डायरी / मलाला युसूफजई / नासिरुद्दीन

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मलाला युसूफजई »

बारह-तेरह साल की ही एन फ्रैंक थी। दूसरे महायुद्ध के दौरान फासीवादी हिटलर की सेना से छिपने-छिपाने के दौरान वह एक डायरी लिख रही थी। आखिर में यह बच्ची पकड़ी गई। हिटलर के यातना शिविर में 15 साल की उम्र में उसने दम तोड़ दिया। सालों बाद इस डायरी के जरिए एक बच्ची की नजर से दुनिया हिटलर के शासन में लोगों की जिंदगी से रूबरू हुई। यह 'डायरी ऑफ ए यंग गर्ल' के नाम से आज भी मशहूर है।

'गुल मकई' की उम्र भी ऐसी ही थी। पाकिस्तान के खूबसूरत इलाके स्वात की रहने वाली। अफगानिस्तान के रास्ते तालिबान ने जब पाकिस्तान की ओर कदम बढ़ाया तो स्वात और उसके जिंदादिल लोग रास्ते में आए। तालिबान तो तालिबान हैं। वे हिटलर की तरह दुनिया को एक रंग में रचने का ख्वाब देखते हैं। उन्होंने स्वात के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया। स्कूलों को निशाना बनाने लगे और खास तौर पर लड़कियों के स्कूलों को। उन्होंने स्कूल बंद करने का फरमान जारी किया। स्कूल गिरा दिए। अंदाजा है कि 2001 से 2009 के बीच उन्होंने करीब चार सौ स्कूल ढहा दिए। इनमें से 70 फीसदी स्कूल लड़कियों के थे। उन्होंने लड़कियों का बाहर निकलना मुश्किल कर दिया। लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगाने का एलान कर दिया। काफी दबाव के बाद तालिबान को स्वात से निकालने के लिए फौज को कार्रवाई के लिए भेजा गया।

इसी बीच बीबीसी उर्दू पर स्वात की बेटी 'गुल मकई' सामने आई। गुल मकई की नजर से दुनिया ने तालिबान के शासन में जिंदगी के बारे में जाना। खास तौर पर लड़कियों और महिलाओं की जिंदगी के बारे में। डायरी जनवरी से मार्च 2009 के बीच दस किस्तों में बीबीसी उर्दू की वेबसाइट पर पोस्ट हुई। स्वात से लेकर दुनिया के कई हिस्सों में इस डायरी ने तहलका मचा दिया। फौजी कार्रवाई खत्म होने के बाद दिसंबर 2009 में पता चला कि 'गुल मकई' स्वात की ही बेटी है और उसका नाम मलाला युसू़फजई है। तालिबान से बचाने के लिए उसे यह नाम दिया गया था।

पहचान जाहिर होते ही वह दुनिया की नजरों में बहादुर मलाला बन गई लेकिन तालिबान की आँखों की किरकिरी। उसके पिता जियाउद्दीन युसू़फजई उन कुछ लोगों में शामिल हैं, जो स्वात को तालिबान से बचाने में जुटे थे। पूरा परिवार तालिबान के निशाने पर आ गया। इस बीच मलाला को अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कई सम्मान मिले। लेकिन तालिबान के बदले की आग ठंडी नहीं हुई। जब लग रहा था कि सब कुछ ठीक हो रहा है तो पिछले महीने 9 अक्टूबर को तालिबान हमलावरों ने 14 साल की मलाला पर जानलेवा हमला किया। दुनिया भर के करोड़ों लोगों की दुआओं और डॉक्टरों की अथक मेहनत का नतीजा है कि वह ठीक हो गई और लंदन में ही पढ़ाई शुरू कर चुकी है।

मलाला ने जो डायरी के पन्ने लिखे, वह एन फ्रैंक की डायरी की ही तरह हमें उस दुनिया से दो-चार कराते हैं, जिनमें वह रह रही थी। बीबीसी उर्दू की वेबसाइट से साभार उस डायरी को हम यहाँ पेश कर रहे हैं :

सनीचर, 3 जनवरी 2009 : मैं डर गई और रफ्तार बढ़ा दी

कल पूरी रात मैंने ऐसा डरावना ख्वाब देखा जिसमें फौजी हेलीकॉप्टर और तालिबान दिखाई दिए। स्वात में फौजी ऑपरेशन शुरू होने के बाद इस किस्म के ख्वाब बार-बार देख रही हूँ। माँ ने नाश्ता दिया और फिर तैयारी करके स्कूल के लिए रवाना हो गई। मुझे स्कूल जाते वक्त बहुत खौफ महसूस हो रहा था क्योंकि तालिबान ने एलान किया है कि लड़कियाँ स्कूल न जाएँ।

आज हमारे क्लास में सत्ताइस में से सिर्फ 11 लड़कियाँ हाजिर थीं। यह तादाद इसलिए घट गई है कि लोग तालिबान के एलान के बाद डर गए हैं। मेरी तीन सहेलियाँ स्कूल छोड़कर अपने खानदान वालों के साथ पेशावर, लाहौर और रावलपिंडी जा चुकी हैं। एक बजकर चालीस मिनट पर स्कूल की छुट्टी हुई। घर जाते वक्त हुए रास्ते में मुझे एक शख्स की आवाज सुनाई दी जो कह रहा था, 'मैं आपको नहीं छोड़ूँगा।'मैं डर गई और अपनी रफ्तार बढ़ा दी। जब थोड़ा आगे गई तो पीछे मुड़कर देखा तो वह किसी और को फोन पर धमकियाँ दे रहा था। मैं यह समझ बैठी कि वह शायद मुझे ही कह रहा है।


इतवार, 4 जनवरी 2009 : कल स्कूल जाना है, मेरा दिल धड़क रहा है

आज छुट्टी है, इसलिए मैं नौ बजकर चालीस मिनट पर जागी लेकिन उठते ही वालिद साहब ने यह बुरी खबर सुनाई कि आज फिर ग्रीन चौक से तीन लाशें मिली हैं। इस वाकए की वजह से दोपहर को मेरा दिल खराब हो रहा था। जब स्वात में फौजी कार्रवाई शुरू नहीं हुई थी उस वक्त हम तमाम घर वाले इतवार को पिकनिक के लिए मीर गुजार, फिजाए घट और कांजू चले जाते थे। अब हालात इतने खराब हो गए हैं कि हम डेढ़ साल से पिकनिक पर नहीं जा सके हैं।

हम रात को खाने के बाद सैर के लिए बाहर भी जाया करते थे। अब हालात की वजह से लोग शाम को ही घर लौट आते हैं। मैंने आज घर का काम-काज किया, होम वर्क किया और थोड़ी देर के लिए छोटे भाई के साथ खेली। कल सुबह फिर स्कूल जाना है और मेरा दिल अभी से धड़क रहा है।


पीर, 5 जनवरी 2009 : जरक-बरक लिबास पहन कर नहीं आएँ

आज जब स्कूल जाने के लिए मैंने यूनिफॉर्म पहनने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो याद आया कि हेडमिस्ट्रेस ने कहा था कि आइंदा घर के कपड़े पहन कर स्कूल आ जाया करें। मैंने अपनी पसंदीदा गुलाबी रंग के कपड़े पहन लिए। स्कूल में हर लड़की ने घर के कपड़े पहन लिए जिससे स्कूल घर जैसा लग रहा था। इस दौरान मेरी एक सहेली डरती हुई मेरे पास आई और बार-बार कुरआन का वास्ता देकर पूछने लगी कि 'खुदा के लिए सच-सच बताओ, हमारे स्कूल को तालिबान से खतरा तो नहीं?'

