तरबूज की दुनिया / कबीर संजय
सचिन को दादाजी की मूँछों से बहुत डर लगता था। काली और नुकीली। बिलकुल तो उठी हुई तलवारों की तरह। और हर समय सचिन की निगाह अटकी भी उन मूँछों पर ही रहती थी। छुट्टी का दिन था। दादाजी उसे नहलाने के लिए गंगाजी ले गए। नदी किनारे ढेर सारी नावें खड़ी थीं। एक पर बैठकर नदी के उस पार पहुँच गए। सचिन ने जब पहली बार गंगा का कछार देखा तो उसकी आँखें आश्चर्य से भर उठीं। दूर-दूर तक रेत का मैदान। मन बालू में खेलने का करने लगा। लेकिन, दादा जी की मूँछों में ध्यान फिर अटक गया।
लेकिन, कछार खाली नहीं थे। रेगिस्तान के जैसे केवल रेत वहाँ नहीं थी। लगभग पूरे कछार में ही खेत थे। एक खेत को दूसरे से अलग करने के लिए सरपत की दीवार खड़ी की गई थी। रेत में ही छोटे-छोटे कुएँ खोदे गए थे। जिसमें से खुद ही पानी रिस-रिस कर आता था। यहीं से मटका भर-भर कर गहरू चाचा हर थाले में पानी डालते। लेकिन, जो सबसे मजेदार बात थी वह थी कछार में जगह-जगह पर हरे-हरे पहाड़ खड़े थे।
सचिन ने दादाजी से पूछा, ये क्या है दादाजी?
तरबूज है बेटा, दादाजी ने बताया।
इतना बड़ा!
हाँ, बेटा तरबूज यहाँ पर तो इतना बड़ा ही होता है।
सचिन ने देखा तरबूज बहुत बड़ा। इतना बड़ा कि वह अपने हाथ पूरा फैला ले तब भी उसमें नहीं समा पाएगा। ऊँचा। पहाड़ जैसा। हरे रंग का। गोल आकार का। रेत में ऊपर तक खड़ा हुआ। अगर इस पर चढ़ने की कोशिश करो तो। नहीं-नहीं फिसल जाओगे।
तरबूज तो बड़ी मजेदार चीज है। इतना बड़ा तरबूज। उसके अंदर तो पूरी एक दुनिया ही मौजूद थी। उस दुनिया में सड़क भी बनी हुई थी। लेकिन लाल रंग की। वहाँ पर बड़े-बड़े अपार्टमेंट बने हुए थे। लेकिन लाल रंग के। तरबूज में स्कूल भी था। लेकिन वह भी लाल रंग का। इन सड़कों में तरबूज के छोटे-छोटे बीज चलते रहते थे। इन अपार्टमेंटों में तरबूज के छोटे-छोटे बीज रहते थे। इन स्कूलों में तरबूज के छोटे-छोटे बच्चे पढ़ाई करते थे। उनके सामने का ब्लैकबोर्ड भी लाल रंग का था और जो किताबें वो पढ़ते थे वे भी लाल रंग के थे। चारों तरफ एक लाल रंग की दुनिया थी।
इस तरबूज की दुनिया में लोग खाते क्या हैं। और पानी कैसे पीते हैं। सचिन ने सोचा।
दादाजी का जवाब तैयार था।
तरबूज की दुनिया में लोग खाते भी हैं और पीते भी हैं। लेकिन, उनका खाना भी लाल रंग का होता है। और उनका पानी भी लाल रंग का होता है। असल में तरबूज की दुनिया में लाल रंग की एक नदी ही बहती रहती है। जैसे गंगा की कछार में कहीं भी खोदो तो पानी पसीजने लगता है। उसी तरह से लाल रंग के तरबूज की दुनिया से यह लाल रंग का पानी पसीजता रहता है।
