तिरते बादल (भूमिका) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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जापान से यात्रा पर निकला हाइकु छन्द विश्व भर में व्यापक होकर सब भाषाओं के साहित्य की धरोहर बन गया है। हिन्दी में आया 5+7+5=17 वर्णों का यह छन्द बहुत लोकप्रिय हुआ। इसी क्रम में ताँका, जिससे यह छन्द उद्भूत हुआ, उतनी लोकप्रियता अर्जित नहीं कर पाया। इसी तरह चोका (5+7+5+7+5+7+7+7) छन्द भी रहा, जिसके अंत में सात वर्ण की एक और अतिरिक्त पंक्ति होती है। यह छन्द विषम पंक्तियों में होता है और कितना भी बड़ा (9 पंक्तियों से लेकर 21-31 आदि का हो सकता है। जापान के ये छन्द जापानी में अक्षर (ऑन) पर आधारित हैं, तो अंग्रेज़ी में बलाघात (स्ट्रैस टाइम) पर तथा हिन्दी में वर्ण (स्वर या स्वरयुक्त व्यंजन) पर आधारित हैं। भारत तथा भारत से बाहर रहने वाले हिन्दी के कवियों ने भी इन छन्दों की श्रीवृद्धि में अपना योगदान किया। इनमें हाइकु की रचना सर्वाधिक हुई है। हिन्दी हाइकु का यह स्वरूप नेपाली भाषा में भी हिन्दी की तरह स्वीकृत है। मराठी और पंजाबी भाषा में हाइकु के बहुत पाठक हैं, पर इसका साँचा जापानी या किसी अन्य भारतीय भाषा के किसी मूल छन्द का अनुगमन नहीं करता।

सुदर्शन रत्नाकर कविता और कथा-जगत् की चर्चित और सम्मानित हस्ताक्षर हैं। आप जून 1989 से हाइकु लिख रही हैं। उपन्यास और कहानी की कई पुस्तकें प्रकाशित और सम्मानित हो चुकी है। 22 वर्षों की अवधि में लिखे गए विभिन्न हाइकु को इस संकलन में सँजोया गया है। इनके हाइकु में जीवन और प्रकृति की विविधवर्णी झाँकी मिलती है। हाइकु में केवल प्रकृति चित्रण हो सकता है, यह धारणा अब पुरानी पड़ चुकी है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि प्रकृति-चित्रण की उपेक्षा की जाए। प्रकृति तो हमारी प्राण-शक्ति है। प्रकृति के सौन्दर्य का चित्रण करने में सुदर्शन रत्नाकर का मन बहुत रमा है। भोर का मनमोहक

स्वरूप अनूठे सौन्दर्य से सराबोर है—

  • मोती ही मोती / सागर से चुन लो / लगा डुबकी।
  • उषा का सौन्दर्य तो अभिभूत करने वाला है। अवगुंठन के हटते ही रूप माधुरी प्रवाहित हो उठी है—
  • घूँघट उठा / क्षितिज में उषा का / अम्बर जगा।

ओस की बूँदें फूलों की पंखुड़ियों पर मोती जैसी आभा के साथ चमक रही हैं—

  • ओस की बूँदें / फूलों की पंखुरियाँ / मोती चमके।

दूसरी ओर डाल की फुनगी पर बैठकर चहकती चिड़िया भी सवेरे का संदेश दे रही है—

  • फुनगी पर / चहकती चिड़िया / हुआ सवेरा।

साँझ का दृश्य बहुत मनमोहक हो जाता है। तारों की बारात जब सज उठती है। दूल्हा चाँद अपनी नई धज के साथ प्रकट होता है-

  • साँझ होते ही / तारे बने बाराती / व चाँद दूल्हा।

मंद-मंद बहती हवा पूरे वातावरण को सुरभित कर देती है। कलियों की पलक पंखुरियों में भौंरे बंद हो जाते है—

  • बहती हवा / सुरभित अमंद / भीगते मन।
  • बोझिल हुईं / पंख पंखुरियाँ / बँधे मधुप।

वाणी की मधुरता का जीवन में बहुत महत्त्व है। दो मीठे बोल जीवन में अमृत का संचार कर देते है—

मीठे दो बोल / लगता नहीं मोल / मिश्री दें घोल।

जीवन के बारे में कवयित्री का दृष्टिकोण बहुत व्यापक है। हमारी साँसें जीवन का सीधा-सादा लेखा-जोखा है और वह है—