मैं स्कूल खर्च यूनिफॉर्म की जेब में रखती थी लेकिन आज जब भी मैं भूले से अपने जेब में हाथ डालने की कोशिश करती तो हाथ फिसल जाता क्योंकि मेरे घर के कपड़ों में जेबें सिलीं ही नहीं। आज हमें असेंबली में फिर कहा गया कि आइंदा से जरक-बरक (तड़क-भड़क, रंगीन) लिबास पहन कर न आएँ क्योंकि इस पर भी तालिबान खफा हो सकते हैं।

स्कूल की छुट्टी के बाद घर आई और खाना खाने के बाद ट्यूशन पढ़ा। शाम को मैंने टेलीविजन ऑन किया तो इसमें बताया गया कि शिकरदा से पंद्रह रोज के बाद कर्फ्यू उठाया गया। मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि हमारे अंग्रेजी की उस्ताद का ताल्लु़क इसी इलाके से है और वह शायद कल पंद्रह दिन के बाद पढ़ाने के लिए स्कूल आ जाएँ।

बुध, 7 जनवरी 2009 : न फायरिंग न डर

मैं मुहर्रम अल हराम की छुट्टियाँ गुजारने अपनी फेमिली के साथ जिला बूनीर आई हूँ। बूनीर मुझे बहुत पसंद आया। यहाँ चारों तरफ पहाड़ और सरसब्ज वादियाँ हैं। मेरा स्वात भी तो बहुत खूबसूरत है लेकिन वहाँ अमन जो नहीं। यहाँ अमन भी है और सुकून भी। न फायरिंग की आवाज और न ही कोई खौफ। हम सब घर वाले यहाँ बहुत खुश हैं।

आज पीर बाबा के मजार पर गए थे। वहाँ लोगों का बहुत ज्यादा रश था। वह मन्नतें माँगने आए थे और हम तफरीह के लिए। यहाँ पर चूड़ियाँ, झुमके, लॉकेट वगैरह बिकते हैं। मैंने शॉपिंग करने का सोचा था मगर कुछ भी पसंद नहीं आया। अलबत्ता अम्मी ने झुमके और चूड़ियाँ खरीद लीं।


जुमा, 9 जनवरी 2009 : मौलाना शाह दौरान छुट्टी पर चले गए

आज मैंने स्कूल में अपनी सहेलियों को बूनीर के सफर के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि तुम्हारे ये किस्से सुनते-सुनते हमारे कान पक जाएँगे। हमने एफएम चैनल पर तकरीर करने वाले तालिबान रहनुमा मौलाना शाह दौरान की मौत से मुतल्लिक उड़ाई गई खबर पर खूब बहस की। उन्होंने ही लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी का एलान किया था।

कुछ लड़कियों का कहना था कि वह मर गए हैं। कुछ ने कहा कि नहीं, जिंदा हैं। उन्होंने चूँकि गुजिश्ता रात तकरीर नहीं की थी इसीलिए उनकी मौत की अफवाह फैलाई गई थी। एक लड़की ने कहा कि वह छुट्टी पर चले गए हैं।

जुमा को हमारे ट्यूशन की छुट्टी होती है इसलिए हम आज देर तक खेलते रहे। अभी-अभी ज्यों ही मैं टीवी देखने बैठ गई तो खबर आई कि लाहौर में धमाके हो गए हैं। मैंने कहा - या अल्लाह, दुनिया में सबसे ज्यादा धमाके पाकिस्तान में ही क्यों होते हैं।

बुध, 14 जनवरी , 2009 : शायद दोबारा स्कूल न आ सकूँ

आज मैं स्कूल जाते वक्त बहुत खफा थी क्योंकि कल से सर्दियों की छुट्टियाँ शुरू हो रही हैं। हेडमिस्ट्रेस ने छुट्टियों का एलान तो किया तो मगर मु़कर्रर तारीख नहीं बताई। ऐसा पहली बार हुआ है। पहले हमेशा छुट्टियों के खत्म होने की मु़कर्रर तारीख बताई जाती थी। इसकी वजह तो उन्होंने नहीं बताई लेकिन मेरा खयाल है कि तालिबान की जानिब से पंद्रह जनवरी के बाद लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी के सबब ऐसा किया गया है।

इस बार लड़कियाँ भी छुट्टियों के बारे में पहले की तरह ज्यादा खुश दिखाई नहीं दे रही थीं क्योंकि उनका खयाल था कि अगर तालिबान ने अपने एलान पर अमल किया तो शायद स्कूल दोबारा न आ सकें।

कुछ लड़कियाँ पुरउम्मीद थीं कि इंशा अल्लाह फरवरी में स्कूल दोबारा खुल जाएँगे लेकिन बाज ऐसी भी थीं कि जिन्होंने बताया कि उनके तालीम जारी रखने की खातिर उनके माँ-बाप ने स्वात से नक्ल मकानी (जगह बदलना) करने का फैसला किया है। आज चूँकि स्कूल का आखिरी दिन था इसीलिए हम सहेलियों ने स्कूल के ग्राउंड में देर तक खेलने का फैसला किया। मुझे भी यह उम्मीद है कि इंशा अल्लाह हमारा स्कूल बंद नहीं होगा लेकिन फिर भी निकलते वक्त मैंने स्कूल की इमारत पर ऐसी नजर डाली जैसे दोबारा यहाँ नहीं आ सकूँगी।

जुमेरात, 15 जनवरी 2009 : तोपों की घन गरज से भरपूर रात

पूरी रात तोपों की शदीद घन गरज थी जिसकी वजह से मैं तीन मर्तबा जाग उठी। आज ही से स्कूल की छुट्टियाँ भी शुरू हो गई हैं इसलिए मैं आराम से दस बजे उठी। बाद में मेरी एक क्लास फेलो आई जिसने मेरे साथ होमवर्क डिस्कस किया।

आज पंद्रह जनवरी थी यानी तालिबान की तरफ से लड़कियों के स्कूल न जाने की धमकी की आखिरी तारीख मगर मेरी क्लास फेलो कुछ इस एत्माद से होमवर्क कर रही है जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

आज मैंने मकामी अखबार में बीबीसी पर शाया होने वाली अपनी डायरी भी पढ़ी। मेरी माँ को मेरा फर्जी नाम 'गुल मकई' बहुत पसंद आया और अब्बू से कहने लगी कि मेरा नाम बदल कर गुल मकई क्यों नहीं रख लेते। मुझे भी यह नाम पसंद आया क्योंकि मुझे अपना नाम इसलिए अच्छा नहीं लगता कि इसके मानी 'गमजदः' के हैं।

अब्बू ने बताया कि चंद दिन पहले भी किसी ने डायरी की प्रिंट लेकर उन्हें दिखाई थी कि ये देखो, स्वात की किसी तालिबा की कितनी जबरदस्त डायरी छप रही है। अब्बू ने कहा कि मैंने मुस्कराते हुए डायरी पर नजर डाली और डर के मारे यह भी न कह सका कि 'हाँ, यह तो मेरी बेटी की है।'


