तीन कट्ठोॅ बेटा / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
सत्तन बड़ी देर सें घौॅर के झिनझुर चढ़ाय कैॅ निमझान बैठलोॅ रहै। रातियो, बस दू टा पीट्ठो खाय केॅ रही गेलैै। असल मेॅ सत्तन के कनियँान रमबतिया कॅ सांझैं सेॅ दरद उठी गेलोॅ रहै। घरोॅ में कोय जौॅर-जनानी नै। दोसरोॅ मैट्रिक के चौथौॅ बारी परीक्षा देनें रहै। आय रिजल्ट निकलै के दिन रहै। होकरौॅ चिन्ता अलगे। रमबतिया रही-रही के जोर सेे कहरै। सत्तन कैॅ पहिलोॅ बारी अैहिनोॅ फेरा लागलोॅ रहै। आखिर लाज-बीज छोड़ी कैॅ टोला के साबो दादी कैॅ सब बात बतैलकै आरो खोशामद करी कैॅ बोलैलकै। यहा बीच सत्तन के लंगोटिया यार गोपी आबी कैॅ खबर देलकै कि भाय जी, आबरी तोंय ढेर नम्बर सैॅ पास करी गेल्हो। सत्तन के आँख खुशी सेॅ लोरिआय गेलै। चाहलै रमबतिया कैॅ खुशखबरी सुनाय दीयै, मतर रमबतिया आरो सत्तन के बीच साबो दादी जे छीलै। मन मसोसी के रही गेलै। तबताय बच्चा कानै के आवाज सुनी कैॅ सत्तन, गोपी के गल्ला में लटकी गेलै। साबोॅ भीतर सैॅ गरजी कैॅ कहलकै अरे सत्तो रमबतिया कैॅ बेटा होलौ, दौड़ी केॅॅ नया पत्ती लान। उमतैलो तुरन्त दोकानी सैॅ पत्ती लानी कैॅ केबाड़ी के दोगा सें देॅ देलकै सत्तन।
गाँव के लोग पहिलौॅ बारी सत्तन केॅ आँखोॅ मेॅ खुशी कैॅ लोर छरछरैतें देखलकै। एक तैॅ ढ़ेर नम्बर सेॅ पास करै के खुशी, दोसरोॅ बाप बनै के. सत्तन कर्जा लेकैॅ छट्ठी के भोज-भात धमगज्जर करलकै। वही दिन देर रात के रमबतिया सत्तन कैॅ बैठाय कैॅ समझैलकै। देखोॅ भगवान, देर से सही हमरा सब कुछ देलकौॅ, आबे लूर-जूत सें चलोॅ। बीड़ी-खैऩी छोड़ोॅ। हमरा पेट के चिन्ता नै छै। हमरा ते बेटा के बढ़िया स्कूली मेॅ पढ़ाबै के चिन्ता करै के ज़रूरत छै।
आठ अघोन बीती गेलै। दोनोॅ जीब मेहनत करी केॅ कुच्छू जमीन-जाल अर्जी लेलकै। तब ताय सत्तन तीन बेटा के बाप भी बनी गेलै। रमबतिया एकदम गद्गद्। जहाँ जोगाड़ लागलै, सत्तन सैॅ विचार करी कैॅ तीनो बेटा सूरज, चन्दर आरोॅ शीतल कैॅ आपनें जानतें बढ़िया स्कूली में भेजी देलकै।
भेजी तेॅ देलकै मतर रमबतिया कैॅ फुलबारी फूल आरोॅ कोयल के बिना विरान भे गेलै। आरोॅ हिन्ने सत्तन केॅ खर्चा पुराबै में दम बाहर। कोय-कोय रात तैॅ रमबतिया बेटा के बारे में सेाचतें-सोचतें बैठी कैॅ बिहान करी दै। मतर एक दिन ऐहनों नींद में सुतलै कि फेरू आँख नै खोललकै। सब केॅ अचम्भा लागलै, नै रोग नै बतास। डागडर तक नै पहुंचैॅ पारलै। कोय जानकार कहलकै कि हॉट अटैक होय गेलै, कोय कुच्छू, तैॅ कोय कुच्छू।
सत्तन भीतर सैॅ टूटी गलै। आँखीं के लोर आँखे में सुक्खी गेलै। अचानक लागलै कि कोय बाहीं पकड़ी कैॅ समझैतैै रहैॅ। तोहीं ऐना करभों तें केना काम चलतै। उठोॅ आरू हिम्मत सेॅ काम लॅ। सत्तन बुझी गेलै। उठलै आरो टोला परोस के बूढ़ोॅ पुरानोॅ सेॅ राय मशबिरा करी केॅ किरीया-करम भोज-भात औकाद सें ढेर करलकै। किरीया-करम तेॅ होय गेलै मतर पैसा एकदम टटाय गेलै।