साँसें इतनी / जितना लेखा-जोखा / बस उतनी।

इसलिए कल का कोई भरोसा नहीं। हमारा आज ही सच है। जो पल मिले हैं उन्हें सहज भाव से जी लेना चाहिए—

कल क्या होगा / कुछ भरोसा नहीं / आज में जी लो।

बहती पवन का भी यही संदेशा है कि—

क्षणभंगुर / सुख, धन, दौलत / बहती पौन।

आपसी समझ और स्नेह ऐसे तत्व हैं, जिनसे मकान, घर बनता है। यह घर ही है जो सबको आपस में जोड़े रखता है॥ जहाँ प्रेम की जगह स्वार्थ होगा, ऐसे घर रेत के घरौंदे की तरह टूट कर बिखर जाने को बाध्य होते हैं—

टूटते ऐसे / रेत के घरौंदें हों / आज के घर।

रूखे हैं लोग / पत्थर का शहर / जाऊँ किधर?

बहुत ढूँढा / मकान मिले पर / मिला न घर।

पक्षी अपने तिनकों से बने घोंसले में भी खुश रहता है—

पक्षी बनाता / तिनकों का घोंसला / फिर भी खुश।

हमारी निर्मल चेतना ही हमें सही मार्ग बताती है, अत: इस चेतना को उन्नत करने के लिए गुरु-ज्ञान होना चाहिए—

गुरु का ज्ञान / मिटाता अंधकार / देता उजास।

भीतर गुरु / कर प्रयास शुरु / होता रुबरू।

कट्टरता और संकीर्ण सोच ही आतंकवाद की जननी है। सूनी गलियाँ सारी खुशियों छिन जाने की व्यथा लिए हुए हैं—

सूनी गलियाँ / तेरे आने के बाद / आतंकवाद।

आतंकवाद ने पता नहीं कितने घरों की खुशियाँ छीन ली है, कितने घरों के चिराग़ बुझा दिए हैं—

बुझते दीप / बाती कहाँ से लाऊँ / सूनी गलियाँ।

आतंकवाद और संकीर्णता का यह मार्ग शहर-दर-शहर फैलता जा रहा है॥ सुदर्शन जी इसका उपाय करने के लिए जाग्रत करती हैं—

ज़हर फैला / शहर-शहर में / कुछ तो करें।

एक और ज़हर है जो हमारी प्रकृति को निगलता जा रहा है। जीवन की रस-भरी टहनी को काटने का पाप हम लगातार कर रहें है। दूषित वातावरण हमारे जीवन को विशाक्त कर रहा है। आपने कहा है—

हर टहनी / जीवन से भरी थी / काट दी मैंने।

असहनीय / दूषित वातावरण / घुटती साँसें।

समय बदल गया, नारी के जीवन में भी बदलाव आया, लेकिन हमारे समाज की रीढ़-नारी का शोषण कम नहीं हुआ। वह आज भी अत्याचारों की शिकार है। वह मूक होकर आज भी सब दु: ख सहती जा रही है—

ज़िंदा जलाते / कैसा है अत्याचार / वधू लाचार।

सब सहती / कुछ नहीं कहती / कैसी लाचारी।

जीवन में सदा सब को सफलता ही मिले यह सम्भव नहीं है। जीवन-निर्माण के बहुत सारे मार्ग हैं जो विफलता के द्वार से होकर निकलते हैं॥ज़रूरत है उस द्वार को धैर्यपूर्वक पहचानने की। हम सबको अपना-अपना दुख खुद ही भोगना है। उसको बाँटने के लिए कोई दूसरा भागीदार नहीं आएगा—

विफलता ही / सफलता की कुंजी / कमा लो पूँजी।

दु: ख अपना / सबको है भोगना / नहीं बँटता।

कुछ के पास इतना भोजन है कि खाने बाद भी बचा रहता है तो दूसरी ओर वे भी लोग हैं जो दयनीय दशा का शिकार हैं। उन्हें जूठन पर ही गुज़ारा करना पड़ता है—

तुम क्या जानो / जो जूठा बचाते हो / वह खाता है।

नारे लगाने वाले नेता केवल आश्वासन दे सकते हैं, रोटी नहीं। बिना रोटी किसी का भी पेट नहीं भर सकता—

