तरक्की / सुषमा गुप्ता
"मम्मी बाय। निकल रही हूँ कॉलेज के लिए। आज थोड़ा लेट हो जाऊँगी।"
"अरे सुन तो! रात हो जाएगी क्या?"
"हाँ मम्मी। कॉलेज में फेस्ट है।"
"फोन रख लिया?"
"हाँ।"
"स्पीड डायल में घर वालों के नम्बर हैं न?"
"हाँ मम्मी।"
"पैपर स्प्रे रख लिया याद से?"
"अरे हाँ माँ।"
"और कल तुझे नया तेज धार का चाकू दिया था, वह भी रख लिया न?"
"हाँ भई हाँ! सब रख लिया। अब जाऊँ? लेट हो रही हूँ" , मीनू झुंझलाकर बोली।
"हाँ जा। बस चलने से पहले फ़ोन ज़रूर कर दियो, ताकि पता रहे कब चली।"
"बाय मम्मी, बाय दादी।"
"बाय"
"लो जी! हमारे ज़माने में तो माँ बाहर जाते बालकां से पूछे थी कि खाना रख लिया? किताब रख ली? रूमाल रख लिया? और अब माँ पूछे है मिर्ची पाऊडर रख लिया... चाकू रख लिया?" गाँव से आई दादी बोली।
"जमाना आज बहुत आगे निकल गया है माँजी।"
"आगे कित! जंगल धोरे? वहाँ ही पड़े रहते हैं जान के लाले निरीह प्राणियों को।"
बहू सास की खरी बात पर ठिठककर रह गई।
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