तर्कहीन जीवन, बेतरतीब व्यवस्था / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 17 दिसम्बर 2021
किसी भी आपदा से संघर्ष करने के लिए सबसे कारगर है नागरिकता बोध। गौरतलब है कि जापान में तेज गति से कार चलाने पर कभी कोई मामला दर्ज नहीं होता क्योंकि वहां के लोग नियमों का बड़ी गंभीरता के साथ पालन करते हैं। ज्ञातव्य है कि टीकाकरण अभियान के बावजूद गांव, कस्बों और महानगरों में अभी भी महामारी के संक्रमण की खबरें आ रही हैं। हाल ही में एक सफल फिल्मकार ने अपने घर पर ही दावत का आयोजन किया। कोई प्रसंग नहीं था परंतु संभवत: वह अपने एकाकीपन से घबरा गया था। कुछ लोग भीड़ में स्वयं को अकेला महसूस करते हैं तो कुछ लोग एकांकीपन में भीड़ की कल्पना कर लेते हैं।
बहरहाल, दावत में आए कुछ मेहमान सितारों को इस आयोजन के बाद संक्रमण हो गया है। इस कारण कुछ फिल्मों की शूटिंग रद्द की जा सकती है और इस पेशे से जुड़े गरीब कामगार को नुकसान हो सकता है। इस प्रकरण में मेजबान और मेहमान दोनों से ही चूक हुई है कि उनसे लापरवाही कैसे हुई!
इस फिल्मकार की एक फिल्म में केमिकल लोचे का शिकार व्यक्ति अनेक अमेरिकन नागरिकों का जीवन बचाता है। उसे अमेरिका के प्रेसिडेंट धन्यवाद देते हैं। कई फिल्मों की कथाएं और कई सामग्रियां एक-दूसरे से मेल खाती हैं और एक जैसी लगती हैं। इस तरह कहा जा सकता है कि कथा विचारों की चोरी बड़ी मामूली सी बात है। चुराने वालों का कहना है कि सब कुछ ऊपरवाले ने बनाया है अत: उस संपदा पर सबका हक है।
अपने जमाने के मशहूर हास्य अभिनेता, आईएस जौहर साहब किसी चीज को गंभीरता से नहीं लेते थे। उनका विचार रहा कि जीवन में कोई तर्क व्यवस्था नहीं है। इसलिए वे कम समय और किफायत में फिल्में बनाते थे। मजेदार बात यह है कि जब राज कपूर ने अपनी भव्य फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ बनाई तो जौहर साहब ने ‘मेरा नाम जोहर’ बनाई। एक बार उनकी फिल्म की शूटिंग स्टूडियो में जारी थी लेकिन वे होटल में लंच कर रहे थे, तब एक अन्य निर्देशक ने वहां पहुंचकर इस पर आश्चर्य व्यक्त किया तो जौहर साहब ने जवाब दिया कि शूटिंग के समय डायरेक्टर का सेट पर रहना आवश्यक नहीं है। वे सुबह ही अपने सहायक को लिख कर दे देते हैं कि क्या करना है। ऐसा करने से ही नए प्रतिभाशाली फिल्मकारों को अवसर मिलता है। जौहर ने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए किया था। फिल्म उद्योग में वे केवल पैसा कमाने आए थे। उनका विश्वास था कि अंग्रेजी के लेखक पी.जी वुडहाउस की तरह पात्र गढ़ने चाहिए जो केवल जीवन से आनंद लेते हैं और दूसरों को आनंद देते हैं। जौहर, अन्य निर्माताओं की फिल्मों में अभिनय करते हुए अपने लिए चरित्र स्वयं ही रच लेते थे। देवआनंद की ‘जानी मेरा नाम’ में दूजा राम, तीजा राम उनके गढ़े हुए पात्र हैं, जो नायक को संकट से बचाते हैं। राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर अभिनीत फिल्म ‘सफर’ में जौहर ने नायिका के भाई का पात्र अभिनीत किया था। यह तुकबंदी करने वाला पात्र था जो स्वयं को एक कवि मानता था।
एक बार जौहर साहब को विचार आया कि गोवा की यात्रा की जाए वो भी मुफ्त में। इसलिए उन्होंने ताबड़तोड़ पटकथा लिखी, ‘जौहर एंड मेहमूद इन गोवा।’
आईएस जौहर हमें पीजी वुडहाउस के पात्र लगते हैं। इस पात्र को केवल आनंद ही अभीष्ट है। अगर हम अपने जीवन पर विचार करें तो आईएस जौहर की बात में कुछ दम है।
ज्ञातव्य है कि विलियम शेक्सपीयर ने ट्रेजडी, कॉमेडी व इतिहास प्रेरित रचनाओं के साथ ही फार्स भी रचे हैं। हास्य की यह विधा फार्स ही हमें आईएस जौहर के दृष्टिकोण को समझने में सहायता करती है।