तपस्वी से खड़े देवदार के वृक्ष / जयप्रकाश चौकसे

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तपस्वी से खड़े देवदार के वृक्ष
प्रकाशन तिथि : 07 अप्रैल 2020


कुछ लोग अपने भवन सरकार को सौंप रहे हैं, ताकि वहां अस्पताल बनाए जा सकें। अस्पताल बनाने के लिए बहुत अधिक पूंजी का निवेश करना पड़ता है। स्थान और निवेश उपलब्ध होने पर भी भारत में डॉक्टर्स की कमी है। मेडिकल कॉलेज के नाम पर कुछ रचा जा रहा है, परंतु यह सब दिखावा है। गले में स्टेथोस्कोप डाले घूमने वाला हर व्यक्ति डॉक्टर नहीं होता। अधिकांश समस्याओं की जड़ पर प्रहार हम नहीं करते। जड़ों में विराजमान हैं संस्कृत ग्रंथों के गलत अनुवाद। सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता यह है कि शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रम में आमूल परिवर्तन किया जाए। शरीर विज्ञान की प्राथमिक शिक्षा का समावेश भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। हमारा इलेक्ट्रिकल विज्ञान का छात्र बिजली का फ्यूज जोड़ना नहीं जानता।

महात्मा गांधी ने कहा था कि पाठ्यक्रम में जीवन की व्यावहारिक समस्याओं से जूझने की शिक्षा का समावेश किया जाना चाहिए। अन्यथा शिक्षण संस्थाएं मृत समान हो जाएंगी। विगत सदी के तीसरे दशक में बनी ‘वंदेमातरम स्कूल’ फिल्म के प्रारंभ में ही गांधीजी का पाठ्यक्रम संबंधित बयान शामिल किया गया था। राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ में भी इन तथ्यों का समावेश किया गया था। वी. शांताराम की जितेंद्र अभिनीत फिल्म ‘बूंद जो बन गई मोती’ में नायक एक स्कूल में पढ़ाने के लिए नियुक्त किया जाता है। वह अपने छात्रों को नदी के किनारे बगीचे या पहाड़ों पर ले जाकर शिक्षा देता है। इस फिल्म का गीत है- नीला-नीला ये गगन, हरी-हरी वसुंधरा पर नीला-नीला ये गगन, जिस पर बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन, दिशाएं देखो रंगभरी, चमक रही उमंग भरी, ये किसने फूल-फूल पर किया शृंगार है, ये कौन चित्रकार है, तपस्वियों सी है अटल ये पर्वतों की चोटियां, ये सर्प सी घुमावदार, घेरदार घाटियां, ये वृक्ष देवदार के अपनी तो एक आंख है, उसकी हजार हैं...। यह गीत भरत व्यास ने लिखा, संगीत सतीश भाटिया का था।

एक दौर में जितेंद्र अपनी ‘जंपिंग जैक’ की छवि बदलना चाहते थे। गुलज़ार ने उनके लिए ‘साउंड ऑफ म्यूजिक’ से प्रेरित फिल्म ‘परिचय’ बनाई थी। कथासार यूं था कि एक धनवान पिता का पुत्र पिता की इच्छा का विरोध करते हुए संगीत सीखने जाता है। संगीत सीखते हुए उसे एक महिला से प्रेम हो जाता है। वह उससे विवाह करके अपने पिता के घर आता है तो पिता उसे घर से चले जाने को कहते हैं। संगीत साधना में रमे हुए व्यक्ति को तपेदिक हो जाता है और वह अपने पिता को पत्र लिखता है कि वे आकर अपने पांच पोते-पोतियों को आश्रय दें। बच्चे जानते हैं कि उनके पिता को दादा ने बहुत दु:ख दिए थे। अत: उनकी शिक्षा के लिए नियुक्त शिक्षक को वे तंग करते हैं। बारी-बारी से पांच शिक्षक भाग जाते हैं। नायक की नियुुक्ति होती है। वह समस्या को समझकर बच्चों को खेल-कूद के माध्यम से शिक्षा देता है और उनका विश्वास जीत लेता है। बच्चे सुुधर जाते हैं। शिक्षक बच्चों को सिखाता है कि कैसे उन्हें अपने दादा का सम्मान करना चाहिए। धीरे-धीरे सारे परिवारिक संबंध सुधर जाते हैं। फिल्म में ‘साउंड ऑफ म्यूजिक’ के गीतों की धुनों का भी भारतीयकरण किया गया है जैसे ‘डोरे मी’ को ‘सा रे गा मा’ में ढाला गया।

शिक्षा की पृष्ठभूमि पर करण जौहर की ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ में पुरुष पात्र नारी पात्रों से भी कम वस्त्र पहनते हैं और फिल्म में एक भी दृश्य क्लास रूम का नहीं है। इस फिल्म में प्रधान अध्यापक के पात्र को समलैंगिक बताया गया है। आई.एस.जौहर की लिखी ‘जागृति’ भी शिक्षा केंद्रित फिल्म थी, जिसमें महात्मा गांधी के आदर में एक गीत बनाया गया था।

राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ का पहला हिस्सा एक स्कूल परिसर का था। 26 वर्षीय सुंदर शिक्षिका से 16 वर्षीय छात्र प्रेम करने लगता है। राज कपूर ने तीन खंड वाली चार घंटे की फिल्म प्रदर्शित की थी। सिडनी पोएटर अभिनीत फिल्म में अश्वेत शिक्षक गोरों के स्कूल में पढ़ाता है। अश्वेत शिक्षक रात में गरीब छात्रों को अपने स्कूल की रसायन शाला में शिक्षा देता है। वह साधनहीन बच्चों के स्कूल में बिना वेतन लिए पढ़ाता है।

ऋतिक रोशन अभिनीत फिल्म ‘सुपर थर्टी’ में भी साधनहीन बच्चे पास हो जाते हैं। यह फिल्म बिहार के एक शिक्षक के जीवन की प्रेरणा से बनी थी। सारांश यह है कि साधनों के अभाव में भी इच्छा शक्ति के दम पर बहुत कुछ किया जा सकता है। अमेरिका में 1936 में फिल्म विधा पढ़ाने की पाठशालाएं खुल गई थीं। उसमें प्रवेश के समय ही पूछा जाता है कि छात्र फिल्म माध्यम का शिक्षक बनना चाहता है या फिल्मकार? दोनों के लिए अध्ययन की शैलियां जुदा थीं। इसी संस्था से पास हुए शिक्षकों को दुनिया के तमाम देशों में फिल्म विधा सिखाने का काम मिला। वर्तमान में यह अत्यंत दुखद है कि शिक्षक बनने की महत्वाकांक्षा नहीं है। अधिकांश विद्यार्थी अफसर या नेता बनना चाहते हैं। हमारे राष्ट्रपति राधाकृष्णन का जन्मदिन 5 सितंबर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज समर्पित शिक्षक डायनासोर की तरह विलुप्त प्रजाति हो चुके हैं।