तापसी पन्नू और मौसम का चक्रवात / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :22 दिसंबर 2017
सौंदर्य प्रतियोगिता के रैम्प पर चलते हुए अभिनय क्षेत्र में ऐश्वर्या राय और सुष्मिता सेन की तरह तापसी पन्नू भी फिल्मों में आई हैं। अंतर केवल इतना है कि ऐश्वर्या राय और सुष्मिता सेन ने अंतरराष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिताओं में भाग लिया परंतु तापसी पन्नू भारत में आयोजित प्रतियोगिता में भाग लेती रहीं। शायद इसी कारण वे नितांत भारतीय भी लगती हैं। उन्होंने अपनी अभिनय यात्रा दक्षिण भारत में बनी फिल्मों से प्रारंभ की और हिन्दुस्तानी जबान में 'पिंक' फिल्म ने उन्हें शोहरत दिलाई। 'नाम शबाना' में तापसी पन्नू ने प्रभावोत्पादक अभिनय किया। फिल्म के नायक अक्षय कुमार की प्रशंसा करनी होगी कि क्लाईमैक्स में वे परदे के पीछे खड़े रहते हैं और नायिका ही खलनायक को मारती है। प्राय: इस तरह के दृश्य नायक ही करता है। तापसी पन्नू एक्शन दृश्यों को बड़ी विश्वसनीयता के साथ प्रस्तुत करती हैं और उन्हें 'मॉडेस्टी ब्लेज' की भूमिका में अवश्य ही प्रस्तुत करना चाहिए।
आजकल तापसी पन्नू विज्ञापन फिल्म में नज़र आ रही हैं, जो प्रमाणित करता है कि उनके प्रशंसकों की संख्या बहुत बड़ी है। विज्ञापन फिल्मों में लिया जाना लोकप्रियता का मापदंड बन चुका है। विज्ञापन फिल्में रचने वाले अपने बाजार को बहुत अच्छे ढंग से जानते हैं। उन्होंने तापसी पन्नू को साबुन या रंग गोरा करने का विज्ञापन नहीं कराते हुए, एक शक्ति प्रदान करने वाले पेय का विज्ञापन कराया है। तापसी पन्नू के लिए अब किसी प्रेम-कथा में अभिनय करना ही शायद एकमात्र चुनौती रह गई है। रणवीर कपूर और तापसी अभिनीत प्रेम-कथा परदे पर प्रस्तुत प्रेम को छुईमुई पन से आजाद करा सकती है।
मॉडेस्टी ब्लेज और विली गारविन एक-दूसरे का आदर करते हैं। विली गारविन की प्रेयसी का पात्र अलग है। दोनों ही कभी अपराध करते थे परंतु बाद में उन्होंने कानून की सहायता करना प्रारंभ किया। अपनी पृष्ठभूमि के कारण वे अपराध जगत की कार्यशैली से भलीभांति परिचित हैं। अपराधी की विचार प्रक्रिया का ज्ञान इस पेशे में बड़ा सहायक होता है।
प्राय: नए कलाकार मानसून के यात्रा चक्र का अनुसरण करते हैं। बादल केरल में बरसने से अपनी यात्रा शुरू करते हैं। दक्षिण को तरबतर करके पश्चिम होते हुए दसों दिशाओं को भिगोते हैं। तापसी पन्नू की यात्रा भी इसी तरह की रही है। अब उनका दक्षिण लौटना कठिन है, क्योंकि बादल भी पश्चिम में बरसने के बाद दक्षिण नहीं लौटते परंतु रजनीकांत के बुलाने पर ऐश्वर्या राय भी 'रोबो' कर चुकी हैं। गुरुत्वाकर्षण ही एकमात्र नियम है जो रजनीकांत पर लागू होता है। शंकर और रजनीकांत की '2.0' का प्रदर्शन टल गया है। विशेष प्रभाव के दृश्य समय लेते हैं। दरअसल शंकर और रजनीकांत पर असली दबाव 'बाहुबली' का है। तर्कहीनता के उत्सव पर विजय पाना कठिन होता है। तर्कहीनता का उत्सव मनोरंजन क्षेत्र से राजनीति तक में प्रवेश कर चुका है। गुजर जाएगा यह भी दौर जैसे गुजर गए हजार दौर।
'नाम शबाना' के एक दृश्य में कुछ इस आशय का वार्तालाप है कि नायिका को गुप्तचर विभाग में इसलिए भी लिया गया कि वह इस्लाम की अनुयायी है और इस धर्म की अनुयायी होने के कारण उसकी पहुंच और व्यापकता बढ़ जाती है। दरअसल, उसे इसलिए भी चुना गया है कि उसके प्रेमी को हुड़दंगियों ने मार दिया था और हुड़दंग के खिलाफ लड़ना उसकी जिंदगी का मकसद बन चुका है।
'नाम शबाना' के फिल्मकार शिवम् नायर राज कपूर पर वृत चित्र बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। वे राज कपूर की सिनेमाई शैली से बहुत प्रभावित हैं। राज कपूर ने सारा जीवन प्रेम-कथाएं ही बनाई हैं परंतु शिवम् नायर की अपनी स्वतंत्र शैली है। यहां प्रभाव का अर्थ माध्यम के प्रति समर्पण भी हो सकता है। फिल्मकार पटकथाओं के लेखन में प्रेम-पत्र लिखने के भाव से संचालित होता है। भावना की तीव्रता महत्वपूर्ण है। एक बार केतन मेहता के घर आवारा, मदर इंडिया व गंगा-जमुना के पोस्टर देखने पर उनसे प्रश्न किया गया तो उनका जवाब यह था कि ये फिल्में उनका आदर्श हैं परंतु वे अपनी स्वतंत्र शैली के पथ पर ही चलते हैं। उनका आशय यह था कि चौबे बनने के प्रयास में ऐसा न हो कि दुबे भी न रहने पाएं।
तापसी पन्नू फिल्मकार को चुनौती देती हैं कि आप कोई ऐसा आकल्पन नहीं कर सकते जो वह अभिनीत न कर पाए। विज्ान साहित्यकार को ऐसी ही चुनौती देता है। गौरतलब है कि एचजी वेल्स विज्ञान फंतासी के जनक हैं और उनका हर आकल्पन यथार्थ रूप में लाया जा चुका है। 'इनविजिबल मैन' अर्थात अदृश्य मनुष्य की फंतासी को राजनेताओं ने अपने ढंग से यथार्थ का जामा पहनाया है। आज अवाम और उसके सपने अदृश्य किए जा चुके हैं। हर बैंक खाता पंद्रह लाख जमा होने के इंतजार में बैठा है और बकौल शैलेन्द्र 'तू आए न आए हम करेंगे इंतजार, ये मेरा दीवानापन है या मोहब्बत का सुरूर, कोई माने या ना माने हम मानेंगे जरूर'। अनिल कपूर और श्रीदेवी अभिनीत बोनी कपूर की 'मि. इंडिया' अदृश्य व्यक्ति की कथा थी। इस फिल्म में अशोक कुमार उस वैज्ञानिक की भूमिका में थे जो अदृश्य होना संभव करता है। यह गौरतलब है दशकों पूर्व अशोक कुमार अभिनीत मि. एक्स इन बाम्बे भी अदृश्य होने वाले की कथा प्रस्तुत करती थी।