तिलका मांझी / प्रदीप प्रभात
तिलका मांझी रोॅ जन्म 11 फरवरी 1750 ई. में होलोॅ छेलै। तिलका मांझी के बाबू रोॅ नाम शिब्बू आरो माय के नाम जैबा छेलै। तिलका मांझी बच्चैं सें ही दूरदर्शी, मिलनसार, कर्मठ, दबंग, कसरती, कुशल तीरंदाज आरो सूदर्शी भावना वाला आदमी छेलै। हिनी बच्चैं सें धून रोॅ पक्का आरो हठधर्मी छेलै। हिनी सात्विक स्वभाव वाला आदमी छेलै। आरो स्वतंत्रता रोॅ पोषक छेलै। यहेॅ कारण देलै कि अंग्रेजोॅ के अत्याचारी स्वभाव रोॅ ऊ विद्रोही स्वभाव के बनी गेलोॅ छेलै।
1773 में आगस्टस क्वीलैण्ड नाम करि केॅ एक अंग्रेज युवक केॅ भागलपुर राजमहल के पहिलोॅ कलक्टर बनाय केॅ भेजलोॅ गेलै। ऑगस्टस क्वीलैण्ड भागलपुर स्थित टिल्हा कोठी में रहै छेलै।
अभिलेखीय साक्ष्य ई बातोॅ के गवाही छै कि हिनकोॅ पदस्थापन उस समय में होलोॅ रहेॅ जबेॅ कि पहाड़िया आन्दोलन आपनोॅ चरम पर छेलै आरो ई आन्दोलन के दबाय रोॅ सब्भेॅ कोशिश फेल होय रहलोॅ छेलै। क्वींलैण्ड नेॅ आपनोॅ चतुराई सें आन्दोलन के असफल करै रोॅ प्रयास करलेॅ रहै।
तिलका मांझी गुरिल्ला युद्ध में दक्ष छेलै। क्वीलैण्ड लेली तिलका आतंक रोॅ पर्याय छेलै। तिलका मांझी कखनू मरगो तेॅ कखनू तेलियागढ़ी कखनू कहलगॉव तेॅ कखनू रास्ता में सरकारी खजाना सीनी केॅ लूटतेॅ रहै आरो गरीबों में बाँटै छेलै। तिलका रोॅ सेना अंग्रेज फौजोॅ पेॅ तीर आरो गुलेल सेॅ कहा निशाना साधतै ई केकरौं पता न´ छेलै। अंग्रेजोॅ केॅ मारी केॅ सबके सब ीाागी जाय छेलै।
तिलका नेॅ सन् 1781 में अंग्रेजोॅ के खिलाफ बगाबत रोॅ बिलकुल फुकलेॅ छेलै। तिलका 'रोबिन हूड' जुंगा छेलै। जे अंग्रेजोॅ के खजाना केॅ लूटी केॅ गरीबोॅ रोॅ यहायता करै छेलै।
हिन्नेॅ तिलका मांझी आरो हिनकोॅ साथी विजय रोॅ खुशी मनाय रहलोॅ छेलै। आरो दोसरोॅ ओर अंग्रेज़ी फौज हुनका पकड़ै लेली आयर कूट के सेना रोॅ साथेॅ चारों तरफोॅ सें घेरेॅ लागलोॅ छेलै। मतर कि तिलका सबसेॅ आँख बतैचेॅ हुवेॅ निली भागलै। आरो सुलतानगंज के पहाड़ी में शरण लेलकै। कुच्छु दिनोॅ के बाद तिलका मांझी फेनू आपनोॅ सैनिक टुकड़ी रोॅ गठन करि केॅ लड़ाय लेली तैयार होय जाय छै।
ई बार तिलका के सामने में वारेहेस्टिंग के जग्धा पेॅ भेजलोॅ गेलोॅ छेलै। पहिलकोॅ स्थिति केॅ भाँपतेॅ हुवेॅ वारेनहेस्टिंग साहब पूरा सैनिकोॅ सें लैस छेलै। तिलका तीर-धनुष आरो गुलेल सें एक सीमा तांय ही लड़ें सकै छेलै। होकरोॅ बावजूद भी तिलका केॅ सीधे-सीधे न´ मतर कि धोखा सें पकड़लोॅ गेलै। क्रूर अंग्रेजोॅ नेॅ भागलपुर लानी केॅ क्रूरता रोॅ नंगा मिशाल कायम करि केॅ देखलैलेॅ छेलै।
तिलका केॅ चार घोड़ा सीनी के पीछु रस्सी सें बान्हीं केॅ सरेआम सड़कोॅ पेॅ घसीटलोॅ गेलै। आरो लहूलुहान तिलका केॅ एक बरोॅ गाछी में फाँसी पेॅ लटकाय देलकै। ई घटना 1785 के छेकै।