तीसरा अध्याय / बयान 4 / चंद्रकांता
तिलिस्मी खंडहर में घुसकर पहले वे उस दलान में गए जहां पत्थर के चबूतरे पर पत्थर ही का आदमी सोया हुआ था। कुमार ने इसी जगह से तिलिस्म तोड़ने में हाथ लगाया।
जिस चबूतरे पर पत्थर का आदमी सोया था उसके सिरहाने की तरफ पांच हाथ हटकर कुमार ने अपने हाथ से जमीन खोदी। गज भर खोदने के बाद एक सफेद पत्थर की चट्टान देखी जिसमें उठाने के लिए लोहे की मजबूत कड़ी लगी हुई भी दिखाई पड़ी। कड़ी में हाथ डाल के पत्थर उठाकर बाहर किया। तहखाना मालूम पड़ा, जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियां बनी थीं।
तेजसिंह ने मशाल जला ली, उसी की रोशनी में सब कोई नीचे उतरे। खूब खुलासा कोठरी देखी, कहीं गर्द या कूडे का नाम-निशान नहीं, बीच में संगमर्मर पत्थर की खूबसूरत पुतली एक हाथ में कांटी दूसरे हाथ में हथौड़ी लिए खड़ी थी।
कुमार ने उसके हाथ से हथौड़ी-कांटी लेकर उसी के बाएं कान में कांटी डाल हथौड़ी से ठोक दी, साथ ही उस पुतली के होंठ हिलने लगे और उसमें से बाजे की-सी आवाज आने लगी, मालूम होता था मानो वह पुतली गा रही है।
थोड़ी देर तक यही कैफियत रही, यकायक पुतली के बाएं-दाहिने दोनों अंग के दो टुकड़े हो गये और उसके पेट में से आठ अंगुल का छोटा-सा गुलाब का पेड़ जिसमें कई फूल भी लगे हुए थे और डाल में एक ताली लटक रही थी निकला, साथ ही इसके एक छोटा-सा तांबे का पत्र भी मिला जिस पर कुछ लिखा हुआ था। कुमार ने उसे पढ़ा-
“इस पेड़ को हमारे यहां के वैद्य अजायबदत्ता ने मसाले से बनाया है। इन फूलों से बराबर गुलाब की खुशबू निकलकर दूर-दूर तक फैला करेगी। दरबार में रखने के लिए यह एक नायाब पौधा सौगात के तौर पर वैद्यजी ने तुम्हारे वास्ते रखा है।”
इसको पढ़कर कुमार बहुत खुश हुए और ज्योतिषीजी की तरफ देखकर बोले, “यह बहुत अच्छी चीज मुझको मिली, देखिये इस वक्त भी इन फूलों में से कैसी अच्छी खुशबू निकलकर फैल रही है।”
तेज-इसमें तो कोई शक नहीं।
देवी-एक से एक बढ़कर कारीगरी दिखाई पड़ती है!
अभी कुमार बात कर रहे थे कि कोठरी के एक तरफ का दरवाजा खुल गया। अंधेरी कोठरी में अभी तक इन लोगों ने कोई दरवाजा या उसका निशान नहीं देखा था पर इस दरवाजे के खुलने से कोठरी में बखूबी रोशनी पहुंची। मशाल बुझा दी गई और ये लोग उस दरवाजे की राह से बाहर हुए। एक छोटा-सा खूबसूरत बाग देखा। यह बाग वही था जिसमें चपला आई थी और जिसका हाल हम दूसरे भाग में लिख चुके हैं।
बमूजिब लिखे तिलिस्मी किताब के कुमार ने उस ताली में एक रस्सी बांधी जो पुतली के पेट से निकली थी। रस्सी हाथ में थाम ताली को जमीन में घसीटते हुए कुमार बाग में घूमने लगे। हर एक रविशों और क्वारियों में घूमते हुए एक फव्वारे के पास ताली जमीन से चिपक गई। उसी जगह ये लोग भी ठहर गये। कुमार के कहे मुताबिक सबों ने उस जमीन को खोदना शुरू किया। दो-तीन हाथ खोदा था कि ज्योतिषीजी ने कहा, “अब पहर भर दिन बाकी रह गया, तिलिस्म से बाहर होना चाहिए।”
कुमार ने ताली उठा ली और चारों आदमी कोठरी की राह से होते हुए ऊपर चढ़ के उस दलान में पहुंचे जहां चबूतरे पर पत्थर का आदमी सोया था,उसके सिरहाने की तरफ जमीन खोदकर जो पत्थर की चट्टान निकली थी उसी को उलटकर तहखाने के मुंह पर ढांप दिया। उसके दोनों तरफ उठाने के लिए कड़ी लगी हुई थी, और उलटी तरफ एक ताला भी बना हुआ था। उसी ताली से जो पुतली के पेट से निकली थी यह ताला बंद भी कर दिया।
