तलाश / राजनारायण बोहरे
सुबह सबेरे राम के साथ सुग्रीव, जामवंत, द्विविद, हनुमान आदि योद्धा बैठे और विचार करने लगे कि सीता को खोजने के लिए किस दिशा में दल भेजा जाये।
जामवंत ने बताया कि चारों दिशाओं में दल भेजे जाने चाहिए लेकिन सबसे बड़ा दल दक्षिण दिशा को भेजा जाये। क्योंकि उस दिन वह कालाकलूटा-सा आदमी दक्षिण दिशा को ही अपना रथ लेकर गया था।
यही सहमति बनी। जामवंत को दल का मुखिया बना कर दक्षिण दिशा में जो दल भेजा गया उसमें हनुमान, अंगद, नल, नील, द्विविद, मयंद, विकटास आदि वीर शामिल थे।
लगभग पूरा दल राम को प्रणाम करके निकल गया तो आख़िर में अंगद और हनुमान खड़े रह गये। राम ने अंगदसे कहा "अंगद, तुम अभी छोटे हो। इस यात्रा में जाने कितने कश्ट होंगे, जाने कैसे लोगों से पाला पड़ेगा। सो तुम मत जाओ।"
अंगद ने लाड़ भरे स्वर में कहा "आप मेरे पिता के समान में है प्रभु। अगर इस उम्र से मैं संकट और अन्जान परिस्थितियों से निपटना नहीं सीखूंगा तो कब सीखूंगा। आप चिन्ता मत करिये मेरे साथ हनुमानजी और गुरूदेव जामवंत जी भी जा रहे हैं न। उनके साथ मैं बहुत सुरक्षित और निश्चिंत हूँ।"
राम जानते थे कि संसार में तीन हठ प्रसिद्ध है-बाल हठ, राज हठ और त्रिया हठ। अंगद की यह हठ बालहठ है जो संभलना मुश्किल है, फिर युवराज होने के कारण इसमें राज हठ भी सम्मिलित है। वे लक्ष्मण की हठ के कई बार शिकार हो चुके थे। इस कारण उन्होंनेअंगद को ज़्यादा नहीं समझाया, हंस करसहमति देदी। हाँ हनुमान को संकेत करके अपने पास बुलाया।
हनुमान पास आये और चुपचाप खड़े हो गये।
राम ने उनसे कहा "हनुमान तुम भी साथ जा रहे हो। अंगद का ख़्याल करना, वह अभी बच्चा है। उसे हठ मत करने देना। किसी आपत्ति में न पड़ जाये वह। हाँ... एक बात और कहनी है तुमसे। अगर तुम किसी तरह सीता तक पहुँच सको, तो तुम्हे यह प्रमाण देना पड़ेगा कि तुम मेरे दूत हो। इसके लिए मैं तुम्हे अपनी मुद्रिका दे रहा हूँ। यह मुद्रिका देखते ही वह विश्वास कर लेगी कि तुम्हे मैंने भेजा है। तुम उसे मेरा यह संदेश सुनाना और उसके समाचार लेकर वापस चले आना।"
फिर राम ने हनुमान को अलग ले जाकर सीता तक पहुँचाने हेतु कोई संदेश दिया।
राम ने एक अंगूठी अपनी अंगुली में से निकाल कर हनुमान को दी, जिसे हनुमान ने अपने कांधे पर पहने जनेऊ में बड़े जतन से बाँध लिया और जय श्रीराम कहकर वहाँ से चल पड़े।
प्रवर्शन पर्वत से उतर कर यह झुण्ड सीधा दक्षिण की ओर मुंह कर चल पड़ा। आदिवासी लोग थे, ऊंचे-नीचे रास्ते और झाड़ियों में से चलने का अनुभव था सो तेज गति से चलने में कोई दिक्कत नहीं हुई। समय काटने के लिऐ लोग आपस में हंसीमजाक करने लगे, मस्ताने लगे। जामवंत का अनुशासन ज़रूर था फिर भी बानर लोग हो-हल्ला कर रहे थे।
अचानक कोई मुनि मिलता तो वे सब उसे घेर लेते। पूरे सम्मान के साथ उससे बात करते। पूछते भी कि क्या उन्हे पता है कि अयोध्या की राजरानी सीता को कोई अजनबी आदमी हर ले गया है! वह आदमी कौन है और कहाँ रहता है?
