तीन कपूर खानदान और पीढिय़ों का अंतर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 सितम्बर 2013
एकल नायक फिल्म 'आशिकी-2' की सफलता तथा रणबीर कपूर-दीपिका पादुकोण अभिनीत 'ये जवानी है दीवानी' में चरित्र भूमिका करने के बाद आदित्य रॉय कपूर ने आदित्य चोपड़ा की एक फिल्म अनुबंधित की है। उनके भाई कुणाल ने भी उसी फिल्म में चरित्र भूमिका की है और एक फिल्म में वे नायक की भूमिका करने जा रहे हैं। इस हास्य फिल्म में वे एक युवा सरदार की भूमिका में नजर आएंगे। इन दोनों के बड़े भाई सिद्धार्थ रॉय कपूर यू टीवी कॉर्पोरेट के शिखर अधिकारी हैं और विद्या बालन के पति हैं। इस तरह फिल्म उद्योग में एक नए कपूर खानदान का उदय हो रहा है, जबकि उद्योग का प्रथम कपूर घराना अभी भी अत्यंत सक्रिय है- रणबीर कपूर, करीना, ऋषि कपूर एवं नीतू कपूर अपने-अपने क्षेत्र में व्यस्त हैं। प्रथम कपूर खानदान के संस्थापक पृथ्वीराज कपूर 1927 में मनोरंजन उद्योग से जुड़े, जब उसका प्रारंभ हुए लगभग पंद्रह वर्ष हुए थे और आज उनके परिवार का योगदान 57 वर्ष का हो चुका है।
नए कपूर घराने का उदय साधनों की विपुलता के कालखंड में हो रहा है, जबकि प्रथम घराना घोर संघर्ष और साधनों के अभाव के समय आया था। दोनों कपूर घरानों की तुलना नहीं की जा सकती, जैसे भारत के गुलामी के दिनों की किसी भी पीढ़ी की तुलना स्वतंत्रता के पश्चात की किसी पीढ़ी से नहीं की जा सकती। आज तो ताजा दो पीढिय़ों के बीच के अंतर को छोडिय़े, एक ही परिवार में पांच वर्ष के अंतर से उत्पन्न बच्चों की भी तुलना नहीं की जा सकती। किसी को पंद्रह की आयु में आईपैड या पर्सनल कंप्यूटर मिला है, तो कुछ इन गजेट्स को पांच वर्ष की आयु में पा जाते हैं। अब तो हम बच्चों के खिलौनों से ही समझ सकते हैं कि पीढिय़ों का अंतर किसे कहते हैं।
बहरहाल, नए कपूर घराने के सारे सदस्य केवल सप्ताहांत में ही एक-दूसरे से मिल पाते हैं, जबकि पुराने कपूर घराने के सारे सदस्य अपने विवाह तक एक ही छत के नीचे रहते आए हैं। कितने आश्चर्य की बात है कि पृथ्वीराज कपूर ने अपने जीवन में कभी कोई संपत्ति नहीं खरीदी, यहां तक कि भव्य फिल्में बनाने वाले राज कपूर भी 1982 तक किराए के मकान में रहते थे। अपनी सफलता के प्रारंभिक दौर में उन्होंने स्टूडियो जरूर बना लिया था और हमेशा उद्योग से प्राप्त धन से अपने स्टूडियो के लिए कोई नया उपकरण खरीदते रहे। आज तो टेलीविजन में काम करने वाला भी पहले एक फ्लैट खरीदता है और फिर सारी उम्र भव्यतर फ्लैट खरीदता हुआ अपना 'स्थायी पता' बदलता रहता है। आज कॉर्पोरेट में काम करने वाला युवा भी अधिक वेतन की तलाश में नौकरियां बदलता रहता है। सब अधिक से अधिक ऐश्वर्यशाली एवं सुविधा-संपन्न जीवन-शैली की चाह में दौड़ रहे हैं और विरोधाभास यह है कि सुविधाओं की जोड़-तोड़ में इतना समय और ऊर्जा खर्च होती है कि उनके उपभोग के लिए समय ही नहीं मिलता। संचय में ही समय निकल जाता है।
गौरतलब यह है कि इस भागमभाग का बुरा प्रभाव प्रकृति के साधनों पर पड़ रहा है और चहुंओर हम उसके खजाने को लूटते जा रहे हैं। धरती की अंतडिय़ों में लोहे के मशीनी हाथ डालकर हम उसका सबकुछ निकाल रहे हैं। किसी को इस बात की परवाह नहीं कि त्रस्त और शोषित धरती किसी दिन क्रोध में करवट भी ले तो सारे महल और ऊंची अटारियां ध्वस्त हो जाएंगी।
बहरहाल, इन दो कपूर घरानों के बहाने हम बात कुछ और कर रहे हैं तो तीसरे कपूर घराने का जिक्र भी जरूरी है। अनिल कपूर फिल्मों में अभिनय के साथ सीरियल '24' के निर्माण में लगे हैं तो उनके बेटे हर्षवर्धन की बात 'भाग मिल्खा भाग' के लिए प्रसिद्ध राकेश ओमप्रकाश मेहरा से हो रही है 'मिर्जा साहिबा' नामक फिल्म के लिए। बोनी कपूर की श्रीदेवी से जन्मी पुत्री जाह्नवी भी दक्षिण भारत की किसी फिल्म से अभिनय प्रारंभ करने जा रही है और उनका पुत्र अर्जुन भी व्यस्त है, गोया कि तीनों कपूर घराने सक्रिय हैं तो इनसे जुदा पंकज कपूर और उनके बेटे शाहिद कपूर भी काम कर रहे हैं। तीनों कपूर घरानों की प्रतिभा, कार्यशैली और जीवन-मूल्यों में अंतर है, समानता केवल फिल्म उद्योग में सक्रियता की है।