तमाशे में दम है वंदेमातरम / जयप्रकाश चौकसे

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तमाशे में दम है वंदेमातरम
प्रकाशन तिथि :28 नवम्बर 2015


इम्तियाज अली, रणबीर कपूर अौर दीपिका पादुकोण की 'तमाशा' एक युवा, आधुनिक, मनोरंजक प्रेम-कहानी है। इम्तियाज अली ने अपनी इस फिल्म को तमाम क्लासिक प्रेम कहानियों जैसे शीरी फरहाद, लैला मजनू, पृथ्वीराज-संयोगिता इत्यादि के संदर्भ देकर यह कहना चाहा है कि सभी प्रेम कहानियां एक-सी होती हैं परंतु प्रेम की प्रक्रिया स्वयं के असली रूप को पहचानना है। खुद को जान लेना आसान लगता है परंतु यह सबसे कठिन इसलिए है कि हमारे बचपन के प्रभाव, रोजी-रोटी से जुड़ने के प्रभाव, माता-पिता की महत्वाकांक्षा को जीने की मजबूरी इत्यादि हम पर अनेक सतहें और आवरण लाद देती हैं, ये सब बातें हमारी आंखों पर घूंघट डाल देती हैं और हमें खुद को पहचानना कठिन हो जाता है। इसके साथ ही इम्तियाज ने मनोरंजन की दुनिया के विविध रंगों के बीच आनंद की मौजूदगी को बखूबी टटोला है। इस फिल्म में अर्थ की अनेक सतहें हैं परंतु दर्शक ऊपरी सतह की प्रेमकथा के आनंद से भी अभिभूत हो सकता है।

इस फिल्म में इस बाजार युग और टेक्नोलॉजी द्वारा मनुष्य को मशीन बनाने के प्रयास किए जाने पर एक संवाद हमारे कालखंड को परिभाषित करता है और वह संवाद है- 'कॉर्पोरेट कंपनियां इस युग के नए देश हैं।' अर्थात व्यवसाय केवल बाजार या खरीदने और बेचने का काम नहीं करता, आप उसके देश स्वरूप के नागरिक बन जाते हैं और आपका अपना व्यक्तित्व कहीं खो जाता है। फिल्म का पहला दृश्य ही कमाल का प्रतीक है, जिसमें एक मानव मशीन रोबो है और एक तमाशे का पात्र झुमरू है। जैसा हम पहले देखते थे कि झुमरू के डमरू बजाने पर बंदर तमाशा दिखाता है। हम जिस तरह कविता पढ़ते हुए कवि के किंवदंतियों और इतिहास के संदर्भ देने के इस्तेमाल को समझने पर हमारा आनंद बढ़ जाता है, उसी तरह इम्तियाज की फिल्म में ढेरों संकेत हैं, जिनका एहसास आपको भरा हुआ-सा महसूस करने पर मजबूर करता है परंतु केवल ऊपरी सतह पर ही अटक जाने पर भी भरपूर मनोरंजन मिलता है। रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण के बीच रसायन कमाल का है और किसी फिल्म में उनका श्रेष्ठतम अभिनय हमें देखने को मिलता है। रणबीर कपूर विलक्षण अभिनेता है और वह अपने को लगातार मांझने के लिए फिल्म का चुनाव करता है। इम्तियाज अली और रणबीर कपूर अगर एक-दूसरे से बात न भी करें तो भी वे एक-दूसरे को समझ लेते हैं। जब इस तरह का भावनात्मक दातात्म्य हो तब महान फिल्में बनती हैं। रणबीर कपूर और दीपिका का एक जमाने में इश्क था परंतु आज भी वे एक-दूसरे को बेहतर समझते हैं। आपसी समझदारी प्रेम की पहली पायदान है परंतु यह शिखर नहीं है।

इस फिल्म में पिता और पुत्र के बीच तनाव है परंतु एक अविस्मरणीय दृश्य में जब पुत्र अपने असली व्यक्तित्व के पहचान की बात कहानी के रूप में पेश करते हुए यह कहता है कि इस प्रेम कहानी का अंत त्रासदी में होगा तो पिता उसे गले लगा लेता है और पहली बार यह समझ पाता है कि हर मनुष्य अलग होता है, उसके सपने अलग होते हैं और पिता की हूबहू नकल नहीं है। प्रकृति का तो यह कमाल है कि एक ही रोपे से पास-पास लगाए दो पौधे वृक्ष बनते हैं, तो उनके पत्तों की डिज़ाइन भी अलग है और फल का स्वाद भी अलग-अलग होता है। वे सारी व्यवस्थाएं, जो मनुष्य को एक ही ढांचे में ढालना चाहती हैं, वे मनुष्य और कुदरत को ही नहीं समझतीं। अगर सब एक से होते तो हम आज भी आदम अवस्था में ही होते।

फिल्म में 'तमाशा' के मैटाफर हैं और इसीलिए अनेक दृश्यों में एक जोकर किसी कोने में खड़ा होता दिखाया गया है। फिल्म के बचपन वाले भाग में एक कथा-वाचक का पात्र है, जो पैसे लेकर किस्से कहानियां सुनाता है और फिल्म का नायक इसी गिज़ा पर पनपा है। उसके लिए जीवन, किस्सागोई और दुनिया एक मंच है। सभी पात्र अपनी भूमिका करके पटाक्षेप कर जाते हैं जैसे इम्तियाज अली खुद हैं। फिल्म का संगीत एआर रहमान का है और गीत इरशाद कामिल के हैं। गीत-संगीत फिल्म के प्रभाव को धार देते हैं।

इरशाद कामिल ने इम्तियाज की कथा के अनुरूप बहुत सार्थक गीत लिखे हैं। भारत के अवाम के अनंत कथा सुनने वालों के लिए 'तमाशा' एक सार्थक अफसाना है, जिसमें बाजार की कड़वी हकीकत का स्पर्श भी है।