लेकिन कुछ भी पता नहीं लगता तो वे मुनि को छोड़ आगे बढ़ लेते।
सीता को हर ले जाने वाले काले-कलूटे मुस्तण्डे आदमी जैसा कोई मिलता तो वे उसे घेर लेते और गहरी पूछताछ करते। अगर वह कुछ ग़लत बोलता या बदतमीजी करता तो उसके नाक कान काट कर बानर उसे वही छोड़ देते और आगे चल देते।
इसी तरह चलते हुए वे लोग एक गहरी-सी घाटी में जा पहुँचे।
चारों ओर ऊंचे पहाड़ थे और किसी जन्तु या जानवर का नामोनिशान न था वहाँ। जामवंत को लगा कि इस घाटी में ऐसा कोई खतरनाक जन्तु तो नहीं रहता जिसने यहाँ के सारे पशु-पक्षी खा डाले हों!
जामवंत ने अपनी शंका बताई तो सब लोगों को यही सचाई लगी। उन सबने अपनी-अपनी गदायें संभाली और चारों ओर का निरीक्षण करने लगे।
कुछ देर बार सचमुच उन सबको सामने के पहाड़ में बनी एक चौड़ी-सी गुफा में एक विशाल जबड़े वाला खतरनाक-सा आदमी दिखा। ऐसा लग रहा था कि वह कोई बहुत ऊंचा और तगड़ा आदमी था जिसके बड़े और डरावने दांत यहीं से चमकते दिख रहे थे। वह अपनी लम्बी-सी जीभ अपने होंठों पर वह फेर रहा था। शायद वह नरभक्षी जाति का आदिवासी था। इतने लोग एक साथ देख कर उसे खाने का लालच दिख रहा होगा उसे।
हनुमान ने एक दुस्साहस किया। वे जामवंत से बोले कि हम जाकर उस नरभक्षी को ख़त्म कर देते हैं जिससे इस सुन्दर घाटी को उदासी में बदल देने वाला यह आदमी समाप्त हो जाये और यह घाटी फिर से गुलजार हो उठे।
जामवंत के मना करते-करते हनुमान और द्विविद व विकटास अपने हाथ की गदा चमकाते उस गुफा की तरफ़ बढ़े तो अंगद भी उधर बढ़ चले। जामवंत ने अंगद को टोका "तुमा ठहरो राजकुमार, तुम मत जाओ वहाँ।"
अंगद ने ऐसा प्रदर्शित किया कि उन्होंनेसुना ही नहीं कुछ। अपनी भागने की गति तेज कर वे सबसे आगेबढ़ गये। फिर तो हनुमान उनसे भी तेज गति से दौड़ने लगे।
उधर उस काले कलूटे खतरनाक आदमी ने अपनी ओर उत्साह के साथ दौड़ते कुछ लोगों को देखा तो उसके माथे पर बल पड़ने लगे। यहाँ के लोग उससे डरते हैं, ये कैसे लोग हैं जो ख़ुद इधर ही दौड़े चले आ रहे हैं।
जामवंत ने देखा कि उस अन्जान आदमी की ओर जाने वाले लोग माने नहीं हैं तो वे भी उनके पीछे दौड़ने लगे।
जब तक जामवंत ऊपर पहुँचते गुफा का नजारा बदल चुका था। हनुमान ने उस खतरनाक से आदमी को पकड़ कर वहीं पड़ी एक रस्सी से बाँध दिया था और वह आदमी नजरें नीची किये अपमानित-सा खड़ा था और बाक़ी लोग खी-खी करके उसकी हंसी उड़ा रहे थे।
जामवंत ने आदिवासियों की भाषा में उससे पूछा िकवह कौन है तो उसने चौंक कर आँखें उठाईं और अपना बड़ा-सा मुंह खोल कर बोला "मैं गीध जाति का आदिवासी हूँ। दूर उधर पंचवटी के पास का रहने वाला हूँ। इस घाटी में मेरा विमान गिर गया था सो यहंा रहने लगा हूँ।"
"तुमने ही यहाँ के सारे पशु-पक्षी खा डाले क्या?"
