डाका / मनोज चौहान
सामाजिक उत्थान हेतु आयोजित एक महत्त्वपूर्ण बैठक से लौट रहे राघवन महादेव और सूर्यवंशी शेरढू आपस में चर्चा कर रहे थे l गाँव के रास्ते के बायीं ओर खड़े त्रिलोचन बसेह्डू ने उन्हें दूर से ही देख लिया था l उन दोनों के करीब आते ही उसने राघवन जी का गर्मजोशी से अभिवादन किया l त्रिलोचन गाँव के पुराने नौकरी पेशा व्यक्ति थे, जिन्हें सभी जेई साहब के नाम से जानते थे l समय के अभाव के चलते राघवन और सूर्यवंशी ने त्रिलोचन के घर पर बैठकर चायपान की पेशकश को नकार दिया l
रास्ते पर खड़े–खड़े ही बातचीत जारी थी l राघवन जी ने सूर्यवंशी का परिचय, त्रिलोचन से करवाया तो वे सकपका उठे l राघवन ने बातों ही बातों में उनकी प्रमोशन के बारे में पूछ लिया l शायद उन्होंने अनजाने में ही त्रिलोचन की दुखती रग पर हाथ रख दिया था l यह सुनकर त्रिलोचन जी कहने लगे l क्या करें राघवन जी...ट्राइबल वालों की प्रमोशन हो गई, मगर मैं रह गया l इसी के साथ वे अपनी योग्यता का बखान करने से भी पीछे नहीं रहे l
यह सुनकर सूर्यवंशी को झटका-सा लगा l क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि त्रिलोचन ने अपने राजपूती मान को दावं पर लगाकर आरक्षित श्रेणी के तहत नौकरी हासिल की है l वह बोला उठा 'ट्राइबल वाले तो फिर भी सम्मान पूर्वक अपना हक ले रहे हैं, मगर आप जैसे लोग तो स्वयं को आरक्षित कहलवाकर उन लोगों के हक पर डाका मारकर बैठे हो, जो यथार्थ में ही शोषित हैं l' यह सुनकर त्रिलोचन की शक्ल देखने लायक थी l उसका पर्दाफाश हो चुका था l राघवन महादेव और सूर्यवंशी पुनः चर्चा करते हुए आगे की ओर बढ़ गए l