ढोंग / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
कालू मोची की इकलौती संतान चम्पा सोलह वर्ष की हुई तो उसके शरीर में एक अलग ही आकर्षण पैदा हो गया। ठाकुर रूद्र प्रताप सिंह उस पर आसक्त हो गए। आँखों आँखों में ठाकुर साहब ने प्रेम का इजहार किया। नादान चम्पा झांसे में आ गयी। वे अक्सर खेतों में मिलने लगे।
गर्मियों के दिन थे। ठाकुर रूद्र प्रताप सिंह की पत्नी बच्चों को लेकर पीहर गयी हुई थी। एक दोपहर चम्पा ठाकुर साहब के घर पर आ गयी।
रूद्र प्रताप सिंह रसोई में थे। चम्पा रसोई में चली आयी। रूद्र प्रताप सिंह को अच्छा नहीं लगा। नाराजगी से बोले - चम्पा रसोई में क्यों चली आयी ? क्या यह भी भूल गयी कि तू मोची है?
चम्पा आहात हुई। बोली - सुना है, आत्मा की कोई जाति नहीं होती। यदि शरीर मोची है , तो इसे आप कई बार छू चुके हैं। वैसे भी मेरे पिता मोची का धंधा करते हैं , मैं नहीं। यह ढोंग कब तक चलेगा , ठाकुर साहब?