तड़तड़ तुम्बी तड़ंतड़ा / गिजुभाई बधेका / काशीनाथ त्रिवेदी
एक लड़का था। एक बार गांव जाने के लिए तैयार हुआ। रास्ते में खाने के लिए मां ने उसे सात बाडिया बना दीं। बाटियां लेकर लड़का चल पड़ा। चलते-चलते रास्ते में उसे एक बावड़ी मिली। दोपहर का समय हो गया था। लड़के ने सोचा, ‘अब तो भूख बहुत जोर की लगी है। यहीं रुक जाऊं और खाना खा लूं।’
लड़का बावड़ी पर पहुंचा। उसने बाटियों की पोटली खोली। उसे भूखबहुत जोर की लगी थीं वह वहां बैठे-बैठे सोचने लगा कि इन बाटियों में से कितनी बाटियां खा लूं? एक खाऊं? दो खाऊं? तीन खाऊं? चार खाऊं? पांच खाऊं? छह खाऊं? या सातों खा जाऊं?
बावड़ी में सात भूत रहते थे। उन्होंने लड़के की बातें सुन लीं। वे बोले, "अरे, यह यहां कौन आया है? यह हम सातों को खाने की बात कहता है, तो जरुर ही कोई जबरदस्त जीव होगा?" एक भूत ने कहा, "चलो, हम उसे कोई चीज़ भेंट में दे आएं। खुश होकर वह चला जाय, तो अच्छा होगा।" भूत के पास एक चूल्हा था। वह ऐसा था कि उसके पास बैठकर जो मांगो, वह मिल जाए। भूत डरता-डरता ऊपर आया और बोला, "अरे भैया! तुम हमें खा जाने की बात क्यों सोचते हो? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? हम तो अपनी सुविधा के लिए इस बावड़ी में रहते हैं। तुमकों जरुरत हो तो लो यह चूल्हा ले जाओ। यह चूल्हा ऐसा है कि तुम इससे जो भी चाहोगे, यह तुम्हें देगा।"
लड़के ने चूल्हा ले लिया। उसने मन-ही-मन कहा, ‘वाह, अपना तो काम बन गया। वह घर की तरफ लौट पड़ा। रास्ते में बहन के गांव में रात को ठहरा। रात में उसने सोचा, ‘चलूं, एक बार फिर वहां पहुंचू और कोई दूसरी चीज ले आऊं। वापस जाकर भूतों को फिर डराऊंगा।’
उसने अपनी बहन से बात की। चूल्हा बहन को सौंप दिया। बहन ने सात बाटिया बना दीं। उनको लेकर लड़का फिर बावड़ी की तरफ चला। दोपहर होते-होते वह बावड़ी पर पहुंच गया। सीढ़ी पर बैठकर उसने बाटियां निकालीं और बोला, "एक खाऊं? दो खाऊं? तीन खाऊं? चार खाऊं? पांच खाऊं? छह खाऊं? या सातों खा जाऊं?" सुनकर भूत बहुत ही डर गये। फिर उनमें से एक भूत ऊपर आया। वह अपने साथ एक मुर्गी लाया था। उसने कहा, "भैया! यह लो। यह मुर्गी ऐसी है कि तुम जब भी इससे कहोगे, यह तुम्हें सोने के अण्डे देगी।"
लड़का मुर्गी लेकर बहन के घर पहुंचा। वहां वह दो दिन रहा। फिरबाटियां बनवाकर बावड़ी पर पहुंचा और पहले की तरह बोला। इतने में फिर एक भूत ऊपर आया और बोला, "लो भैया! यह एक तुम्बी ले लो। यह तुम्बी ऐसी करामाती है कि जब तुम ‘तड़तड़ तुम्बी तड़ंतड़ा’ कहोगे, तो जिसको भी ध्यान में रखकर कहोगे, तुम्बी उसी को तड़ातड़ लगने लगेगी। जबतक तुम इसे वापस नहीं बुलाओगे, यह चोट करती रहेगी।"
लड़का वापस अपनी बहन के घर आया। लेकिन इस बीच बहन की नीयत बिगड़ चुकी थी। भूतों का दिया चूल्हा और मुर्गी लाकर रख दी।
जब भाई ने अपना चूल्हा और मुर्गी मांगी, तो बहने ने उसे दूसरा चूल्हा और मूर्गी दै दी। भाई ने सोचा कि देख तो लूं कि चूल्हा और मुर्गी दोनों असल हैं या नहीं।
भाई ने चूल्हे से कहा, "हलुवा-पूरी दे।" लेकिन चूल्हे ने तो कुछ भी नहीं दिया। फिर उसने मुर्गी से कहा, "मुर्गी, मुर्गी, सोने के अण्डे दे।" मुर्गी ने भी कुछ नहीं दिया।
लड़के ने सोचा, ‘लगता है यह सब बहन की ही कारस्तानी है। चिन्ता की कोई बात नहीं। बहन को भी पता चल जायगा।’ फिर लड़के ने बहन को देखते तुम्बी से कहा, "तड़तड़ तम्बी तड़तड़ा।" सुनते ही तुम्बी उछनले लगी।
लड़के ने तुम्बी के कान में ऐसा कोई बात कह दी कि तुम्बी शान्त हो गई। बहन ने सोचा, ‘लगता है इस तुम्बी में थी कुछ करामात है। इसको भी मैं रखे लेती हूं।’ बहन दूसरी तुम्बी ले आई और असल तुम्बी की जगह रख दी।
फिर घर के अन्दर जाकर बहन बोली, "तड़तड़ तुम्बी तड़ंतड़ा!" सुनते ही तुम्बी उछलने लगी और बहन के सिर में तड़ातड़ लगने लगी। बहन घर के अन्दर से ओसारे में और फिर ओसारे से घर में भागी, इधर-से-इधर भागती रही, पर तुम्बी बराबर उसके पीछे पड़ी रही।
तुम्बी बहन को किसी तरह छोड़ ही नहीं रही थी। बहन बेचारी हैरान
हो गई। उसके सिर से लहू बहने लगा। बहने दौड़ी-दौड़ी भाई के पास पहुंची और बोली, "भैया, अपनी इस तुम्बी को तुम वापस बुला लो। इसने तो मेरा सिर ही तोड़ डाला है।"
भाई ने कहा, "मेरा चूल्हा और मुर्गी, जो तुमने छिपा ली है, पहले तुम उन्हें वापस करो।"
बहन खिसिया गई। उसने भाई को उसकी सब चीजें वापस सौंप दीं।
फिर लड़का अपनी मां के पास पहुंचा। लड़का चूल्हें से तरह-तरह की रसोई मांगता और खाता। सोने के अण्डे बेच-बेचकर उसने अपने लिए बड़े-बड़े महल बनवा लिये और उन महलों में वह राजा की तरह ठाठ से रहने लगा। कोई उसके साथ लड़-झगड़ भी नहीं सकता था। अगर कोई लड़ता, तो तुम्बी उसे तड़ातड़ लगने लगती।
एक दिन लड़के ने राजा से कहा, "राजा जी! अपनी राजकुमारी का ब्याह मुझसे कर दो।"
राजा ने सुना तो सिपाहियों को बुलाकर कहा, "इसे पकड़कर बांध लाओ।"
लेकिन लड़के के पास तुम्बी तैयार ही थी। वह तड़ातड़ सिपाहियों को लगने लगी। उसने सिपाहियों के सिर तोड़ डाले। सिपाही सारे लौट गए। दीवान पहुंचा तो उसका भी वैसा ही हाल हुआ। बाद में राजा ने अपनी राजकुमारी का ब्याह उस लड़के से कर दिया।