डेविड धवन की मसाला फिल्में / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 10 सितम्बर 2019
फिल्मकार डेविड धवन अपनी 25 वर्ष पहले बनाई गोविंदा और करिश्मा कपूर अभिनीत 'कुली नंबर 1' को अनेक परिवर्तनों के साथ पुन: बना रहे हैं। इसमें उनके पुत्र रोहित उनकी सहायता कर रहे हैं। डेविड धवन के भाई ने बाबूराम इशारा की 'चेतना' में अभिनय किया था। उन्होंने ही अपने छोटे भाई डेविड धवन को पुणे फिल्म संस्थान भेजा, जहां संपादन में उन्होंने विशेष योग्यता अर्जित की। डेविड धवन ने गोविंदा के साथ कई सफल मसाला फिल्में बनाई। उन्होंने सलमान खान अभिनीत फिल्में भी बनाईं और सलमान खान आज भी डेविड धवन से परामर्श लेते हैं। डेविड धवन और उनके पुत्र अपने ताऊ के परिवार की देखभाल करते हैं। इस तरह फिल्म उद्योग में एक धवन घराना भी सक्रिय है।
डेविड धवन ने पुणे फिल्म संस्थान में विश्व सिनेमा की महान फिल्में देखी हैं, उन्हें समझा परंतु स्वयं उन्होंने कभी कोई कालजयी फिल्म रचने की बात सोची भी नहीं। उन्होंने हमेशा मसाला फिल्में ही रची हैं और वे दर्शक को मनोरंजन प्रदान करना ही अपना धर्म मानते हैं। सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्म रचने का उन्हें कभी विचार भी नहीं आया। डेविड धवन अपनी रुचियों और सीमाओं को बखूबी समझते हैं। स्वयं को जान लेना कोई साधारण बात नहीं हैं। प्राय: प्रतिभाहीन लोग महत्वाकांक्षा के घोड़े पर सवार रहते हैं और अपनी असफलता को एक रोग बना लेते हैं। इस तरह की सवारी को बच्चों द्वारा काठ के घोड़े की सवारी की तरह माना जाना चाहिए। इसी विचार के इस पहलू को भी खारिज नहीं करना चाहिए कि अपनी सीमाओं का विस्तार करने की इच्छा के कारण ही मनुष्य प्रकृति और जीवन के रहस्यों को उजागर करता रहा है। मैडम क्यूरी वर्षों तक अपनी प्रयोगशाला में परिश्रम करती रहीं। उनके पास साधनों का अभाव था। उनकी प्रयोगशाला में जानलेवा शीत से बचने के लिए भी समुचित साधन नहीं थे। वर्षों अथक परिश्रम की एक सर्द रात उन्होंने निश्चय किया कि वे अपना प्रयोग बंद कर देंगी। एक कुर्सी पर बैठे-बैठे उन्हें नींद आ गई। एक प्रहर बाद नींद खुलते ही उन्हें लगा कि आखिरी बार प्रयोग किया जाए और इसी प्रयास में उन्हें सफलता मिली। मैडम क्यूरी अपनी अंतिम सांस तक ज्ञान की सीमा बढ़ाने में जुटी रहीं और उन्हें दो बार नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कुछ इसी तरह की निष्ठा से डेविड धवन मसाला फिल्में बनाते हैं।
उम्र के एक पड़ाव पर डेविड धवन का वजन बहुत बढ़ गया था। डॉक्टर ने परामर्श दिया कि उन्हें अपना वजन घटाना चाहिए। जिस एकाग्रता से वे मसाला फिल्में गढ़ते थे, उसी एकाग्रता से उन्होंने वजन घटाना शुरू किया। सलाद को भोजन की तरह लिया और भोजन को चटनी की तरह कभी-कभी चखा। उन दिनों खाकसार ने डेविड धवन से कहा कि लीन (दुबला) होने का कितना भी प्रयास करो आप कभी डेविड लीन नहीं हो सकते।
ज्ञातव्य है कि डेविड लीन ने 'डॉ. जिवागो', 'लारेंस ऑफ अरेबिया' और 'ब्रिजेस ऑफ रिवर क्वाई' जैसी क्लासिक्स की रचना की है। उन्होंने हमेशा महाकाव्यात्मक फिल्में रची हैं। हमारे डेविड धवन तो पैरोडी रचते हैं परंतु वे मुतमइन हैं कि वे अपनी सीमा में अपने ढंग का काम कर रहे हैं। यह बात भी गौरतलब है कि जब डेविड धवन बहुत मोटे और थुलथुले इंसान थे तब उनकी फिल्में अधिक मनोरंजक थीं और वजन घटाते ही उनकी फिल्मों में मनोरंजन का मसाला थोड़ा कमजोर पड़ गया। क्या भोजन का रिश्ता मनुष्य की सृजन प्रक्रिया से भी होता है? राजश्री निर्माण संस्था अपनी फिल्म यूनिट को विशुद्ध शाकाहारी भोजन ही देती थी। उनकी एक फिल्म का गीत नृत्य निर्देशक पीएल राज कर रहे थे। निर्माण अधिकारी ने पीएल राज से कहा कि वे किस तरह काम कर रहे हैं कि प्रेम गीत के छायांकन में नायक और नायिका एक-दूसरे से दूर खड़े हैं। आलिंगन तो दूर की बात है, उनके बीच का फासला दस गज से अधिक है। पीएल राज ने कहा कि वे शाकाहारी भोजन करके ऐसा ही सोच सकते हैं। मांसाहारी भोजन नहीं मिलने पर उनकी सृजन प्रक्रिया भी शाकाहारी हो जाती है।