डर / सेवा सदन प्रसाद
विधवा माँ की मौत के बाद शालिनी ने एक अहम फैसला लिया कि वह अपनी छोटी बहन को अकेली नहीं छोड़ सकती। उसे साथ रखने से उसकी चिंता भी खत्म हो जायेगी और मोहिनी अपने आप को अकेला भी महसूस नहीं करेगी। पति की सहमति ने उसे बल प्रदान किया।
मोहिनी, दीदी के इस निर्णय से अपने सारे गम भूल गई। उसने सोचा जीजा और दीदी का सहयोग रहा तो अपना भविष्य संवार लेगी। महानगरी में आये दिन हादसों की वजह से उसके अंदर एक डर पैदा हो गया था और अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगी थी। ऐसे में दीदी के संरक्षण ने एक ताकत बन उसके डर को दूर कर दिया। वह बहुत खुश रहने लगी और जीजा एवं दीदी का भी भरपूर ख्याल रखने लगी।
अचानक पेट दर्द की वजह से शालिनी को नर्सिंग होम में भरती होना पड़ा। थोड़ी देर के बाद जब दीदी की कुशलता की खबर सुनी तो आश्वस्त होकर सो गई। पता नहीं जीजा जी नर्सिंग होम से कब लौंटें। आखिर उन्हें अपनी पत्नी के स्वास्थ्य की चिंता जो है। वैसे उनके पास डुप्लीकेट चाबी भी है, या फिर सुबह नर्सिंग होम जाकर जीजू को घर भेज देगी।
आधी रात को किसी का स्पर्श पाकर मोहिनी जाग पड़ी। सामने - जीजू को देखकर चौंक पड़ी। जो 'डर' अब तक मर चुका था वह पुनः जीवित हो गया। नफरत भरे क्रोध ने जीजा के चेहरे को नाखूनों से लहू-लुहान कर डाला। अब सिर्फ अपने घर में ही नहीं ब्लकि पूरी दुनियां के इस 'डर' से लड़ने के लिए तैयार हो गई। प्रातः उसके कदम बढ चले - गर्ल्स हॉस्टल की तरफ।