तबाही / पद्मजा शर्मा
Gadya Kosh से
'बूँद बूँद से घड़ा नहीं भरना, पापा। यूं तो पूरी उम्र बीत जाएगी, मेहनत करते करते, तब भी वह खाली ही रहेगा। मुझे तो एक बार में ही घड़ा भरना है।'
'बेटा, यह तो तभी सम्भव है जब कोई बादल फटे।'
'तो फट जाए, पापा।'
मैं सहम गयी। बेटे के शब्दों में तबाही का पूर्वाभास पाकर।