तीनों खान का पचासवां वर्ष / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :11 मार्च 2015
सामाजिक सौदेश्य खारिज है, अत: दिल बहलाने वाले सवाल उठाए जाते हैं और यह कसरत भी एकदम निरर्थक तो नहीं है। राष्ट्रीय अखबारों में सुर्खियां हैं कि सिनेमा के तीनों खान इस वर्ष 50 वर्ष के होने जा रहे हैं। आमिर खान का जन्म दिन 18 मार्च है। शाहरुख का संभवत: 2 नवंबर और सलमान खान का 27 दिसंबर है। तीनों खान 1965 में जन्मे हैं, जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ था। हमारी फौजें इच्छुगल नहर तक पहुंच गई थीं और अगर दस दिन तक युद्ध और चलता तो हमारे सैनिक लाहौर के अनारकली में नाश्ता कर रहे होते। बहरहाल, युद्ध वर्ष में जन्मे इन तीनों खानों ने तो किसी युद्ध फिल्म में भी अभिनय नहीं किया। शाहरुख खान ने 'फौजी' सीरियल से यात्रा शुरू की थी। हर युद्ध के वर्षों बाद तक उसके कारण बढ़ी महंगाई घर-घर दरवाजे पर दस्तक देती है। आमिर तो मुंबई में ही जन्मे सलमान खान इंदौर में और शाहरुख दिल्ली में।
बहरहाल, तीनों खान पच्चीस वर्ष से सितारा हैं और लोकप्रियता कम नहीं हुई है। तीनों खान की टोटल संपत्ति पंद्रह हजार करोड़ से कम नहीं है परंतु अमिताभ बच्चन अकेले ही उनसे अमीर हैं। उनके मकान, न्यूयॉर्क, लंदन और दुबई में है तथा मुंबई में चार बंगले हैं। बहरहाल, इन सितारों ने इतना धन मात्र फिल्मों में अभिनय से नहीं कमाया है वरन् अधिकांश कमाई विज्ञापन फिल्मों और समारोहों में नृत्य करके कमाई है तथा अपने धन का निवेश ऐसे किया है कि जब वे सो रहे होते हैं तब भी उनका पूंजी निवेश उनके लिए धन कमा रहा होता है। पूंजी निवेश में सबसे चतुर शाहरुख खान है और सबसे मासूम सलमान खान हैं, जो औसतन दस करोड़ प्रतिवर्ष दान भी करता है। इसके पहले के काल खंड के सितारों में केवल राजेंद्रकुमार ने उद्योग-धंधों में निवेश किया था। इन तीनों खान एवं अमिताभ बच्चन को बड़े औद्यौगिक घराने अपने कमाई वाले शेयर मालिक के आरक्षित कोटे से भेंट करते हैं। धन से धन उत्पन्न किया जाता है परंतु आनंद का जन्म कहीं और ही होता है। ये सब अत्यंत व्यस्त है। मसलन, सलमान खान विगत वर्ष भर बमुश्किल दस दिन अपने घर रहा है। उसने कबीर खान और सूरज बड़जात्या की फिल्मों के सेट्स पनवेल में अपने फार्म हाउस के निकट लगवाए और इस समय वह राजस्थान से कश्मीर प्रस्थान कर चुका होगा।
गौरतलब यह भी है कि क्या इन तीनों के खाते में कोई महान फिल्म भी है? आमिर खान के पास 'लगान,' 'तारे जमीं पर' और पी.के. है। शाहरुख खान को भव्यता का नशा है और अजीज मिर्जा से मित्रता के दौर में कुछ अच्छी फिल्में भी उसने की है तथा आदित्य चोपड़ा के लिए 'चक दे इंडिया' नामक महान फिल्म की है। सलमान खान को भव्यता का आग्रह है और ही महानता उसकी अभिष्ट है परंतु अपने ट्रस्ट द्वारा गरीबों की सहायता का कार्य उसे हमेशा दिलों में आबाद रखेगा। ये तीनों ही प्रतिभाशाली हैं परंतु इनमें से किसी के पास दिलीपकुमार जैसी प्रतिभा नहीं है और ही वे राज कपूर की तरह फिल्में बना सकते हैं। आमिर खान की अभिनय प्रतिभा उसके विषय चयन पर आधारित है परंतु कालजयी कृतियों के प्रति उसके मन में गहरा मोह है। अमिताभ बच्चन की तरह शाहरुख खान ने अपनी निर्माण संस्था में कोई महान फिल्म नहीं गढ़ी।
यह भी गौरतलब है कि तीनों खान नरसिंह राव के आर्थिक उदारवाद से लेकर नरेंद्र मोदी के काल खंड तक इतनी लोकप्रियता अर्जित कर पाए, क्योंकि आर्थिक उदारवाद के बाद बदलते भारत के जीवन मूल्य बदले, जिसका इन्हें भरपूर लाभ मिला है। 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय जन्मे इन खानों की लोकप्रियता का आधार तेजी से बदलता हुआ भारत है और मजे की बात यह है कि इन तीनों की फिल्मी शैलियों में भारत के अनेक आर्थिक सतह पर बसे लोगों के अवचेतन की कुछ झलक भी हमें मिलती है।
मसलन शाहरुख खान आप्रवासी भारतीयों के मनपसंद कलाकार हैं और भारत के श्रेष्ठि वर्ग के युवा भी उन्हें बेहद पसंद करते हैं। सलमान खान झोपड़पट्टी और गरीबों की बस्ती के 'भाई' हैं, उन्हें उनकी फक्खड़ता में अपना कुछ नजर आता है और आमिर खान पढ़े-लिखे वर्ग तथा समाज में परिवर्तन की इच्छा रखने वालों के मनपसंद नायक हैं। परंतु तीनों का दर्शक वर्ग सख्त खांचों में नहीं बंटा है और इधर-उधर आना-जाना चलता है क्योंकि मनोरंजन जगत में कोई वीजा या पासपोर्ट नहीं होता। मनोरंजन जगत ज्यादा लिबरल है और दर्शक के माथे पर कोई ठप्पा नहीं लगा है।