चारों आदमी खंडहर से निकल कुमार के खेमे में आये। थोड़ी देर आराम कर लेने के बाद तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषीजी कुमार से कह के वनकन्या की टोह में जंगल की तरफ रवाना हुए। इस समय दिन अनुमानत: दो घण्टे बाकी होगा।
ये तीनों ऐयार थोड़ी ही दूर गये होंगे कि एक नकाबपोश जाता हुआ दिखा। देवीसिंह वगैरह पेड़ों की आड़ दिये उसी के पीछे-पीछे रवाना हुए। वह सवार कुछ पश्चिम हटता हुआ सीधो चुनार की तरफ जा रहा था। कई दफे रास्ते में रुका, पीछे फिरकर देखा और बढ़ा।
सूरज अस्त हो गया। अंधेरी रात ने अपना दखल कर लिया, घना जंगल अंधेरी रात में डरावना मालूम होने लगा। अब ये तीनों ऐयार सूखे पत्तो की आवाज पर जो टापों के पड़ने से होती थी जाने लगे। घंटे भर रात जाते-जाते उस जंगल के किनारे पहुंचे।
नकाबपोश सवार घोड़े पर से उतर पड़ा। उस जगह बहुत से घोड़े बंधे थे। वहीं पर अपना घोड़ा भी बांधा दिया, एक तरफ घास का ढेर लगा हुआ था, उसमें से घास उठाकर घोड़े के आगे रख दी और वहां से पैदल रवाना हुआ।
उस नकाबपोश के पीछे-पीछे चलते हुए ये तीनों ऐयार पहर रात बीते गंगा किनारे पहुंचे। दूर से जल में दो रोशनियां दिखाई पड़ीं, मालूम होता था जैसे दो चंद्रमा गंगाजी में उतर आये हैं। सफेद रोशनी जल पर फैल रही थी। जब पास पहुंचे देखा कि एक सजी हुई नाव पर कई खूबसूरत औरतें बैठी हैं, बीच में ऊंची गद्दी पर एक कमसिन नाजुक औरत जिसका रोआब देखने वालों पर छा रहा है बैठी है, चांद-सा चेहरा दूर से चमक रहा है। दोनों तरफ माहताब जल रहे हैं।
नकाबपोश ने किनारे पहुंचकर जोर से सीटी बजाई, साथ ही उस नाव में से इस तरह सीटी की आवाज आई जैसे किसी ने जवाब दिया हो। उन औरतों में से जो उस नाव पर बैठी थीं दो औरतें उठ खड़ी हुईं तथा नीचे उतर एक डोंगी जो उस नाव के साथ बंधी थी, खोलकर किनारे ला नकाबपोश को उस पर चढ़ा ले गयीं।
अब ये तीनों ऐयार आपस में बातें करने लगे-
तेज-वाह, इस नाव पर छूटते हुए दो माहताबों के बीच ये औरतें कैसी भली मालूम होती हैं।
ज्योतिषी-परियों का अखाड़ा मालूम होता है, चलो तैर के उनके पास चलें।
देवी-ज्योतिषीजी, कहीं ऐसा न हो कि परियां आपको उड़ा ले जायं, फिर हमारी मंडली में एक दोस्त कम हो जायगा।
तेज-मैं जहां तक ख्याल करता हूं यह उन्हीं लोगों की मंडली है जिन्हें कुमार ने देखा था।
देवी-इसमें तो कोई शक नहीं।
ज्यो-तो तैर के चलते क्यों नहीं? तुम तो जल से ऐसा डरते हो जैसे कोई बुङ्ढा आफियूनी डरता हो।
देवी-फिर तुम्हारे साथ आने से क्या फायदा हुआ? तुम्हारी तो बड़ी तारीफ सुनते थे कि ज्योतिषीजी ऐसे हैं, वैसे हैं, पहिया हैं, चर्खे हैं मगर कुछ नहीं,एक अदनी-सी मंडली का पता नहीं लगा सकते।
ज्यो-मैं क्या खाक बताऊं? वे लोग तो मुझसे भी ज्यादे ओस्ताद मालूम होती हैं! सबों ने अपने-अपने नाम ही बदल दिये हैं, असल नाम का पता लगाना चाहते हैं तो अजीब-गरीब नामों का पता लगता है। किसी का नाम वियोगिनी, किसी का नाम योगिनी, किसी का भूतनी किसी का डाकिनी, भला भताइये क्या मैं मान लूं कि इन लोगों के यही नाम हैं?
