डोर / सुप्रिया सिंह 'वीणा'
स्कूल की छुट्टी हुई गोलू भारी मन से बाहर निकला, पेड़ के नीचे बैठ गया। "नहीं जाना है घर माँ परेशान होती है तो होती रहे, मुझे परवाह नहीं। छोटा बच्चा समझ रखा है, यह करो यह मत करो। खाना-नास्ता के साथ दिनभर उपदेश पिलाती है। मैं अब बड़ा हो गया हूँ, क्यूँ मानू उनकी सारी बात।" अचानक एक छोटे बच्चे को लाड़ करती दिखती है माँ, गोलू सोचता है इतने दिन हुए माँ ऐसे ही मुझसे लाड़ करती थी, पर बड़ा क्या हुआ, सिर्फ़ झिरकी।
"सामने मंदिर से कुछ आवाज़े आ रहीं है, चालू देखु वहाँ क्या हो रहा है।" मंदिर में पाँव रखते ही संत श्री की आवाज़ आती है-"माँ ईश्वर का प्रतिरूप है, ईश्वर से भी बड़ी होती है माँ। माँ-माँ माँ..." गोलू उल्टे पाँव बाहर निकलता है-"नहीं सुनना है कुछ भी माँ के बारे में।"
आगे होटल में जा कर बैठता है। सभी खा रहे है। वह भी भूखा है, ललचाई नज़रो से खाने को देखता है। मालिक पूछता है "खाएगा?" वह हाँ में सिर हिलाता है-"पर मेरे पास पैसे नहीं है।" , "कोई बात नहीं इससे थोड़ा-सा खाना देदो।" मालिक नौकर से कहता है। गोलू मालिक को धन्यवाद देता है। पर खाते ही आँखो में आसू आ जाते है। एक दिन के खाने का धन्यवाद! माँ रोज़ प्यार से मनपसंद खाना खिलाती है, आज तक धन्यवाद नहीं किया। माँ बेचारी भूखी होगी मेरे लिए, फिर से आ गयी माँ अब नहीं सोचुगा।
फिर एक तालाब है, वहाँ जाकर बैठता है। तालाब में कमल खिला देखकर माँ की कही कहानी याद आती है। एक शिकारी आता है, नदी का पानी पीता है और कमल के फूल को बहरहमी से तोड़ कर चला जाता है। फिर एक इंसान आता है। पानी पीकर ज्यो ही कमल के तरफ हाथ बढ़ाता है, कमल कहता है-"भाई रेहेम करो, मुझे मत तोडो, मैं नदी की शोभा हूँ, मुझे यहीं रहने दो।" इंसान हस्ता है-"वाह! अभी जब शिकारी ने निर्मलता से तुम्हे तोड़ा, तो तुम मौन थी और मैं प्यार से तोड़ रहा हूँ तो मुझसे फरियाद कर रही हो।" कमल ने कहा-"भैया जीव-जंतुओ कू निर्मलता से मार देने वाला मेरी कीमत को क्या समझेगा, किंतु तुम तो इंसान हो मेरे मन के भाव को समझोगे इसलिए मैने तुमसे कहा।"
अचानक गोलू को कमल में माँ का चेहरा दिखा, दौड़ता हुआ घर पहुचा। माँ बाहर खड़ी थी चिंतित आँखों में आँसू लिए. उसने दौड़कर गोलू को गले से लगा लिया-"कहाँ रह गया था बेटा, कब से बेचैनी में तुम्हारी राह देख रही थी। भूख लग रही होगी, पहले खाना खा लो।" गोलू बोला कुछ नहीं बस माँ से लिपट गया।