अरे, यह तो बड़ा मजेदार है। इसे अपने घर ले चलें। सचिन ने दादा जी से कहा।
दादा जी ने कहा, ठीक है।
अब उन्होंने तरबूज को उठाने की कोशिश की। लेकिन, तरबूज उठना तो दूर, हिला भी नहीं। उनकी मूँछों के पास से पसीना टपकने लगा। तब गहरू चाचा भी आ गए। उन्होंने भी हाथ लगाया। लेकिन, तरबूज बहुत बड़ा था। हिलने को भी नहीं हुआ। कछार के खेत में कई लोग काम कर रहे थे। वे सभी हाथ लगाने के लिए आ गए। लेकिन, तरबूज किसी से भी नहीं उठा। अब क्या किया जाए। कुछ लोग तरबूज के ऊपर चढ़ने लगे। लेकिन, तरबूज की हरी-हरी चिकनी सी दीवार पर उनके हाथ फिसल गए। वे नीचे बालू में भद्द से गिर पड़े। उनकी पीठ पर भी बालू लग गई। तरबूज बहुत बड़ा था। उस पर तो चढ़ा भी नहीं जा सकता था। सचिन ने भी चढ़ने की सोची। लेकिन, नहीं, यहाँ तो पकड़ने को कुछ बना ही नहीं है। तरबूज की तो दीवार है, चिकनी-चिकनी, हरी-हरी।
अब क्या किया जाए, कैसे किया जाए। सचिन ने फिर दादा जी से कहा, इसे घर ले चलो न।
अब सब लोगों ने एक ऊँट बुलाया। ऊँट नीचे बैठा तो उसकी पीठ पर किसी तरह से तरबूज चढ़ा दिया गया। लेकिन, ऊँट की पीठ तो नुकीली थी। एकदम पहाड़ की नोंक जैसी। वहाँ पर तरबूज टिका ही नहीं। जैसे ही चढ़ाओ वह वहाँ से लुढ़क जाता। लोगों ने बहुत बड़े-बड़े लट्ठे लगाकर किसी तरह फिर से तरबूज ऊँट की पीठ पर चढ़ाया, लेकिन वह फिर फिसल गया। अब क्या किया जाए।
फिर सब लोग तरबूज को लुढ़का कर नदी के पास ले जाने लगे। नदी में बड़ी-बड़ी नाव तैर रही थी। अगर नाव में तरबूज लाद दिया जाए तो इसे ले जाया जा सकता है। सबने किसी तरह से तरबूज को नाव में चढ़ाया। लेकिन, अरे, तरबूज की दुनिया के वजन से तो नाव भी हिलने लगी। लगा कि जैसे नाव में ही भूकंप आ गया। अब ले कैसे चला जाए।
पानी में किसी भी चीज का वजन कम हो जाता है। लोगों ने तरबूज को पानी में उतार दिया। और उसे एक रस्सी से बाँधकर उसका एक छोर नाव में बाँध दिया। पानी में नाव के साथ-साथ तैरते हुए तरबूज ने भी नदी पार कर ली। पानी की धारा के साथ हिलता-डुलता, तैरता हुआ तरबूज, उसकी हरियाली और बढ़ गई। उसके ऊपर पड़ी हुई धारियाँ और भी खुश लगने लगीं। लेकिन, तरबूज जब किनारे पहुँचा तो फिर मुसीबत हो गई।
जब तरबूज को उठाकर सब लोगों ने आटो पर रखा। तो आटो की छत बैठ बैठ गई। उसके पहिए भी निकल गए। नहीं-नहीं, ये इस पर नहीं जाएगा। इसके लिए तो पूरा ट्रक लाना पड़ेगा। लोग भाग कर गए। कोई ट्रक ले आया। ट्रक को बैक करके एकदम तरबूज के पास खड़ा कर दिया कर दिया गया। किसी तरह से तरबूज को ट्रक पर लाद दिया गया। ट्रक तो बहुत बड़ा था। बिलकुल किसी घर की तरह। उसकी छत एक मंजिला मकान के बराबर ऊँची थी। अब ट्रक तरबूज को लादकर आगे चलने लगा।
