ढिबरी पेट वाला / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
कड़ाका रोॅ सर्दी होवै, बरसात होवै, भीषण गर्मी होवै, जाड़ा में ठंडा सें बचै लेली शरीरोॅ पर एगोॅ छोटोॅ-मोटोॅ चादर राखैं छेलै। कदोॅ में नाटोॅ, सांवला रंग, गर्मी में बरसातोॅ में सिरिफ हॉफ पेंट, खुले बदन कभी कभार बनियान लगैनें रहि छेलै। परब-त्योहार में मकर संक्रांति में दोनोॅ टोला में घूमि-घूमि केॅ लाय, मूढ़ी चूड़ा रोॅ बनलोॅ उधाय छेलै, होली में मालपुआ, चोर-चंदा में खबोनी ठेकुआ जिउतिया में चावल, दाल, सब्जी में झींगली परोल, कैता, भींडी, छठो में ठेकुआ, लडुआ मांगै छेलै, घरे-घर घुमै छेलै।
जबेॅ चुन-चुन लैया घरोॅ से निकलै तेॅ कभी कभार ओकरा कनियानी कहै कि गामोॅ रोॅ सड़के-सड़क चलोॅ जहियौ, हेकरा पर हौ बोलै तोहें कि जानभै, हे दकेॅ जैबै तेॅ सब्भे लोगें टोका-टोकी करते, कत्ते ॅ सब्भै कें मुँहोॅ से झिको देवैं अर्थात जवाब देवै। कहियों-कहियोॅ सड़क पकड़ै छेलै, मतरकि अधिक-सें अधिक पगडंडी ही पकड़ै छेलै।
हॉफ पेंट, गंजी कंधा पर एक अंगोछा एक कुल्हाड़ी कभी सैरा कांखी में डंडा, हॉफ पेंटोॅ रोॅ जेवोॅ में दारू रोॅ बोतली, जे गामोॅ में महुआ रोॅ बनैलोॅ दारू मिलै छै, वहै दारू राखै छै। जबे पक्की सड़कोॅ पर जाय छै, तेॅ सुखलो ॅ लकड़ी तोड़ै लेॅ तेॅ एक हाथों में डंडा आरोॅ छोटों-सा कुल्हाड़ी लै केॅ चलै छै, गांछी पर चढ़ै रोॅ पहले दारू गाछी तर ढारी दै छै, आरो गोड़े लागै छै, तवे गाछी पर चढ़ै छै, सूखलो लकड़ी काटै छै या तोड़ै छै। जलावन वास्तें घर लानै छै।
जबेॅ मछली मारे रोॅ मोेॅन होय छै, एक डंडा सैरा आरो पेंटो रोॅ जेवोॅ में दारू रोॅ बोतली लैकेॅ चलै छै। नदी किनारे-किनारे या खापोॅ सबकेॅ देखनें जाय छै, पानी उछाली केॅ देखै छै, मछली छै कि नैं। जै जगह मछली रोॅ भांज देखै छै, हौ गड्ढा या खापो रोॅ पास रूकी केॅ पहले दारू ढारी दै छै, तबेॅ मछली मारै रोॅ सुरसार करेॅ लागै छै। भगवान केॅ स्मरण करी लै छै, तबेॅ मारैल भिड़ै छै।
भादो कादो में गांव रोॅ सड़को पर कादो कीच्चट काफी होय जाय छै, मवेशी सब केॅ चराय-बुलाय में या आवै-जाय में बड़ी तरददूत होय जाय छै। बथानी पर गुहाली में कादे कादोॅ। है लेली सब्भै लोग नदी रोॅ किनारी में बड़ो टा पराट छेलै वहीं पर सावन-भादो आधा कार्तिक भर मवेशी राखै छेलै, लाद खूटा आपनोॅ-आपनोॅ गाडै छेलै वहाँ कादो कीच्चट नै होय छेलै, कुछ आदमी मचान बनाय केॅ कुछ आदमी मौरको या ठाको बनाय केॅ वर्षा सीतो दिन केॅ धूपो सें बचाय छेलै। रात्रि में धोरै सब सूतै छेलै आरो दिन में धूपोॅ से बचै लेली दिन में विश्राम करै छेलै। सब्भैं आपनोॅ-आपनोॅ मवेशी केॅ सानी कुट्टी या भूसा चोकर खिलाय छेलै आरोॅ दूध गांज गारै छेलै, कुछ बेचै छेलै, कुच्छू खाय लेॅ घरो में राखै छेलै।
