डेविड धवन अबूझ पहेली हैं / जयप्रकाश चौकसे

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डेविड धवन अबूझ पहेली हैं

प्रकाशन तिथि : 12 फरवरी 2011

डेविड धवन ने विगत तेईस वर्षों में चालीस फिल्में बनाई हैं और अब उनका कहना है कि उन्हें अब फिल्में देखना चाहिए, सहज जीवन का आनंद उठाना चाहिए, न कि फिल्में बनाना चाहिए। इस उद्योग को कोई अपनी इच्छा से नहीं छोड़ता, प्राय: उद्योग उन्हें खारिज कर देता है क्योंकि फिल्मकार बुढ़ाता है और दर्शक हमेशा जवान रहता है। प्राय: फिल्मकार अतीत की जुगाली करते हैं और अपनी सफलताओं को दोहराने का प्रयास करते हैं। इस प्रक्रि या में वर्तमान से संपर्क टूटने का खतरा होता है। समय के साथ दर्शकों की रुचियों में भी परिवर्तन होता है परंतु कुछ मूल्य परिवर्तन से अछूते, अडिग रहते हैं। डेविड धवन के मन में जागा ये संन्यास भाव महज लंबी यात्रा के कारण नहीं है, बस आज फिल्म उद्योग में पंूजी निवेश के तरीके बदल गए और उनके अपने प्रिय सितारे अब नए दिग्दर्शकों के साथ काम करना चाहते हैं। जबकि उभरते हुए सितारों की डेविड धवन के सिनेमा में रुचि नहीं है। गोयाकि उनके हमसफर उनका साथ छोड़ गए हैं और युवा की गति उनकी मति से बाहर की चीज है।

डेविड धवन ने पुणे फिल्म संस्थान से उत्तीर्ण होने के बाद मनमोहन देसाई की 'अमर अक बर एंथोनी' देखी और उस तरह के सिनेमा को अपना आदर्श माना। उन्होंने पूरे समय हल्के-फुल्के हास्य फिल्में बनाईं और बाद में व्यावसायिकता के प्रति उनके आग्रह और एकाग्रता की प्रशंसा करनी होगी। उन्होंने न कभी कालजयी फिल्म बनाई और वह आज भी फख्र से कहते हैं कि 'ब्लैक' या 'गुजारिश' उनके बस की नहीं हैं। पुणे फिल्म संस्थान में प्रशिक्षण के दौर में उन्होंने सारे क्लासिक देखे हैं, वे पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं परंतु डेविड धवन का मकसद कभी उस तरह की फिल्में बनाना नहीं था। उन्होंने घुट्टी में फॉर्मूला फिल्म ही पाई थी और बॉक्स आफिस के परे भी सिनेमा हो सकता है, इसे कभी स्वीकार नहीं किया। डेविड धवन के लिए संतोष की बात है कि उनके पुत्र वरुण को बतौर नायक करण जौहर प्रस्तुत करने जा रहे हैं तथा पुत्र रोहित 'देसी बॉयज' नामक फिल्म निर्देशित करने जा रहा है। उन्हें यकीन है कि वरुण सितारा बनेगा और रोहित भी सफल फिल्में बनाएगा। डेविड धवन ने कभी इस तरह का जोखिम उठाने का नहीं सोचा कि वह अपने पुत्रों को प्रस्तुत करें। हानि उठाने से बचना उनकी विचार प्रणाली का अनिवार्य अंग है।

दरअसल डेविड धवन की तरह होना कठिन है। यह जीवन शैली कुछ ऐसी है कि बादलों से गुजरना है परंतु न तो उसकी आर्द्रता से भीगना है और न ही उसमें छिपी बिजली को थामना है। किसी भी चीज से प्रभावित नहीं होना या किसी को कभी प्रभावित करने का प्रयास नहीं करना आसान नहीं होता। अजीब बात यह है कि योग में शून्य अवस्था को प्राप्त करना भी लगभग ऐसा ही अनुभव होता है। आवेग शून्य होना साधना की पहली शर्त है। डेविड धवन न तो योगी हैं और न ही संन्यासी। वे पूरी तरह से दुनियादारी में डूबे हैं। इस तरह डूबकर भी सूखे बने रहना एक अजीब-सा अनुभव है।

दरअसल डेविड धवन ने अपना सुरक्षा कवच कुछ ऐसा गढ़ा है कि वह उनके शरीर के परे जाकर उनके मन को भी घेर चुका है। छिपकली की दुम उनका रक्षा कवच है। खतरा देखकर ही वह अपनी दुम को गिरा देती है और उस पर आक्रमण करने वाले का ध्यान दुम की ओर चला जाता है। छिपकली की दुम दोबारा उग आती है, वह जिस्म का डिटेचेबल हिस्सा है। डेविड धवन को समझना आसान नहीं है, वह कोई परिभाषित टाइप नहीं है। उनकी आवेगहीनता उन्हें अध्यात्म के मार्ग पर भी ले जा सकती थी।