डायन का वाहन / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'

Gadya Kosh से
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"मां, तुमने इसे क्यों पाल रखा है? क्या तुम नहीं जानती कि बिल्ली का बच्चा 'डायन का वाहन' होता है? लोग क्या समझेंगे कि तुम डायन सीख रही हो।" बिल्ली के बच्चे को मंडराते देखकर मैंने माँ से कहा। वह बोली, "बेटा एक दिन कुत्तों के खदेड़ने पर यह बच्चा कहीं से दौड़ता हुआ आया और मेरे पैरों पर गिर पड़ा। मैंने इसे उठाकर रोटी खिलाई और बस, यह मेरा पालतू बन गया। आगे-पीछे मंडराने लगता है। कहाँ भगा दूं? भगाने पर भी तो नहीं भागता। लोग चाहे जो कहें, मैं भी इसके शिशुवत् व्यवहार में रम गई हूँ।"

मेरे बच्चों के साथ बिल्ली का वह बच्चा हिल-मिल गया था। दो मानव-शावक एक विडाल-शावक को पाकर तथा एक विडाल-शावक दो मानव-शावक को पाकर दिल से आह्लादित थे। वे खेल में मग्न रहते थे। उनकी शैशव-क्रीड़ा को देखकर यह सहज ही महसूस होता था कि डार्विन के विकासवाद में समस्त जीव-जगत का उद्भव एक ही मूल से हुआ है।

देखते-देखते मेरी छुट्टी के दिन बीत गए। मां-पिताजी से विदा लेकर अपने बच्चों के साथ मैं गाड़ी पर बैठ गया। बच्चे हाथ हिलाकर टा टा कर रहे थे। माँ ह्रदय की हूक को दबा कर मुस्कुरा रही थी। बिल्ली का बच्चा छलछलायी आंखों से टुकुर टुकुर ताक रहा था। जैसे ही, गाड़ी स्टार्ट हुई वह दौड़कर माँ के पैरों के सामने चला गया और म्याऊँ म्याऊँ करने लगा। माँ उसे गोद में लेकर उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगी।