तन्हाइयां और परछाइयां जलने का भय / जयप्रकाश चौकसे

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तन्हाइयां और परछाइयां जलने का भय
प्रकाशन तिथि :21 दिसम्बर 2016


करुण नायर ने मात्र 382 गेंदें खेलकर 303 रन बनाए गोयाकि टेस्ट मैच की पारी कमोबेश एक दिवसीय के अंदाज में खेली गई। इसी तरह का खेल टेस्ट क्रिकेट को जिंदा रख सकता है। एक दिवसीय और 20 ओवर के त्वरित क्रिकेट ने टेस्ट मैच को लगभग मार दिया है। यह प्रक्रिया क्रिकेट तक ही सीमित नहीं है। बाजार शासित युग में जीवन का आनंद भी सप्ताहांत में सिमट गया है। शनिवार और इतवार की छुट्टियों में लोग अपने पारिवारिक जीवन में रम जाते हैं और सोमवार से शुक्रवार की शाम तक काम में डूबे रहते हैं। जीवन की यह व्यवस्था पनडुब्बी की तरह नहीं है कि समुद्र के तल में तैरती इस नाव में पानी की एक बूंद प्रवेश नहीं कर सकती। यह बात फिल्म से इस तरह जुड़ी है कि सलीम-जावेद अपनी पटकथाओं में किसी तरह का परिवर्तन करने की इजाजत नहीं देते थे गोयाकि उनका खयाल था कि उनकी पटकथा पनडुब्बी की तरह है। दूसरी ओर राज कपूर अपनी पटकथा पर फिल्म बनाते समय सतत परिवर्तन करते रहते थे। मसलन 'संगम' की उटकमंडलम (उटी) में की गई शूटिंग के शॉट देखकर सह-कलाकार राजेंद्र कुमार ने कहा कि उटकमंडलम के दृश्य ऐसे बन पड़े हैं मानो यूरोप का कोई स्थान हो। राज कपूर ने कहा कि अब वे यूरोप में भी शूटिंग करेंगे और इसी बदलाव के साथ फिल्म के पति-पत्नी अपने हनीमून के लिए यूरोप जाते हैं। यूरोप में सुंदर लोकेशन के साथ ही उन्होंने कुछ गहरे सार्थक दृश्य भी किए। फिल्म में राज कपूर और वैजयंतीमाला का विवाह हो चुका है और यह उनका हनीमून है। वहां राज कपूर के घोर आग्रह पर राजेंद्र कुमार को भी जाना पड़ा। ज्ञातव्य है कि कथा में वैजयंतीमाला राजेंद्र कुमार से प्रेम करती थी परंतु विवाह राज कपूर से हुआ। स्विट्जरलैंड की उस अजंतानुमा पहाड़ी में वैजयंतीमाला राजेंद्र कुमार से कहती है कि उसे वहां नहीं आना चाहिए था। उसका संवाद है कि 'ब्याहता स्त्री का जीवन रंगों की लकीरों (इंद्रधनुष) की तरह होता है, जो खेले तो तूफानों में और मिटे तो ऐसे जैसे थी ही नहीं।' इसी संवाद को कहते समय दृश्य में एक जलप्रपात पर इंद्रधनुष का प्रतिबिंब नज़र आता है गोयाकि संवाद का दृश्य रूपांतर भी मौजूद है। यह उदाहरण है गैर-पनडुब्बीनुमा जीवंत पटकथा का, जिसमें लोकेशन के कारण भी परिवर्तन किया गया और सार्थक बात भी बयां हुई कि विवाहिता का जीवन नाजुक होते हुए भी अत्यंत मजबूत होता है।

'हकीकत' की शूटिंग शुरू होने के पहले चेतन अानंद के पास फिल्म की क्षीण-सी रेखा मात्र थी और शूटिंग करते हुए वे अगले दृश्य वहीं लिखते थे। धन्य हैं पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रतापसिंह कैरो, जिन्होंने फिल्म बनाने में चेतन आनंद की भरपूर मदद की, जिसमें धन भी शामिल था। शूटिंग के समय ही चेतन आनंद और बलराज साहनी मिलकर लिखते थे। इस घटना के कई वर्ष पूर्व 'इप्टा' के सम्मेलन में वामपंथी बलराज साहनी और चेतन आनंद के बीच इतना वैचारिक द्वंद्व हुआ कि उनमें अबोला हो गया परंतु 'हकीकत' का विचार आते ही चेतन आनंद ने बलराज साहनी को महत्वपूर्ण भूमिका दी और उनके बीच वर्षों का अबोला समाप्त हुआ। इस तरह मित्रता और द्वंद्व को उन्होंने नए ढंग से परिभाषित किया। जब जीवन अनिश्चित और मनुष्य क्षणभंगुर है तब मित्रता या शत्रुता कैसे स्थायी हो सकती है और आजन्म निभाई जा सकती है। जीवन लचीलेपन का नाम है। आज जो मंदबुद्धि नेता भारत और पाकिस्तान के बीच शत्रुता बढ़ाने की बात कर रहे हैं, एवं उस जुल्फिकार अली भुट्टो की तरह ध्वनित हो रहे हैं, जिन्होंने भारत के खिलाफ एक हजार वर्ष तक लड़ने की बात की थी। इस संभावना को निरस्त नहीं किया जा सकता कि कभी भारत और पाकिस्तान मिलकर चीन के आक्रमण का मुकाबला करें। विश्व शांति को चीन से खतरा है, क्योंकि अपने को साम्यवादी कहने वाले चीन के सपने साम्राज्यवादी हैं और वह साम्यवादी साधनों से पूंजीवादी देश बनने का प्रयास कर रहा है।

बीसवीं सदी में विज्ञान ने जितनी प्रगति की, वह अन्य तमाम सदियों की प्रगति के जमाजोड़ से अधिक है परंतु इसी विकास की सदी में दो विश्वयुद्ध भी लड़े गए गोयाकि विकास और विनाश गलबहियां करते नज़र आए। इस नई सदी में गुरिल्लानुमा जंग जारी है, क्योंकि तीसरा विश्वयुद्ध कोई नहीं चाहता। सभी जानते हैं कि तीसरे विश्वयुदध में संपूर्ण जीवन ही नष्ट हो जाएगा। सप्ताहांत में सिमटा जीवन क्षणों का मोहताज हो सकता है। इसीलिए आइंस्टीन ने कहा था कि चौथा विश्वयुद्ध पत्थरों से लड़ा जाएगा। याद आते है साहिर लुधियानवी- 'गुजश्ता जंग में तो घर-बार ही जले, अजब नहीं इस बार जल जाए तन्हाइयां भी, गुजश्ता जंग में तो पैकर (शरीर) ही जले, अजब नहीं जल जाए इस बार परछाइयां भी।'