"हाँ" उसने जामवंत को जवाब दिया "मैं क्या करता, मैं घायल था, कहीं आ-जा नहीं सकता था सो जो मिलने लगा मैं पकड़ कर खाने लगा।"
"पंचवटी में तो गीध जाति के जटायू रहते थे।" जामवंत को सहसा याद आया।
वह चोैंका और बोल उठा "आप उन्हे कैसे जानते हो? वे तो मेरे भाई हैं।"
जामवंत बोले "अयोध्या के राजकुमार राम जब पंचवटी में रहते थे तब किसी काले कलूटे से आदमी ने गधे के सिर के चित्र वाले झण्डे लगे एक रथ में उनका अपहरण कर लिया था और जटायू ने हिम्मत जुटा कर उस दुश्ट चोर से मुकाबला किया था। लेकिन..."
"लेकिन क्या? ...कृपया बताओ मुझे।"
"लेकिन बेचारे जटायू उस लड़ाई में बुरी तरह घायल हुए और अन्त में वीरगति को प्राप्त हुये। श्रीराम ने ख़ुद अपने हाथेंा अपने पिता की तरह उनकी अंतिम क्रिया संपन्न की थी।"
"हाय मेरे भाई... " के लम्बे विलाप के साथ वह व्यक्ति रो उठा।
कुछ देर बाद स्वयं ही चुूप हो कर वह बोला "मैं संपाती हूँ। मैं और जटायु सगे भाई थे। अगस्त मुनि ने हम दोनांे को आसमान में उड़ने वाला विमान बनाना सिखाया था। हम दोनों ने अपने विमान बनाये और एक बार होड़ लगाई कि कौन सूरज को छू कर आता है। जटायु को ज़्यादा गर्मी लगी तो वह तो बहुत नीचे से वापस आ गया लेकिन मैं आगे बढ़ता गया और जब सूरज कुछ ही दूर रह गया था तो मेरा विमान धू-धू करके जलने लगा था। वहाँ से सीधा मेरा विमान यहीं आकर गिरा। मैं भी घायल हो गया था।"
संपाती एक क्षण चुप रहा फिर बोला "गधे के चित्र वाला झण्डा लगा कर तो केवल एक नीच आदमी चलता है-लंका का राजा रावण। वह स्त्रियों का बड़ा लोभी है। उसने अपने महल में हर जाति की स्त्री लाकर रखी हुई है। इस कारण लंका में हर महत्त्वपूर्ण पद पर स्त्री ही काम करती है। ज़रूर उसी ने सीता का हरण किया है।"
जामवंत को बड़ी ख़ुशी हुई। चलो असली चोर का पता लग गया। वेसंपाती से बोले "आप हमारा इतना भला और कीजिये िकवह जगह बताइये जहाँ लंका बिलकुल पास हो। हम लोग लंका जाकर सीता का पता लगाना चाहते हैं।"
संपाती बोला "मैं जिस गुफा में रहता हूँ उसमेंसे होकर आप आगे बढ़ेेंगे तो यही पहाड़ के दूसरी ओर जाकर समुद्र किनारे खुल जायेगी। समुद्र के इसी किनारे से लंका सबसे पास यानी चार सौ योजन दूर पड़ती है। मैंने लंका के जासूसों और दूसरे लोगों को अक्सर अपनी छोटी' छोटी पानी में छिपी नावों से वहाँ आकर उतरते देखा है।"
जाामवंत एक कुशल जासूस थे, उन्हे लगा कि हम सबको फंसा कर खाने के लिए यह संपाती जाल तो नहीं बिछा रहा? उन्होंनेद्विविद से कहा कि वह गुफा के रास्ते भीतर तक जाकर देख कर आये कि समुद्र तट कितनी दूर है। उधर उन्होंनेहनुमान से कहा िकवे भी एक कुशल विमान चालक हैं, ज़रा संपाती का विमान तो देखें कि उसमे ंकया खराबी है?
