तीन उपहार / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी
(अनुवाद :सुकेश साहनी)
बहुत पहले बुखारा शहर में एक दयालु राजा रहता था, जिसे लोग बहुत प्यार करते थे। वहीं एक बेहद गरीब आदमी राजा के प्रति बहुत कटु था और लगातार उसके खिलाफ ज़हर उगलता रहता था। राजा इस विषय में सब कुछ जानते हुए भी चुप रहता था। अंत में उसने इस बारे में कुछ करने का निश्चय किया।
एक सर्द रात में राजा का नौकर एक बोरी आटा, एक थैली साबुन एवं चीनी लेकर उस आदमी के घर पहुंचा।
"राजा ने आपको यादगार के तौर पर ये उपहार भेजे हैं।" नौकर ने उस आदमी से कहा।
वह आदमी फूलकर कुप्पा हो गया। उसने सोचा, राजा ने ये उपहार उसके सम्मान में भेजे हैं। गर्व में चूर वह बिशप के पास जाकर डींग हाँकने लगा, "देखो...राजा भी मुझसे मित्रता करने को लालायित है!"
"वाह!" बिशप ने कहा, "राजा कितना बुद्धिमान है! तुम कुछ भी नहीं समझे, राजा ने इशारे से तुम्हें समझाया है-आटा तुम्हारे खाली पेट के लिए, साबुन तुम्हारे बदबूदार विचारों को धोने के लिए और चीनी तुम्हारी कड़वी जबान को मीठा बनाने के लिए भेजे गए हैं।"
उस दिन से उस आदमी की नफ़रत राजा के प्रति और बढ़ गई. सबसे अधिक नफ़रत वह बिशप से करने लगा, जिसे उपहारों का मतलब उसे समझाया था, पर...अब... वह चुप रहने लगा था।