तीर / श्रीभगवान सैनी / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: अप्रैल-जून 2012 |
'कासू, मूंगां नै पाणी कांई सींचै..? अै तो दिनूं-दिन लीला होयां जावै?'
सराधां रै आकरा दिनां मांय ई कासू रा मूंग टीपां चोंवता देख'र गेलै बगतै हरखू हेलो कर्यो।
'लीला पान है भाया, फळी रो तो अजै नांव कोनी...ऊपरलो ई जाणै कांई कर्यो है। आवो चाय पी लो?' डेरै बेठ्यो कासू मनवार करी।
'नां भाईड़ा, म्हारै तो मूंग-मोठ री लावणी आयगी। पानड़ा भेळा करल्यां बित्ता ई चोखा है, नीतर डांखळा खिंडणा सरू होय जासी।' कैवतो हरखू आपरै खेत कानी टुरग्यो।
आ खेड़ी गांव सूं निकळतां ई पैल-पोत आवै अर इण सूं आगै हरखू री खेड़ी है। हरखू नै आपरी खेड़ी मांय जावणै खातर बाणियां री इण खेड़ी सूं ई गुजरणो पड़ै। बियां तो गांव-गौरवैं री इण खेड़ी नै कोई बावण नै त्यार ई नीं होवै। क्यूंकै डांगरां री पगार मांय होणै सूं रुळेट पसुवां री रुखाळी रो टंटो घणो होवै। पण, कासू कन्नै न तो बावण नै जमीं ही अर न ई बिघोड़ी रा पईसा। कोई दूजो खेत हाथ नीं आवणै अर कीं हरखू री स्याणफत सूं कासू अबकै इण खेड़ी नै बावण सारू राजी होयग्यो। बाणियै नै राजी करणो हरखू रो काम हो। बण कैयो कै सेठां थारी खेड़ी फालतू पड़ी रैवै। जिण सूं म्हारै खेत आडी कोई अडेखण नीं है। खाली जमीन रो कांई मोल...? खुणै-खचूणै लोग दबासी इण सूं आछो है, कासू नै बावणै सारू देय दो। जमीं री रुखाळी होय जासी अर नीपज्यां कीं पल्लै घाल ई सी? थांरै लागै कांई है, आंवत ई है?
सेठ रै ई हरखू री राय हियै ढूकी। बण सोच्यो कै और कीं नीं तो गांव-गाळियां रै खेतां मांय ठंडी धरती होवणै सूं साग-सब्जी तो बापरसी ई अर घणो कीं होसी तो तीजी पांती लेय लेसां। पईसा टक्का तो कासू कन्नै देवण नै कीं है नीं, पण होयै मांय तो सीर ई है। आ सोच'र ई बण कैयो कै देख भई हरखू, तेरै कैवणै सूं इण बरस ई खेत बावणो देवणै री हामळ भरी है। पण कातीसरै मांय म्हारो पूरो सीर रैवैला अर खळां मांय तीजी पांती म्हारी। मंजूर होवै तो कासू खेत बाय सकै। 'मंजूर है।' कासू झट करतै हामळ भर दी।
कासू रै खुद री माया रै नांव माथै कानूड़ो-कानूड़ी दोय टाबर अर घरधिराणी लिछमी है। घरधिराणी रै ई धिणाप करणै ज्यूं घर मांय दोय झूंपड़्यां अर अेक छान है जिकी नै वा घणै जतन सूं साफ-सुथरा राखै। कासू मैणती घणो ई है। अेकलो ई दोय मोट्यारां सूं बत्ती काम करै। पण गांवां मांय काम कठै? इणी खातर कासू सै'र मांय जावै। सै'र मांय कमठाणा चालता ई रैवै जिण सूं उणनै सांवठो काम मिल जावै अर जे कमठाणा नीं चालै तो कासू नै पलदारी करणै अर ठूंठ फाड़णै सूं ई कोई परहेज नीं है। बस मजूरी होवणी चाहिजै।
कासू री आ हाड-तोड़ मैणत ई उणनै दोय बखत री रोट्यां देवै। इण सूं बत्ती कीं नीं मिलै। कानूड़ो-कानूड़ी स्कूल जावै। उणां सारू नूवीं ड्रेस बणावणो ई उण रै महाभारत। बिच्यारी लिछमी पुराणी ड्रेसां नै ई रगड़-रगड़'र धोवै अर स्कूल मांय भूंडी नीं लागै इण सारू जतन करै। आपरी साड़ी कै कासू खातर सूट तो घणी अळगी बातां है। तीन साल सूं तो झूंपड़्यां री छावण ई नीं बदळीजी है। लारली साल रामजी कोई गेलो भूल'र घणो आछो बरस्यो। अेक मेह री आस मांय बूढा होयोड़ा मिनख ई 'भगवान अबैं तो बस कर' रो नांव जपै लाग्या। खेती-खडिय़ां रा काम-धंधा सांवटणै रा नांव ई नीं लिया अर दिवाळी खेतां मांय ई मनाईजी।