लेकिन, अभी ट्रक अभी कुछ ही दूरी पर गया हुआ था कि फिर मुसीबत हो गई। ट्रक धीमे-धीमे चल रहा था। तरबूज के अंदर मौजूद लाल रंग की दुनिया धीमे-धीमे डोल रही थी। लेकिन, तभी अचानक रास्ते में गड्ढा आ गया। गड्ढे में ट्रक का टायर गया और पूरी तरह ट्रक में ही उथल-पुथल हो गई। तरबूज भी ट्रक से लुढ़क गया। वहाँ से लुढ़कने लगा, तो अब तरबूज रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। किसी ने उसे रोकने की कोशिश की तो वह दब गया। फिर एक आदमी तरबूज के साथ-साथ भाग-भाग कर सबको बताने लगा, अरे, हट जाओ - हट जाओ, नहीं तो दब जाओगे।
लोगों ने देखा कि एक भारी-भरकम तरबूज लुढ़कता हुआ आ रहा है, तो सब भागने लगे। अब क्या करें। सब लोगों ने तरबूज को रोकने के लिए एक पेड़ खड़ा कर दिया। लेकिन तरबूज से पेड़ भी दब गया। फिर लोगों ने तरबूज को रोकने के लिए आगे एक चट्टान लाकर खड़ी कर दी, लेकिन तरबूज की टक्कर से चट्टान के टुकड़े-टुकड़े हो गए। सामने एक पुल था। तरबूज लुढ़कते हुए उस पुल पर चढ़ गया। लुढ़कते हुए उसने पुल भी पार कर लिया। सामने से एक स्कूटर वाले अंकल आ रहे थे, उन्होंने तुरंत अपनी स्कूटर एक किनारे कर ली। कहीं तरबूज उनके ऊपर न चढ़ जाए। फिर एक कार वाले अंकल ने जल्दी से अपनी कार किनारे कर ली। तरबूज की दुनिया में भी भूकंप आ गया। तरबूज की दुनिया उलट-पलट होने लगी। लाल रंग के अपार्टमेंट, उलट-पलट होने लगे। लाल रंग की सड़कें उलट-पलट होने लगीं। तरबूज की नदियाँ भी उलटी हो गईं। तरबूज के छोटे-छोटे बीज भी उलटने-पलटने लगे। पहले उलटे, फिर हुए सीधे। कोई चिल्लाया अरे सब लोग एक-दूसरे का हाथ पकड़ लो, नहीं तो हम कहीं खो न जाएँ। लेकिन, तरबूज तो लुढ़कता ही जा रहा था। और उसके साथ ही उलट-पलट हो रही थी तरबूज की दुनिया। अब क्या किया जाए।
दादाजी ने अब जेसीबी वाले को फोन किया। जेसीबी वाला अपनी जेसीबी मशीन लेकर आया। जेसीबी तो बहुत बड़ी मशीन होती है। बड़ी-बड़ी। इतने बड़े-बड़े तो उसके टायर होते हैं। आगे के टायर तो छोटे। लेकिन पीछे के टायर तो, बाप रे बाप। इतने बड़े-बड़े। सचिन के हाथ में तो नहीं आ सकते। और उन टायरों पर धारियाँ भी बहुत बड़ी-बड़ी पड़ी हुई थीं। जेसीबी मशीन के पीछे एक बहुत बड़ा सा हाथ था। उसका बड़ा सा पंजा। लोहे का। ताकतवर। सचिन ने पहले भी देखी थी जेसीबी।
अब जेसीबी ने अपने पंजे से पूरा जोर लगाकर तरबूज को रोक लिया। जेसीबी ने तरबूज की पूरी दुनिया को अपने हाथों में ऊपर उठा लिया। अब वह उसे लेकर चलने लगी। जैसे कोई चींटा मिसरी का बड़ा का डला उठाकर आड़ा-तिरछा होकर चलने लगे।