कोर कुठूम कैॅ पैन्है बिदा करी चुकलौॅ रहै। बची गेलै सूरज, चन्दर आरोॅ शीतल तीनों बेटा कैॅ आपनोॅ-आपनोॅ स्कूल भेजना। भाड़ा, फीस, खाना-पीना।
कोपी-किताब अलगे।
मोॅटोॅ कर्जा से फेरा पड़ी गेलै। बेटा के अदारी के सत्तन उदास घोॅर लौटलै। मोन में तरह-तरह के अच्छा-बेजाय बिचार उठैॅ लागलै। घंटों दुआरी के चौकठ पर बैठी कैॅ दलहेजा में टागंलोॅ रमबतिया के फोटो देखते रहलै। (बड़का बेटा माय के फोटो टॉंगी देनें रहै) सत्तन एक बार फेरू सेॅ हिम्मत जुटाय केॅ तीनो बेटा केॅ पढ़ाबै के कीरिया खाय लेलकै। आरोॅ देखेॅ लागलै नया सपना।
हों सपना! सपना यहा कि तीनों बेटा पढ़ी केॅ कमियां आरो बड़ोॅ आदमी बनतै। बढ़ियाँ पुतोहू करबै। गरम-गरम जलखैय करै के जुगाड़ बनतै। समधी के साथें गप-शप करबै। लोग कहतै कि देखोॅ सत्तन के बेटा बड़का आदमी बनी गेलै। बेटा अैतै तेॅ बूतरू सनी दौड़ी कहतै-बड़का बाबू देखोॅ सूरज भैया अैल्हौन। तखनियें दूआरी पर कोय अैलै। पटैले-पटैले उलटी के देखलकै। अरे डाक बाबू।
बड़का बेटा के भारी-भरकम चिट्ठी। "पिता जी मुझे बडीे कम्पनी में मैनेजर की नौकरी मिल गई है और शादी का ऑफर भी। चन्दर और सीतल एक साथ पैराशूट की टेªनिंग में चला गया है। तत्काल बीस हजार रूपये की ज़रूरत है। जल्द से जल्द भेजने की कृपा करेंगे। अभी आपसे मिलने नहीं आ सकूॅगा"।
थैंक यू. आपका
प्यारा बेटा-सूरज। '
हेकरो अलाबे दू टा बजारू लड़की के फोटो। सत्तन एकदम ओझराय गेलै। दू-तीन हजार के बात रहेॅ तैॅ कोय तरह से हुए पारेॅ। मतर बीस हजार। -थैंक-यू, थैंक-यू! एक जोर आरोॅ सही बेटा। चिट्ठी-पत्री समेटी कैॅ सत्तन महतों जी के यहॉ कर्जा लेली जेन्हैं निकललै कि पहिलकोॅ कर्जा असूलै लैॅ बलराम जी आबी जूटलै। बड़का धर्मसंकट। सत्तन बुद्धिमानी सैॅ सूरज केरोॅ चिट्ठी देखाय कैॅ भरोसा देलकै-आबैॅ हमरोॅ दुख जल्दी दूर होय जैतै बलराम बाबू। आपनें के रत्ती-रत्ती कर्जा चुकाय देभौन। अखनी हम्मे फेरू आपन्हैं सैॅ 15 हजार रूपा मॉगै ले जाय छेलियैै। सत्तन पहिलोॅ पहल झूठ बोली देलकै। बलराम भी मोटौॅ सूद के फेर मेॅ फेरू रूपा दैॅ देलकै। आरोॅ सत्तन बढ़िया सेॅ फाड़ा में बॉन्ही कैॅ आपन्है सें पहँुचाय अैलै।
देखतें-देखतें दू साल आरोॅ बीती गेलै। एक दफे छोटका बेटा 'शीतल' , बाप सैॅ भेट करै लैॅ अैलोॅ रहै। वहीं बतैलकै कि सूरज भैया बीहा करी लेलखौन। पता नै कहिनें, सत्तन घामा-घमजोर होय गेलै सुनी केॅ। जखनी शीतल जाबैॅ लागलै तेॅ ढब-ढबैलोॅ ऑखी सें कहलै-जा बेटा। आपनोॅ-आपनोॅ जुक्ती-जोगाड़ सेॅ कमाबो-खा। तोरा सनी के खुशी सैॅ हमरो खुशी दोगना होय जाय छै हो। आय तोरो माय रहथिहौन ते कत्ते खुश होथियै कि हमरोॅ तीनोॅ बेटा ़-़ ़़़़ ़-़ कहतें-कहतें ठोर थर-थराय गेलै सत्तन के.
