तरफ़दारी / सरस्वती माथुर
Gadya Kosh से
"तुम इतना सहती कैसे हो, तु्म्हारा मर्द बिना बात मारता है, क्यों पिटती हो? " आज फिर भँवरी की गर्दन कलाइयों व चेहरे पर नील पड़ी देख कर राजो का सब्र का बाँध टूट गया था।
"अरे बीबी जी मेरा मर्द जब होश में नहीं होता है तो पीटता है, होश में होता है तो कहाँ पीटता है? तब तो ख़ूब मीठा बोलता है, प्रेम करता है --जीवन है, सब चलता है बीबी जी। हमारी जाति में तो औरत की यही नियति है।" कह कर भँवरी रसोई में बर्तन माँजने चली गयी। राजो को बड़ा विचित्र लगा यह देख कर कि विहस्की के एक पैग की तरह भँवरी अपने आदमी की पीटने की आदत का एक हिस्सा बन गयी थी। तभी तो मार खा कर भी अपने आदमी की तरफ़दारी कर रही थी।