तानिश / पद्मा राय
आज की बात हर दिन से कुछ हटकर है। पूरी क्लास में अकेला तानिश और कोई नहीं। संयोग कुछ ऐसा बना कि सारे बच्चे किसी न किसी वजह से क्लास से बाहर हैं और हमारे तानिश महाराज अपने पूरे वजूद के साथ अकेले अंदर। तानिश की कुर्सी दरवाजे के काफी करीब है। जहां से वह आने जाने वालों को आसानी से देख सकता है इसलिये यह जगह उसे पसंद भी बहुत है। यहां से वह ऊपर होम मैनेजमेण्ट के भी चाहे अनचाहे नजारों पर भी एक आध नजर दौडा लेता जहां से कभी किसी महिला की आवाज तो कभी किसी बच्चे की डरावनी चीखें भी सुनी जा सकतीं थीं। कई बार उसके चेहरे पर छाये भावों को देखकर लगता कि उसका मन जल्दी से बडा होने का करता है ताकि वह अपने हिसाब से जी सके. इस बोरिंग पढाई लिखाई से उसे मुक्ति मिल जाये और अपने मन मुताबिक जगहों पर वह अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके.
अलबेला तानिश अनूठा भी है। आप सोच भी नहीं सकते कि किस बात का जवाब वह किस तरीके से देगा। बोलते समय उसके सिर्फ़ होंठ ही नहीं हिलते बल्कि होंठों के साथ हाथ, आंखें, भवें और यहाँ तक कि नाक भी ऊपर नीचे होती रहती है। शरीर का हर हिस्सा बोलता हुआ मालूम होता। चेहरा तो उसका प्यारा है ही लेकिन जब मुस्कुराता है तब अपनी मटकती आंखों के साथ वह और भी लुभावना हो उठता है और उसके इर्द गिर्द उसकी खुशबू बिखर जाती है। बडाें की मुश्किल तब शुरू होती जब उसका ध्यान अपने रोजमर्रा के तयशुदा कार्यक्रम से हटकर किसी दूसरी तरफ मुड ज़ाता। गलती से एक बार भी उसका मन उचटता तो फिर पटरी पर वापस लाने में सबके छक्के छूट जाते। काफी सोचकर सब लोग एक ही नतीजे पर पहुंचे-तानिश की कुर्सी की जगह में परिवर्तन करना ज़रूरी है। तानिश को इस निर्णय के बारे में मालूम हुआ तो उसने अपना विरोध दर्ज कराया-
"दीदी वहाँ से मुझे सुनील, सोनी और क्षितिज दिखेंगे ही नहीं।" ये सभी बच्चे दूसरी क्लास के हैं।
उसकी बात सुनने के बावजूद किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं जाहिर की। तानिश की सीट बदल दी गयी। अंजना ने आज ठान लिया है-तानिश को आज के लिये तय सारे क्लास वर्क को पूरा करना ही होगा। इससे बढिया मौका कहाँ मिलेगा। अंजना दी ने अपनी कुर्सी तानिश के ठीक सामने कर ली है और गंभीर मुद्रा में वहीं बैठीं हैं। तानिश की आंखें अब सिवाय उनकी तरफ या फिर उसकी नोटबुक के कहीं और नहीं जा सकती। लाचारी है तानिश की। आज पकडा गया है। लगभग पूरा काम समाप्त हो चला है केवल एक आखिरी काम बाकी है-वो भी ड्रांईंग का। और इसमें तो तानिश मास्टर माहिर हैं। एक यही काम है जिसमें उसका मन लगता है। उसके हिसाब से अंजना दीदी के द्वारा बनाये गये चित्रों में रंग भरने से बेहतर कोई काम हो ही नहीं सकता।
