तस्वीर / हेमन्त शेष
उनका सुनहरा महंगा फ्रेम धुंधला हो कर तीन-चार जगह से चटख गया था, शीशों पर तो इतनी धूल जमा हो गयी थी कि भीतर देख पाना ही नामुमकिन था. पीछे शायद बड़ी-बड़ी मकड़ियों के घर भी थे- जिनसे मुझे बड़ा डर लगता था. सालों से तीनों की झाड़-पौंछ नहीं की गयी थी- दीवाली पर भी नहीं, और वे हमारे हमारे ‘ड्राइंगरूम’ की न जाने कब से शोभा बढ़ा रहीं थीं! एक के बराबर एक लगीं तीन तस्वीरें- जिन्हें दादा पता नहीं कहाँ से लाये थे, दीवानखाने की सबसे सामने वाली दीवार पर इतने ऊपर लगीं थी कि मैं अपने ठिगने कद की वजह से उन्हें ठीक तरह देख भी नहीं पाता था!
मैंने दादा से, घर की सबसे पुरानी इन तस्वीरों के बारे में कई बार पूछा भी, पर कभी उन्होंने मेरे सवाल का कभी जवाब नहीं दिया कि आखिर वे तीन तस्वीरें हैं किन की? लिहाज़ा, मैंने दादा से पूछना ही छोड़ दिया, पर घर के सबसे महत्वपूर्ण कमरे में इन तीनों की मौजूदगी से, मुझे भीतर ही भीतर जो भयंकर कोफ़्त थी, आखिर तक बनी रही!
पर वह सुबह जिंदगी में मैं शायद कभी नहीं भूल सकता, जब मैं स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहा था, दादा बेहद उत्तेजित, हाँफते हुए दीवानखाने में आये. उन्होंने बगल में बेलबूटेदार चिकने कागज़ में खूबसूरत लाल सुर्ख रिबन में बंधी एक चौकोर सी चीज़ दबा रही थी. उनका झुर्रियों भरा चेहरा किसी अदम्य उत्साह से दमक रहा था. आते ही उन्होंने, मुझे सब काम छोड़ कर घर की सबसे लंबी स्टूल, जिसे हम मज़ाक में “ ऊँट-कटेली ” कहते थे, आँगन से खींच कर लाने का हुक्म दिया!
मैंने आदेश की फ़ौरन पालना की! दादा आश्चर्यजनक फुर्ती से “ऊँट-कटेली” पर जा चढ़े, दीवार पर टंगी तीनों तस्वीरें उतार कर उन्होंने एक के बाद एक मुझे पकड़ाईं, और नीचे उतर आये.
मैं इतना आश्चर्यचकित था कि बस!
बरसों में वे तीनों तस्वीरें पहली दफा ज़मीन पर उतरीं थीं- पर ताज्जुब.... उनके पीछे न तो मकड़ियों के जाले थे, न काली बड़ी-बड़ी चिकत्तेदार मकड़ियाँ, जिनसे मुझे बेहद डर लगता था! तस्वीरें जहाँ से उतारी गयी थीं, आसपास की धूल ने दीवार पर बस तीन शानदार फ्रेम बना दिए थे- अपने हमशक्ल. कमरे की दीवारों का रंग-रोगन उड़ जाने की वजह से तस्वीरों के नीचे रहे आये हिस्से, ज्यादा आकर्षक और गहरे दिख रहे थे. असल में वही रंग रहा होगा- हमारे दीवानखाने की दीवारों का- मैंने सोचा और स्कूल जाने का झंझट फ़ौरन छोड़ दिया!
दादा ने कहा – “जानता है, चुनावों के बाद आज चौथी दफा हमारे राज्य के नए राजा बदले हैं! अपने राशन की दुकान पर नए नेताजी की तस्वीरें मुफ्त में बांटी जा रही हैं.....सुनहरे फ्रेम में मंढीं....उन्होंने मुझे भी मांगे बिना- ये दे दी....देख तो सही कैसी शानदार तस्वीर है...पुरानी तस्वीरों की जगह कैसी फबेगी- ये अपने ड्राइंगरूम में...” और दादा ने लाल फीता एहतियात से खोला, चिकना कागज हटाया और मैंने देखा, एक बेहद मंहगे, बेलबूटेदार सुनहरे फ्रेम में जड़ा एक गंजा होता, काले कोट में, टेढी लंबी सी नाक वाला हास्यास्पद सा आदमी मेरे सामने था!
मैंने कोई जवाब नहीं दिया, मुड कर मैं दीवार से उतारी गयी पुरानी तीनों तस्वीरों के पास गया, जोर से फूंक मारी और जेब से रुमाल निकाल कर तीनों को साफ़ कर डाला!
राज्य के नए मुखिया सूरत देख कर मैं लगभग सन्न रह गया.
उन तस्वीरों- चारों में वही, वही-हू-ब-हू बिलकुल वही मेरे सामने था- एक गंजा होता, काले कोट में, टेढी लंबी सी नाक वाला हास्यास्पद सा आदमी!