इतवार, 18 जनवरी 2009 : सिक्योरिटी फोर्सेज भी जिम्मेदार

आज अब्बू ने बताया कि हुकूमत हमारे स्कूलों की हिफाजत करेगी। वजीर-ए-आजम ने भी हमारे बारे में बात की है। मैं बहुत खुश हुई। लेकिन इससे तो हमारा मसला हल नहीं होगा। यहाँ हम स्वात में रोजाना सुनते हैं कि फलाँ जगह पर इतने फौजी मर गए हैं। उधर उतने अगवा हो गए। पुलिस वाले तो आजकल शहर में नजर आ ही नहीं रहे हैं। हमारे माँ-बाप बहुत डरे हुए हैं। वह कहते हैं कि जब तक तालिबान खुद ही एफएम चैनल पर अपना एलान वापस नहीं लेते, वह हमें स्कूल नहीं भेजेंगे। खुद फौज की वजह से भी हमारी तालीम मुतास्सिर हुई है। आज हमारे मुहल्ले का एक लड़का स्कूल गया था तो वहाँ पर उस्ताद ने उससे कहा कि तुम वापस घर चले जाओ क्योंकि कर्फ्यू लगने वाला है। वह जब वापस आया तो पता चला कि कर्फ्यू नहीं लग रहा है बल्कि उस रास्ते से फौजी काफिले को गुजरना था इसलिए स्कूल से छुट्टी कर दी गई।


पीर, 19 जनवरी 2009 : स्कूल की बिल्डिंग को क्यों सजा दी जा रही है

आज फिर पाँच स्कूलों को बमों से उड़ा दिया गया। इनमें से एक स्कूल तो मेरे घर के करीब है। मैं हैरान हूँ कि ये स्कूल तो बंद थे फिर क्यों उन्हें आग लगाई गई। तालिबान के डेडलाइन के बाद तो किसी ने भी स्कूल में कदम नहीं रखा था। आखिर ये लोग बिल्डिंग को क्यों सजा दे रहे हैं।

आज मैं अपनी एक सहेली के घर गई थी। उसने कहा कि चंद दिन पहले मौलाना शाह दौरान के चचा को किसी ने कत्ल कर दिया था। शायद इसीलिए तालिबान ने गुस्से में आकर इन स्कूलों को जला दिया है। वह कह रही थी कि तालिबान को किसी ने तकलीफ पहुँचाई है। जब उन्हें तकलीफ पहुँचती है तो वह फिर इस तरह का गुस्सा हमारे स्कूलों पर निकालते हैं। फौजी भी कुछ नहीं कर रहे हैं। वह पहाड़ों में अपने मोर्चों में बैठे हुए हैं। बकरियाँ जबह करते हैं और मजे लेकर खाते हैं।


जुमेरात, 22 जनवरी 2009 : जहाँ फौजी वहाँ तालिब , जहाँ तालिब वहाँ फौजी नहीं

स्कूलों के बंद होने के बाद घर पर बैठ कर बहुत बोर हो गई हूँ। मेरी बाज सहेलियाँ स्वात से चली गई हैं। स्वात में आजकल हालात फिर बहुत खराब हैं। डर के मारे घर से बाहर नहीं निकल सकती। रात को भी मौलाना शाह दौरान ने एफएम चैनल पर अपनी तकरीर में ये धमकी दी कि लड़कियाँ घर से न निकलें। उन्होंने ये भी कहा कि फौज जिस स्कूल को मोर्चे के तौर पर इस्तेमाल करेगी वह उसे धमाके से उड़ा देंगे।

अब्बू ने आज घर में हमें बताया कि हाजी बाबा में लड़कियों और लड़कों के हाई स्कूलों में भी फौजी आ गए हैं। अल्लाह खैर करे। मौलाना शाह दौरान ने अपनी तकरीर में ये भी कहा कि कल तीन चोरों को कोड़े लगाए जाएँगे, जो भी तमाशा करना चाहता है वह पहुँच जाए। मैं हैरान हूँ कि हमारे साथ इतना जुल्म हुआ है, फिर लोग क्यों तमाशा करने जाते हैं। फौज भी तालिबान को ऐसा करने से क्यों नहीं रोकती। मैंने देखा है कि जहाँ फौज होगी वहाँ तालिब होगा मगर जहाँ तालिब होगा वहाँ फौजी नहीं जाएगा।


सनीचर, 24 जनवरी: ऑनर बोर्ड पर शायद इस साल किसी का नाम न लिखा जाए

हमारे सालाना इम्तेहानात छुट्टियाँ खत्म होने के बाद होंगे, लेकिन यह उस वक्त होंगे जब तालिबान लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत दें। तैयारी करने के लिए हमें कुछ चैप्टर बताए गए हैं, मगर मेरा दिल पढ़ने को नहीं कर रहा है।

कल से फौज ने भी मिंगोरा में तालीमी इदारों की हिफाजत के लिए कंट्रोल सँभाल लिया है। जब दर्जनों स्कूल तबाह हो गए और सैकड़ों बंद हुए तो अब जाके फौज को हिफाजत का खयाल आया। अगर वह सही ऑपरेशन करते तो यह नौबत पेश ही न आती। मुस्लिम खान ने कहा है कि वह उन तालीमी इदारों पर हमला करेंगे जिनमें फौजी होंगे। अब तो स्कूल में फौजियों को देख कर हमारा खौफ और भी बढ़ जाएगा।

पीर, 26 जनवरी 2009 : हेलीकॉप्टर का खौफ ओर टाफियों की बारिश

आज सुबह सवेरे तोप के गोलों की आवाजें सुन कर नींद से जाग उठी। बहुत ज्यादा गोलाबारी हुई है। पहले हम हेलीकॉप्टरों के शोर से डरते थे और अब तोप के गोलों से।

मुझे याद है कि जब ऑपरेशन शुरू हुआ था, उस वक्त जब पहली मर्तबा हेलीकॉप्टर हमारे घरों के ऊपर से गुजरे थे तो हम खौफ के मारे छिप गए थे। मेरे मुहल्ले के तमाम बच्चों की यही हालत थी।

एक दिन हेलीकॉप्टरों से टाफियाँ फेंकी गईं और फिर ये सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। अब मेरे भाई और मुहल्ले के दूसरे बच्चे ज्यों ही हेलीकॉप्टर की आवाज सुनते हैं तो वह बाहर निकल कर टाफियों के फेंके जाने का इंतजार करते हैं लेकिन अब ऐसा नहीं होता। थोड़ी देर पहले अब्बू ने खुशखबरी सुनाई कि वह हमें कल इस्लामाबाद लेकर जा रहे हैं। हम सब बहन-भाई बहुत खुश हैं।

बुध, 28 जनवरी 2009 : मैंने अम्मी और अब्बू की आँखों में आँसू देखे

अब्बू ने अपना वायदा पूरा किया और हम कल ही इस्लामाबाद आ गए। रास्ते में बहुत डर लग रहा था, क्योंकि मैंने सुना था कि तालिबान रस्ते में तलाशी लेते हैं। लेकिन अच्छा हुआ कि हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ।

इसके बजाय फौज ने हमारी तलाशी ली। जब स्वात का इलाका खत्म हो गया तो हमारा खौफ खत्म हो गया। हम इस्लामाबाद में अब्बू के एक दोस्त के साथ ठहरे हुए हैं।

मैं पहली बार इस्लामबाद आई हूँ। यह एक खूबसूरत शहर है, यहाँ बड़े-बड़े बँगले और साफ-सुथरी सड़कें हैं लेकिन इसमें वह नेचुरल ब्यूटी नहीं जो मेरे स्वात में है।

अब्बू हमें लोक विरसा लेकर गए। यहाँ मेरी मालूमात में बहुत इजाफा हुआ। स्वात में भी इसी किस्म का म्यूजियम है लेकिन मालूम नहीं कि वह महफूज रह भी सकेगा या नहीं? लोक विरसा से निकलकर अब्बू ने एक बूढ़े शख्स से हमारे लिए पॉपकॉर्न खरीदा। इस शख्स ने जब पश्तो में बात की तो अब्बू ने उससे पूछा कि क्या आप इस्लामाबाद के रहने वाले हैं तो उस बूढ़े शख्स ने जवाब दिया कि आपको क्या लगता है कि इस्लामाबाद पश्तूनों का हो सकता है?

