डर / रामस्वरूप किसान

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जद ऐन फाकाकासी रो दौर आयग्यो तो गळगळी होय‘र जोड़ायत बोली-

‘रूजगार तो कांई ठा कद मिलसी। कठै सूं ई उधारै-पायै रो जुगाड़ करो। तीन दिन हुग्या भूख मरतां नै। अर आपां तो फेर ई ....पण ए टाबर।’

‘.......................................................’

‘ईयां जमीन कुचरयां के नाको लागै। बेरो पाड़ो कठै ई।’

पल्लै सूं आसूं पूंछती कैयो।

‘आज फेरूं नोहर जावूं। दो-एक जगां और है। जे काम मिल्यो तो।’

बो पेट पकड़‘र खड़यो हुयो।

पांच कोस पगां चाल‘र जद बो नोहर आयो, खासा थकग्यो। तिवाळा आवण लागग्या। पेट में निगराई सारू पाणी री तलब हुयी। जिण नै तिरस नीं, भूख कैयी जा सकै। बो एक प्याऊ पर गयो ओर बूक मांड दी। प्याऊ आळै डोकरै पाणी रो डोलियो ओज दियो। दो-च्यार घूंट पछै पेट मांय इसो आंटो आयो कै बिचाळै ई बूक हटावणी पड़ी। अर पेट पकड़‘र बठै ई बैठग्यो। साम्हीं देखतो डोकरो बोल्यो-

‘भाया गरमी भोत है। कीं खाय‘र चालणो चाइयै।’

उण डोकरै रै साम्हीं देख्यो अर बठै सूं खड़यो होय‘र एक भींत री छियां जाय‘र बैठग्यो। पेट री पीड़ माठी पड़ण लागी तो मन री पीड़ सिर साम्यो .... लै, जीवड़ा नोहर तो आयग्यो। इब कठै चालसी ? है कोई जगां जठै काम मिल सकै ? सोचले, नीं तो सूनो पैंडो करयां के सा‘रो पड़ै। लारै ई दो बारी अै सड़कां मिण चुक्यो। सड़क भोत है अठै। सिलगती सड़क। सूना पग ना बाळी। अठै ई सोच ले, जठै-जठै जाणो है। अर बठै तो ना ई जाई भांवू जठै दो-दो बार दांतरी काढीजगी। कोई नुंवीं जगां देख बेलीड़ा। पण नुंवीं जगां ? कठै सूं आवै अठै नुंवीं जगां। आ तो नोहरड़ी है। कोई बम्बई तो है कोनी। जगां तो बै ई सागी है। जाणो तो बठै ई पड़सी। स्यात् तीसरी बर ...। राम बड़ ई बैठै किणी में।

सेवट घरळमरळ नै उलाक‘र बो सड़क पर आयग्यो। बात पगां पर छोड दी-ऐ लेयज्यैगा बठै ई चालस्यूं।

बो सगळै कारखानां में गयो। काम नीं मिल्यो। जठै-जठै चेजी लागरी ही, पूग्यो। पण नाटग्या। कई हेलियां रा किवाड़ बजाया-

‘नईं भई, अठै तो आगलो नौकर ई गळ नै आरयो है।’

संकतो-संकतो कई दुकानां में बड़यो-मूंडै कानी देख‘र दुकानदार हांस्या। हांसी रो डंक पंपोळतो-पंतोळतो बो पाछो ई सड़क पर आयग्यो। अर सुध बायरो-सो, जिन्नै ई मूं हो, चाल पड़यो। सेवट मंजिल-बायरो पैंडो कित्तो‘क करै आदमी। बो चालतो-चालतो थकग्यो। डील अर मन दोनूं हारग्या। पगां में सड़फ तो दिमाग में बेहोसी चालण लागगी। बो निसांसो होय‘र सड़क रै पाळियै एक नीम तळै बैठग्या। बीड़ी री तलब होयी। जेब में हाथ मारयो। जेब खाली। उण नै ई ठा हो। पण हाथ तो हाथ ई हुवै। खाली जेब मांय ई चल्यो जावै। ईब बो ई हाथ उण रै चै‘रै पर फिरण लाग्यो अर अंगूठै अर आंगळियां री दाब सूं उण री आंख्यां राहत मैसूस करण लागी।

बो बैठयो रैयो, बैठयो रैयो ! अचाणचक उण रो ध्यान सा‘मणै चालती एक आटै री चाकी पर गयो। मन अंगाड़ी तोड़‘र सम्भळयो। बेहोसी छंटी। सोच्यो, अठै काम मिल सकै। हिवड़ै में नकार उपजण सूं पैलां बिसवास रा सबद होठां पर आयग्या-कोसीस तो करां। नटै ई लो। ईं सूं बैसी के है। इण सोच साथै बो चाकी में जा बड़यो।

मालिक गद्दी पर हो अर नौकर चाकी पर। बो आटै रा हाथ झड़कांवतो बोल्यो-

‘आओ।’

‘आया नीं।’

‘बोलो।’

‘म्हैं तो काम सारू आयो हो।’ ‘कांई काम सारू ?’