अब सब लोगों ने सोचा कि तरबूज दिल्ली कैसे जाएगा। उसे लेकर सब लोग रेलवे स्टेशन गए। तरबूज को लुढ़काकर प्लेटफार्म पर चढ़ा दिया गया। ट्रेन भी आ गई। लेकिन, जब तरबूज को ट्रेन पर चढ़ाने की बारी आई तो फिर सबके पसीने छूटने लगे। ट्रेन का दरवाजा तो छोटा सा है। लेकिन तरबूज तो इतना बड़ा। अब तरबूज उसमें जाएगा कैसे। लोग इसकी जुगत लगाने लगे। लेकिन, तरबूज तो दरवाजे के अंदर से घुसा नहीं। अब क्या किया जाए।
फिर सब लोगों को एक उपाय सूझा। उन्होंने ट्रेन की छत पर तरबूज को बाँध दिया। अब ट्रेन छुक-छुक किए जा रही है। और उस पर लदी हुई तरबूज की दुनिया भी तेजी से भागती जा रही है। ट्रेन आगे भागी जा रही है और उससे निकला हुआ मोटा सा धुआँ पीछे की ओर। तरबूज की दुनिया में सब लोग खाँसने लगे। उनकी आँखों में धुआँ घुस गया। उन्हें चक्कर आने लगे। ट्रेन के इंजन से निकले काले धुएँ से तरबूज की हरी-हरी दीवार काली होने लगी। तरबूज की चिकनी दीवार खुरदुरी होने लगी। अंदर तरबूज की दुनिया के छोटे-छोटे बीजों का भी खाँस-खाँसकर बुरा हाल था। वे खाँसते जा रहे थे। खाँसते जा रहे थे। उनकी आँखों से पानी निकलने लगा। उनके मुँह भी तरबूज की दुनिया की तरह ही लाल होने लगे। अब क्या किया जाए। नहीं भाई ऐसे नहीं होगा। ऐसे तो तरबूज की दुनिया ही काली हो जाएगी।
अब कुछ और करना होगा। तभी तरबूज की दुनिया को ले जाया जा सकेगा। तरबूज को ट्रेन की छत से उतार लिया गया। लेकिन, तरबूज की दुनिया बदरंग हो चुकी थी। काली-काली। लेकिन, उसी समय अचानक बादल आए और जोर-जोर से बारिश होने लगी। बारिश में तरबूज की दुनिया में लगी पूरी कालिख धुल गई। तरबूज फिर से सुंदर हो गया। हरा और सुंदर। इतना चिकना कि अगर कोई बच्चा उस पर चढ़ने की कोशिश करे तो फिसल कर गिर जाए।
अब कैसे जाएगी तरबूज की दुनिया। सब लोग यही सोचने लगे। क्यों न इसे हवाई जहाज पर ले जाया जाए। अब सब लोग उसे लेकर हवाई अड्डे पहुँचे। एयरपोर्ट बहुत बड़ा था। उसमें कई सारे प्लेन खड़े थे। दूर-दूर तक प्लेन के दौड़ने के लिए पक्की, सीमेंट की सड़क बनी हुई थी। जहाज उस पर दूर से दौड़ते हुए आते, तेज, और तेज। उसके बाद और तेज। उनकी आवाज से कान फटने लगता। खूब तेज। इसके बाद वे तेजी से हवा में छलाँग लगा देते। इतनी तेज छलाँग की वे आसमान में ऊँचा और ऊँचा उठने लगते। ये छलाँग इतनी लंबी है कि अब जहाँ उन्हें उतरना है वहीं जाकर रुकेंगे। छलाँग तो सचिन को भी लगानी आती है। लेकिन, छोटी सी। बस एक नाली के एक तरफ से छलाँग लगाकर दूसरी तरफ पहुँच जाओ। लेकिन, इतनी बड़ी छलाँग की आसमान में चले जाओ। नहीं अभी तो इसे सीखना पड़ेगा।