इस शख्स ने बताया कि उसका ताल्लुक मुहम्मद एजेंसी से है जहाँ पर फौजी ऑपरेशन शुरू हो गया है। 'मैं घर-बार छोड़ कर यहाँ आया हूँ।' इस वक्त मैंने अब्बू और अम्मी की आँखों में आँसू देख लिए।


जुमा, 31 जनवरी 2009 : मैंने शटल कॉक पहनने से इनकार कर दिया

स्वात की जंग से हमने सिर्फ इतना फायदा उठाया कि अब्बू ने जिंदगी में पहली मर्तबा हम सब घर वालों को मिंगोरा से निकाल कर मुख्तलिफ शहरों में खूब घुमाया-फिराया। हम कल इस्लामाबाद से पेशावर आ गए। वहाँ पर हमने अपने एक रिश्तेदार के घर में चाय पी और इसके बाद हमारा इरादा बनू जाने का था।

मेरा छोटा भाई, जिसकी उम्र पाँच साल है, हमारे रिश्तेदार के घर के सहन में खेल रहा था। अब्बू ने जब उसे देख कर पूछा कि क्या कर रहे हो, बिचूड़ी (बच्चे) तो उसने कहा, 'मिट्टी से बाबा कब्र बना रहा हूँ।' बाद में हम अड्डे गए और वहाँ से एक वैगन में बैठ कर बनू के लिए रवाना हो गए। वैगन पुरानी थी और ड्राइवर भी रास्ते में हॉर्न बहुत बजाया करता था। एक दफा जब खराब सड़क की वजह से वैगन एक खड्डे में गिर गई तो उस वक्त अचानक हॉर्न भी बज गया तो मेरा एक दूसरा भाई, जो दस साल का है, अचानक नींद से बेदार हुआ।

वह बहुत डरा हुआ था। जागते ही अम्मी से पूछने लगा, 'अबई (अम्मी), क्या कोई धमाका हो गया है।' रात को हम बनू पहुँच गए जहाँ मेरे अब्बू के दोस्त पहले से ही हमारा इंतजार कर रहे थे। मेरे अब्बू के दोस्त भी पश्तून हैं मगर इनके घरवालों की जबान (बिनूसी लहजा) हमें पूरी तरह समझ नहीं आ रही है।

हम बाजार गए। फिर पार्क। यहाँ पर ख्वातीन जब बाहर निकलती हैं तो उन्हें टोपी वाला बु़र्का (शटल कॉक) लाजमी पहनना होगा। मेरी अम्मी ने तो पहन लिया मगर मैंने इनकार कर दिया क्योंकि मैं इसमें चल नहीं सकती हूँ।

स्वात के मु़काबले में यहाँ अमन ज्यादा है। हमारे मेजबानों ने बताया कि यहाँ भी तालिबान हैं मगर जंगें इतनी नहीं होतीं जितनी स्वात में होती हैं। उन्होंने कहा कि तालिबान ने यहाँ भी लड़कियों के स्कूलों को बंद करने की धमकी दी थी मगर फिर भी स्कूल बंद नहीं हुए।


सनीचर, 1 फरवरी 2009 : स्वात के सैकड़ों लोगों के खून का हिसाब कौन लेगा?

बनू से पेशावर आते हुए रास्ते में मुझे स्वात से अपनी एक सहेली का फोन आया। वह बहुत डरी हुई थी, मुझ से कहने लगी, हालात बहुत खराब हैं, तुम स्वात मत आना। उसने बताया कि फौजी कार्रवाई शदीद हो गई है और मोर्टार गोलों से सिर्फ आज सैंतीस लोग मरे हैं। शाम को हम पेशावर पहुँचे और बहुत थके हुए थे। मैंने एक न्यूज चैनल लगाया तो वह भी स्वात की बात कर रहा था। उसमें लोगों को हिजरत करते हुए दिखाया गया। लोग पैदल जा रहे थे मगर वह खाली हाथ थे।

मैंने सोचा कि एक वह वक्त था जब बाहर से लोग तफरीह के लिए स्वात आया करते थे और आज स्वात के लोग अपने इलाके को छोड़ कर जा रहे हैं। मैंने दूसरा चैनल लगाया जिस पर एक खातून कह रही थी कि 'हम शहीद बेनजीर भुट्टो के खून का हिसाब लेंगे।' मैंने पास बैठे अब्बू से पूछा कि ये सैकड़ों स्वातियों के खून का हिसाब कौन लेगा?


पीर, 3 फरवरी 2009 : स्कूल नहीं खुले, मैं बहुत खफा हूँ

आज हमारे स्कूल खुलने का दिन था। सुबह उठते ही स्कूल बंद होने का खयाल आया तो खफा हो गई। इससे पहले जब भी स्कूल मुकर्रर तारीख पर न खुलता तो हम खुश हो जाया करते थे। इस दफा ऐसा नहीं है क्योंकि मुझे डर है कि कहीं हमारा स्कूल तालिबान के हुक्म पर हमेशा के लिए बंद न हो जाए।

अब्बू ने बताया कि प्राइवेट स्कूलों ने लड़कियों की तालीम पर पाबंदी के खिलाफ लड़कों के स्कूलों को आठ फरवरी तक न खोलने का एलान भी किया। अब्बू ने बताया कि लड़कों के प्राइवेट स्कूलों के दरवाजों पर ये नोटिस लगाया गया है कि स्कूल नौ फरवरी को खुल जाएँगे। उन्होंने बताया कि लड़कियों के स्कूल पर ये नोटिस नहीं लगा है जिसका मतलब है कि हमारे स्कूल अब नहीं खुलेंगे।


सनीचर, 7 फरवरी 2009 : बड़ी दाढ़ियाँ, लंबे बाल और तोप के गोले

दोपहर को मैं और मेरा छोटा भाई अब्बू के साथ मिंगोरा के लिए रवाना हो गए। अम्मी लोग पहले ही जा चुके थे। बीस दिन के बाद मिंगोरा जाते हुए खुशी भी हो रही थी और साथ में डर भी लग रहा था। मिंगोरा में दाखिल होने से पहले जब हम कंबर के इलाके से गुजर रहे थे तो वहाँ पर अजीब किस्म की खामोशी थी।

बड़ी-बड़ी दाढ़ियाँ और लंबे-लंबे बालों वाले कुछ लोगों के सिवा वहाँ पर कोई और नजर नहीं आया। शक्ल व सूरत से ये लोग तालिबान लग रहे थे। मैंने कुछ मकानों को भी देखा जिन पर गोलों के निशानात थे। मिंगोरा में दाखिल हुए तो वहाँ पर भी पहले की तरह रश नहीं था। हम अम्मी के लिए तोहफा खरीदने शाह सुपर मार्केट गए तो वह भी बंद हो गया था हालाँकि पहले मार्केट देर तक खुली रहती थी। बा़की दु़कानें भी बंद हो गई थीं। हमने अम्मी को मिंगोरा आने का नहीं बताया था क्योंकि उन्हें सरप्राइज देने का फैसला किया था। घर में दाखिल हुए तो अम्मी बहुत हैरान हुईं।


इतवार, 8 फरवरी : यूनिफॉर्म, बस्ते और जियोमेट्री बॉक्स देख कर दुख हुआ

मैंने जब अपनी अलमारी खोली तो वहाँ पर पड़े स्कूल के यूनिफॉर्म, बस्ते और जियोमेट्री बॉक्स को देख कर मुझे बहुत दुख हुआ। कल तमाम प्राइवेट स्कूलों के ब्वायज सेक्शन खुल रहे हैं। हम लड़कियों की तालीम पर तो तालिबान ने पाबंदी लगा रखी है।