वह क्या करे / तुम्हारे नारे सुने / या भूखा मरे।

इन नेताओं की तू-तू, मैं-मैं जन सामान्य को कितनी आहत करती होगी, वे शायद ही समझ पाएँ। रत्नाकर जी ने कड़ा। व्यंग्य किया है—

चिल्लाओ मत / शरीफ़ों का घर है / संसद नहीं।

लूट का जो अभियान चला है, आज उस दुर्गति से कोई भी अपरिचित नहीं है। आज देश के पहरेदार ही देश को लूट रहे हैं और जनता को विपन्न बनाने में लगे हैं—

पहरेदार / लूटने लगा घर / ख़बरदार।

कैसा कमाल / नेता हैं मालामाल / लोग कंगाल।

यह जीवन कर्मभूमि है कर्म करना जीवन की युद्ध-भूमि में आगे बढ़ने का मूलमंत्र तो है ही साथ ही प्रार्थना के समान पवित्र भी है—

काम करना / प्रार्थना के सामान / कर इन्सान।

जीवन युद्ध / लड़ना बाधाओं से / मनुष्य कर्म।

पानी जीवन के प्रवाह की प्रतीक है। सागर का गहरा होना, शांत होने का आधार है। जो उथले विचारों के होते हैं वे ही अहंकार का प्रदर्शन करते हैं—

सागर देखा / कितना है गहरा / फिर भी शांत।

बहता पानी / देता है ज़िंदगानी / रुका, बेमानी।

मन की पवित्रता और सुकर्म ही अच्छे जीवन का आधार हैं। माला जपने से मन में पवित्रता नहीं आती-

सुबह शाम / जपते कर-माला / मन है काला।

लेकिन जो सच्ची पुकार है वह कभी निष्फल नहीं जाती। -

भरोसा रख / नहीं जाती बेकार / सच्ची पुकार

जीवन में समय का महत्त्व है। समय की उपेक्षा करके की गई छोटी-सी भूल हमें जीवनभर मनस्ताप करने के लिए बाध्य कर देती है—

बड़ी है भूल / समय पर चूक / रहती हूक।

जीवन की सबसे बड़ी नीति है-सुख-दु: ख को समभाव से स्वीकार करना-

सच्चा साधक / समभाव रखता / सुख-दु: ख में।

आशा हमारे जीवन को सशक्त बनाती है—

आशा बाँधती / जीवन का लंगर / । नहीं बहाती।

प्यार को जितना बाँटो सुगंध की तरह उतना ही फैलता जाता है—

जितना बाँटो / सुगंध फैलाती है / खुशी प्यार की।

प्यार का स्पर्श एक शाश्वत अनुभूति से ओत-प्रोत होता है, जिसे केवल महसूस किया जा सकता है—

तुमने छुआ / मुझे जब प्यार से / 'मैं' खिल गई।

जीवन की आपाधापी में मन का मुक्त होना ज़रूरी है—

मुक्त हो मन / इस आपाधापी से / तोड़ बन्धन।

मन की अनोखी प्यास और गहन प्रेम को आपने इस प्रकार व्यक्त किया है—

भीगते रहे / बरसात में हम / प्यासा है मन।

आँसू तुम्हारे / गिरे मेरी आँखों से / मिटे हैं गिले।

हाइकु के बहाने कवयित्री ने जीवन और उसके दर्शन का भरपूर अवगाहन किया है। यह हाइकु की शक्ति और रचनाकार के जीवन अनुभवों की व्याख्या है।

सुदर्शन जी ने इस संकलन में कुछ माहिया भी प्रस्तुत किए हैं। यह 12+10+12 का गेय छन्द होता है। माहिया के पहले और तीसरे पद तुकांत होते हैं। रत्नाकर जी के इन माहिया में गेयता का गुण प्रमुख है, अत: मात्राओं के बंधन को न स्वीकार कर आपने गेयता को ही प्राथमिकता प्रदान की है। इस माहिया में संसार की असारता और अकेलेपन का चित्र खींचा है।

कैसा यह मेला है / भीड़ भरी दुनिया में / हर मनुज अकेला है।

सावन के महीने से प्रिय का कितना गहरा सम्बन्ध होता है, इस माहिया में देखिए—

सावन का महीना है / बादल बरस रहे / तुम बिन क्या जीना है।

सावन के झूले हैं / दुनिया तुझे भूल गई / पर हम नहीं भूले हैं।

आशा है, हाइकु और माहिया का यह संकलन सहृदय पाठकों के मन को ज़रूर भाएगा।

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