‘थारी चाकी पर मजूरी सारू’

‘बो बैठयो मालिक।’

चाकी रै मांय ई खुलतै एक कमरे कानी इसारो करयो। बो डरतो-डरतो कमरै मांय बड़ग्यो अर मालिक रै साम्हीं जा खड़यो हुयो।

एक निगर-सी आवाज रो भाटो उण रै काळजै पर लाग्यो-

‘बोल?’

‘रूजगार सारू आयो हूं।’

‘रूजगार सारू!?’

‘आटै सट्टै थारी चाकी पर काम कर देस्यूं। तिनखा कोनी चावूं।’

नकार रै डर सूं उण आपरो मौल ई बता दियो।

‘ओ हो, काम भाळतो फिरै ! काम कठै भिया, म्हे ई बे‘ला बैठया हां। काम तो को आटै सट्टै मिलै‘न को रोटी सट्टै। हां आटो पिसावणो है तो बोल ?’

‘आटो तो ...’

बो थूक गिटतै थकां बारै आयग्यो अर चाकी रै बारणै आगै ढळयै स्टूल पर बैठग्यो।

दिन खासा ढळग्यो हो। रूजगार रो कठै ई बींत नीं बैठयो। सोचण लाग्यो-कांईं मूं लेय‘र घर जास्यूं। कियां देखस्यूं भूखै लुगाई-टाबरां नै। जे एकर दो-च्यार दिन रै आटै रो जुगाड़ बण ज्यावै तो .... हां, पछै तो कठै ई काम ई ढूंढल्यां। भूखै पेट कियां फिरीज्यै। काम ढूंढणै मांय ई जोर आवै। ईं दोगाचिंती में उण रो ध्यान चाकी में पड़यै आटै रै थेलां पर गयो। उण सोच्यो, बगत दो बगत रो उधार मिल ज्यावै तो ई। ..नां उधार तो कोनी मिलै। क्यूं माजणो दयां। तो ? मल्लाजोरी सूं ?...नां। भरयै सै‘र ईंया कुण खोसण देवै आटौ। हां, एक बात हो सकै-एक थेलियो उचकाय‘र भाज ज्यावां। जे नावड़ ई लेसी तो के फीत ऊतरै। दो-च्यार मार लेसी। कै फेर थाणै...। बठै न्यारो ई के बिगड़ै। जीता दिन राखसी, जिमासी। पण लारला ? बीं रै काळजै गदीड़-सो लाग्यो। लारलां खातर ई तो पापड़ बेलूं हूं। नीं म्हैं तो कदेन रो ई गळ में जेवड़ी घाल हींड ज्यांवतो।

उण आपरी सोच रो स्टेरिंग फोरयो। अर पाछो ई आटै रै थेलां पर आय चढ़यो। उण पूरी चाकी रो जायजो लियो। एक दसेक किला रो थैलियो उण रै स्टूल रै ऐन सा‘रै पड़यो हो। मालिक अर नौकर री निजरां सूं अळगो। उण करड़ी छाती कर‘र थेलियै री गिच्ची पकड़ ली। अर कांपती-सी दीठ आटो पीसतै नौकर री पीठ पर गेर‘र खड़यो हुग्यो।

बो च्यार ई डगां में सड़क पर आय धमक्यो। अर थेलियो कांधै पर चालणै ऊंट ज्यूं बीखां पकड़ग्यो। पण जद आगलै मोड़ मुड़ण लाग्यो तो लारै सूं हाको सुणीज्यो-

‘चोर....चोर....चोर, पकड़ो....पकड़ो।’

उण एकर लारनै देख्यो अर भाज छुटयो। देखतां-देखतां सै‘र सूं बारै निकळग्यो।

बो पकड़जीण रै डर सूं नीं भाजै हो। मार रै डर सूं ई नीं भाजै हो। बो भाजै हो आटो खोसीजण रै डर सूं।