आपणो देस बियां ई तीज-तिंवारां रो देस कैईजै। अठै छठ-बारै मास कदैई कीं अर कदैई कीं लाग्योड़ो ई रेवै। पण होळी अर दिवाळी दोय अैड़ा तिंवार है जिका अठै रै मानखै रै हिड़दै मांय बिराजै। इणां री तासीर इत्ती गैरी है कै मिनख री मनचींती नीं होवै तो झट करतै कैय देवां कै बापड़ै रै हियै मांय होळका जग रैयी है। अर जे कोई सुख-सांयत सूं कीं सौ'रो रैवणो सुरू होवै तो कैवता कांई बार लागै, कै इण री बातां छोडो भाई, इण रै तो नित री दिवाळी धौकीजै।
पण कासू रै तो होळी'र दिवाळी दोवूं अेक-सी ई ही। इण बरस ई मेह रा मंडाण बखतसर मंड्या सूण-सामण वाळा ई जमानै रा पग बताया तो हरखू कासू रै कुचरणी करणी सरू कर दी कै भायला इयां तो पच-पच'र मरज्याई, मजूरी सूं तो पेट लिवाड़ी ई होसी। राम सागै सौदो कर, जे लारली साल ज्यूं नीपज्यो तो दाळद धुपतां देर नीं लागैली। कासू रै ई हरखू री बात हियै ढुकी अर खेती मांय तकदीर अजमावणै रो मन बणायो। बाणियै री आ खेड़ी गांव रै सारै ई उणरै चौखी ताबै आयी। रामजी री मै'र कै धान खेत मांय नावड़ै नीं। बायो जद तो केई जग्यां सूं धान उडग्यो अर केई जग्यां रुळेट डांगरा ई मूंडा मारग्या। पण फेरूं लगोलग बरस्या मेह अर कासू री रुखाळी रै कारण सूं मोठ पीढै-पीढै मान पसरग्या। गुंवार-बाजरी में बधणै री होड लागगी। कातीसरै रो तो चांको ई नीं हो। बाणियै रै घरां लिछमी आंवती-जांवती काचर-फळी पुगाय देवती। सेठ ई राजी होयर्यो कै धोरिया चौखा निपजसी। बिनां लागत ई अबकै तो चोखी आंवत है। बण तो आपरै मन माय अठै तक सोच लियो कै आवतै बरस ई खेत कासू नै ई बावणो देवणो है अर जे कासू कैयसी तो खेत रै तारबंदी और करवायद्यां। जमीं कब्जै होय जासी अर खेत रो पइसो ई खेत मांय लागसी। कासू री जागती आंख्यां सुपना देखै लागी- झूंपड़्यां री ठौड़ अेक पक्की साळ अर लिछमी, टाबरां साथै आपरा नूंवा कपड़ा। घर मांय धीणै सारू गाय नीं तो बकरी जरूर ल्यावांला। घणां दिनां री भोग्योड़ी काठ इण दिवाळी पाछै धुप ज्यासी। दिवाळी तक खळा निकळ जासी अर तीजी पांती सेठ नै दियां पाछै ई इत्तौ सरंजाम तो होय जासी। मारग बगता मिनख उण रै धान री सवा-सौ मण री कूंत करै।
लावणी अजै कासू रै आयोड़ी नीं ही। मोठ-गंवार फळ्यां सूं टूटै हा। दिनूगै-दिनूगै मारग बगतो हरखू कासू रै खेत मांय मारग सूं टळ'र मोठ रो अेक नाळ उठा'र देख्यो। सवा हाथ लाम्बो नाळ फळ्यां सूं लड़ालूम हो।
'भाईड़ा कासू, थारै तो मोठ ई ब्यायग्या लागै, इयां कांई कर्यो है?' फळ्यां देख'र हरखू भळै कासू नै हेलो कर्यो अर आपरी खेड़ी कानीं टुरग्यो।
कासू तो कीं नीं बोल्यो पण, लिछमी रै किणी अणजाणी शंका रा बादळ घिरोळिया घालै लाग्या। बा मारग कन्नै जाय'र देख्यो- मोठ रो नाळ अजै ई पळट्योड़ो हो अर फळ्यां सामीं निगै आवै ही। बा हरखू रा खोज देख्या अर खोज री कीं रेत मुट्ठी मांय दाब ल्यायी। डेरै आय'र बळतै चूल्है मांय उण नै न्हाखी।
'ओ कांई कर्यो है?' कासू चूल्है मांय लिछमी नै रेत न्हाखतां देख'र पूछ्यो।
'लोगां नै कांणती रो काजळ ई कोनी सुहावै।' मोठ ब्यायग्या..., जाणै कदैई मोठ देख्या ई कोनी बापड़ै। म्हारलां रै निजर लगायसी।' लिछमी मन री भाप काढी। कासू हंस्यो। अर मुळक'र बोल्यो- 'बावळी, ऊपरलो देवै, जद किणीं री निजर नीं लागै। निजर तो करमां री होया करै। भगवान देयो है, देख-देख'र आं रो ई जीव राजी होवै। थांरो कांई लागै?'