तेज-तो इन लोगों ने अपना नाम क्यों बदल लिया?
ज्यो-हम लोगों को उल्लू बनाने के लिए।
देवी-अच्छा नाम जाने दीजिये इनके मकाम का पता लगाइये।
ज्यो-मकाम के बारे में जब रमल से दरियाफ्त करते हैं तो मालूम होता है कि इन लोगों का मकाम जल में है, तो क्या हम समझ लें कि ये लोग जलवासी अर्थात् मछली हैं।
तेज-यह तो ठीक ही है, देखिए जलवासी हैं कि नहीं?
ज्यो-भाई सुनो, रमल के काम में ये चारों पदार्थ-हवा, पानी, मिट्टी और आग हमेशा विघ्न डालते हैं। अगर कोई आदमी ज्योतिषी या रम्माल को छकाना चाहे तो इन चारों के हेर-फेर से खूब छकाया जा सकता है। ज्योतिषी बेचारा खाक न कर सके, पोथी-पत्र बेकार का बोझ हो जाय।
तेज-यह कैसे? खुलासा बताओ तो कुछ हम लोग भी समझें, वक्त पर काम ही आवेगा।
ज्यो-बता देंगे, इस वक्त जिस काम को आये हो वह करो। चलो तैरकर चलें।
तेज-चलो।
ये तीनों ऐयार तैरकर नाव के पास गये। बटुआ ऐयारी का कमर में बांधा कपड़ा-लत्ता किनारे रखकर जल में उतर गये। मगर दो-चार हाथ गये होंगे कि पीछे से सीटी की आवाज आई, साथ ही नाव पर जो माहताब जल रहे थे बुझ गये, जैसे किसी ने उन्हें जल्दी से जल में फेंक दिया हो। अब बिल्कुल अंधेरा हो गया, नाव नजरों से छिप गई। देवीसिंह ने कहा, “लीजिए, चलिए तैर के!”
तेज-ये सब बड़ी शैतान मालूम होती हैं?
ज्यो-मैंने तो पहले ही कहा कि ये सब की सब आफत हैं, अब आपको मालूम हुआ न कि मैं सच कहता था, इन लोगों ने हमारे नजूम को मिट्टी कर दिया है।
देवी-चलिये किनारे, इन्होंने तो बेढब छकाया, मालूम होता है कि किनारे पर कोई पहरे वाला खड़ा देखता था। जब हम लोग तैर के जाने लगे उसने सीटी बजाई, बस अधेरा हो गया, पहले ही से इशारा बंधा हुआ था।
ज्यो-इस नालायक को यह क्या सूझी कि जब हम लोग पानी में उतर चुके तब सीटी बजाई, पहले ही बजाता तो हम लोग क्यों भीगते?
ये तीनो ऐयार लौटकर किनारे आये, पहिरने के वास्ते अपना कपड़ा खोजते हैं तो मिलता ही नहीं।
देवी-ज्योतिषीजी पालागी, लीजिए कपड़े भी गायब हो गये! हाय इस वक्त अगर इन लोगों में से किसी को पाऊं तो कच्चा ही चबा जाऊं।
तेज-हम तो उन लोगों की तारीफ करेंगे, खूब ऐयारी की।
देवी-हां-हां खूब तारीफ कीजिए जिससे उन लोगों में से अगर कोई सुनता हो तो अब भी आप पर रहम करे और आगे न सतावे।
ज्यो-अब क्या सताना बाकी रह गया! कपड़े तक तो उतरवा लिये!
तेज-चलिए अब लश्कर में चलें, इस वक्त और कुछ करते बन न पड़ेगा।
आधी रात जा चुकी होगी जब ये लोग ऐयारी के सताये बदन से नंग-धाड़ंग कांपते-कलपते लश्कर की तरफ रवाना हुए।