तय तो यह था..../ अशोक कुमार शुक्ला

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डा0 सन्ध्या गुप्ता जी को विनम्र श्रद्वांजलि !!
तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते

बीते नवम्बर की आठ तारीख को तरक्की के इस जमाने में एक जंगली बेल ...(ब्लाग का नाम) की मुहिम चलाने वाली सुश्री डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रहीं । उनके असामयिक निधन की सूचना ब्लाग जगत में विलंब से प्राप्त हुयी । श्री अनुराग शर्मा जी के पिटरबर्ग से एक भारतीय नामक ब्लाग .. पर प्रकाशित श्रद्वांजलि से यह ज्ञात हो सका कि डा0 सन्ध्या गुप्ता जी नहीं रहीं।

वे विगत नवम्बर 2010 तक अपने ब्लाग पर सक्रिय रूप से लिखती रहीं फिर लगातार ब्लाग जगत में अनुपस्थित रही थी । इस अनुपस्थिति की बाबत 4 अगस्त 2011 में एक दिन अचानक अपने ब्लाग पर फिर मिलेंगे’.... नामक शीर्षक के छोटे से वक्तब्य के साथ प्रगट हुयी थीं तब उन्होने अवगत कराया था कि वे जीभ के गंभीर संक्रमण से जूझ रही थीं और शीघ्र स्वस्थ होकर लौट आयेंगी ।

प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी स्व.कृष्ण प्रसाद व स्व.प्रेमा देवी की पुत्री सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ.संध्या गुप्ता अब इस दुनियां में नहीं रही। पिछले कई माह से बीमार चल रही डॉ.गुप्ता ने गुजरात के गांधी नगर में आठ नवम्बर 2011 को सदा के लिए आंखें मूंद ली हैं। वह अपने पीछे पति सहित एक पुत्र व एक पुत्री को छोड़ गयी है। पुत्र प्रो.पीयूष यहां एसपी कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के व्याख्याता है। उनके आकस्मिक निधन पर विश्वविद्यालय परिवार ने गहरा दुख प्रकट किया है। प्रतिकुलपति डॉ.प्रमोदिनी हांसदा ने 56 वर्षीय डॉ.गुप्ता के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि दुमका से बाहर रहने की वजह से आखिरी समय में उनसे कुछ कहा नहीं जा सका इसका उन्हें सदा गम रहेगा। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि हिंदी जगत ने एक अनमोल सितारा खो दिया है।

तीन अगस्त 2009 को नई दिल्ली के हिंदी भवन के सभागार में आयोजित एक समारोह में डॉ.संध्या गुप्ता को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान डॉ.गुप्ता को उनकी काव्यकृति 'बना लिया मैंने भी घोंसला ' के लिए दिया गया था। शिक्षाविद् व रचनाकार डॉ.गुप्ता हिंदी की उत्कृष्ट सेवा के लिए भारतेन्दु हरिश्चन्द्र राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी थी। 'राष्ट्रीय एकता में कवियों का योगदान' नामक उनकी एक पुस्तक का हाल के दिनों में भारत सरकार के सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित की गयी थी। उनकी दर्जनों प्रमुख कृतियों में कोहरे का भोर भी शामिल है।

डॉ.गुप्ता इन दिनों सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय की हिंदी पत्रिका वातायण के संपादन का दायित्व भी निभा रही थी।

डॉ.गुप्ता को उनकी काव्यकृति 'बना लिया मैंने भी घोंसला' के लिए मैथिलीशरण गुप्त विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया था।
बना लिया मैंने भी घोंसला का मुखपृष्ठ

डॉ सन्ध्या गुप्ता जी की कविताऐं कविताकोश पर भी पढी जा सकती हैं

उन्हे श्रद्वांजलि स्वरूप प्रस्तुत है उनके ब्लाग पर नवम्बर 2010 को प्रकाशित उनकी कविता तय तो यह था...

तय तो यह था...

तय तो यह था कि

आदमी काम पर जाता

और लौट आता सकुशल

तय तो यह था कि

पिछवाड़े में इसी साल फलने लगता अमरूद

तय था कि इसी महीने आती

छोटी बहन की चिट्ठी गाँव से

और

इसी बरसात के पहले बन कर

तैयार हो जाता

गाँव की नदी पर पुल


अलीगढ़ के डॉक्टर बचा ही लेते

गाँव के किसुन चाचा की आँख- तय था


तय तो यह भी था कि

एक दिन सारे बच्चे जा सकेंगे स्कूल...


हमारी दुनिया में जो चीजें तय थीं

वे समय के दुःख में शामिल हो एक

अंतहीन...अतृप्त यात्राओं पर चली गयीं

लेकिन-

नहीं थ तय ईश्वर और जाति को लेकर

मनुष्य के बीच युद्ध!


ज़मीन पर बैठते ही चिपक जायेंगे पर

और मारी जायेंगी हम हिंसक वक़्त के हाथों

चिड़ियों ने तो स्वप्न में भी

नहीं किया था तय!


सचमुच!

....तय तो यह था कि

तुम इलाज के लिए गयी थी

सो लौट आती सकुशल परन्तु ...

तुम्हीं सो गये दास्तां कहते कहते....


ईश्वर डा0 सन्ध्या गुप्ता जी को स्वर्ग में स्थान दे इसी हार्दिक श्रद्वांजलि के साथ....