डिजाइनर सिनेमा में करुणा का स्पर्श / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 26 जुलाई 2014
किक में नायक सलमान खान का संवाद है 'दिल में आता हूं, समझ में नहीं'। फिल्म के प्रारंभिक हिस्सों में उसका चरित्र चित्रण समझ में नहीं आता, अन्य पात्रों से उसके रिश्ते भी अजीबोगरीब हैं परंतु मध्यांतर के बाद का घटनाक्रम सारी गुत्थियों को सुलझा देता है आैर प्रारंभिक दृश्यों के पागलपन के पीछे क्या तरतीब आैर कारण थे, सब सरल आैर स्वाभाविक लगते हैं। सुपर सितारा छवि के अनुरूप बनाए दृश्य आैर दोहराए जा सकने वाले संवाद के मसाला सिनेमा में आम आदमी के जीवन के प्रति सहानुभूति आैर कुछ करने की जिद जोड़े जाने के कारण मारधाड़ आैर नाच-गानों से भरी फिल्म में कुछ दृश्य आंखों में नमी ले आते हैं आैर इस चुटकी भर संवेदना के कारण सारी तर्कहीनता को भुलाया जा सकता है। लार्जर दैन लाइफ सुपरमैन छवि में मानवीय करुणा का स्पर्श उन्हें कुछ सार्थकता देती है। सारे सुपरमैन एक नकाब पहनते हैं, अपनी असल पहचान को छुपाने के इस बचकाना प्रयास में हम इसे उसका मुखौटा मानें जिसके पीछे छुपी मानवीय करुणा को देखें तो इन फिल्मों की दर्शक से भावनात्मक तादात्मय को समझ सकते हैं। यह सारा खेल अत्यंत चतुराई से गढ़ा जाता है।
सलमान खान की छवि ही विवादास्पद है आैर उसका मनमौजी होना तथा कब क्या कर गुजरेगा कि अनिश्चितता दरअसल उसका मुखौटा है, जाने क्यों वह अपनी संजीदगी आैर अवाम के दु:ख के प्रति चिंता को छुपाना चाहता है आैर कुछ फॉर्मूलाई बातों को जीते हुए दिखना चाहता है जैसे 'मर्द को दर्द नहीं होता' आैर 'जांबाज को आंसू आते हैं तो वह खून बहा देता है' जबकि हकीकत यह है कि रोता हुआ बच्चा उसके वजूद को हिला देता है। वह एक बेपरवाह पठान की तरह सब जगह दनदनाता रहता है परंतु अस्पताल के सामने से गुजरता है तो मरीजों के कष्ट से सिहर जाता है। वह अपनी व्यापक चिंताओं को छुपाते-छुपाते जाने कब थकेगा। 'किक' में नकाब के पीछे छुपी थकान ही उस चरित्र की ताकत है। सिनेमा अपने जन्म से ही आम आदमी का माध्यम रहा है आैर यह कभी भी 'राग दरबारी' नहीं रहा, यहां तक कि घोर पूंजीवादी अमेरिका की अधिकांश फिल्मों में आम आदमी ही नायक रहा है। चार्ली चैपलिन सिनेमा का पहला कवि है जिसने अवाम के आंसू को अपनी कला का केंद्रीय विचार बनाया। टेक्नोलॉजी के विकास के साथ ही विज्ञान फंतासी आैर सुपरमैन फिल्मों की बाढ़ आई। भारतीय सिनेमा में भी सुपरमैन छवि हमेशा रही है।
नाडिया भी नकाब पहनकर फिल्मों में हैरत अंगेज कारनामे करती थी। विगत दशक में सुपर सितारों की छवि के अनुरूप फिल्में बनाई जा रही हैं आैर सारी कथाएं 'डिजाइन फिल्में' गढ़ रही हैं। सलमान खान की 'वॉन्टेड' के बाद ही उनकी फिल्मों के भवनों के नक्शे एक खास ढर्रे पर चलते हैं आैर इसी तरह अजय देवगन, आमिर खान, अक्षय कुमार, शाहरुख खान की फिल्में भी गढ़ी जाती रही हैं। इन फिल्मों की सफलता ने मसाला फिल्म में टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को भी सितारा दर्जा दे दिया है। 'किक' के सभी तकनीकी पक्षों में विशेषज्ञों को लिया गया है आैर इस फिल्म का पूरा स्वरूप ही विशेषज्ञों ने गढ़ा है आैर निर्माता साजिद नाडियाडवाला ने तालियां पड़ने वाले प्रभाव के लिए पानी की तरह पैसा बहाया है।
एक्शन दृश्य आैर नाच-गाने के दृश्यों के संयोजन में गजब की सुगढ़ता है। आज टेलीविजन आैर इंटरनेट के कारण दर्शक सभी कुछ देख रहा है आैर ठोकी हुई फिल्म नकारी जाती है। इस फिल्म की पूरी टीम ही एक सुपरहिट बनाने के नशे में डूबकर अथक परिश्रम करती है आैर 'किक' का अर्थ ही एक नशा है आैर इसी कारण सलमान का गाया 'हैंगओवर' बहुत सटीक है आैर फिल्म तथा उसके बनाने वालों के मिजाज का भी परिचायक है। इस फिल्म में हुड्डा, नवाजुद्दीन को लेना भी हमें पुराने चेहरों की ऊब से बचाता है आैर नायिका ने इतना अच्छा काम किया है कि शीघ्र ही वह शिखर कक्ष में पहुंच जाएगी। बहरहाल यह पूरी फिल्म सलमान सुपर सितारा छवि को एक नई तकनीकी ऊंचाई देती है आैर व्यापक मानवीय चिंताएं करुणा का स्पर्श देती है।