मैंने जियोमेट्री बॉक्स खोला तो उसमें दो सौ रुपए पड़े थे। ये स्कूल के जुर्माने के पैसे हैं। जब कोई लड़की स्कूल न आती या कभी लेट आती तो उससे जुर्माने के पैसे लेने की जिम्मेदारी टीचर ने मेरी लगाई थी।

अलमारी में हमारे क्लास के बोर्ड का मार्कर भी पड़ा था जिसे मैं अपने साथ रखा करती थी। स्कूल की बहुत-सी बातें याद आईं, सबसे ज्यादा लड़कियों के आपस के झगड़े। मेरे छोटे भाई का स्कूल भी कल ही खुल रहा है, उसने बिल्कुल होमवर्क नहीं किया है। वह बहुत परेशान है और स्कूल जाना नहीं चाह रहा। अम्मी ने वैसे कल कर्फ्यू लगने की बात की तो उसने पूछा कि क्या कल सचमुच कर्फ्यू लग रहा है। अम्मी ने जब 'हाँ' कहा तो उसने खुशी से नाचना शुरू कर दिया।


मंगल, 10 फरवरी 2009 : महबूब या गुरबत वतन छोड़ने पर मजबूर करती है

स्वात में लड़कों के स्कूल खुल चुके हैं और तालिबान की तरफ से प्राइमरी तक लड़कियों के स्कूल जाने से पाबंदी उठाए जाने के बाद लड़कियों ने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया है। हमारे स्कूल में पाँचवीं तक लड़के और लड़कियाँ एक साथ पढ़ते हैं।

मेरे छोटे भाई ने बताया कि आज उसके क्लास के उनचास में से सिर्फ छह बच्चे हाजिर थे जिसमें से सिर्फ एक तालिबा थी। असेंबली में भी सत्तर के करीब बच्चे थे। हमारे स्कूल की कुल तादाद सात सौ है

आज हमारी एक नौकरानी आई थी जो हफ्ते में एक बार हमारे कपड़े धोने आती हैं। उसके साथ एक और खातून भी थी। नौकरानी का ताल्लु़क जिला अटक से है लेकिन वह बरसों से यहाँ रह रही है। उन्होंने बताया : 'हालात बहुत खराब हैं और मेरे खाविंद ने कहा है कि तुम वापस अटक चली जाओ।'

उन्होंने कहा कि इतने बरसों तक यहाँ रह कर स्वात अब मुझे अपना घर जैसा लग रहा है। अपने शहर अटक जाते हुए मुझे लगता है कि मैं अपना शहर छोड़ कर एक अनजान शहर जा रही हूँ। उनके साथ जो औरत आई थी वह स्वात की है और उसने अम्मी को एक पश्तो टप्पा सुनाया।

आलम पे चार लह मुलकः न जी

या डेर गरीब शी या दयार लह गमः जी ना

(लोग मर्जी से अपना वतन नहीं छोड़ते, या बहुत ज्यादा गुरबत या फिर महबूब उन्हें तर्कए-वतन पर मजबूर करती है।)


बुध, 11 फरवरी 2009: खुदकश हमले को प्रेशर कुकर का धमाका समझ लो

आज भी सारा दिन खौफ में गुजरा। बोरियत भी बहुत थी। घर में अब टेलीविजन भी नहीं है। जब हम सर्दियों की छुट्टियों में बीस दिन के लिए मिंगोरा से बाहर गए थे तो उस वक्त घर में चोरी हो गई थी। पहले इस किस्म की चोरियाँ नहीं होती थीं लेकिन जब से हालात खराब हुए हैं, ऐसे वाकयात भी बढ़ गए हैं।

शुक्र है हमारे घर में न नकदी थी और न ही सोना, मेरा ब्रेसलेट और पायल भी गायब थे लेकिन बाद में मुझे कहीं और नजर आए। शायद चोर सोना समझकर चुराना चाह रहे थे मगर बाद में उन्हें समझ आ गई होगी कि ये तो नकली हैं।

मौलना फजलुल्लाह ने पिछली रात एफएम चैनल पर अपनी तकरीर में कहा कि मिंगोरा में पुलिस स्टेशन पर जो खुदकश हमला हुआ था इसे प्रेशर कुकर का धमाका समझ लो, इसके बाद बड़ा देग फटेगा और फिर टैंकर का धमाका होगा।

रात को अब्बू ने स्वात में होने वाले तमाम वाकयात सुनाए। आजकल बातों में हमारी जबान पर फौजी, तालिबान, रॉकेट, गोलाबारी, शेलिंग, मौलाना फजलुल्लाह, मुस्लिम खाँ, पुलिस, हेलीकॉप्टर, हलाक, जख्मी जैसे अलफाज ज्यादा होते हैं।


जुमेरात, 12 फरवरी 2009 : जुमा को खुदकश हमले का सवाब ज्यादा होता है?


कल सारी रात शदीद गोलाबारी होती रही। इस हाल में भी मेरे दोनों भाई सोए हुए थे मगर मुझे बिल्कुल नीद नहीं आ रही थी। मैं एक दफा अब्बू के पास गई। वहाँ आराम नहीं आया फिर जाकर अम्मी के साथ लेट गई। इसके बावजूद थोड़ी देर के लिए आँख लग जाती लेकिन फिर दोबारा जाग उठती।

इसलिए सुबह देर से जागी। सहपहर को ट्यूशन पढ़ाने वाला टीचर आया। इसके बाद कारी साहब ने आकर दीनी सबक पढ़ाया। शाम तक भाइयों के साथ कभी लड़कर कभी सुलह कर के खेलती रही। टीवी न होने से कुछ देर तक कंप्यूटर पर गेम भी खेलती रही।

जब तालिबान ने केबल पर पाबंदी नहीं लगाई थी उस वक्त स्टार प्लस के ड्रामे देखा करती थी। इसमें 'राजा की आएगी बारात' वाला ड्रामा मुझे बहुत पसंद था। मुझे कॉमेडी भी बहुत पसंद है। पाकिस्तानी चैनल जियो का मजाहिया प्रोग्राम 'हम सब उम्मीद से हैं' को भी मैं बहुत शौक से देखा करती थी।

आज जुमेरात है यानी शब-ए-जुमा है। इसलिए मुझे डर भी बहुत लग रहा है क्योंकि लोग कहते हैं कि अक्सर देखा गया है शब-ए-जुमा या जुमा के दिन खुदकश हमले ज्यादा होते हैं। वह कहते हैं कि खुदकश हमलावर समझता है कि इस्लामी तौर पर ये एक मु़कद्दस दिन है और इस रोज हमला करने से उसे सवाब ज्यादा मिलेगा।


जुमा, 13 फरवरी 2009 : मौलाना फजलुल्लाह रोते रहे

आज मौसम बहुत अच्छा था। बहुत ज्यादा बारिश हुई और जब बारिश होती है तो मेरा स्वात और भी खूबसूरत लगता है। मगर सुबह जागते ही अम्मी ने बताया कि आज किसी ने रिक्शा ड्राइवर और बूढ़े चौकीदार को कत्ल कर दिया है। यहाँ अब जिंदगी बद से बदतर होती जा रही है।

आस-पास के इलाके से रोजाना सैकड़ों लोग मिंगोरा आ रहे हैं जबकि मिंगोरा के लोग दूसरे शहरों की तरफ चले गए हैं। जो अमीर हैं वह स्वात से बाहर गए हैं और जो गरीब हैं वह यहाँ से कहीं और जा नहीं सकते।

हमने अपने तायाजाद भाई को फोन किया था कि वह इस अच्छे मौसम में अपनी गाड़ी में हमें मिंगोरा का चक्कर लगवाएँ। वह आया लेकिन जब हम बाहर निकले तो बाजार बंद था, सड़कें सुनसान थीं। हम कंबर के इलाके की तरफ जाना चाह रहे थे कि किसी ने बताया कि वहाँ एक बहुत बड़ा जुलूस निकला हुआ है।