'म्हारो कीं कोनी लागै, लोग सगळा लावणी लागग्या। आपां अेकला ई बैठ्या रैयस्यां कांई? घणी ई लागगी फळ्यां। भेळवाड़ मांय पाछै डांगर अंत लेवैला?' लिछमी बोली तो भळै ई रीस मांय ही, पण लिछमी री आ बात कासू रै हियै ढुकी अर बो ई लावणी लागणै रो मतौ कर लियो। गांव रै चिपती खेती होवणै सूं कासू रा डेरा खेड़ी मांय ई लगायोड़ा हा। लिछमी गांव मांय पाणी ल्यावणै सारू ई जावती अर कासू सात दिनां रो सांवठो रासन लेय आवतो। कानूड़ो-कानूड़ी अठै सूं ई स्कूल जावै लाग्या। घरां कुणसी न्योळी दाब्योड़ी ही कै उण नै रुखाळै? पण दिवाळी नेड़ै आयगी ही अर इण मोकै घर री साफ-सफाई रो रिवाज तो जूनै जुगां सूं ई चालतो आवै हो। कैवै कै लिछमी साफ-सुथरै घरां ई आपरा पगलिया करै, पछै लिछमी आपरै घर नै क्यूं नीं सुधारै? अबकै तो रामजी राजी होयोड़ा है, भळै लिछमी रै कोड मांय बा क्यूं कंजूसी बरतै। मोटा-मोट लावणी होयगी ही। खळा घाल्योड़ा त्यार हा पण, सामीं तिंवार आवणै सूं बै सोच्यो कै छुटपुटियो काम सळटा'र ई खळा खोलस्यां। इत्तै दो-तीन दिन घर री सार-संभाळ ई होय जासी अर तिंवार सिर घर खुलो रैय जासी।
बियां तो दिवाळी हर साल ई आवै पण, लिछमी रै तो दिवाळी अबकै ई आयी। बा गोबर री भींत नै धोळख सूं पोत'र उणां माथै हिरमिच सूं सूण मांड्या। आंगणां मांय कूं-कूं रा पगलिया बणाया। मूंग री दाळ रो सीरो अर खजली-पापड़ी साथै सकरपारा बणाया। टाबरां नै टिकड़्यां-फुलझड़्यां री जग्यां अबकै कासू तीर-पटाखा दिराया। रात री नव बज्यां रै सुभ-मौरत मांय धणी-लुगाई दोवूं लिछमीजी रो दिवलो कर'र जोत करी अर पाछै आरती-पूजा करै लाग्या।
लिछमी कन्नै जेवर रै नांव माथै अेक जड़ावू रो बोरलो हो जिको आज उण रै सिर माथै घणो फूटरो लागै हो। अेक चांदी रो रुपियो हो जिकै नै हर दिवाळी रा वा लिछमी पूजा मांय चिरच'र पाछौ ई संदूक मांय मै'ल देवै। बा मन ई मन कैवै ही-'हे लिछमी माता, अबकै तूठी है जिसी हर साल ई तूठी। आवती साल इसौ ई अेक रुपियो और पूजा मांय धरूंली।'
अचाणचकै हाको सुणीज्यो- 'खेड़ी में लाय लागगी। कोई तीर खळां में पड़ग्यो दिखै।' खेड़ी सैंचन्नण ही। कासू रा खळा धपड़-धपड़ करता जगै हा। गांव सूं केई जणां खेड़ी कानी भाज्या। कासू अर लिछमी रोळो सुण'र उंतावळा सा पूजा खतम करी अर झूंपड़ी सूं बारै निकळ्या। खेड़ी मांय खळै रै लाग्योड़ै लांपै उणां रै सपनां री राख बणा नाखी। उणां रै पगां रो सत्त टूटग्यो। बठै ई धम्म देणी बैठग्या। अमावस री रात रो सैंग अंधारो उणां रै अंतस मांय उतरग्यो। दिवाळी रै दिन ई उणां रै तो दोय-दोय होळका जगै ही। अेक खेड़ी मांय अर दूजी उणां रै काळजां मांय।