एयरपोर्ट पर एक के बाद एक कई जहाज छलाँग लगाते हुए आसमान में उड़ गए। ऐसे ही कई जहाज एयरपोर्ट पर कूदते भी जा रहे थे। अचानक ही आसमान में एक बड़ा सा जहाज दिखाई पड़ता। फिर वह और बड़ा हो जाता। इतना बड़ा कि लगता कि कहीं सिर पर ही न गिर पड़े। उसका इंजन तेजी से गुर्राने लगता। शोर से कान भी फट जाए। फिर जहाज नीचे सड़क पर कूद पड़ता। जमीन पर उतरने के बाद भी वह दूर तक तेजी से भाग जाता था। ये छलाँग तो बड़ी मजेदार है।
अब तरबूज को हवाई जहाज पर चढ़ाया जाने लगा। लेकिन, नहीं, ये काम तो और भी मुश्किल है। फिर वही समस्या आ गई। प्लेन के दरवाजे तो हैं छोटे-छोटे। अब उसमें से तरबूज अंदर जाए तो कैसे जाए। लोगों ने काफी कोशिश की। लेकिन नहीं, तरबूज अंदर नहीं गया। लोग थक कर हार गए। फिर तो बस एक ही उपाय रह गया कि तरबूज को प्लेन की छत पर बाँध दिया जाए। एक बार फिर से तरबूज को प्लेन की छत पर बांधा गया। प्लेन के चारों तरफ बड़ी सी रस्सी लपेटकर तरबूज को बाँध दिया गया। अब प्लेन तरबूज की दुनिया को पीठ पर लादकर तेजी से दौड़ने लगा। उसकी रफ्तार तेज हो गई। तेज और तेज। खूब तेज। और उसने आसमान में छलाँग लगा दी। आसमान में जहाज उड़ने लगा।
प्लेन उड़ते-उड़ते बादलों से भी पार चला गया। ये तो एक अलग ही दुनिया थी। बादलों के छोटे-छोटे गुच्छे तैर रहे थे। बादलों की नदी तेजी से दौड़ रही थी। नीले आसमान में सफेद रंग के बादलों की नाव चली जा रही थी। जब प्लेन और ऊपर गया तो अचानक एक बड़ा सा बादल सामने आ गया। यह बादल तो किसी पहाड़ से भी बड़ा था। प्लेन ने हार्न बजाया। लेकिन, बादलों का यह राक्षस तो किसी भी तरह से हटने के लिए तैयार नहीं हुआ। अब तो प्लेन की रफ्तार भी धीमी नहीं की जा सकती थी।
अब पायलट क्या करे। अब तो इस बादलों के राक्षस से प्लेन की टक्कर हो जाएगी। पायलट तुरंत ही प्लेन एक तरफ झुकाते हुए बादलों के राक्षस के बगल से निकाल ले गया। लेकिन, इस चक्कर में तरबूज की दुनिया फिर उलट-पलट होने लगी। प्लेन के अंदर तो सब यात्रियों ने बेल्ट कसकर बाँध ली। लेकिन, तरबूज की दुनिया जिस रस्सी से बँधी थी वह खुल गई और तरबूज आसमान से नीचे गिर पड़ा। जमीन पर तरबूज गिरा तो फट गया। और उसके बीज पूरी दुनिया में ही फैल गए। चारों तरफ तरबूज के बीज फैल गए।
इन बीजों से फिर अंकुर फूटे। इनकी लतरें निकलीं। ये लतरें जमीन पर फैल गईं। तरबूज के फूल आए। इनमें तरबूज भी फले। लेकिन, अब तरबूज इतने बड़े नहीं होते। अब तो इतने छोटे होते हैं कि ये आसानी से फ्रिज में समा जाएँ। लेकिन, पहले ये बात नहीं थी। पहले तो विशाल तरबूज हुआ करते थे। इतने बड़े कि पहलवान भी उसे न उठा पाए।