रात को एफएम स्टेशन पर मौलाना फजलुल्लाह ने तकरीर की और वह देर तक रोते रहे। वह ऑपरेशन बंद होने का मुतालबा कर रहे थे। उन्होंने लोगों से कहा कि वह हिजरत न करें बल्कि अपने घरों में वापस आ जाएँ।


इतवार, 15 फरवरी 2009 : डरो मत यह अमन की फायरिंग है

आज पेशावर और गाँवों से मेहमान आए हुए थे। दोपहर को जब हम खाना खा रहे थे कि बाहर बहुत ज्यादा फायरिंग शुरू हुई। इतनी जबरदस्त फायरिंग मैंने इससे पहले कभी नहीं सुनी थी। हम सब डर गए, सोचा कि शायद तालिबान आ गए हैं। मैं भाग कर अब्बू के पास गई। उन्होंने कहा, 'डरो मत यह अमन की फायरिंग है।'

अब्बू ने बताया कि आज अखबार में आया है कि कल हुकूमत और तालिबान के दरम्यान स्वात के बारे में अमन मुहायदा हो रहा है। इसलिए लोग खुशी से फायरिंग कर रहे हैं। लेकिन रात को जब तालिबान के एफएम पर भी अमन मुहायदा होने का एलान हुआ तो दोपहर से भी ज्यादा जबरदस्त फायरिंग हुई। क्योंकि लोग हुकूमत से ज्यादा तालिबान के एलान पर यकीन करते हैं।

जब हमने भी यह एलान सुना तो पहले अम्मी रोने लगी, फिर अब्बू, मेरे और दो छोटे भाइयों की आँखों से भी आँसू निकल गए। आज मैं सुबह उठते ही बहुत ज्यादा खुश थी क्योंकि हुकूमत और तालिबान के दरम्यान अमन मुहायदा जो हो रहा था। आज हेलीकॉप्टर की परवाज भी बहुत ज्यादा नीचे थी। मेरे एक कजन ने कहा कि जैसे-जैसे अमन आ रहा है वैसे-वैसे हेलीकॉप्टर की परवाज भी नीचे हो रही है।

दोपहर को अमन मुहायदे की खबर सुनकर लोगों ने मिठाइयाँ बाँटीं। मेरी एक सहेली ने मुझे मुबारकबाद का फोन किया। उसने कहा कि अब उसे घर से निकलने का मौका मिलेगा क्योंकि वह कई महीनों से एक ही कमरे में बंद रही है। हम दोनों इस बात पर भी बहुत खुश थे कि शायद अब लड़कियों के स्कूल दोबारा खुल जाएँ।


मंगल, 17 फरवरी 2009 : शहर की रौनक दोबारा लौट आई है

आज से मैंने इम्तेहानात की तैयारियाँ दोबारा शुरू कर दी हैं क्योंकि अमन मुहायदे के बाद लड़कियों के स्कूल दोबारा खुलने की उम्मीद पैदा हो गई है। आज मुझे ट्यूशन पढ़ाने वाली टीचर भी नहीं आईं क्योंकि वह किसी मँगनी में शिरकत करने गई थीं।

मैं जब अपने कमरे में आई तो मेरे दो छोटे भाई आपस में खेल रहे थे। एक के पास खिलौने वाला हेलीकॉप्टर था और दूसरे ने कागज से बंदू़क बनाई हुई थी। एक कह रहा था कि फायर करो, दूसरा फिर कहता पोजीशन सँभालो। मेरे एक भाई ने अब्बू से कहा कि 'मैं एटम बम बनाऊँगा।'

आज स्वात में मौलाना सू़फी मुहम्मद भी आए हुए हैं। मीडिया वाले भी ज्यादा तादाद में आए हैं। शहर में बहुत ज्यादा रश है। बाजार की रौनक वापस लौट आई है। खुदा करे कि इस दफे मुहायदा कामयाब हो। मुझे तो बहुत ज्यादा उम्मीद है लेकिन फिर भी अगर और कुछ नहीं हुआ तो कम-अज-कम लड़कियों के स्कूल तो खुल जाएँगे।


बुध, 18 फरवरी 2009 : सहाफी के कत्ल से अमन की उम्मीद टूट गई

आज मैं बाजार गई थी, वहाँ बहुत ज्यादा रश था। लोग अमन मुहायदे पर बहुत खुश थे। आज बहुत अरसे के बाद मैंने बाजार में ट्रैफिक जाम देखा मगर रात को अब्बू ने बताया कि स्वात के एक सहाफी को नामालूम अफराद ने कत्ल कर दिया है। अम्मी की तबीयत बहुत खराब हो गई। हम सब की अमन आने की उम्मीदें भी टूट गईं।


जुमेरात, 19 फरवरी 2009 : हम अब जंग की नहीं अमन की बातें करेंगे

आज अब्बू ने नाश्ता तैयार करके दिया क्योंकि अम्मी की तबीयत कल से ही खराब है। उन्होंने अब्बू से गुल्ला भी किया कि उन्हें सहाफी की मौत की खबर क्यों सुनाई। मैंने छोटे भाइयों को कहा कि हम अब जंग की नहीं अमन की बातें करेंगे। आज पता चला कि हमारी हेडमिस्ट्रेस ने एलान किया है कि गर्ल्ज सेक्शन के इम्तेहानात मार्च के पहले हफ्ते में होंगे। मैंने भी आज से इम्तेहान की तैयारी मजीद तेज कर दी है।


सनीचर, 21 फरवरी 2009 : तालिबान ने लड़कियों के स्कूलों से पाबंदी उठा ली

स्वात में हालात रफ्ता-रफ्ता सही हो रहे हैं। फायरिंग और तोपखाने के इस्तेमाल में भी बहुत हद तक कमी आई है। लेकिन लोग अब भी डरे हुए हैं कि कहीं अमन मुहायदा टूट न जाए। लोग ऐसी अफवाहें भी फैला रहे हैं कि तालिबान के कुछ कमांडर इस मुहायदे को नहीं मान रहे हैं और कहते हैं कि हम आखिरी दम तक लड़ेंगे।

ऐसी अफवाहें सुनकर दिल धड़कने लगता है। आखिर वह ऐसा क्यों कर रहे हैं। वह कहते हैं कि हम जामिया हफसा और लाल मस्जिद का बदला लेना चाहते हैं लेकिन इसमें हमारा क्या कसूर है। जिन्होंने ये ऑपरेशन किया था उनसे ये लोग क्यों इंतिकाम नहीं लेते। अभी कुछ देर पहले मौलाना फजलुल्लाह ने एफएम पर एलान किया कि लड़कियों के स्कूल पर पाबंदी से मुतल्लिक अपना फैसला वापस लेते हैं। उन्होंने कहा कि लड़कियाँ इम्तेहानात तक जो सत्रह मार्च से शुरू हो रहे हैं स्कूल जा सकती हैं मगर उन्हें पर्दा करना होगा।

मैं ये सुनकर बहुत ज्यादा खुश हुई। मैं यकीन नहीं कर सकती थी कि ऐसा भी कभी हो सकेगा।


