तनाव के क्षण का आणविक विस्फोट / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 02 दिसम्बर 2013
अच्छे और बुरे लोगों में एक अंतर यह है कि अच्छा आदमी अपने मनोभावों पर लंबे समय तक नियंत्रण नहीं रख पाता, वह किसी मुखौटे को देर तक नहीं पहन पाता। इसी तरह संकट के समय भी उससे बचने के लिए आवश्यक नाटक देर तक नहीं निभा पाता। इसके विपरीत बुरे लोग ताउम्र मुखौटा धारण किए रहते हैं और गिरगिट से भी तेजी से रंग बदल लेते हैं। उनके पास स्टील की नव्र्स होती है। उनके हाथ नहीं कांपते, उन्हें पसीना नहीं आता। अनिल कपूर के सीरियल '24' में प्रधानमंत्री की मीडिया सचिव ने अपने अंतरंग मित्र की तस्वीर पहचान ली और अधिकारियों को बता दिया है कि अनजाने ही इस कातिल के प्रेम में वह फंस गई हैं। अब अधिकारी इसका लाभ उठाना चाहते हैं कि वह कातिल के पर्स में एक अत्यंत लघु माइक छुपा दे ताकि उसकी बातें सुनकर पूरे दल तक पहुंचा जा सके। उनके मिलन स्थल पर कैमरे छुपे हैं और पल-पल की खबर सुरक्षा अफसरों को मिल रहीं है। उसने माइक कातिल के पर्स में छुपा दिया हैं और योजना के अनुसार अब उसे वहां से निकल जाना चाहिए परन्तु अपराध बोध और आत्मग्लानि से पीडि़त महिला अपनी वृहतर भूमिका को भुला देती है और कातिल को चाकू मार देती हैं, सुरक्षा दल की पूरे गैंग को पकडऩे की योजना ठप्प हो जाती है।
वह अपने बॉस का इतना अधिक आदर करती है कि मात्र यह ख्याल कि उसकी एक गलती, बॉस को खत्म कर सकती है, उसे विचलित कर देती है। उस क्षण के तनाव को वह झेल नहीं पाई, वह एक निर्णायक क्षण उसके अवलोचन में आणविक बम की तरह फटता है। शरीर की बुनावट में आणविक विस्फोट सहन करने की क्षमता है। यह अंतर अच्छे और बुरे व्यक्ति का है। वह कातिल अपनी प्रेमी की भूमिका को व्यवसायिक कुशलता से निभा रहा है परन्तु प्रेमिका टूट गई। वह सरल सच्ची महिला है। तनाव की तरंग 440 वॉल्ट का झटका दे सकती है। वह आतंकवादी कातिल के स्पर्श को भी झेल नहीं पाती है। जब तक आतंकवादी की असली पहचान उसे नहीं थी तब तक उसके स्पर्श के लिए वह लालायित रहती थी परन्तु जानकारी मिलने के बाद वह उसे बिच्छू के डंक सा लगा और उसकी सांसों में उसे सांप की फुफकार सा अहसास हुआ।
इस पात्र को अभिनीत करने वाली कलाकार मादकता व मासूमियत का मिश्रण है और तनाव को जीवंत प्रस्तुत करती है। एक हास्य विज्ञापन फिल्म में डाकू बैंक से माल लेकर बाहर गया। कर्मचारी ने सुरक्षा गार्ड को कड़कदार आवाज लगाई तो वह डाकू जो दरअसल सुरक्षा गार्ड है, आदत के अनुरुप भीतर आकर सलाम करता है और पकड़ा जाता है। अपराध की राह आसान नहीं है। इस तरह काहर व्यक्ति पहले अपनी संवेदनाओं को मार देता है। क्रूरता सहज और सरल नहीं है। अगर अच्छाई तलघर के रूप में भी मौजूद है तो क्रूरता संभव नहीं है। जब बर्तन से दूध निकाल लेते हैं तब जो अत्यंत झीनी सी मलाई बर्तन के तल में रह जाती है, उसे तलछट कहते हैं। इस निहायत ही रोचक सीरियल का केंद्रीय पात्र हर दुविधा के क्षण में ईमानदार बने रहने का निर्णय करता है। उस पर बाहरी और भीतरी अनेक दबाव हैं, रिश्तों में उलझन है, उसे अपने परायों से धमकियां भी मिल रहीं हैं परन्तु सारी समस्याओं का उसके पास एक ही निदान है- पूरी ईमानदारी के साथ अपनी गलतियों सहित जनता के सामने उजागर होना। जनता की सर्वोच्च अदालत में वह बिना किसी वकीले-सफाई के साथ प्रस्तुत होता है। इस सीरियल का प्रस्तुतीकरण यथार्थवादी है परन्तु यह ईमानदार केंद्रीय पात्र एक आदर्श है जो राजनीति से गायब हो चुका है।
यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि जीवन के सरल रास्तों को अब गैरदुनियादारी माना जाने लगा है जबकि सारे फरेब हमें गहरे फंसा देते हैं। इस सीरियल में शातिर पात्रों के साथ कुछ सरल लोग भी हैं परन्तु अच्छे-बुरे सभी लोग भीषण तनाव झेलते हुए प्रस्तुत हुए हैं। साप्ताहिक किश्तों में समाप्त होने के बाद किसी इतवार इसका प्रस्तुतीकरण निरंतर 24 घंटे चलेगा।