तहजीब का तमाशा / भाग 1 / पंकज प्रसून

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एक पैगाम तेरे नाम

ए शहर-ए लखनऊ, तेरे गुम्बद-ओ- मीनार में एंट्री मारते ही जियरा धुकधुकाने लगता है, क्या पता कब कोई ईंट बेसाख्ता मेरे सिर का दीदार कर ले और मेरे अदबी मगज का कचूमर निकल जाए, मैंने पुरातत्व विभाग से शिकायत की, "आप लोग बैठे-बैठे मीनार क्यों गिरा रहे हैं"वो बोले, " बिलकुल उसी तरह जैसे आप लोग बैठे-बैठे शायरी की मयार गिरा रहे हैं। मीनार गिर जाए तो रिपेयर हो जाती है और अगर मयार गिर जाती है तो कोई इंजीनियर इसे ठीक नहीं कर सकता।

ए धरोहरों के सरताज, तुम्हारे साज-सज्जा के लिए सरकार के साथ आम जनता भी बहुत गंभीर है। तभी तो प्रेमी युगल तुम्हारी दरो दीवार पर प्यार की इबारत लिखने का कोई मौका नहीं चूकते, तहज़ीब के नुमाइंदे भी गाहे-बगाहे पान की पीक से बनी सुन्दर कलाकृतियाँ तुम्हारी दीवारों पर सजा ही देते हैं।

ए निशाने-ए हिंद, तू सही ही कहता है "मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं" पिछले दोनों मैं नुक्कड़ के पास लगे कूड़े के ढेर और बजबजाती नाली के बीच खड़े होकर मुसकी काट रहा था, तभी सभासद के आदमी मुझे उठा ले गए, उन्हें एक ऐसे ही चुनाव प्रचारक की जरूरत थी। अब मुझे विकास कार्यों के प्रचार-प्रसार में लगाने वाले हैं, चलिए मुस्कुराने के बहाने गर्मियों में आम चूसने का इंतजाम तो हो ही गया।

ए नज़ाकत और नफासत के सरपरस्त, कहते हैं 'पहले आप' के चक्कर में नवाब साहब की ट्रेन छूट गयी थी, ट्रेन तो अब भी छूटती है ज़नाब, पर 'पहले मैं' के चक्कर में। भला हो रेलवे के दलालों का जिन्हें तहज़ीब को ज़िंदा रखने का ठेका मिला हुआ है जो पहले आप की तर्ज़ पर अर्थ लेकर ही सही, बर्थ तो दिला ही देता है।

ए तमद्दुन के सिपाही, कुछ खाटे लखनवी मुझ पर आरोप लगाते हैं कि मैं यहाँ की कशीदाकारी का कायल नहीं हूँ, भाई, चिकन-ज़रदोज़ी मेरे बूते से बाहर है, बन्दा तो उसी कपडे का हिमायती है जिसे बारगेन करके खरीदा जा सके। जब पटरी दुकानदार कमीज का दाम पांच सौ बताकर उसे पचास रुपये में मेरे शरीर के हवाले करता है तो जो आत्मिक संतुष्टि की प्राप्ति होती है वह जोश और मजाज़ के के अल्फाजों में भी बयां नहीं की जा सकती।

तो शहर-ए लखनऊ, तेरे दामन में मोहब्बत के फूल-खिले न खिले पर मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग खूब फल-फूल रही हैं। अब तेरी गलियों में गुप्त रोग विशेषज्ञों के पते मिलते हैं। फ़रिश्ते तो आते पांच साल में एक बार गलियों को गुलज़ार करने आ ही जाते हैं।

सीखिए तहजीब के इस शहर से

लखनऊ के नवाब कभी निगेटिव नहीं सोचते थे। तो हम क्यों सोचें? राजधानी को लेकर हमको भी अपनी सोच पोजिटिव रखनी चाहिए। पोजिटिव सोच मन प्रसन्न रहता है। तो साहिबान आइये हम भी खुशफहमी पालते हैं।

सबसे पहले शहर की सड़कों के बारे में-सड़कों पर लगने वाला जाम हमें धैर्यवान बनाता है। उस उक्ति की याद दिलाता है कि जल्दबाजी का काम शैतान का होता है। धीरे धीरे रेंगना धीरे से सब होय। सड़क पर गड्ढे हमको डिजास्टर मैंनेजमेंट सिखाते हैं। जीवन में अचानक आने वाली मुसीबतों का सामना करना सिखाते हैं। हमारी चेतना में वृद्धि करते है हमें सतर्क बनाते हैं। ये टूटी सडकें एक तरह की चलती फिरती व्यायामशालाएं हैं। जिन पर पर गाड़ी दौड़ाने से हमारी मांसपेशियां मजबूत होती हैं। नसों में रक्त का प्रवाह समुचित रूप से होने लगता है। दबी हुयी नस खुल जाती है। लो ब्लड प्रेशर वाला मरीज यदि इन सड़कों पर नियमित रूप से चले तो उसका बीपी नार्मल हो जाएगा।

