ताड़ वृक्ष की छाया / जगदीश कश्यप
हर काम समय से करने के पाबंद दोनों कान्वेंटी बच्चे अभी जाग रहे थे. मिकी ने वाल-क्लाक में पौने ग्यारह बजते हुए देखे तो कह उठा -- ‘बेबी, मम्मी...ना॓ट कम...सो फार !’
‘मिकी लैट मी स्लीप.’
‘बेबी ये का॓ट रेड हैंडिड क्या है? वे सामने वाली कोठी में मेरा क्लास मेट अनु कह रहा था, हमारे पापा किसी से दस हजार रुपया ले रहे थे, आई मीन टेन थाउजेंड रूपीस.’
‘अरे पापा का कुछ नहीं होगा. मम्मी इसलिए स्टेनो अंकल के साथ अपने ब्रदर के यहां गई है. अंकल स्पेशल सैक्रेटरी हैं. मम्मी कहती है कि मिनिस्टर उनकी हर बात मानते हैं.’
‘पर तुमने नहीं सुना, स्टेनो अंकल कह रहे थे, मेमसाहब केस सीरियस है. खुद जाल बिछाकर पकड़वाया है.’
तभी कार के हार्न की आवाज सुनाई दी. दोनों बच्चे फुदककर उठ खडे़ हुए और कारीडोर में आकर नीचे झांकने लगे. मम्मी के पास स्टेनो अंकल खड़े थे. मम्मी जोर-जोर से कह रही थी, ‘तुम्हें उस मिनिस्टर से उलझने की क्या जरूरत थी? यू डांट नो, वो कांट्रेक्टर का आदमी है. एट लास्ट टेंडर तो उसी को मिला. उसके थ्रू काम हो रहा था तो क्या तुम्हें नहीं मिलता कुछ? अगर माई ब्रदर बीच में नहीं पड़ते तो वह मिनिस्टर का बच्चा कब मानने वाला था. तुम्हारा ये एज-पर-ला॓ हम सबको ले डूबेगा.’
‘मैम साहब!’ स्टेनो ने संकेत किया तो मम्मी-पापा ने ऊपर की ओर देखा. पापा अपमानित ढंग से मुस्करा उठे और बच्चों को टा-टा किया. मम्मी लगभग चीखती हुई बोली—‘मिकी बेटी, तुम लोग अभी जाग रहे हो-डेमफूल! गो-टू-बेड!’
दोनों बच्चे चुपचाप बिस्तर की ओर बढ़े. मायूस कदम लिए. उन्होंने पापा के चेहरे पर ऐसी अपमानित मुस्कराहट पहली बार देखी थी. तिस पर उनका बेवजह टा-टा करने का आखिर क्या मतलब था?