इतवार, 22 फरवरी 2009 : ख्वातीन मार्केट सुनसान पड़ी थी

आज हम शॉपिंग करने के लिए ख्वातीन मार्केट गए। रास्ते में हमें बहुत ज्यादा खौफ महसूस हो रहा था क्योंकि तालिबान ने ख्वातीन की बाजारों में शॉपिंग करने पर पाबंदी लगा रखी है। हम मिंगोरा की चीना मार्केट गए जहाँ पर सिर्फ ख्वातीन की जरूरत की चीजें बिकती हैं। मार्केट में दाखिल होते ही हैरान हो गए कि वहाँ पर चंद ही ख्वातीन शॉपिंग करने आई थीं। पहले जब हम यहाँ आते थे तो ख्वातीन का इतना ज्यादा रश होता था कि वह एक-दूसरे को धक्का देकर अपने लिए रास्ता बनाती थीं। मार्केट में कुछ दुकानें बंद थीं और बाज पर लिखा हुआ था, 'दुकान बराए फरोख्त।' और जो खुली भी थीं तो उनमें सामान कम पड़ा था और वह भी बहुत पुराना।


पीर, 30 फरवरी 2009 : स्कूल खुल गए

मैं आज उठते ही बहुत ज्यादा खुश थी कि आज स्कूल जाऊँगी। स्कूल गई तो देखा कुछ लड़कियाँ यूनिफार्म और बाज घर के कपड़ों में आई हुई थीं। असेंबली में ज्यादातर लड़कियाँ एक-दूसरे से गले मिल रही थीं और बहुत ज्यादा खुश दिखाई दे रही थीं।

असेंबली खत्म होने के बाद हेडमिस्ट्रेस ने बताया कि तुम लोग पर्दे का खुसूसी खयाल रखा करो और बु़र्का पहन कर आया करो क्योंकि तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने की इजाजत देने में ये शर्त भी रखी है कि लड़कियाँ पर्दे का खयाल रखें।

हमारी क्लास में सिर्फ बारह लड़कियाँ आई थीं क्योंकि कुछ स्वात से नकल मकानी कर चुकी हैं और कुछ ऐसी हैं जिन्हें उनके वालदैन खौफ की वजह से स्कूल जाने की इजाजत नहीं दे रहे हैं। मेरी चार सहेलियाँ पहले ही स्वात छोड़ कर जा चुकी हैं और आज एक और ने भी कहा कि वह लोग भी राविलपिंडी मुंतिकल हो रहे हैं। मैं बहुत खफा हुई और उनसे कहा भी कि अब तो वह रुक जाएँ क्योंकि अमन मुहायदा हो गया है और हालात भी आहिस्ता-आहिस्ता ठीक हो रहे हैं मगर वह कह रही थीं कि नहीं, हालात का कोई भरोसा नहीं।

मुझे बहुत दुख हुआ कि मेरी चार सहेलियाँ पहले ही जा चुकी हैं और सिर्फ एक रह गई थी, वह भी छोड़ कर जा रही है।


बुध, 25 फरवरी 2009 : मत उठाओ ताकि मौलाना फजलुल्लाह का कलेजा ठंडा हो सके

अम्मी बीमार हैं और अब्बू किसी मीटिंग के सिलसिले में स्वात से बाहर गए हुए हैं। इसलिए सुबह मैंने ही नाश्ता तैयार किया और फिर स्कूल गई। आज हमने क्लास में बहुत ज्यादा मस्ती की। वैसे खेले जैसे पहले खेला करते थे।

आजकल हेलीकॉप्टर भी ज्यादा नहीं आते और हमने भी फौज और तालिबान के बारे में ज्यादा बातें करना छोड़ दिया है। शाम को अम्मी, मेरी कजन और मैं बु़र्का पहन कर बाहर गए। एक जमाने में मुझे बु़र्का पहनने का बहुत शौक था लेकिन अब इससे तंग आई हुई हूँ क्योंकि मुझसे इसमें चला नहीं जा सकता।

स्वात में आजकल एक बात मशहूर हो गई है कि एक दिन एक औरत शटल कॉक बुर्का पहन कर कहीं जा रही थी कि रास्ते में गिर पड़ी। एक शख्स ने आगे बढ़ कर जब उसे उठाना चाहा तो औरत ने मना करते हुए कहा, 'रहने दो भाई, मत उठाओ ताकि मौलाना फजलुल्लाह का कलेजा ठंडा हो जाए।'

हम जब मार्केट में उस दुकान में दाखिल हुए जिसमें अक्सर शॉपिंग करते हैं तो दुकानदार ने हँसते हुए कहा कि मैं तो डर गया कि कहीं तुम लोग खु़दकश हमला तो करने नहीं आए हो। वह ऐसा इसलिए कह रहे थे कि इससे पहले एक-आध वाकया ऐसा हुआ भी है कि खुदकश हमलावर ने बु़र्का पहन कर हमला किया है।


जुमा, 27 फरवरी 2009 : अपने गाँव की याद आ रही है

आज स्कूल गई तो अपनी दो सहेलियों को देखकर इंतहा खुशी हुई। ऑपरेशन के दौरान दोनों रावलपिंडी चली गई थीं। इन्होंने बताया कि रावलपिंडी में अमन भी था और जिंदगी की दीगर सहूलियात भी अच्छी थी मगह हम इंतजार कर रहे थे कि कब स्वात में अमन आएगा और स्कूल खुलेंगे ताकि हम वापस चले जाएँ।

आज हमारी एक टीचर मोटरवे के बारे में सबक पढ़ा रही थीं और वह मिसाल देने के लिए स्वात के चहार बाग के इलाके का नाम बार-बार लेती रहीं। मैंने पूछा - मैडम, आप बार-बार चहार बाग की मिसाल दे रही हैं, तो उन्होंने कहा कि मैं चहार बाग में रहती थी। वहाँ घर पर मोर्टार गोले लगे तो हम मिंगोरा मुंतिकल हो गए। अब अपने चहार बाग की बहुत याद आ रही है। इसलिए मेरी जबान पर इसका नाम आ जाता है। हमारे मुहल्ले से भी लोगों ने नकल मकानी की थी और आज एक पड़ोसी घर वापस आ गए।


पीर, 2 मार्च 2009 : दिन को मजदूर और रात को तालिब बन जाता है

हमारी क्लास में लड़कियों की तादाद रफ्ता-रफ्ता बढ़ रही है। आज सत्ताइस में से उन्नीस लड़कियाँ आई हुई थीं। नौ मार्च से इम्तेहानात शुरू हो रहे हैं। इसलिए हम ज्यादा वक्त पढ़ने में गुजारने की कोशिश करते हैं।

आज खवातीन के साथ चीना मार्केट गई थी और वहाँ मैंने खूब शॉपिंग की क्योंकि वहाँ एक दुकानदार अपनी दुकान खत्म कर रहा है। वह कम कीमत पर चीजें बेच रहा है। चीना मार्केट में ज्यादातर दुकानें अब बंद हो गई हैं।

आजकल मोर्टार गोलों की आवाजें भी खत्म हो गई हैं। लिहाजा रात को अच्छी तरह से सो जाते हैं। सुना है कि तालिबान अब भी अपने इलाकों में कार्रवाइयाँ करते हैं। वह बेघर होने वाले अफराद के लिए आने वाल इमदादी सामान भी लूट लेते हैं। मेरी एक सहेली ने कहा कि उसके भाई ने अपने एक जानने वाले को एक रात तालिबान के साथ गाड़ियों की तलाशी लेते हुए देखा तो हैरान हुआ। उसके भाई का कहना था कि यह लड़का सुबह को मजदूरी करता है और रात को तालिबान के साथ होता है। उसने कहा कि मैंने उससे पूछा कि मैं तो तुम्हें जानता हूँ, तुम तो तालिब नहीं हो फिर ऐसा क्यों कर रहे हो। उसने जवाब दिया कि सुबह को मजदूरी करके कमाता हूँ और रात को तालिबान के साथ होता हूँ तो अच्छा-खासा खर्चा निकल आता है और घर के लिए खाने-पीने की चीजें भी मिल जाती हैं।