उधर द्विविद गुफा में आगे बढ़े इधर हनुमान ने गुफा के दरवाजे पर रखा वह दुर्घटनाग्रस्त विमान देखा जो संपाती ने सूरज के ताप से जल जाने केकारण नीचे गिरना बताया था।
हनुमान ने थोड़ी ही देर में कहा कि इस विमान का सिर्फ़ ऊपरी हिस्सा जला है, बाक़ी सारे यंत्र ठीक हैं। यदि इसे उड़ाया जाय तो धूप तो लगेगी, बाक़ी कोई दिक्कत नहीं होगी।
संपाती के कहने पर हनुमान ने विमान को चालू किया और ज़मीन से ऊपर उठा कर पूरी घाटी का एक चक्कर लगाने लगे।
दल के लोग जो दूर बैठ कर यह तमाशा देख रहे थे, उछल-उछल कर हनुमान का हौसला बढ़ाने लगे।
जब हनुमान ने वापस आकर विमान अपनी जगह रखा तब तक द्विविद भी लौट आये थे, उन्होंनेबड़े जोश के साथ जामवंत से कहा कि बस थोड़ी ही दूर पर समुद्र का किनारा दिखता है। पूरा रास्ता साफ़ और सुरक्षित है। खतरे और साज़िश की कोई बात नहीं है।
फिर क्या था! जामवंत ने इशारा किया और दल के बाक़ी लोग भी गुफा की ओर बढ़ आये। जामवंत ने अब जाकर संपाती की रस्सियाँ खोलीं और बोले " संपाती जी, आप इतने डर गये हो कि अपना विमान दुबारा देखा तक नहीं। आपका विमान पूरी तरह सुरक्षित है। आप पंचवटी की ओर जाइये और हम लोग समुद्र तट पर पहुँच रहे हैं।
उधर संपाती का विमान चालू हुआ और ज़मीन से उड़ कर एक पक्षी की तरह उड़ान भरता हुआ पहाड़ के उस पार निकल गया। इधर जामवंत का यह दल गुफा के रास्ते समुद्र किनारे तक जा पहुँचा।
वे लोग समुद्र की रेत पर बैठ गये और बड़ी आशा भरी नजरो ंसे समुद्र के उस पार देखने का प्रयास करने लगे। लेकिन समुद्र बहुत विशाल था। जामवंत ने बताया िक इस समुद्र के चार सौ योजन पार तक न तो किसी की नज़र जा सकती न ही पूरा दल इतनी दूरी तैर कर या छलांग लगा के पार कर सकता है।
द्विविद ने कहा कि क्यों न हममें से कोई एक आदमी हिम्मत करे और समुूद्र पार करके लंका पहुँचे।
विकटासि ने भी इनका समर्थन किया। हनुमान तो एक तरफ़ जा बैठे थे। वे आँख मूंदे जाने किस ध्यान में डूबे थे। नल और नील ने कहा कि हम सबके पास समय नहीं है नहीं ंतो हम इस समुद्र पर एक तैरता हुआ पुल बना सकते थे और सारे दल को लंका तक ले जा सकते थे।
अन्त में जामवंत ने ही निर्णय लिया कि कोई एक आदमी समुद्र पार करके लंका तक जाये और अकेला अपनी बुद्धि और ताकत के दम पर सीता का पता लगाये।
फिर क्या था, हर वीर ने अपनी-अपनी ताकत का अंदाजा लगाना शुरू किया।
नल बोले, "मैं पचास योजन तक जा सकता हूँ। इसके बाद मझे एक रात रूक कर आराम करना पड़ेगा।"
नील को पिचहत्तर योजन तक जाने की हिम्मत थी तो द्विविद को सौ योजन। विकटास दो सौ योजन जा सकते थे।
अंगद खड़े हुए और बोले "हे गुरूदेव, मैं चार सौ योजन केइस समुद्र को आसानी से पार कर सकता हूँ। बस यही लगता है कि वहाँ पहुँचते-पहुँचते मैं थक जाऊंगा और कई दिन आराम करने के बाद इस लायक हो पाऊंगा कि कोई काम-धाम कर सकूं। इसलिए लौटने में कितना समय लगेगा इसमें मुझे संशय है।"
जाामवंत बोले "अंगदजी, आप तो हम सबके नेता हैं। हम आपको कैसे भेज सकते है? फिर वहाँ मंदोदरी आपको मिलेंगी जो आपकी मौसी हैं। आपके नाना-नानी भी इन दिनों लंका में हो सकते हैं। इसलिए आपका जाना उचित नहीं है।"
अंगद बोले "फिर कौन जायेगा?"
