तापस और चौपाए / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
हरी-भरी पहाड़ियों के बीच एक तपस्वी रहता था। वह हृदय और आत्मा दोनों से पवित्र था। सारे इलाके के जानवर और पक्षी जोड़े में उसके पास आते थे। वह उनसे बतियाता था। वे प्रसन्नतापूर्वक उसे सुनते और एकदम निकट आ बैठते। रात गहराने तक वे वहीं रहते जब तक कि वह उन्हें जाने को न कहता।
एक शाम, जब वह प्रेम पर बोल रहा था, एक तेंदुए ने सिर उठाया और तपस्वी से पूछा, "आप हमें प्रेम का पाठ पढ़ा रहे है। बताइए सर, कि आपका जोड़ीदार किधर है?"
"मेरा कोई जोड़ीदार नहीं है।" तापस ने कहा।
यह सुनते ही उन चौपायों और परिंदों के बीच अचरजभरा घना शोर उठ खड़ा हुआ। वे आपस में बतियाने लगे, "जब वह खुद ही प्यार और साथ रहना नहीं जानता, तब हमें यह सब कैसे सिखा सकता है?"
संध्या समय ही वे उसे अकेला छोड़कर उठ खड़े हुए और चले गए।
उस रात चटाई पर तापस औंधे मुँह लेटा। वह दहाड़ें मार-मार कर रोने लगा और जोर-जोर से अपनी छाती को पीटने लगा।