तीन दिन / अनीता चमोली 'अनु'
पैनगढ़ के राजा अजयप्रताप सिंह ने राजकुमारी लीलावती के स्वयंवर की घोषणा कर दी। दूर-दराज से कई राजकुमार पैनगढ़ आ पहुंचे। अनोखे प्रस्ताव की भूमिका रखते हुए राजा ने कहा-”राजकुमारी का विवाह उसी राजकुमार से होगा जो राजकुमारी से तीन दिनों के मध्य में बात कर सकेगा। राजकुमारी महल से बाहर नहीं जाएगी। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था को बेधकर ही राजकुमारी से मिला जा सकता है। इच्छुक राजकुमार यदि तीन दिन के मध्य राजकुमारी से बात नहीं कर पाया तो उसका सर कलम कर दिया जाएगा।”
दरबार में खलबली मच गई। स्वयंवर में आए राजकुमार एक-एक कर उठ कर जाने लगे। पल भर में ही समूचा दरबार खाली हो गया। कोने में एक युवक को खड़ा देख राजा ने पूछा-”हे राजकुमार। तुमने सुना नहीं। स्वयंवर की शर्त क्या है। तीन दिनों के मध्य राजकुमारी से बात नहीं कर पाए तो बदले में तुम्हें अपना सर गंवाना पड़ सकता है।” युवक बोला-”महाराज, सर कलम किये जाने का मुझे भय नहीं। मैं राजवीर हूं। एक किसान पुत्र। खेती-किसानी ही मेरा पेशा है। मैं आपके अनोखे प्रस्ताव को चुनौती देता हूं।”
यह सुनकर राजा अजयप्रताप सिंह ने तलवार खींच ली। महारानी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा-”राजन। राजवीर किसान पुत्र है तो क्या। इसका साहस तो देखिए। क्षण भर पहले समूचा राजभवन राजकुमारों से भरा हुआ था। मात्र राजवीर ही है जिसने स्वयंवर की शर्त को स्वीकार किया है। शेष तो चूहे की भांति खिसक गए। क्या हमारी राजकुमारी आजीवन कुंआरी ही रहेगी?”
राजा ने तलवार म्यान में रख दी। सिर हिलाते हुए कहा-”ठीक है। राजवीर को तीन दिन का समय दिया जाता है। चैथा दिन तय करेगा कि ये हमारा उत्तराधिकारी होगा या इसका सर कलम होगा।”
राजवीर ने घर लौटकर सारा अपने बूढ़े पिता को सुनाया। पिता ने कहा-”बेटा। मेरे पास जीवन भर की जमा पूंजी केवल दस सोने की अशरफियां हैं। इनसे कुछ बन पड़ता हो तो ले लो।” राजवीर ने अशरफियां ली और सीधे प्रसिद्ध सुनार के पास गया। सुनार को अशरफियां देते हुए कहा-”ये पेशगी है। कल सुबह तक नकली सोने का हाथी बना दो। मुंह मांगा इनाम मिलेगा सो अलग।”
महल के मुख्य द्वार पर भीड़ एकत्र थी। एक बूढ़ा डोर लिये चांदी के हाथी को खींचता हुआ महल की ओर आ रहा था। पीछे-पीछे भीड़ कौतूहलता से चल रही थी। जो सुनता चांदी के हाथी को देखने दौड़ पड़ता। यहां तक कि राजा और रानी भी खुद को नहीं रोक पाए। राजा ने हाथी को आश्चर्य से देखते हुए कहा-”बेचोगे इसे?”
बूढ़े ने कहा-”नहीं राजन। ये बेचने के लिए नहीं है। मैं कल इसे गंगा में बहा दूंगा।”
चांदी के हाथी की खबर लीलावती के कानों पर भी पड़ी। वह भी चांदी के हाथी को देखने की जिद करने लगी। राजा ने कहा-”तुम्हारे स्वयंवर का आज तीसरा दिन है। आज तुम्हें राजमहल से बाहर जाने की अनुमति नहीं मिल सकती।”
लीलावती रोते हुए कहने लगी-”तो फिर हाथी को ही मेरे शयनकक्ष में भिजवा दें अन्यथा में विषपान कर लूंगी।” लीलावती दौड़कर अपने कक्ष में चली गई। विवश हो कर राजा ने बूढ़े से निवेदन किया कि वो अपना चांदी का हाथी राजकुमारी को उसके कक्ष में दिखा दें। बूढ़ा मान गया। हाथी को लीलावती के शयनकक्ष में धकेलकर बूढ़ा कक्ष के द्धार पर बाहर खड़ा हो गया। लीलावती चांदी के हाथी को देखकर हैरान रह गई। लेकिन यह क्या। हाथी के अंदर से राजवीर निकल आया। राजवीर ने लीलावती से कहा-”राजकुमारी। केवल आपसे बात करने के लिए ही मुझे यह सब करना पड़ा। मुझे पिता की जीवन भर की जमा-पूंजी और खेत-खलिहान भी गिरवी रखने पड़े। तब जाकर यह चांदी का हाथी बन पाया है। आपको अपने पिता से मात्र इतना कहना है कि आपने मुझसे बात कर ली है। अन्यथा कल सुबह मेरा सर कलम कर दिया जाएगा।” लीलावती मंद-मंद मुस्कराई। उसने राजवीर को चांदी के हाथी सहित अपने कक्ष से बाहर धकेल दिया। बूढ़ा हाथी हाथी लेकर राजमहल से बाहर आ गया।
चौथे दिन सैनिक राजवीर को पकड़ कर दरबार में ले आए। राजा ने कहा-”राजवीर अपना सर कलम करवाने के लिए तैयार हो जाओ।” राजवीर बोला-”महाराज। मैं राजकुमारी से बात कर चुका हूं। आप चाहे तो उससे पूछ सकते हैं।”
राजकुमारी को बुलवाया गया। राजकुमारी ने कहा-”हे राजन। मैं राजवीर को अपना पति सहर्ष स्वीकार कर चुकी हूं। इन्होंने महल की सुरक्षा व्यवस्था को कमजोर साबित कर दिया है। सूझ-बूझ का परिचय दिया है।” सारा किस्सा सुन कर पैनगढ़ के राजा अजयप्रताप सिंह ने अपना मुकुट उतार दिया। अब वह मुकुट राजवीर के शीश पर चमक रहा था।