दूसरे बच्चे एक-एक करके लौटने लगे हैं। अंजना उनकी तरफ मुडी तो तानिश ने मुक्ति की एक लम्बी सांस ली। लेकिन मैं जानतीं हूँ-जल्दी ही अब एक दूसरी मुश्किल सामने उपस्थित होने वाली है। तानिश का काम समाप्ति की तरफ बढ चला है। बाकि बच्चे अब अपना काम आरम्भ करेंगे। उससे चुपचाप बैठना होगा जो उसके हिसाब से एक मुश्किल काम है।
थोडी देर तक वह पर्दे पर बने जानवरों को देखता रहा। फिर कोने में रखी लाल आलमारी पर उसकी निगाह गयी और उसके बाद उसके ऊपर रखे तमाम खिलौनो पर। वश चलता तो उनसे खेलता भी किन्तु उसे खूब पता है अभी खेलने का वक्त नहीं हुआ है।
तब क्या करे? तानिश के दोनो हाथ खाली हैं। कुछ तो उन्हें करना ही होगा। मेज सामने है हाथ कभी उसे अपनी तरफ खींचते तो कभी पीछे की तरफ ढकेलते। मेज खिसकने से पैदा होने वाली आवाज से सभी बच्चों का ध्यान बंट रहा था। वे पहलू बदलने लगे। इसी तरह अगर कुछ देर और चलता रहा तो सारे बच्चे तो नहीं किन्तु इशिता ज़रूर अपना काम बंद कर देगी। अंजना ने उसे घूर कर देखा। तानिश ने सकपका कर अपना हाथ मेज पर से खींच लिया और चुप चाप बैठ गया।
दो मिनट भी नहीं बीते होंगे कि रोनी-सी सूरत बनाकर तानिश अपनी कुर्सी में बैठे-बैठे ही बार-बार दांयें बांयें होने लगा। मैंने पूछा-
"क्या हुआ है तानिश? ऐसे क्यों कर रहे हो?"
"दीदी पेट में दुख रहा है।" पेट पर हाथ रखते हुये उसने कहा।
मैंने सोचा कि शायद उसकी बेल्ट टाइट होगी। इसलिये उसकी बेल्ट खोलकर पैंट की ऊपर वाली बटन भी खोल दी। एक मिनट भी नहीं बीत पाया कि-
"दीदी पेट में तो दूख ही रहा है। बंद ही नहीं हो रहा है।" पेट कस कर पकड लिया तानिश ने। डर भी रहा है, पता नहीं क्यों? लेकिन इस दौरान एक बार भी उसने अंजना की तरफ नहीं देखा।
"आज भी लगता है तुम घर से पॉटी कर के नहीं आये हो?" अंजना गुस्से में है।
एक हाथ से पेट पकडे और दूसरे मुंह ढकने की कोशिश करता हुआ तानिश बोला-
"पृथ्वी भईया कहाँ हैं?" फिर कहा-"क्या करूं मम्मी करातीं ही नहीं।"
यह प्रतिदिन का किस्सा है। ठीक साढे ग्यारह बजे उसकी यही दशा होती है और उसे पृथ्वी की ज़रूरत पडती है। मैंने अंजना से कहा-
"अंजना दी पृथ्वी से कह दीजिये कि रोज इस समय बिना बुलाये यहाँ आजाया करे तानिश को उसकी ज़रूरत पडती है।" तानिश सुनकर झेंप गया और मैं हंसने लगी।
