डॉ. सुधा गुप्ता के हाइकु में मानवीकरण / कविता भट्ट

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डॉ. सुधा गुप्ता हाइकु-लेखन के क्षेत्र में एक सुप्रतिष्ठित नाम है। हिन्दी भाषा में हाइकु जब शैशवकाल में था; तभी से आपने प्रकृति के मानवीकरण पर अपनी उत्कृष्ट लेखनी चलाई।

आपके हाइकु में प्रकृति को जीवन्त तथा सुन्दर रूपों में शब्द-चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। आपके हाइकु पाठक को सम्मोहित करके एक मोहपाश में बाँधते हुए प्रतीत होते हैं। पाठक प्रकृति को एक नवयुवती के रूप में स्वयं निहारता एवं उससे बात करता हुआ स्वयं को आनन्द की धारा में आप्लावित अनुभव करता है। उदाहरणस्वरूप-

*अलस भोर / आँखें मिचमिचाती / उनींदी खड़ी।

*ऊँघती थकी / सावनी दोपहर / सद्य:प्रसवा।

*करवटें ले / हिचकियाँ भरती / जागती रात।

*किशोरी लता / पंजों पर उचक / तरु को बाँधे।

आपके हाइकु प्रकृति रूपी युवती के साथ संवाद प्रस्तुत करते हैं; तो संयोग शृंगार के अद्भुत संकर्षण की अनुभूति पाठक को आगे पढ़ने के लिए आकृष्ट करती है। आनन्दित मन प्रेम सरोवर में डुबकियाँ लगाता है। इस प्रकार के अनेक हाइकु आपके संग्रहों में मिलते हैं। ऐसे दो हाइकु बहुत सुन्दर हैं; जो निम्नांकित हैं-

*खेलती फाग / पलाश की फुनगी / चूमती आग।

*गाल दहके / किशोरी कनेर के / पाँव बहके।

*चाँद का टीका / सजाकर आ गई / नवोढा रात।

* धरा का मन / शोख हरी साड़ी से / सजाए तन।

आपने चुलबुले शैशव-किशोरवय को प्रतिबिम्बित कर हाइकु लिखे; ये भाव एवं कला के मणिकांचन-संयोग हैं।

*गुल्लक फोड़ / चुलबुली रात ने / बिखेरे सिक्‍के।

*घर में घुसे / खिड़की से कूदके / शैतान मेघ।

हाइकु के माध्यम से भारतीय समाज की परम्पराओं, संस्कृति तथा नित्यचर्या इत्यादि को प्रकृति पर प्रतिबिम्बित करती आपकी लेखनी उत्कृष्ट है। आप प्राकृतिक कारकों यथा-कली से राम-राम बुलवाती हैं; प्रकृति रूपी शिल्पकार से पश्मीना की कताई करवाती हैं; प्रकृति की घटनाओं सुबह-शाम को मानवीकृत करके एक प्रेमिका व जोगन के रूप में प्रस्तुत करती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ कुप्रथाओं जैसे-देवदासी प्रथा में देवदासी कन्या को पीली चाँदनी के रूप में एक मार्मिक हाइकु के माध्यम से चित्रित किया गया है। ये बिम्ब आपके हाइकु को शिल्प-सौन्दर्य की दृष्टि से श्रेष्ठ बनाती हैं-

  • जागी जो कली / 'राम-राम सहेली'- / धूप से बोली।

*देहरी बैठी / पश्मीना कात रही / धूप सहेली।

*जोगन शाम / फेरा डालने आई / प्यासी आँखों से।

*झरोखे बैठी / फुलकारी काढ़ती / प्रकृति-वधू।

*पीली चाँदनी / उदास देवदासी / मंदिर-द्धार।

प्रकृति के शान्त रूपों को भी आपने विभिन्न बिम्बों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। माघ मास का डाकिए, अँधेरे का प्रेमी तथा दिन का बंजारे के रूप में प्रस्तुतीकरण आपकी ही लेखनी की सुन्दरता हो सकती है। -

*डालता चौक / आँसू भीगी पातियाँ / माघ डाकिया।

*दबे पाँव आ / घेर लेता बाँहों में / मौन अँधेरा।

*दिन बंजारा / फिरता है उदास / वह मारा-मारा।

कुछ हाइकु प्रशासनिक व अन्य व्यवस्थाओं को प्रकृति पर प्रतिबिम्बित करते हुए लिखे गए हैं। ये सभी कलापक्ष और भाव पक्ष का अनोखा संगम हैं। धूप-दारोगा, कोहरा-थानेदार तथा तुषार-राजा इत्यादि अभिनव प्रयोग आपके हाइकु में ही प्राप्य हैं-

* धूप-दारोगा / गश्त पर निकला / आग बबूला।

*पौष-प्रभात / कोहरा थानेदार / सूर्य फरार।

*राजा तुषार / उजाड़े घर-द्वार / फूल-पौधों के।

युवा तन-मन के क्रिया-कलाप का सौन्दर्य हाइकु में प्रस्तुत करना अत्यंत सारगर्भित है। कोई युवती चंचलता के साथ उछल-कूद मचाती अपने यौवन के वशीभूत क्रियाएँ करती है; ये चित्रण अन्यत्र मिलना कठिन है। उदाहरणार्थ-

*फेन साड़ी में / शरारती लड़की / कूदती जाए (गंगा)।

*बर्फ तकिया / कोहरे की चादर / सोई है घाटी।

*बाँसों के वन / मनचली हवा ने / बजाई सीटी।

उपर्युक्त उदाहरणों से सिद्ध होता है कि डॉ. सुधा गुप्ता जी के हाइकु भाषा और भाव की दृष्टि से उकेरे गए वे चित्र हैं, जिनमें शब्दों और भावों का पोर-पोर बोलता है, सुवास बिखेरता है। इनका हाइकु का सफ़र वस्तुतः ख़ुशबू का सफ़र है।