डाक्टर का दर्द / सुरेश सौरभ
Gadya Kosh से
तीसरा दिन था, कोई अपना आपरेशन करा के डाक्टर साहब अपनी लान में बैठे आराम कर रहे थे। उनका चलना-फिरना दूभर था, तभी एक तीमारदार उनके पास आया और घर पर चल कर मरीज देखने की बात कहने लगा, डाक्टर ने अपनी असमर्थता प्रकट की, लेकिन तीमारदार अपनी बात पर अड़ा रहा। डाक्टर साहब बार-बार अपना कष्ट बताते रहे, पर वह सब अनसुना करके डाक्टर के सिर पर सवार था।
जब बात किसी दशा में न बनी तो वह डाक्टर के बरामदे से निकल कर सड़क पर आ गया और सैकड़ों गालियाँ डाक्टर को देता हुआ चला गया।
बेबस डाक्टर अंदर बैठे सोच रहे थे, मरीजो तीमारदारो का दर्द तो सभी सुनते हैं पर डाक्टरों का दर्द कौन सुनेगा?