वर्षा जबे ॅ समाप्त होय जाय छै। कार्तिक रोॅ पूर्णिमा सें बथाना सब्भै नें नदी किनारोॅ से हटाय छै, केन्हैं कि गामोॅ रोॅ सड़क सूखी जाय छै, कादो कीच्चट खतम होय जाय छै। हटाय रोॅ पहिने सब्भे धौरै ने चंद्रा चिट्ठा मवेशी पर लगाय छै, आरोॅ पूजा-पाठ करै छै वन वहियारो रोॅ विशु राउत, दानोॅ देवाड़ी, भैरणस्थान सब्भै रोॅ पूजा पाठ करै छै। तबे वथानी पर एक ब्राह्मण आरो एक लैया (कादर) जाति केॅ निमंत्रण दै छेलै। बथानी में पाँच हाथ कुदाली से घास सब छीली छाली केॅ गोबर से निपै-पौतै छेलै, धूप-दीप दै केॅ, विशु राउत रोॅ उचकी-उचकी केॅ गीत गावै छेलै।
बथानी पर छाक दै छेलै, है छाकोॅ में बोधन पंडित आरो चुनचुन लैया केॅ निमंत्रण दै छेलै शुरू सें है परंमपरा आबी रहिलोॅ छै, एक ब्राह्मण, एक लैया केॅ जमाय छेलै। चुनचुन कादर घरोॅ सें चलै छेलै, बहियार रोॅ मेढ़ पकैड़े, छोटकी सिंधा रोॅ मेढ़ पकड़ै आरोॅ बथानी पर पहुंची जाय छेलै, सड़को पकड़ी केॅ नै आवै छेलै, लोगें सब टोकाटोकी करते रहि छेलै, है लेली सुनसान रास्ता पकड़ी केॅ आवै छेलै। एक हाथोॅ में लाठी दोसरोॅ में बोतल लेते हुए दाखिल होय जाय छेलै। बड़ी मस्ती चाल सें चलै छेलै।
गीत जहाँ गावै छेलै, वही जगह चुनचुन लैया बैठे छेलै, बड़का छोटका सब्भै रो नजर चुनचुनोॅ पर अटकलोॅ छेलै, पलथी मारी केॅ आँख बंद करिकेॅ स्मरण करै तबेॅ बोतल सें शराब गिरावै, तबेॅ पलक खोलै, तबेॅ ढिबरी वाला पेटोॅ तीन किलो दूध अटाय दै छेलै। पेटोॅ में अटाय केॅ एक मिशाल कायम करि दै छेलै। ब्राह्मण कोॅ दही-चूड़ा गूड़ खाय लेॅ दै छेलै।
अगहन पूसोॅ में धान काटी केॅ खलिहानोॅ पर राखै छेलै सब्भे बहियारोॅ सें धान आबी जाय छेलै, तबे किसाने ने पूूंज (टाल) लगाय दै छेलै खलियानी रोॅ किनारोॅ-किनारोॅ में टाल लगाय छेलै आरो बीच खलिहान खाली रखै छेलै, तबे बीच खलियानी केॅ गोबर सें निपै-पोतै छेलै, ओकरा वाद धूप-दीप दूध डारै छेलै चुनचुन लैया केॅ समय रोॅ अगाह पहिलै करि दै छेलै, हौ समय पर वही लिवासोॅ में पहुंची जाय छेलै। सब्भै रोॅ ध्यान ओकरे पर अटकलो रहि छेलै पहिले बोतल सें शराब गिराय दै छेलै, आँख बंद करिलै छेलै, बादो में खोलै छेलै। तबे होकरा अलमुनियम कटोरा में दूध दै छेलै, तबे ढिबरी पेटो में तीन किलो दूध ढारी क मस्त होय जाय छेलै। डंडा हाथोॅ में पकड़ै आरो चलतेॅ बनै। आवे गामोॅ में सड़क बनी गेलै आवे सड़कोॅ पर कादोॅ कीचड़ नै होय छै। हौ परंमपरा आवेॅ समाप्त होय गेलै, जे नदी किनारोॅ में बथान बनाय छेलौ।