तक्षशिला के पुनरुद्धार से जुड़े प्रश्न / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 22 सितम्बर 2014
वही तेरा देर से आना, बहाना बनाना आैर कहना कि वादा तो निभाया, देर से आई, दूर से आई पर वादा तो निभाया नायकदेव आनंद आैर नायिका हेमा मालिनी पर 'जॉनी मेरा नाम' के लिए यह गीत विजय आनंद ने तक्षशिला के अवशेष पर फिल्माया था आैर गीत की स्थिति मजेदार थी कि पुलिस की नाक के नीचे, तस्करी के माल की हेरा-फेरी हो रही है आैर असल माल के संकेत भी गीत के शब्दों में छुपे हैं। यह पैंतरा हमारे सिनेमा का आजमाया हुआ खेल है आैर विगत वर्ष 'चेन्नई एक्सप्रेस' में भी रेल के डिब्बे में नायक-नायिका यही खेल खेलते हैं। सन् 1970 में प्रदर्शित 'जॉनी मेरा नाम' के गीत की याद इसलिए आई कि तक्षशिला विश्वविद्यालय को पुन: प्रारंभ करने के लिए वर्षों पूर्व केंद्रीय सरकार ने 'तक्षशिला एक्ट' पारित किया था आैर बिहार सरकार ने कानून पास करके बजट में प्रावधान किया था। लगभग सात सौ वर्ष ईसा पूर्व, तक्षशिला ज्ञान का केंद्र था। ज्ञातव्य है कि इंग्लैंड का ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय लगभग ग्यारह सौ वर्ष पुराना है। तक्षशिला शताब्दियों से बंद पड़ा था। आज उसमें एक हजार आवेदनों में से केवल पंद्रह छात्र चुने गए हैं। किसी भी शैक्षणिक परम्परा को पुन: प्रारंभ करना शुभ कार्य है परंतु वहां अब क्या पढ़ाया जाएगा तथा कौन पढ़ाने वाला है- यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आज भारत में अनेक शैक्षणिक संस्थाएं सक्रिय हैं आैर ऐसी भी संस्थाएं हैं जो अमेरिकन संस्थाआें में पढ़ाए जा रहे पाठ्यक्रम को पढ़ा रही हैं। भारत में विदेश जाकर शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की पूर्व तैयारी के लिए भी अनेक संस्थाएं हैं। देश में शिक्षा के नक्शे पर आपको अनेक केंद्र दिखाई देंगे परंतु क्या पढ़ाया जा रहा है आैर कौन पढ़ा रहा है- यह पूरी तरह किसी को पता नहीं। अनेक शहरों में ऐसी संस्थाएं हैं जो पूरी फीस लेकर छात्र को सौ प्रतिशत उपस्थिति का प्रमाण-पत्र देते हैं तथा छात्र प्राइवेट ट्यूशन केंद्र में पढ़ाई करता है जहां उसे परीक्षा पास करने की शिक्षा दी जाती है आैर वह उस हाजरी देने वाली संस्था की फीस केवल परीक्षा में बैठने की 'पात्रता' के लिए भर रहा है जबकि उसे कही आैर शिक्षित किया जा रहा है। पूरी शिक्षा में केवल सफलता का मंत्र सिखाया जा रहा है, ज्ञान अब मुद्दा नहीं है। दरअसल भारत में शिक्षा का व्यवसाय कितना विराट है आैर शिक्षा कितनी खोखली हो चुकी है- इस आेर देश के शक्तिशाली लोगों का ध्यान ही नहीं है वरन् सच्चाई यह है कि कई प्रांतों में प्राइवेट शिक्षा संस्थान नेताआें ने चला रखे हैं। लाभ के किसी भी स्रोत से नेता को दूर नहीं रखा जा सकता। सिनेमा में भालचंद्र पेंढारकर की फिल्म 'वंदेमातरम आश्रम' 1922 से लेकर राजकुमार हीरानी की 'थ्री इडियट्स' 2011 तक अनेक फिल्में बनी हैं आैर शिक्षा भी सिनेमा में फॉर्मूले की तरह फलता-फूलता रहा है। 'जागृति' सुपरहिट हुई थी। राजकपूर की 'मेरा नाम जोकर' के पहले भाग में देहरादून स्कूल की पृष्ठभूमि हैं परंतु यह फिल्म एक अजीब प्रेम-कथा थी- सोलह वर्ष का छात्र अपनी 24 वर्ष की शिक्षिका से प्रेम करने लगता है। विनोद खन्ना आैर तनूजा की 'इम्तिहान' सफल आैर सार्थक फिल्म थी।
सिनेमा आैर समाज में शिक्षा के प्रति घोर आग्रह रहा है परंतु शिक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन के विषय में लगभग चालीस वर्ष पूर्व प्रकाशित श्रीलाल शुक्ल की 'राग दरबारी' का एक वाक्य स्मृति में अंकित हो गया है कि शिक्षा प्रणाली सड़क पर बैठी बीमार कुतिया की तरह है जिसे हर आता-जाता लात मारता है परंतु कोई सुधार का प्रयास नहीं करता। कुछ वर्ष पूर्व दूरदर्शन की लघु फिल्म जो सत्य घटना से प्रेरित थी में एक छात्र जो हमेशा दूसरे नंबर पर आता है, बारहवीं की परीक्षा के पूर्व अव्वल आने वाले छात्र की हत्या कर देता है क्योंकि उसकी मां का दबाव था कि वह प्रथम आए। यह गला काटू खूनी पाठ क्यों पढ़ाया जा रहा है। हमने ज्ञान को प्रतिद्वन्दता के भाव से दूषित कर दिया है। सफलता को ऐसा साध्य प्रचारित कर दिया है कि साधन की पवित्रता का लोप हो गया है। इसी प्रवृति पर राजकुमार हीरानी ने इस तरह व्यंग्य किया था कि 'थ्री इडियट्स' का नायक किसी आैर का नाम-धारण करके उसे अपनी डिग्री दे देता है आैर स्वयं अपने ज्ञान के साथ सुदूर लद्दाख चला जाता है।
प्राय: पुरातन ग्रंथों को पाठ्यक्रम में शामिल करने का आग्रह किया जाता है परंतुइस आेर ध्यान नहीं है कि उन ग्रंथों को पढ़ाएगा कौन तथा मूल पाठ में बाद के वर्षों में कितना कुछ अन्य लोगों ने जोड़ा है कि आज मूल पाठ प्राप्त करना कठिन है। मसलन महाभारत में अभिमन्यु का गर्भस्थ अवस्था में चक्रव्यूह प्रवेश सुनना आैर बाहर आने की विधि के समय मां के सो जाने के प्रसंग में वेदव्यास का मूल संकेत यह है कि मां की कोख से कोई पढ़कर नहीं आता। सारा ज्ञान जीवन में ही सीखा जाता है। इसी तरह कोई पैदाइशी महान नहीं होता, कुछ पर महानता थोपी गई है, कुछ ने अर्जित की। पोंगी पंडिताई से बचना कठिन है।