आंखें झपकाते हुये, पैरों में गेटर बांधें मुस्कुराते हुये ताानिश वापस आकर अपनी कुर्सी पर हाजिर है। बाकी बच्चों का काम अभी तक समाप्त नहीं हुआ है। लाख कोशिश करने के बावजूद अभी तक एक बार भी किसी बच्चे से उसकी आँख भूल से भी, नहीं मिल पायी है। घबडाहट होने लगी उसे। अब रहा नहीं जा रहा है। झुकाते-झुकाते उसने अपना सिर मेज पर ही रख दिया। उसके एक तरफ विनयना और दूसरी तरफ इशिता बैठी है। होंठ कुछ टेढे हुये और बायीं तरफ के गाल में गङ्ढा थोडा और गहरा गया, भवें ऊपर को उठीं और दोनो भवों के बीच सलवटें पड ग़यीं और एक महान संगीत कार के तर्ज में उसके दोनो हाथों ने हरकत करना आरम्भ किया। एक महान तबला वादक तानिश महाराज शुरू हो गये। तबले की जगह मेज थी। धा धिं-धिं धा। एकताल बज रहा था या तीनताल-कह नहीं सकती किन्तु कुछ बहुत अच्छा बज रहा था। स्वयं तानिश अभिभूत है अपने मेजवादन पर। एकाग्रचित्त होकर वह अपने आप में मस्त है। लेकिन पूरी क्लास का ध्यान उसीकी तरफ है। खिल-खिल, खिल-खिल,। विनयना कुर्सी पर पीठ टिकाकर जोर-जोर से हंस रही है। इशिता की पेन्सिल फिर से जमीन पर गिर गयी है। उसे उठाने का उसने कोई प्रयास नहीं किया बल्कि अपना मुंह पूरी तरह से तानिश की तरफ घुमा कर बैठ गयी है। कब से तानिश चाह रहा था कि उसके साथी उसकी तरफ देखें। अब जा कर उसकी इच्छा पूरी हुयी है। उसने तिरछी आंखों से सबको देखा और मेज पर उसकी ऊंगलियां और बेहतर तरीके से थाप देने लगीं। सबको मजा आ रहा था। अंजना को नाराज होना चाहिए क्योंकि यह अनुशासन के विरूध्द था।
"अब अगर तानिश की मेज से कोई आवाज आयी तो आज उसे खाना नहीं मिलेगा।"
सनाका खा गया तानिश। करेन्ट लगा उसे। एकदम सीधा होकर बैठ गया। अंजना दी की बात सुनकर वह इस सोच में डूब गया कि आखिर अभी तक उसे खाने की याद क्यों नहीं आयी थी। अपने दोनो हाथों को उसने मेज पर टिका रखा था और पूरी ताकत लगा दी थी कि उनमें कोई ऐसी हरकत न हो जिससे किसी तरह की आवाज अंजना को सुनायी दे। लाख प्रयास के बावजूद थोडी बहुत आवाज निकल जा रही थी और तब उसका चेहरा देखने लायक हो जा रहा था। सबकी निगाहें उसकी तरफ थीं-यह अहसास होते ही तानिश अस्थिर हो उठा ओर उसकी आंखें ऊपर टयूब लाइट पर जाकर टंग गयीं। अभी तक खाने की सुध नहीं थी किन्तु अब उसे अपना लंचबॉक्स याद आने लगा। बार-बार होंठों पर जीभ फिराता तानिश टयूब लाइट्स गिनने लगा-वन, टू, थ्री।
विनयना को तानिश की बेवकूफियों को देख सुन कर मजा आ रहा था। अचानक समझदारी दिखाते हुये बोली_
"दीदी, जिस दिन तानिश स्कूल नहीं आता उस दिन अच्छा नहीं लगता न?"
इशिता ने भी सिर हिलाते हुये अपनी सहमति जताई_
"हां दीदी मुझे भी तानिश की बातें बहुत अच्छी लगतीं हैं।"
तानिश की अस्थिरता खतम हो गयी। अपने बारे में होती हुयी बातों को सुनकर उसका कॉनफिडेन्स लौट आया और अभी-अभी दीदी से खायी डांट भूल भाल कर उसने अपनी आंखें नचाते हुये इधर उधर देखा, फिर पूछा_
"पृथ्वी भइया कहाँ हैं?" सबको समझ में आ रहा था कि पृथ्वी भइया की खोज क्यों हो रही है? पक्की बात है, खाने का समय हो गया है और तानिश को भूख लग गयी होगी।