तीन बुधवार तीन शवदाह / जयप्रकाश चौकसे

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तीन बुधवार तीन शवदाह

प्रकाशन तिथि : 29 जुलाई 2012

बुधवार २५ जुलाई को निर्देशक बाबूराम इशारा की अंत्येष्टि में फिल्म उद्योग के अनेक लेखक जैसे सलीम खान, कमलेश, अनीस बज्मी, विनय शुक्ला इत्यादि मौजूद थे, परंतु अभिनेताओं की बिरादरी से केवल रजा मुराद मौजूद थे। उनका कहना था कि इस माह बुधवार 11 जुलाई को इसी श्मशान भूमि में दारासिंहजी और 18 जुलाई बुधवार को राजेश खन्ना तथा 25 जुलाई बुधवार को इशारा की अंत्येष्टि कर रहे हैं। शुक्र है जुलाई में यह आखिरी बुधवार है। रजा मुराद फिल्म उद्योग में अपने परिवार की दूसरी पीढ़ी हैं। उनके पिता मुराद साहब एक जमाने में सितारा थे। उनकी आवाज के अनगिनत प्रशंसक थे, उस दौर में जब पृथ्वीराज कपूर और सोहराब मोदी की संवाद अदायगी के चर्चे थे। रजा मुराद की आवाज अपने पिता की तरह प्रभावोत्पादक रही है। एक अच्छी पारी के बाद उनके कॅरियर में मंदी का दौर आया, तब राज कपूर ने उन्हें 'प्रेमरोग' में लिया। उसके बाद 'राम तेरी गंगा मैली' व 'हिना' में भी लिया।

बहरहाल रजा मुराद साहब ने लगातार तीन बुधवार को अंत्येष्टि की बात की थी, परंतु ऐसे इत्तफाक से अंधविश्वास का भी जन्म होता है। इसी तरह 13 के आंकड़े को इस तरह मनहूस माना जाता है कि कई पांच सितारा होटलों में 12 के बाद बारह 'ए' और 14 माला आ जाता है। कुछ लोगों ने प्रणब मुखर्जी के 13वें राष्ट्रपति बनने पर भी कुछ इसी तरह की बातें कीं, जिनमें कोई दम नहीं है। अगर राष्ट्र की कोई कुंडली होती है तो उसके सारे ग्रहों में अवाम ही बैठा होता है और उसका चरित्र ही राष्ट्र का भाग्य होता है।

बाबूराम इशारा बचपन में स्टूडियो के कैंटीन में चाय पिलाने की नौकरी करते थे। बिमल रॉय के सहायक और नजदीकी मित्र हास्य अभिनेता असित सेन ने उन्हें प्रश्रय दिया। इशारा ने फिल्म निर्माण के सभी विभागों में बतौर सहायक काम किया और एक दिन उन्हें फिल्म निर्देशित करने का अवसर मिला। उन्होंने नए कलाकारों के साथ अत्यंत अल्प बजट में 'चेतना' नामक फिल्म बनाई। सेट लगाने के खर्च से बचने के लिए उन्होंने बंगलों में शूटिंग की। फिल्म में नई कलाकार रेहाना सुल्तान केंद्रीय पात्र थीं। यह कॉलगर्ल के जीवन पर बनी फिल्म थी, इसमें नादिरा एक उम्रदराज महिला की भूमिका में थीं और उसी व्यवसाय से आई थीं। युवा कॉलगर्ल को वे कहती हैं कि वह उसके आज में अपना बीता हुआ कल देखती हैं और युवा लड़की उनमें अपना आने वाला कल देख सकती है। 'चेतना' अत्यंत सफल रही।

'चेतना' की सफलता के बाद अनेक निर्माताओं ने बंगलों में शूटिंग करके धन बचाया। इशारा ने क्रिकेट सितारा सलीम दुर्रानी के साथ परवीन बॉबी को 'चरित्र' नामक फिल्म में प्रस्तुत किया। इशारा ने कई फिल्मों के संवाद लिखे। रेहाना और बाबूराम इशारा ने विवाह कर लिया। विगत कुछ वर्षों से वे गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। कुछ लेखकों ने उनकी आर्थिक मदद की। सलीम साहब भी उनसे मिलने गए और रेहाना को पैसे दिए। इशारा ने उन्हें बताया कि विगत कुछ वर्षों से रेहाना का भाई उनकी सेवा कर रहा है। उनकी कोई संतान नहीं है। उनकी अंत्येष्टि वैदिक रीति-रिवाजों से की गई और उनके मुस्लिम साले ने उन्हें मुखाग्नि दी। फिल्म उद्योग हमेशा ही पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष रहा है। ऐसी घटनाओं से समाज में धर्मनिरपेक्षता की मौजूदगी का भान होता है। विगत कुछ दशकों से समाज में धर्म को लेकर अनेक विभाजन भी हमें देखने को मिलते हैं। ऐसे में इशारा की मुस्लिम साले द्वारा वैदिक रीति से की गई अंत्येष्टि कुछ दिलासा देती है।

दरअसल अजब-गजब भारत के समाज में चावल के एक दाने से पूरी खिचड़ी या बिरयानी के पके होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। यह अपरिभाषेय देश है। यहां नफरत की बाढ़ में कुछ लोग तिनकों के सहारे प्राण बचा लेते हैं। अंत्येष्टि स्थल विचित्र जगह है, जहां समरसता का दिखाई देना पूरे समाज की हकीकत नहीं मानी जा सकती। 'राहे रौ अदम का कोई मिले तो टोक के उसे पूछेंगे, सब जाते हैं आंखें बंद किए।' ऐसे अनेक लोग हैं, जो आंखें बंद किए सारा जीवन गुजार देते हैं।