मंगल, 3 मार्च 2009 : अमन मुहायदा दरअस्ल जंग के दरम्यान का वकफा है

मेरे छोटे भाई को स्कूल जाना पसंद नहीं है। वह सुबह स्कूल जाते वक्त रोता है और वापसी पर हँसता है। लेकिन आज रोते हुए वापस आया तो अम्मी ने रोने की वजह पूछी। वह कहने लगा कि मुझे स्कूल से आते वक्त डर लग रहा था। जब भी कोई शख्स नजर आता तो मैं डर जाता कि कहीं वह मुझे अगवा न कर ले।

मेरा यह छोटा भाई अक्सर दुआ करता है कि 'ए अल्लाह स्वात में अमन ले आना। अगर नहीं आता तो फिर अमरीका या चीन को यहाँ ले आना।' स्वात में आज फिर तालिबान और फौज के दरम्यान लड़ाई हुई है। कुछ दिनों से ऐसे वाकयात हो रहे हैं। आज मैंने कई दिनों बाद पहली मर्तबा मोर्टार गोलों की आवाजें सुनीं। लोगों में फिर अमन मुहायदा टूटने का खौफ पैदा हो गया है। बाज लोग कहते हैं, 'दरअस्ल अमन मुहायदा मुस्तिकल नहीं बल्कि यह जंग के दरम्यान वकफा है।'

बुध, 4 मार्च 2009 : तालिबान एफएम बंद होगा तो अमन आएगा

आज क्लास में उस्तानी ने पूछा कि तुम में से कौन-कौन तालिबान का एफएम सुनता है तो ज्यादातर लड़कियों ने कहा कि अब सुनना छोड़ दिया है। लेकिन कुछ लड़कियाँ अब भी सुन रही हैं। लड़कियों का खयाल था कि जब तक एफएम चैनल बंद नहीं होता तब तक अमन नहीं आ सकता।

तालिबान कहते हैं कि वह एफएम चैनल को दरस-ए-कुरआन के लिए इस्तेमाल करते हैं लेकिन कमांडर खलील इब्तदा में कुछ देर के लिए दरस-ए-कुरान देना शुरू कर देते हैं मगर आहिस्ता से मौजू बदल कर अपने मु़खालफीन को धमकियाँ देना शुरू कर देते हैं। जंग, तशद्दुद और कत्ल के सभी एलानात एफएम से होते हैं।

आज हम जब रीसेस के दौरान क्लास से बाहर निकले तो फिजा में हेलीकॉप्टर नजर आया। जहाँ हमारा स्कूल वाके है वहाँ पर हेलीकॉप्टर की परवाज बहुत नीची होती है। लड़कियों ने फौजियों को आवाजें दीं और वह भी जवाब में हाथ हिलाते रहे। फौजी अब हाथ हिलाते हुए थके हुए मालूम हो रहे हैं क्योंकि ये सिलसिला गुजिश्ता दो सालों से जारी है।

पीर, 9 मार्च 2009 : तालिबान अब गाड़ियों की तलाशी नहीं लेते

आज से हमारे इम्तेहानात शुरू हो रहे हैं। लिहाजा उठते ही बहुत परेशान थी। अम्मी और अब्बू हमारे किसी रिश्तेदार की फातिहा ख्वानी के लिए गाँव गए हुए हैं। इसलिए आज मैंने खुद ही छोटे भाइयों के लिए नाश्ता तैयार किया।

मेरा साइंस का पेपर बहुत अच्छा हुआ। दस सवालों में से आठ करने थे मगर मुझे दस के दस याद थे। जब घर वापस आई तो अम्मी अब्बू को घर में पाकर बहुत खुश हुई। अम्मी ने बताया कि वह तालिबान के जेर-ए-कंट्रोल इलाके से होकर गाँव गए थे। वहाँ तालिबान मुसल्लह नजर आ तो रहे थे लेकिन वह पहले की तरह गाड़ियों की तलाशी नहीं ले रहे थे।


मंगल, 10 मार्च 2009 : मौलान शाह दौरान गाँव वापस आ गए

आज जब मैं स्कूल से वापस आ रही थी तो मेरी एक सहेली ने मुझ से कहा कि सर अच्छी तरह ढाँप कर जाओ नहीं तो तालिबान सजा दे देंगे। आज भी मिंगोरा के करीब कंबर के इलाके में सिक्योरिटी फोर्सेज पर फायरिंग हुई है।

तालिबान के एफएम चैनल पर तकरीर करने वाले मौलाना शाह दौरान भी आज अपने गाँव कंबर से वापस आ गए हैं। कहते हैं कि वहाँ के तालिबान ने उनका इस्तेकबाल किया। तालिबान ने अब भी लोगों से कहा है कि वह नमाजें पढ़ा करें और ख्वातीन पर्दे का खास खयाल रखें।


बुध, 11 मार्च 2009 : बहुत अर्से बाद गाने सुने

आज का पेपर भी अच्छा हुआ और खुश हूँ कि कल छुट्टी है। आज मैंने और दो छोटे भाइयों ने चूजे खरीदे मगर मेरे चूजे को सर्दी लग गई है और बीमार हो गया। अम्मी ने उसे गर्म कपड़े में रख दिया है।

आज बाजार भी गई जहाँ बहुत ज्यादा रश था। कहीं-कहीं पर ट्रैफिक भी जाम था। पहले रात होते ही बाजार बंद हो जाता लेकिन अब रात देर तक खुला रहता है।

आज मैंने रेडियो ऑन किया तो हैरत हुई कि एक खातून प्रोग्राम कर रही थी और लोग फोन पर अपनी पसंद के गाने की फरमाइश कर रहे थे। अब्बू ने बताया कि यह हुकूमत का चैनल है। बहुत अर्से बाद मैंने रेडियो पर पश्तो के गाने सुने। दूर-दराज से लोग फोन करते हैं। एक लड़के ने तो बलूचिस्तान से फोन किया।


जुमेरात, 12 मार्च 2009 : जन्नत में हूरें अनीस का इंतजार कर रही हैं

मेरा दो दिनों से गला खराब है, लिहाजा अब्बू मुझे डॉक्टर के पास ले गए। वहाँ वेटिंग रूम में दो ख्वातीन भी बैठी हुई थीं और दोनों का ताल्लु़क कंबर के इलाके से था। इन में से एक ने बताया कि उनके इलाके में अब भी तालिबान का कंट्रोल है। उन्होंने बाज लोगों को सजाएँ भी दी हैं। खातून ने अपने मुहल्ले के एक लड़के का वाकया भी सुनाया। उन्होंने कहा कि मुहल्ले में एक लड़का है, जिसका नाम अनीस है।

वह तालिबान का साथी था। एक दिन उसके तालिबान साथी ने उसे बताया कि उसने एक ख्वाब देखा है जिसमें जन्नत की हूरों ने उससे कहा कि 'हमें अनीस का इंतजार है।' खातून ने बताया कि यह बात सुनकर अनीस बहुत खुश हुआ और अपने वालदैन के पास गया और कहा कि हूरें उनका इंतजार कर रही हैं और वह 'खुदकश हमला' करके 'शहीद' होना चाहता है। माँ-बाप ने उसको इजाजत नहीं दी तो उसने कहा कि वह अफगानिस्तान जाकर जिहाद करना चाहता है।

खातून के बकौल घर वालों ने लड़के को इजाजत नहीं दी मगर लड़का घर से भाग गया और कल डेढ़ साल बाद स्वात के तालिबान ने उनके घर वालों को बताया कि अनीस स्वात में सिक्योरिटी फोर्सेज पर खुदकश हमले में हलाक हो गया है।