तीन घटनाओं का एक संदेश / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 12 फरवरी 2020
तीन अलग-अलग क्षेत्रों में महत्वपूर्ण घटनाएं घटी हैं। इन्हें प्रतीकात्मक माना जाना चाहिए। पहली घटना यह है कि 19 वर्ष से कम आयु के खिलाड़ियों द्वारा खेला गया क्रिकेट विश्व कप बांग्लादेश ने जीत लिया। दूसरी घटना है- दक्षिण कोरिया की फिल्म "पैरासाइट को श्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त हुआ। तीसरी घटना है- बांग्लादेश की ग्रोथ रेट आठ से अधिक है और भारत की पांच से कम। ग्रोथ रेट में पिछड़ने पर व्यवस्था के हिमायती यह कह रहे हैं कि बांग्लादेश छोटा है, अत: इस तरह की बढ़त आसानी से मिल जाती है। हमारा देश बड़ा है, साधन बाहुल्य है, काम करने को अनगिनत लोग बेकरार हैं। सभी साधन होते हुए भी विकास क्षेत्र में निल बटे सन्नाटा पसरा हुआ है। उद्योग-धंधे, कलकारखाने बंद पड़े हैं। सत्ता शिखर पर विराजमान व्यक्ति देश की समस्याओं पर खामोश रहते हैं। नफरत फैलाने के लिए उन्हें बड़ा जोश है।
इन तीनों क्षेत्रों में बौना समझा जाने वाला आम आदमी जीता है। जनसंख्या और भौगोलिक सरहदों से देश महान नहीं बनते। आम आदमी के प्रयास रंग लाते हैं। मार्क्स का कथन था कि "द वीक शैल इनहैरिट द वर्ल्ड, कमजोर का धरती पर कब्जा होगा। यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। दिल्ली में केजरीवाल के दल की जीत आशा जगाती है कि पुरातन अफीम के नशे से मुक्त होने का प्रयास किया जा रहा है।
एक औसत अमेरिकन फिल्म में प्रतिदिन फिल्म यूनिट के भोजन के लिए जितने डॉलर खर्च किए जाते हैं, उससे कम में दक्षिण कोरिया ने ऑस्कर जीतने वाली फिल्म का निर्माण कर लिया। पुन: यह तथ्य रेखांकित हुआ कि विपुल साधनों से ही सृजनात्मक कार्य नहीं होते। व्यक्तिगत प्रतिमा पानी की उस पतली धारा की तरह है जो चट्टान फोड़कर प्रभावित होती है। जैसे गोल पत्थरों से बनी सड़क में दो पत्थरों के बीच स्थित मिट्टी में एक नन्हा कोमल पत्ता उग जाता है। कोमल जानता है कि वह कुछ ही क्षणों में किसी जूते से कुचला जाएगा, परंतु जीवन के उन मासूम क्षणों को जीने के लिए वह बार-बार उगता है। शैलेंद्र ने अमिया चक्रवर्ती की फिल्म "पतिता के लिए गीत लिखा था, "मिट्टी से खेलते हो बार-बार किसलिए, टूटे हुए खिलौनों का शृंगार किसलिए। इन घटनाओं से यह तथ्य रेखांकित होता है कि कोई भी देश अपनी विराट जनसंख्या, भौगोलिक व राजनीतिक सरहदों से बड़ा या छोटा नहीं बनता वरन् आम आदमी अपनी स्वतंत्र विचार शैली से अपने जन्म की सतह से ऊपर उठता है और इतिहास रचता है। पुरातन अफीम खाकर नींद में गाफिल यह व्यक्ति कभी अंगड़ाई लेकर जागने का प्रयास करता है। ताजा चुनाव के नतीजे इसी अंगड़ाई से प्रभावित हुए हैं। आम आदमी को नायक बनाकर फिल्में हर कालखंड में बनती रही हैं। 1914 में चार्ली चैपलिन के उदय के साथ प्रारंभ धारा आज भी प्रवाहित है। आर.के.लक्ष्मण का कार्टून प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित होता रहा है और उसमें प्रस्तुत आम आदमी फटे कपड़े पहना है, सिर पर चार या पांच बाल खड़े हैं। मानो प्रश्न पूछ रहे हों। उसकी बगल में एक छाता दबा रहता है। वह इस छाते काे अपना रक्षा कवच मानता है। वह यह भी जानता है कि यह छाता उसे वर्षा से बचा नहीं पाएगा, गर्मी से रक्षा नहीं कर पाएगा। परंतु छाता उसकी आशा का प्रतीक माना जाना चाहिए। जाने कहां गए वो दिन जब आर.के.लक्ष्मण, राजेंद्र माथुर और हरिशंकर परसाई जैसे लोग होते थे। ज्ञातव्य है कि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर को दो देशों के राष्ट्रीय गीत लिखने का गौरव प्राप्त है। भारत के लिए "जन गण मनऔर बांग्लादेश के लिए "ओमार सोनार बांग्लादेश...।
अल्लामा इकबाल ने 1904 में लिखा- "सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा, मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम, वतन है हिंदुस्तान हमारा। ज्ञातव्य है कि टैगोर और इकबाल समकालीन माने जाते हैं। इकबाल का जन्म गुरु टैगोर से 11 वर्ष पश्चात हुआ। दोनों की मृत्यु भारत के स्वतंत्र होने के पहले हो गई, परंतु उनके अवचेतन में भारत हमेशा स्वतंत्र देश ही रहा।