जामवंत बोले "मैं बूढ़ा हो गया हूँ नहीं ंतो मेरे लिए यह दूरी कोई महत्त्व नहीं रखती थी।"
इतना कह कर उन्होंनेहनुमान की ओर देखा और बोले "हे हनुमान, आप चुप साध कर क्यों बेठे हो वीरवर! ... हम सबमें आपही ऐसे स्वस्थ्य और बुद्धिमान व्यक्ति हैं जो चार सौ योजन का समुद्र पार करके लंका तक बिना थके जा सकते हैं और वहाँ पहुँच कर बिना थके सीताजी को ढूढ़ सकते हो।"
हनुमान ने देखा कि सारा दल उनकी ओर बड़ी आशा भरी नजरो ंसे देख रहा है तो वे उठे और एक ज़ोर दार अंगड़ाई लेते हुए ज़ोर से नारा लगाया "जय श्रीराम"
सारे बानर वीरों ने उनके स्वर में स्वर मिलाया-"जय जय श्रीराम!"
जामवंत ने कहा "हनुमानजी, आप मेरे सबसे प्रिय गुप्तचर हैं। आप समुद्र को लांघने की तैयारी कीजिये।"
हनुमान ने पूछा "आप मुझे यह तो बताओ कि मुझे लंका जाकर करना क्या है?"
जामवंत बोले, "आप तो किसी भी तरह सीताजी का पता लगा कर उनसे मुलाकात करना। उन्हे श्रीराम की कुशलता का समाचार सुनाना, उनकी कुशल जानकर चले आना। इतना ज़रूर करना कि रावण की सेना में किस श्रेणी के कितने सैनिक हैं, यह जानकारी ज़रूर लेते आना।"
"ठीक है जामवंत जी, आप लोग धीरज धर के मेरा इंतज़ार करना। मैं जल्दी ही लौट आऊंगा।" हनुमान ने कहा तो जामवंत ने तुरंत कहा "लंका में ज़रूरत पड़े तो तुम्हारी दो लोग मदद कर सकते हैं। एक तो रावण के भाई विभीषण हैं और दूसरी है रावण की एक महिला सेैनिक त्रिजटा। आप उसे आसानी से ढूढ़ लोगे क्येां कि वह सीताजी की सुरक्षा में तैनात है और फिर ख़ास पहचान यह कि उसके सिर पर बालों की तीन चोटियाँ होंगी। हमारे जासूसों ने ख़बर दी है कि ये दोनों लोग रावण से गुस्सा हैं सो हमारी मदद कर सकते हैं।"
"ठीक है जामवंत जी, मैं वहाँ की जो स्थिति होगी उसके अनुूसार काम करूंगा।" इतना कह कर हनुमान उछल कर समुद्र तट के ऊंचे से टीले पर चढ़ गये। वहाँ से उन्होंनेसमुद्र का नजारा देखा। फिर टीले से नीचे उतरे और बहुत पीछे तक जाकर तेज गति से दौड़ते हुए आये और एक लम्बी छलांग मारी।
सब लोग चकित से उन्हे देख रहे थे कि हनुमान की लम्बी छलांग की तो कोई सीमा ही न थी, वे अभी भी समुद्र के ऊपर रहते हुए ऐसे आगे बढ़ रहे थे मानो आसमान में उड़ रहे हों। जब तक वे दिखते रहे बानर पूरे उत्साह से देखते रहे, फिर जब आँख से ओझल हो गये तो सब ने एक दूसरे की ओर देखा।
जामवंत को लगा कि इंतज़ार करने में समय काटना मुश्किल होगा सो उन्होंनेअंगद और नल, नील से कहा कि आप लोग बैठे क्यों हो? जाओ रेत पर खेलो-कूदो। अगर मन लगे तो समुद्र तट पर फैले इन सीप और घोंघों को देखो, इनमें ही मोती जैस महंगा रत्न पैदा होता है। आप लोगों में से देखें तो कौन कितने मोती ला सकता है।
दिन डूबने लगा तो जामवंत ने सब लोगों को बुलाया और कहा कि हम लोगों को अँधेरा होने के पहले उस गुफा तक चलना चाहिए जहाँ संपाती रहता था। वह जगह हम लोगों को रात में आराम करने के लिए बहुत ठीक जगह है। जिन लोगों को भूख लगी हो उन्हे उसी घाटी में ख़ूब सारे फल मिलेंगे। चलो अब देर करना ठीक नहीं है।