खेती-मजदूरी के बल पर कर्जा तोड़तेॅ-तोड़तेॅ, सत्तन के देह-गात टूटी गेलै। झरखराय गेलै एकदम। भीतरे-भीतर कुहतें रहलै, मगर भीतरिया बात केखरौ नै बतैलकै। कर्जा के आखरी किस्त चुकाय कैॅ अैतें-अैतें कपकपी के साथ बुखार आबी गलै। सत्तन गोपी सैॅ भेंट करने घोर अैलै आरौॅ खटिया पर गिरलै तैॅ फेरू उठै के हिम्मत नै करलकै। गोपी, सत्तन के बेमारी के खबर तीनो बेटा के भेजाय देलकै।
तीनोॅ जुटलै। सूरज के कनियाँन भी साथें छिलै। बेटा पूतोहू, लाननोॅ संनेश सत्तन के मुहोॅ में पारा-पारी ठंूसेॅ लागलै। जैसें मरै सैॅ पहिनें आपनौॅ पराया रशम निभाबै छै। सत्तन एकदम अकबक। हाल-चाल के दरमियान गोपी बताय चुकलोॅ रहै कि देख नूनू-बाबू, घरोॅ में सत्तन भाय के अरजलोॅं मेॅ सेॅ कर्जा-बियान तोड़ी कैॅ आठ मोन चाउर, तीन मोन बूट, ओतनें गहूम आरोॅ मसूर छौन। टोला के लोग मिली कैॅ सुखाय-बराय कैॅ राखी देने छौन। आबैॅ तोंय सनी आबी गेल्होॅ। बढ़िया सेॅ दबा-दारू, सेवा-उबा करभो तैॅ सत्तोॅ भाय जल्दीये खनखनाय जैतै। एतना कही-सुनी केॅ गोपी आपनो घोर गेलै।
साँझ कैॅ तीनो बेटा बिचार करै लैॅ बैठलै। इलाज में होय बाला खर्चा पर ढ़ेर चर्चा होलै। हेत्तैॅ खर्चा करला सैॅ की फैदा। इलाज कराबै के फेरा में काम-धाम चौपठ होय जैतै। फेरू दरमाहा के देतै। -छोड़ो तोय सनी भैया, हम्में अकल्ले दबा-दारू करबै-शीतल बोललै। -फेरू तेॅ साल-दू-साल में किरीया करम के चक्कर लागबे करतै। सूरज समझैलकै। -तबे की चन्दर टपकी कैॅ बोललै। सबसें बढ़िया एक दू दिन एन्हें देखो, बचै के होतै तैॅ बचतै नै तैॅ ़-़ ़ ़ ़। -तेॅ एक काम कर, गोपी काका केॅ बोलावें आरू किरिये-करम पर सोचें। सूरज आपनो विचार देलकै। -बोलाभो न गोपी काका के, कुच्छू नै कहथौन। शीतल बमकी-गेलै। चन्दर थैली से कागज निकाली के कहलकै-हम्मे पहिनै सोची लेने छीयै कि बाबू के रन्थी बनाय के शान से घुमाय-फेराय के जराना छै। आरू औहूनों भोज-भात करना छै जे आय तांय है गामो मेॅ नै होलोॅ छै। -हों तबे की। सूरज समर्थन करलकै आरो बात बढैलकै कि -आजकल तैॅ गाड़ी पर चढ़ाय कैॅ बढ़िया सब आदमी लहास बुड़ाय दै छै। बे-मतलव के रंथी बनाय केॅ की करतै। -शीतल सेॅ नै रहलोॅ गलै-कहलकै सबसेॅ बढ़िया आरोॅ सस्तोॅ टालिये पर होथैान भैया। लोग कहथौन कि मैंनेजर साहब के बाप मरलो छै।
सत्तन बेटा सनी के बात मोन मारी के सुनी रहलो छेलै। गाल लोर सैॅ लेटम-सेट। पता नै कहॉ सैॅ समांग आबी गेलै कि सत्तन उठी-पुठी कैॅ चुपचाप लाठी लेनैॅ बुदबुदैलोॅ निकली गेलै-हाय रे करम। बाह रे तीन कट्ठोॅ बेटा। अचानके बिछौना पर से सत्तन के गायब देखी केॅ शीतल अकबकाय गेलै। तुरत खोजबीन चले लागलै। लोग खोजतैॅ रहलै मगर पता नै कहाँ समाय गेलै सत्तन। बौला होय गेलै गाँव-समाज के लोग। नदी-नहार-पोखर-कुईयां सगर झग्गर गिरी गेलै, मतर सब बेरथ। धरलोॅ रही गेलै तीनो बेटा के सोचलका प्लान, कमाय, धरम-करम आरो सत्तन के आखरी वाक्य 'वाह रे तीन कट्ठोॅ बेटा'।