तीन अंतरिक्ष फिल्में और शाश्वत मूल्य / जयप्रकाश चौकसे

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तीन अंतरिक्ष फिल्में और शाश्वत मूल्य
प्रकाशन तिथि : 13 नवम्बर 2018


शाहरुख खान अभिनीत 'सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा', अक्षय कुमार अभिनीत 'मिशन मंगल' और सुशांत सिंह अभिनीत 'चंदा मामा दूर के' फिल्मों की योजनाओं पर काम चल रहा है। अक्षय कुमार तीव्र गति से काम करते हैं, शाहरुख खान 'करूं या न करूं' कि दुनिया में फंसे नजर आते हैं और सुशांत सिंह अभिनीत फिल्मों का आर्थिक समीकरण उलझ सकता है, क्योंकि वे दोनों की अपेक्षा पूंजी निवेशक को कम लुभाते हैं। राजकुमार हीरानी की 'पीके' में सुशांत सिंह अभिनय कर चुके हैं परंतु हिरानी की फिल्म की सफलता का श्रेय स्वयं हिरानी को मिलता है जैसे महबूब खान, गुरुदत्त, राज कपूर की फिल्मों में निर्देशक ही सितारा होता था। एक किताब का श्रेय लेखक को जाता है। इसी अवधारणा को फ्रांस के फिल्म समीक्षकों ने 'आतियार सिद्धांत' की तरह प्रतिपादित किया कि फिल्म केवल निर्देशक का माध्यम है। फिल्मों में पात्र सामान्य से कम गति से नाचते व चलते नजर आते हैं जैसे 'स्लो मोशन' कहते हैं। कुछ दृश्यों में पात्रों की गति तीव्र दिखाई जाती है। दरअसल फिल्म 1 सेकंड में 24 फ्रेम चलती है और इससे कम या अधिक में लिए गए शॉट्स स्लो मोशन या फास्ट स्पीड कहलाते हैं।

जब अमेरिकन अंतरिक्ष यात्री ने चांद पर पहला कदम रखा तो मनुष्य की अंतरिक्ष विजय के रूप में ये ऐतिहासिक माना गया। नील आर्मस्ट्रांग इतिहास में दर्ज हो गए। रूस ने भी अंतरिक्ष विज्ञान क्षेत्र में बहुत प्रगति की परंतु यह उस समय की बात है जब रूस टुकड़ों में नहीं बंटा था। रूमानी कविता रचने वालों के लिए चांद पर धूल का पाया जाना बड़ा दिल तोड़ने वाला अनुभव सिद्ध हुआ। अब प्रेयसी को चांद-सा मुखड़ा कहकर संबोधित नहीं किया जा सकता। चंद्रमुखी या चांद का टुकड़ा कहकर प्रेयसी को संबोधित नहीं किया जा सकता। मुक्तिबोध का संकलन 'चांद का मुंह टेढ़ा' प्रकाशित हुआ सो जैसे उन्होंने कल्पना के कांच महल पर पत्थर ही फेंक दिया। विज्ञान की सफलता के बाद भी गुलजार लिखते हैं 'चांद कटोरा लिए भिखारन रात'। 'चंद्रमुखी कवि' यथार्थवादी होने के प्रयास में रहस्यवादी हो जाते हैं। कुछ लोगों को यह परिवर्तन हास्यास्पद भी लग सकता है।

चंद्रयात्रा प्रेरित फिल्मों में सभी कलाकारों के शॉट स्लो मोशन में लिए जाने पर फिल्म के रसास्वादन पर भी प्रभाव पड़ सकता है। किसी भी ग्रह पर पानी होने का प्रमाण नहीं मिला है तो क्या हम यह मानें के सभी पात्र बोतल में बंद पानी लेकर जाएंगे। भारत में प्रदूषण मुक्त पानी की बोतल का व्यापार बहुत लाभप्रद है। दरअसल बोतलबंद शुद्ध जल सरकार की विफलता को रेखांकित करता है कि आजादी के इतने दशक बाद भी अवाम को शुद्ध जल उपलब्ध नहीं है। सरकारें सारा समय चुनाव जीतने के काम में लगी रहती हैं। चुनाव उनका परम धर्मिक दायित्व है और धर्म के नाम पर अवाम को बांटते हुए सत्ता पर काबिज हो जाते हैं। 'सत्यमेव जयते' नामक आदर्श ध्वस्त होकर 'सत्ता मेव जयते' में बदल दिया गया है। कबड्‌डी की तरह चुनाव-चुनाव खेला जाता है। विधान सभाओं में कुर्सियां फेंकी जाती हैं। जूते उछाले जाते हैं और यह पावन भवन एक्शन फिल्म के सेट की तरह हो जाते हैं।

अक्षय कुमार अभिनीत फिल्मों का प्रतिशत सबसे अधिक है। शाहरुख खान के 'दिलवाले दुनिया ले जाएंगे' के समय टिकिट के दर कम थे और सिनेमाघरों की संख्या भी कम थी। अतः शाहरुख को एक अदद भव्य सफलता वाली फिल्म की तलाश है, जो आनंद एल राय निर्देशित 'जीरो' हो सकती है, क्योंकि आनंद एल राय बहुत सुलझे हुए फिल्मकार हैं। पहली बार वे एक सुपर सितारे के साथ काम कर रहे हैं। 18 वर्षों से आमिर खान सामाजिक सोद्देश्यता की सफल फिल्में देते रहे हैं परंतु हाल ही में दर्शक ठगा सा महसूस कर रहे हैं। आमिर खान आत्म परीक्षण के लिए कुछ दिन अज्ञात निवास पर जा रहे हैं और वे किसी को उपलब्ध नहीं होंगे। वर्षों से वे कुरुक्षेत्र पर काम कर रहे हैं परंतु उनकी ताजा फिल्म उनके लिए 'डन्कर्क' साबित हुई है। अंतरिक्ष की प्रेम कहानियों में यह पेंच आ सकता है कि वहां जन्मा शिशु किस देश का नागरिक होगा। इन दिनों तो चार पीढ़ियों से बसे लोगों को भी 'विदेशी' कहकर खदेड़ा जा रहा है। उस शिशु के पास आधार कार्ड भी नहीं होगा। यह भी संभव है कि वहां जन्मा शिशु पृथ्वी पर आने से इनकार कर दे कि उसे उस प्रदूषित जगह पर नहीं जाना है।

एक फ्रेंच फिल्म में गर्भ में पनपता बच्चा अपनी मां को संदेश देता है कि तमाम गर्भस्थ शिशुओं ने निश्चय किया है कि उन्हें संवेदना खो देने वाली पृथ्वी पर नहीं आना है। इस फिल्म का नाम था 'सो ऑन अर्थ एज इन हेवन'। फिल्म के क्लाइमेक्स में मां अपने अजन्मे बच्चे को समझाने में सफल होती है कि तमाम भ्रष्टाचार, अन्याय और असमानता के बावजूद केवल प्रेम की खातिर यह पृथ्वी अभी भी रहने लायक है।