्तै कांई करणो पड़सी?'
डॉक्टर बोल्यो, 'आ तो भोत आछी बात है, इण सारू कीं कोनी करणो पड़ै, फगत ओ अेक फारम है, इणनै भर'र थांरा दस्तखत कर दिरावो।'
गोरधन बोल्यो, 'दस्तखत तो म्हैं कर देसूं, पण अेक बात बतावो! लारलै महीनै म्हारो पाड़ोसी रामरखो देहदान करी ही नीं, बीं री लाश कठै है? अेकर म्हनै बीं री लाश दिखावो! म्हैं परखणो चावूं कै बा लाश बळण अर बूरण री बजाय आराम री हालात में है कांई?'
डॉक्टर कैयो, 'अबार ल्यो।' बै घंटी बजाय'र आपरै चपड़ासी नै बुलायो अर कैयो, 'आंनै ले जाय'र कोल्ड रूम में रख्योड़ी लाशां मांय सूं रामरखै री आठ नंबर लाश दिखाय देवो।'
अबै आगै-आगै चपड़ासी अर लारै-लारै गोरधन अर उणरो छोरो। चपड़ासी जाय'र कोल्ड रूम रै दरवाजै रो हैंडल घुमा'र दरवाजो खोल्यो अर बांनै लेय'र मांय बड़्यो। बीं कोल्ड रूम मांय सैंच्यां मांय लाशां ई लाशां पड़ी ही। अेक सैंची आगै खड़ो होय'र चपड़ासी गोरधन नै बतायो, 'अै देखो सा, अै है रामरखै रा हाथ अर अै अठीनै दोनूं पग अर बो देखो बो न्यारो पड़्यो बी रो माथो।'
आपरै पाड़ोसी रामरखै री नस कट्योड़ी लाश देखतां ई गोरधन तो चिरळाटी मार'र गस खाय'र बठै ई पड़ग्यो। चपड़ासी दौड़'र डॉक्टर कनै पूग्यो अर बांनै गोरधन रै बेचेतै हुवण री बात बताई। डॉक्टर झटपट स्ट्रेचर मंगवाई अर उण माथै गोरधन नै सुवाण'र अस्पताळ लेयग्या।
डॉक्टर कैयो, 'डर रै कारण आंनै हार्ट रो दौरो पड़ग्यो है, म्हैं अबार देखूं।'
ऑपरेशन थियेटर में ले जाय'र डॉक्टर उणरी छाती दबा-दबा'र सांस बावड़ण री घणी ई कोसिस करी पण गोरधन रा तो प्राण पंखेरू उडग्या हा। डॉक्टर बारै आय'र कैयो, 'म्हैं गोरधन नै बचाय नीं सक्यो। आप आं री लाश घरै ले जाय सको हो।'
गोरधन री लाश नै घरै लेय आया। बीं रो छोरो भाज'र म्हारै कनै आयो। बोल्यो, 'काकोसा, जीसा तो सौ बरस पूरा करग्या।'
'हें, इयां-कियां गुजरग्या?' म्हैं अचरज सागै पूछ्यो।
बो मेडिकल कॉलेज री पूरी घटना बतावतो-बतावतो रोवण लागग्यो। म्हैं बींनै लेय'र बीं रै घरै पूग्यो अर घरवाळां नै पूछ्यो, 'अबै कांई करणो है, देहदान करसो या दाग?'
छोरो बोल्यो, 'काकोजी, थे तो खुद समझदार हो, बै दाग सूं ई डरता, बूरण सूं ई डरता अर देहदान री घटना रै डर तो बां रा पिराण ई ले लिया। अन्तेष्टि री चौथी विधि जकी सूं अै डरता नीं हुवै, किणसूं पूछां? जी सा तो पूरा हुया।'
म्हैं कैयो, 'चौथी विधि आ है कै अब ईं रो किरिया करम चावो जियां कर सको। ओ नीं डरैला। क्यूं कै ईं नै तो आपरै मनोमन जीवतै रै किरिया करम सूं डर लागतो।'
अरथी उठी अर 'राम नाम सत है' रै नारै सागै मुसाणां पूगी। बेटां लांपो लगा दियो। गोरधन नै डर नीं लाग्यो।