वे सब पहाड़ की गुफा के समुद्र तट वाले द्वार से अंदर प्रवेश कर के संपाती के रहने वाली जगह पहुँच गये। कुछ बानर फल खाने निकल गये तो कुछ गुफा की साफ-सफाई करके उसे सोने लायक बनाने लगे।
पहरे पर कुछ बानरों को लगा कर जामवंत ने सबको सोने का हुकुम दिया।
सब दिनभर के थके हुए थे सो लेटते ही नींद लग गई।
पता ही न लगा कि कब रात हो गई और कब सुबह हुई।
सुबह सूरज के गोले के आसमान में चढ़ते-चढ़ते सब लोगों ने घाटी के पेड़ों से पेट भर के फल खाये और कुछ देर बाद उसी गुफा के रास्ते वे समुद्र के किनारे जा पहुँचे। अब उन सबको हनुमानजी के लौटने की प्रतीक्षा थी।
बानर लोग खेलते-कूदते रहे तो दूसरे लोग आपस में कुश्ती करके एक दूसरे की ताकत को परखते रहे। फिरभी समय काटे नहीं कट रहा था। सब बार-बार समुद्र की ओर देखने लगते थे। एकाएक अंगद को लगा कि समुद्र में कोई बड़ी-सी चीज लहरों के भरोसे डगमगाती हुई किनारे की ओर आ रही है। उन्होंनेजामवंत से कहा तो उन्हे भी लगा कि सचमुच लाल से रंग में डूबी कोई काली-सी चीज वहाँ तैररही है।
वे लोग सतर्क होकर उधर ही ताकने लगेै
कुछ ही देर में समुद्र की बहुत बड़ी लहर के साथ एक बड़ी-सी चट्टान के आकार की पिलपिली-सी चीज किनारे पर आकर गिरी। वे सब दूर-दूर जाकर बैठ गये और उसचीज को देखने लगे।
बहुत देर तक उस काली-सी चीज में कोई हलचल नहीं दिखी तो जामवंत ने इशारा किया। बानर योद्धा मयंद ने अपनी भारी भरकम गदा संभाली और वे उस चीज की ओर सावधानी पूर्वक बढ़ने लगे। अब सबको साफ़ दिख रहा था कि वह एक काले रंग की मछली या ऐसी ही कोई अन्य जलचर प्रजाति का जीव है, जिसके चट्टान जैसे शरीर में से नुकीले कांटो से भरी कई लम्बी-लम्बी पूंछें-सी दिख रही थीं। जलचर की देह एकदम काले रंग की थी जो इस वक़्त लाल रंग की हो गई है।
मयंद ने एक पत्थर उठाया और उसकी ओर दूर से ही फेंका। परन्तु उसमे ंकोई हलचल न थी। हिम्मत बढ़ी तो वे और पास जा पहुँचे। लेकिन वह जीव तो एकदम शांत था। मयंद ने एक उछाल भरी और उसके ऊपर जा चढ़े। अब भी वह जीव ज्यों का त्यों पड़ा हुआ था।
मयंद ने संकेत किया तो बाक़ी लोग भी उधर बढ़े।
बहुत पास जाने पर सबने देखा कि ये तो सचमुच एक बड़े विशाल प्राणी की लाश है जो अब मर चुका है। द्विविद को शंका हुई कि कहीं हनुमानजी से इसकी भिढ़न्त तो नहीं हो गई और असके चारों ओर जो खून लगा है, वह हनुमान का तो नहीं है। उन्होंनेअपनी शंका जामवंत को बताई तो चिन्तित हो कर जामवंत ने उस जन्तु की लाश का बारीकी-सी परीक्षण शुरू कर दिया। वे बहुत देर तक इधर-उधर ढड़काते हुए उस लाश को देखते रहे फिर अन्ततः अपना निश्कर्श बताते लगे तो सब ध्यान से सुनने लगा।
"सब लोग सुनो, ये जीव जल में रहने वाला एक विशाल जलचर जन्तु सिंेघिका है, जिसकी कई आँखे होती हैं ये देखो।" लोगों ने देखा सचमुच कई बड़ी-बड़ी आँखें थी उस जन्तु की लाश में।
"इसकी ये कांटेदार आठ भुजायें होती हैं, इन भुजाओं को चारों ओर फेंक सकता है, ऊपर की ओर उछाल सकता है। इनकी मदद से अपने चारेां ओर की किसी भी चीज को यह जन्तु खींच कर खा डालता है।" जामवंत बारीकी से समझा रहे थे और सब लोग बड़े ध्यान से देख रहे थे।
द्विविद ने फिर कहा "इस जन्तु ने कहीं हमारे हनुमानजी का तो कोई अनिश्ट नहीं कर डाला?"