इसी तरह शहर में नित बन रहे ओवर ब्रिज अतिक्रमण का नया द्वार खोलते हैं। ब्रिज के नीचे दूकान सजाने के लिए प्रेरित करते हैं। शहर की सिटी बसें हमको स्लिम एंड ट्रिम बनाती हैं। जो मरीज मोटापे से पीड़ित हों उनको नियमित रूप से सिटी बस की यात्रा करती चाहिए। पेट की चर्बी धीरे धीरे घिस जायेगी। इसके अतिरिक्त आपको अभावों में जीना आ आयेगा। वन बी एच के फ़्लैट में मोहल्ले के साथ रहने का हुनर सीख जायेंगे। पार्क में बैठे प्रेमी युगलों से निर्भीकता सीखी जा सकती है, साधना सीखी जा सकती है। मैरीन ड्राइव पर बाइक पर करतब दिखाते स्टंटबाजों से यह सीखा जा सकता है कि जान हथेली पर लेकर चलना किसे कहते हैं। ऐसे युवकों को बिना किसी टेस्ट के सीधे भारतीय सेना में भरती कर देना चाहिए। क्योंकि यह थल सैनिक के साथ साथ वायु सैनिक का कार्य भी कर डालेंगे।

मेडिकल कालेज के जूनियर डाक्टरों की हड़ताल प्राइवेट नर्सिंग होम के महत्व को रेखांकित करती है। साथ ही झोला छाप डाक्टरों के प्रति हमारे विश्वास को स्थापित करती है। सड़क पर बेख़ौफ़ बैठा हुआ सांडों का झुण्ड हमको कलात्मक ड्राइविंग सिखाता है। हम भले ही ड्राइविंग टेस्ट पास करके लाइसेंस हासिल कर लेते हों पर असली ड्राइविंग टेस्ट इस साड़ों द्वारा लिया जाता है। बेतरतीब बैठे हुए तीन साड़ों के बीच से अगर आप अपनी गाड़ी निकाल ले गए तो समझिये कि आप दुनिया की हर संकरी सड़क पलक झपकते पार कर जायेंगे।

पतंगे हमको यह सन्देश देती हैं कि हमको हमेशा संस्कारों की डोर में बंधे रहना चाहिए क्योंकि जब एक निर्जीव कागज़ की कटी पतंग बिजली की हाई टेंशन लाइन को ध्वस्त कर सकती है तो एक सजीव संस्कारों से कटा हुआ आदमी पूरे समाज के लिए टेंशन का सबब बन सकता है।

लखनवी ठेले वाले

शहर का मौसम बदलता है पर ठेले वाले नहीं बदलते सर्दियों में चाय तो गर्मियों में गन्ने के जूस के साथ हाज़िर रहेंगे। इनको लेकर अक्सर यह शिकायत रहती है कि ये सड़कों पर जाम लगाते हैं। चौक पर जाम लगाने वाले एक ऐसे ही ठेले वाले ने बताया कि लखनऊ तो संकरी गलियों का शहर रहा है। और सडकें अगर चौड़ी हो गयीं तो असली लखनऊ तो मिट जाएगा। हम ठहरे पुराने लखनवी। इसकी असली पहचान खोने नहीं देंगे। मैंने फिर पूछा-“आप मीर और जोश की ज़मीन पर चाट का ठेला लगा रहे हैं और लखनवी होने का का दावा कर रहे हैं”वह बोला-यहाँ के शायर जब मीर और जोश की ज़मीन कर शायरी कर सकते हैं तो क्या मैं एक ठेला नहीं लगा सकता, जितना अतिक्रमण शायरी में है साब, उतना हम ठेले वालों का नहीं है। ” मैं उसके ज्ञान के आगे मुंह बाये खडा था, “और सुनिए साब वो हम ठेले वाले ही हैं जिन्होंने इस महंगाई के दौर में आम आदमी का बजट डगमगाने नहीं दिया। जबकि हमारे ठेले बहुत बार डगमगाए हैं। कभी नगर निगम ने ठेला उल्टा है तो कभी पुलिस वालों ने। मैंने कहा, “ अवैध रूप से लगायेंगे तो ऐसा होगा ही। ” वो बिफर उठा-“ रोज पचास रुपये पुलिस को देता हूँ यानी क़ानून हमारे साथ है फिर मेरा ठेला अवैध कैसे हो सकता है। ” मैंने पूछा, फिर वो तुम्हारा ठेला उलट क्यों देते हैं?बोला- यह दो स्थितियों में होता है जब किसी मंत्री जी की गाड़ी हमारे बीच फंस जाती है या फिर तब जब हम क़ानून को बोनस नहीं देते है। मैं आश्चर्य चकित था। बोनस से उसका तात्पर्य कुछ टिक्की और बतासों से था जो प्रतिदिन पुलिस को खिलाने पड़ते थे। मैंने हार नहीं मानी, ” लेकिन हाई कोर्ट ने आदेश दे दिया है अवैध ठेलों को हटाने के लिए। कभी भी तुम्हारे ठेले हटाये जा सकते हैं। वह बोला-हमने आपदा प्रबंधन सीख लिया है साब, तमाम बार हम उजड़े लेकिन फिर बस गये। एक आदेश क्या कर लेगा हमारा। हमारे ठेले तो यहाँ की संस्कृति में रच बस गए हैं। क्या आप बारगेन करना छोड़ देंगे? सुन्दर सस्ता और टिकाऊ प्रवृत्ति को त्याग देंगे। ? मैं उसके तर्कों से हतप्रभ था। तभी वह यह कहते हुए अपना ठेला समेटने लगा कि अभी बहुत काम है शहर में कुछ नए ओवरब्रिज बन गए हैं। कुछ भाइयों के ठेले सेट कराने हैं साथ ही क़ानून को भी सेट करना है।