"नहीं, ये जो खून है, इसी का है। देखो इसका पेट खाली है और इसके सिर पर कोई भारी चीज गिरने के निशान है जिसमें से अभी भी लगातार खून बह रहा है। इसकी भिढ़न्त तो हमारे हनुमान जी से ज़रूर हुई होगी। ऐसा लगता है कि केशरीनंदन ने अपनी भारी-भरकम गदा से इसका काम-तमाम कर डाला है।"
जामवंत की बात से सब निश्चिंत हुए।
छोटे लोग दुबारा खेल-कूद में लग गये तो बड़े लोग दोपहर के भोजन के लिए फल लाने संपाती की घाटी में चले गये।
उनके लौटने पर सबने डट कर भोजन किया और आलस से भरे हुए खुली रेत पर यहां-वहाँ पसरने लगे। जामवंत ने विकटास को समुद्र की ओर लगातार निगाह रखने का जिम्मा सोंपा और ख़ुद भी लेट गये।
लगभग सूरज अस्त ही हो रहा था कि विकटास ने देखा कि दूर समुद्र में कोई व्यक्ति तैरता हुआ दिख रहा है।
जामवंत को जगा कर उन्होंनेयह नयी बात बताई तो जामवंत भी बड़े ध्यान से ेदेखने लगे। उस तैरते हुए व्यक्ति के हाथ में चमचमाती गदा दिखी तो जामवंत ख़ुशी से उछल पड़े और बोले "जय श्रीराम! ... आप लोग डरो मत। हमारे हनुमान जी लंका से लौट आये हैं।"
जिसने भी सुना वह उठ कर खड़ा हो गया। सबकी निगाहें समुद्र की ओर लगी थी। मयंद और द्विविद से रहा नहीं गया तो वे समुद्र में कूद गये और तैर कर हनुमान की ओर जाने लगे
यहाँ समुद्र किनारे खड़े लोग तालियाँ बजाते हुए हनुमान का स्वागत कर रहे थे।
पानी में ही द्विविद और मयंद हनुमान से गले लगकर मिले और वे तीनों वापस किनारे की ओर तैरने लगे।
तट पर आने पर हनुमान उछल कर जामवंत के पास आ पहुँचे और उनके पैरों में झुकने लगे तो उन्होंनेझट से पकड़ कर उन्हे गले लगा लिया।
अंगद ने दोपहर के भोजन से बचे कुछ फल सामने पेश कर हनुमान का सत्कार किया तो हनुमान ने एक फल ले लिया और मुस्करा के अंगद का गाल थपथपा दिया।
नल बहुत उत्सुक थे कि लंका में क्या हुआ? सो उन्होंनेपूछा "हनुमानजी, जल्दी से बताइये कि आपने यहाँ से जाने से लेकर लौटने तक क्या-क्या किया?"
सच्ची बात तो यह थी कि सबको उत्सुकता थी, सो हनुमान ने बाक़ी लोगों की आंखेंा में भी वैसे ही भाव देखे तो तुरंत बोले "मैं सब सुना दूंगा, ज़रा धीरज धरो।"
जामवंत बोले "दिन डूबने वाला है और कथा लम्बी होगी। ऐसा करते हैं कि चल कर संपाती की गुफा में आराम करते हैं, वहीं हनुमानजी हमको सारा वृतांत सुनायेंगे।"
सबको यह बात बहुत अच्छी लगी सो सारा दल उठ कर गुफा के लिए चल पड़ा।
गुफा में अँधेरा था सो जामवंत ने नील से कहा "अपनी कारीगरी से ऐसा कुछ बंदोबस्त करो कि उजाला हो जाये। क्योंकि कथा सुनाते हनुमान जी के हाव-भाव और मुखमुद्रा देखने योग्य होगी।"
उजाले का इंतज़ाम होने के बाद सब लोग एक दूसरे से सटकर नीचे ज़मीन पर आराम से बैठ गये और हनुमान एक ऊंची जगह पर जा बैठे, जहाँ से सब लोग उन्हे भली प्रकार देख सकते थे।
उन्होंनेबहुत गंभीर आवाज़ में अपना किस्सा सुनाना आरंभ किया।